Sunday 25 December 2016

फिल्म अभिनेत्रा साधना एक स्मरण ------ संजोग वाल्टर / ध्रुव गुप्त







मुंबई (25 दिसंबर):वयोवृद्ध फिल्म अभिनेत्रा साधना का निधन हो गया है। वे 74 साल की थीं। उन्होंने मुंबई में अंतिम सांसें लीं। साधना के निधन की खबर के पूरे बॉलीवुड में शोक की लहर दौड़ गई है। एक्टर्स ने उनकी मृत्यु पर गहरा दुख व्यक्कत किया है।


साधना का जन्म 2 सितम्बर, 1941 को कराची के सिन्ध में हुआ था। साधना अपने माता-पिता की एकमात्र संतान थीं और 1947 मे देश के बंटवारे के बाद उनका परिवार कराची छोड़कर मुंबई आ गया था।
साधना का नाम उनके पिता मे अपनी पसंदीदा अभिनेत्री साधना बोस के नाम पर रखा था। उनकी मां ने उन्हें आठ वर्ष की उम्र तक घर पर ही पढा़या था। बता दें कि हरि शिवदासानी जो अभिनेत्री बबीता के पिता हैं, साधना के पिता के भाई हैं।
साधना ने 1981 में महफ़िल से बॉलीवुड में करियर की शुरूआत की और पहली बार 1974 में गीता मेरा नाम का निर्देशन भी किया। अपने दौर में साधना का हेयर स्टाइल भी खासा फेमस था।



http://hindi.news24online.com/veteran-actor-sadhana-passes-away-29/
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मशहूर अभिनेत्री साधना का मुंबई के हिंदुजा हॉस्पिटल में शुक्रवार को निधन हो गया. 74 साल की साधना कुछ दिनों से बीमार चल रही थीं.
उन्होंने 'आरज़ू', 'मेरे मेहबूब', 'लव इन शिमला', 'मेरा साया', 'वक़्त', 'आप आए बहार आई', 'वो कौन थी', 'राजकुमार', 'असली नकली', 'हम दोनों' जैसी कई मशहूर हिंदी फ़िल्मों में काम किया था.
साधना का पूरा नाम साधना शिवदासानी था. उनके नाम पर 'साधना कट' हेयरस्टाइल बेहद मशहूर हुआ था.
ट्विटर पर कई लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं.
 
 
पिछले साल साधना, अभिनेता रणबीर कपूर के साथ रैंप पर भी दिखी थीं
निर्माता-निर्देशक करण जौहर ने ट्वीट किया, "आरआईपी साधना आंटी...सौंदर्य, आत्मविश्वास और आकर्षण की आपकी विरासत अमर रहेगी."
पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने ट्वीट किया, "साधना पहली ऐसी अभिनेत्री हैं, जिनके नाम पर एक हेयरस्टाइल शुरू हुआ. उनका 'साया' हमेशा ज़िंदा रहेगा."
गायिका लता मंगेशकर ने ट्विटर के ज़रिए कहा, ''मुझे अभी पता चला कि मेरी पसंदीदा अभिनेत्री साधना जी का आज स्वर्गवास हुआ है. वो एक बहुत बड़ी कलाकार थी. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे.''
साधना के साथ फ़िल्म 'एक फूल दो माली' और 'इंतकाम' में काम कर चुके अभिनेता संजय ख़ान कहते हैं, ''मैंने उनके साथ अपनी दो सबसे कामयाब फ़िल्में की थीं. वो बेहद ख़ूबसूरत थीं. बहुत सुंदर तरीके से चलती थीं. उन्हें हेयर स्टाइलिंग की इतनी समझ थी की एक बार उन्होनें मुझे एक नया हेयर स्टाइल दिया था.''
उन्होंने कहा, ''साधना के पति आरके नैय्यर मेरे करीबी मित्र थे. मुझे याद है कि साधना जितनी ख़ूबसूरत थी उतनी ही साफ़ दिल की थीं.''
संजय ख़ान ने कहा, ''मैं उनसे मिलने नहीं गया क्योंकि मुझे मालूम था कि वो ठीक नहीं हैं. उन्हें दावत देने की मेरी ख़्वाहिश अधूरी रह गई. मैं उन्हें बीमार नहीं देखना चाहता था. बहुत दुख है.''
अभिनेत्री आशा पारेख के मुताबिक़, ''पिछले हफ़्ते ही हम मिले थे और हमारी पार्टियां होती थीं, जिनमें हम बीते ज़माने की एक्ट्रेसेज़– हेलेन, वहीदा रहमान, शम्मी आंटी और कई लोग मिलते थे. उनकी तबियत पहले से ख़राब थी और पांच-छह कोर्ट केस भी चल रहे थे, जिनके चलते वह परेशान थीं. उन्होंने कभी अपना दुख हमसे साझा नहीं किया.''
आशा पारेख कहती हैं, ''वह बहुत पॉपुलर थीं और उसका 'साधना कट' मुझे आज भी याद है. हम उनके घर ही जा रहे हैं.''
पिछले साल मुँह के कैंसर की वजह से साधना की सर्जरी हुई थी. पिछले साल वह अभिनेता रणबीर कपूर के साथ रैंप पर भी दिखी थीं.





Monday 5 December 2016

Florence Ezekiel Nadira :5 December 1932: --- Sanjog Waltar

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OLD is GOLD
19 hrs
Florence Ezekiel Nadira (5 December 1932 – 9 February 2006), commonly known as Nadira was an actress in Indian cinema. She is best remembered for her performance in films in the 1950s and 1960s such as Shree 420 (1955), Pakeezah (1972) and Julie (1975), which won her Filmfare Best Supporting Actress Award.
Nadira was born to a Baghdadi Jewish family. She is survived by two brothers, one of whom lives in the USA and another in Israel.
Nadira rose to cinematic prominence with the 1952 film Aan with her role as a savage princess. She did a bold scene in the movie. In 1955, she played a rich socialite named Maya in Shree 420. She played lead roles in a number of films such as Dil Apna Prit Parayee, Hanste Zakhm, Amar Akbar Anthony and Pakeezah. She was often cast as a temptress or vamp, and played opposite the chaste heroines then favored by the Bollywood film industry.
Nadira won a Filmfare Award for Best Supporting Actress, her role as Julie's mother Margaret, 'Maggie', in the 1975 film Julie. During the 1980s and 1990s, she entered a new phase of her career, playing elderly women as a supporting actress. Her last role was in the film Josh (2000). In her longtime career, because of her western attire, her character in most of her memorable movies was Christian or Anglo-Indian. One notable exception can be found in the movie Aan, opposite Dilip Kumar, where she played a Rajput princess. Also, in Shree 420 there was no religious affiliation shown explicitly: her character was named Maya, which is not necessarily a Christian name. In fact, Maya is a quite common name in India, coming from the Sanskrit word for illusion.
She was well paid for her efforts and was one of the first Indian actresses to own a Rolls-Royce.
Nadira was married twice: she first married an Urdu-language poet and filmmaker named Naqshab, then she married a man whom she publicly called a gold-digger. This marriage lasted only a week.
For the last part of her life, she lived alone in Mumbai, as many of her relatives had moved to Israel, staying for the last three years in her condominium with only a housekeeper.
On 9 February 2006, Nadira died at the age of 73 at the Bhatia Hospital in Tardeo, Mumbai, India, following a prolonged illness.


Monday 10 October 2016

चिर युवा और चिर एकाकी रेखा को जन्मदिन (10 अक्टूबर) की अशेष शुभकामनाएं ------ ध्रुव गुप्त





Dhruv Gupt


मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेक़रार है ?
अतृप्तियों के अनन्त रेगिस्तान में प्रेम की मृगतृष्णा के पीछे भागती हिन्दी सिनेमा की सबसे ग्लैमरस, सबसे विवादास्पद, सबसे संवेदनशील अभिनेत्रियों में एक रेखा की अभिनय-यात्रा और उसका रहस्यमय आभामंडल समकालीन हिंदी सिनेमा के सबसे चर्चित मिथक रहे हैं। तमिल फिल्मों के सुपर स्टार जेमिनी गणेशन और तमिल फिल्म अभिनेत्री पुष्पवल्ली के अविवाहित संबंधों की उपज रेखा को मां-बाप का प्यार कभी मिला ही नहीं। बाप ने उसे अपनी संतान मानने से इनकार किया और मां ने अपना भारी क़र्ज़ उतारने के लिए बचपन में ही फिल्मों की ओर धकेल दिया। तमिल फिल्मों में बाल कलाकार के तौर पर अभिनय करने वाली रेखा ने कुछ तमिल और तेलगू फिल्मों में नायिका की भूमिकाएं भी निभाईं। मां का क़र्ज़ उतारने के लिए उसे कुछ सी ग्रेड अश्लील फिल्मों में भी अभिनय करना पड़ा था।1970 की फिल्म 'सावन भादों' से उसका हिंदी फिल्मों में पदार्पण हुआ। यह फिल्म तो चली, लेकिन बेहद मामूली और अनगढ़-सी दिखने वाली सांवली और मोटी रेखा का लोगों ने मज़ाक भी कम नहीं उड़ाया। कैरियर के आरंभिक वर्षों में उसके कई सह-अभिनेताओं द्वारा उसके भावनात्मक शोषण के किस्से आम हैं। अपने कैरियर की शुरूआत में वह अपने अभिनय या गलैमर के लिए नहीं, उस दौर के अभिनेताओं विश्वजीत, साजिद खान, किरण कुमार के साथ अपने छोटे-छोटे अफेयर और विनोद मेहरा के साथ अपनी संक्षिप्त और असफल विवाह के लिए ज्यादा जानी जाती थी। ग्लैमर की काली दुनिया में अकेली भटकती रेखा को आख़िरकार सहारा मिला 1976 की फिल्म 'दो अनजाने' के अपने नायक अमिताभ बच्चन से। अमिताभ से जुड़ने के बाद उनके मार्गदर्शन में व्यक्ति और अभिनेत्री के तौर पर उनका रूपांतरण आरम्भ हुआ। देखते-देखते सावन भादो, रामपुर का लक्ष्मण, धर्मा, धरम करम, गोरा और काला, एक बेचारा जैसी सामान्य फिल्मों की अनगढ़,भदेस, फूहड़ रेखा अपने कैरियर के उत्तरार्ध में उमराव जान, सिलसिला, आस्था, इजाज़त, आलाप, घर, जुदाई, उत्सव, खूबसूरत, कलयुग की खूबसूरत, शालीन, संवेदनशील अभिनेत्री में बदल गई। रेखा में आने वाला यह आमूल बदलाव उस दौर में किसी चमत्कार जैसा ही माना गया। अपनी परवर्ती फिल्मों के विविध और चुनौतीपूर्ण किरदारों में उन्होंने अभिनय के कई प्रतिमान गढ़े भी और तोड़े भी। 'उमराव जान' उनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्म मानी जाती है। रेखा को अभिनेत्रियों का अमिताभ बच्चन भी कहा गया। लंबे अरसे से फिल्मों में वे कम ही दिख रही हैं, लेकिन चरित्र भूमिकाओं में ही सही, आज भी रूपहले परदे पर उनकी उपस्थिति मात्र एक जादूई अहसास और सम्मोहन छोड़ जाती है। पिछले तीन दशकों से अमिताभ बच्चन के साथ रेखा का थोड़े ज़ाहिर और बहुत-से दबे-छुपे प्रेम का शुमार राज कपूर-नर्गिस, दिलीप कुमार-मधुबाला, देवानंद-सुरैया के बाद हिंदी सिनेमा की सबसे चर्चित, लेकिन सबसे रहस्यमय प्रेम-कथाओं में होता है।
चिर युवा और चिर एकाकी रेखा को जन्मदिन (10 अक्टूबर) की अशेष शुभकामनाएं, एक शेर के साथ !
जिस एक बात पे दुनिया बदल गई मेरी 
क्या पता आपने मुझसे कभी कहा भी न हो !
(ध्रुव गुप्त) #Rekha
साभार :
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1153367974739799&set=a.379477305462207.89966.100001998223696&type=3

Sunday 18 September 2016

कोई ये कैसे बताए कि वो तनहा क्यूं है ? ------ ध्रुव गुप्त

Dhruv Gupt

कोई ये कैसे बताए कि वो तनहा क्यूं है ?
आधुनिक भारतीय सिनेमा की महानतम अभिनेत्रियों में एक शबाना आज़मी ने सिनेमा में संवेदनशील और यथार्थवादी अभिनय के जो आयाम जोड़े, उसकी मिसाल भारतीय सिनेमा में तो क्या, विश्व सिनेमा में भी कम ही मिलती है। अभिनय की गहराई ऐसी कि उनकी एक-एक ख़ामोशी सौ-सौ लफ़्ज़ों पर भारी। परदे पर उनकी ज़ुबान कम, आंखें ज्यादा संवाद करती हैं। महान शायर कैफ़ी आज़मी की इस बेटी को फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट, पुणे से ग्रेजुएशन के बाद जो पहली फिल्म मिली, वह थी ख्वाजा अहमद अब्बास की 'फ़ासला', लेकिन परदे पर पहले आई श्याम बेनेगल की 'अंकुर'। इस फिल्म की सफलता और ख्याति ने उन्हें उस दौर की दूसरी महान अभिनेत्री स्मिता पाटिल के साथ तत्कालीन समांतर और कला सिनेमा का अनिवार्य हिस्सा बना दिया। शबाना ने चार दशक लंबे फिल्म कैरियर में पचास से ज्यादा हिंदी, बंगला और अंग्रेजी फिल्मों में अपने अभिनय के झंडे गाड़े, जिनमें कुछ यादगार फिल्में हैं - अंकुर, परिणय, निशांत, मंडी, शतरंजके खिलाड़ी, स्पर्श, तहजीब, अर्थ, खंडहर, जुनून, मासूम, मृत्युदंड,गॉडमदर, मकड़ी, आर्तनाद, धारावी, दिशा,नमकीन, थोड़ी सी बेवफ़ाई, दस कहानियां, फायर, लिबास, कल्पवृक्ष, भावना, पार,अवतार, उमराव जान, एक ही भूल, साज़, हनीमून ट्रेवल्स, मटरू की बिजली का मंडोला, पतंग, द मोर्निंग रागा, 15 पार्क अवेन्यू, द मिडनाइट चिल्ड्रेन, द बंगाली नाईट, साइड स्ट्रीट्स आदि। उन्होंने आर्थिक दबाव में कुछ फिल्मों में बेमतलब की ग्लैमरस भूमिकाएं भी की थी, जिन्हें वे खुद भी भूल जाना चाहेंगी। शबाना आज़मी पहली अभिनेत्री हैं जिन्हें अपनी फिल्मों में अभिनय के लिए पांच राष्ट्रीय और आठ फिल्मफेयर पुरस्कार मिले। अभिनय के अलावा स्त्री और बच्चों के अधिकारों और मानवीय समस्याओं के लिए लड़ने वाली एक योद्धा के रूप में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा है।
जन्मदिन (18 सितंबर) पर आपके लंबे और सृजनशील जीवन के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं, शबाना ! #ShabanaAzmi

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1135487793194484&set=a.379477305462207.89966.100001998223696&type=3



Thursday 8 September 2016

जन्मदिवस : आशा भोसलें ------ कुलदीप कुमार 'निष्पक्ष'


कुलदीप कुमार 'निष्पक्ष'


ओ मेरे सोना रे, सोना रे, सोना रे 
दे दूँगी जान जुदा मत होना रे......!
जन्मदिवस/ आशा भोसलें
ओ•पी नैय्यर के मधुर संगीत से लगाय पंचम के तेज़ संगीत तक हर तरह के गीत गाने वालीं आशा का जन्म 8 सितम्बर 1933 को महाराष्ट्र के 'सांगली' में हुआ। इनके पिता पं• दीनानाथ मंगेशकर एक शास्त्रीय गायक थें। जब आशा 9 साल की तभी उनका निधन हो गया था। इनकी बड़ी बहन लता मंगेशकर ने बहुत कम उम्र में ही बॉलीवुड में अपना नाम स्थापित कर लिया था। यानी घर का पूरा माहौल ही संगीत से भरा था। फिर भी आशा को बॉलीवुड में जगह बनाने में बहुत संघर्ष करना पड़ा। शुरू में उन्हें केवल छोटी बजट की फिल्मों के लिए गाने का मौक़ा मिलता था। लेकिन इनकी प्रतिभा को सबसे पहले महान संगीतकार ओ•पी• नैय्यर ने पहचाना और इन्हें 'मांगू' फ़िल्म में काम दिया। इसके बाद 'सी•आई•डी' और फिर 'नया दौर' फ़िल्म में मुख्य पार्श्वगायिका के रूप में काम दिया। यह दोनों फ़िल्म आशा के कैरियर की सबसे बड़ी फ़िल्म साबित हुयें और उन्हें बॉलीवुड में एक अलग पहचान मिली। ओ•पी• नैय्यर के साथ उन्होंने हाबड़ा ब्रिज, मेरे सनम और कश्मीर की कली जैसी म्यूजिकल हिट्स फ़िल्में दी। 60 के दशक के अंतिम समय में आशा की जोड़ी महान संगीतकार पंचम (राहुल देव बर्मन) के साथ बनी। और इस जोड़ी ने तेज़ संगीत पर पॉप, कैबरे और डिस्को गीत की शुरुवात बॉलीवुड में की। जिसे तब के श्रोताओं ने 'हॉट सांग' की संज्ञा दी थी। एक तरफ पंचम का वेस्टर्न स्टाइल म्यूजिक और दूसरी तरफ आशा की चंचल, अल्हड़ और मादक आवाज़ इसने बॉलीवुड में म्यूजिक ट्रेंड को ही बदलकर रख दिया। इस जोड़ी ने 'पिया तू अब तो आजा (कारवाँ), दम मारो दम (हरे कृष्णा हरे राम), ओ मेरे सोना रे सोना रे सोना रे (तीसरी मंज़िल), जाने जा ढूंढता फिर रहा ( जवानी दीवानी) जैसे सुपरहिट्स गीत दिए। इस जोड़ी ने 'मेरा कुछ सामान और खाली हाथ शाम आयी' जैसे शांत कर्णप्रिय गीत भी बॉलीवुड को दिए हैं। आशा जी के कैरियर की दो और महत्वपूर्ण फ़िल्में हैं पहला 'उमराव जान' जिसने उनको एक ग़ज़ल गायिका के रूप में भी लोगों के सामने रखा। और दुसरा 'रंगीला' जिसने उनकी दूसरी पारी बॉलीवुड में शुरू की। आशा का संगीतकार जयदेव के संगीत निर्देशन में एक ग़ज़ल एल्बम 'एन अन्फोर्गेटेबल ट्रीट' भी आया था। जिसकी काफी प्रसंशा हुई थी । 
आशा ने हिंदी, मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी, तमिल, मलयालम, अंग्रेजी और रुसी भाषा में कुल 16000 से ज्यादा गाने रिकॉर्ड करवाएं हैं। उन्होंने शास्त्रीय संगीत, उप-शास्त्रीय संगीत, भजन, ग़ज़ल, पॉप और कैबरे गीत गाएं हैं। उन्होंने घर के विरुद्ध जाकर 16 साल की उम्र में ही गणपत राव भोसलें से शादी कर ली थी। लेकिन उनका वैवाहिक जीवन काफी दुष्कर रहा जिसके कारण 1960 में उन्होंने तलाक ले लिया। इसके बाद उन्होंने 1980 में पंचम से शादी किया।
आशा को कुल 7 बार सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका का फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिल है। यह पुरस्कार उन्हें 'गरीबी की सुनो (दस लाख, 1968), परदे में रहने दो (शिकार, 1969), पिया तू अब तो आजा (कारवां 1972), दम मारो दम (हरे कृष्णा हरे राम, 1973), होने लगी है रात जवां (नैना, 1974), चैन से हमको कभी (प्राण जाए पर वचन न जाए, 1975), ये मेरा दिल (डॉन, 1979)' गीत के लिए मिला। उन्हें उमराव जान के गीत 'दिल क्या चीज़ मेरी' और इज़ाजत फ़िल्म के गीत 'मेरा कुछ सामान' के लिए सर्वश्रेष्ठ गायिका का राष्ट्रिय फ़िल्म पुरस्कार भी मिला।
महान पार्श्वगायिका को उनके एक गीत की कुछ पंक्तियों के साथ जन्मदिवस की शुभकामनाएँ !
'जाईये आप कहाँ जायेंगे 
ये नज़र लौट के फिर आएगी 
दूर तक आप के पीछे पीछे 
मेरी आवाज़ चली जाएगी
आप को प्यार मेरा याद जहाँ आयेगा 
कोई काँटा वही दामन से लिपट जायेगा'

Asha Bhonsale --- 8 sept 1933



















Friday 2 September 2016

साधना : जन्मदिन (2 सितंबर): --- ध्रुव गुप्त /संजोग वाल्टर



7 hrs ·02 -09-2015  Edited 
अभी ना जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं !


हिंदी सिनेमा के छठे दशक की बेहद खूबसूरत और संवेदनशील अभिनेत्री साधना ने अपने संक्षिप्त फिल्म कैरियर में सौंदर्य और फैशन के कई नए प्रतिमान गढ़े थे। लड़कियों के बीच चूड़ीदार सलवार और साधना कट बाल को प्रचलन में लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है।1955 में राज कपूर की फिल्म 'श्री 420' के एक गीत 'मुड़ मुड़ के ना देख' में एक्स्ट्रा की भूमिका से अपनी फिल्मी पारी की शुरूआत करने वाली साधना छठे दशक की फिल्म 'दुल्हा दुल्हन' में राज कपूर की नायिका बनी। वैसे नायिका के रूप में उनकी पहली फिल्म थी 1960 की 'लव इन शिमला'। इस फिल्म की सफलता ने उनके लिए फिल्मों के दरवाजे खोल दिए थे। अगले दस वर्षों में साधना की प्रमुख फ़िल्में थीं - परख, हम दोनों, प्रेम पत्र, मनमौजी, एक मुसाफिर एक हसीना, असली नकली, मेरे महबूब, वो कौन थी, राजकुमार, दुल्हा दुल्हन, वक़्त, आरज़ू, मेरा साया, गबन, बदतमीज, अनीता, इंतकाम, एक फूल दो माली, अमानत और आप आए बहार आई। फिल्म निर्देशक आर.के. नैय्यर से शादी और एक दुर्घटना में अपनी आंखों की सुंदरता खो देने के बाद साधना ने सातवे दशक के आरंभ में फिल्मों को अलविदा कह दिया। आर.के. नैय्यर की मृत्यु के बाद वर्षों से एकांत और अलग-थलग जीवन जी रही साधना को जन्मदिन (2 सितंबर) की ढेर सारी शुभकामनाएं, उनकी फिल्म 'वो कौन थी' के एक अमर गीत के साथ !

हमको मिली हैं आज
ये घडियां नसीब से
जी भर के देख लीजिए
हमको क़रीब से
फिर आपके नसीब में ये बात हो न हो
लग जा गले कि फिर ये
हसीं रात हो न हो
शायद फिर इस जनम में
मुलाक़ात हो न हो !

हमको मिली हैं आज
ये घडियां नसीब से
जी भर के देख लीजिए
हमको क़रीब से
फिर आपके नसीब में ये बात हो न हो
लग जा गले कि फिर ये
हसीं रात हो न हो
शायद फिर इस जनम में
मुलाक़ात हो न हो !
साभार :



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संजोग वॉल्टर

साधना अपने पिता की मदद करने के लिए वो फिल्मों में आई, क्यों की उनके परिवार का सब कुछ करांची में छुट गया था साधना एकलौती औलाद थी साधना यह नाम दिया था उनके पिता ने उस दौर में साधना बोस बतौर अभिनेत्री लोगों के दिलो दिमाग पर छाई थी,साल था 1955 “राज कपूर” की फिल्म श्री 420 के गीत ” ईचक दाना बीचक दाना” में एक कोरस लड़की की भूमिका मिली थी साधना को उस वक्त वो 15 साल की थी,दरअसल साधना को ADVT.कपनी ने मौक़ा दिया था.
2 सितम्बर, 1941, कराची,(अब पाकिस्तान ) में हुआ था साधना अपने माता पिता की एकमात्र संतान थीं और 1947 मे देश के बंटवारे के बाद उनका परिवार कराची छोड़कर मुंबई आ गया। भारत की पहली सिंधी फिल्म अबना, (1958) में काम करने का मौक़ा मिला जिसमें उन्होंने अभिनेत्री शीला रमानी की छोटी बहन की भूमिका निभाई थी और इस फिल्म के लिए उन्हें 1 रुपए की टोकन राशि का भुगतान किया गया था. इस सिंधी ब्यूटी को सशधर मुखर्जी, ने देखा.जो उस वक्त बहुत बड़े फिल्मकार थे, सशधर मुखर्जी को अपने बेटे जॉय मुखर्जी, के लिए जो उनके साथ हेरोइन का किरदार करे एक नये चेहरे की तलाश थी साल था 1960 ” लव इन शिमला” रिलीज़ हुई, इस फिल्म के डाइरेक्टर थे आर.के. नैयर, और उन्होंने ही साधना को नया लुक दिया “साधना कट” दरअसल साधना का माथा बहुत चौड़ा था उसे कवर किया गया बालों से उस स्टाईल का नाम ही पड़ गया “साधना कट” And from this movie onwrds Sadhna has become most stylish with the special hair cut called “साधना कट” फिल्मालय से उनका तीन साल का अनुबंध था,इसी कड़ी में थी एक मुसाफिर एक हसीना एक और मुज़िकल हिट.जिसके डाइरेक्टर थे राज खोसला. बिमल रॉय ने उन्हें परख में मौक़ा दिया परख को कई अवार्ड भी मिले थे फिल्म में साधना ने साधारण गांव लड़की का किरदार निभाया था.. 1961 में एक और “हिट” फिल्म हम दोनों में देव आनंद के साथ थी इस B/W फिल्म को colourized किया गया था और 2011 में फिर से रिलीज़ किया गया था 1962 में वह फिर से निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा असली – नकली में देव आनंद के साथ थी. 1963 में, टेक्नीकलर फिल्म मेरे मेहबूब एच एस रवैल द्वारा निर्देशित उनके फ़िल्मी कैरियर ब्लॉकबस्टर फिल्म थी यह फिल्म 1963 की भी ब्लॉकबस्टर फिल्म थी और 1960 के दशक के शीर्ष 5 फिल्मों में स्थान पर रहीं.मेरे मेहबूब में निम्मी पहले साधना वाला रोल करने जा रही थी न जाने क्या सोच कर निम्मी ने साधना वाला रोल ठुकरा निम्मी ने राजेंद्र कुमार की बहन का रोल किया.साधना के बुर्के वाला सीन इंडियन क्लासिक में दर्ज है. साल 1964 में उनके डबल रोल की फिल्म रिलीज़ हुई मनोज कुमार हीरो थे “वो कौन थी” सफेद साड़ी पहने महिला भूतनी का यह किरदार हिन्दुस्तानी सिनेमा में अमर हो गया इस फिल्म से हिन्दुस्तानी सिनेमा को नया विलेन भी मिला जिसका नाम था प्रेम चोपड़ा साधना को लाज़वाब एक्टिंग के लिए प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में पहला फिल्मफेयर नामांकन भी मिला था, क्लासिक्स फिल्म वो कौन थी , मदन मोहन के लाज़वाब संगीत और लता मंगेशकर की लाज़वाब गायकी के लिए भी याद की जाती है “नैना बरसे रिमझिम ” का आज भी कोई जवाब नहीं है इस फिल्म के लिए साधना को मोना लिसा की तरह मुस्कान के साथ” शो डाट कहा गया था यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर “हिट” थी.साल 1964 में साधना का नाम एक हिट से जुड़ा यह फिल्म थी राजकुमार,हीरो थे शम्मी कपूर राज कुमार भी साल 1964 की ,ब्लॉकबस्टर फिल्म थी. साल 1965 की मल्टी स्टार कास्ट की फिल्म वक्त रिलीज़ हुई ब्लॉकबस्टर थी इस साल की राज कुमार सुनीलदत्त, शशीकपूर, बलराज साहनी,अचला सचदेव और शर्मिला टैगोर वक्त में थे,वक्त में साधना ने तंग चूड़ीदार- कुर्ता पहना जो इस पहले किसी भी हेरोइन ने नहीं पहना था. साल 1965 साधना के लिए एक और कामयाबी लाया था इसी साल रिलीज़ हुई रामनन्द सागर की “आरजू”शंकर जयकिशन का लाजवाब संगीत हसरत जयपुरी का लिखा यह गीत जो गाया था लता जी ने “अजी रूठ कर अब कहाँ जायेगा” “आरजू के खाते में कई अवार्ड आये,1965 की एक और ब्लॉकबस्टर फिल्म जिसने कई और रिकार्ड भी कायम किये थे. फिल्म “आरजू” में भी साधना ने अपनी स्टाईल को बरकरार रखा. साधना ने रहस्यमयी फ़िल्में मेरा साया (1966)सुनील दत्त और अनीता मनोज कुमार (1967) दोनों की फिल्मों की हेरोइन साधना डबल रोल में थी, संगीतकार एक बार मदन मोहन ही थे,फिल्म मेरा साया का थीम सोंग ” तू जहा जहा चलेगा, मेरा साया साथ होगा” “नैनो में बदरा छाए” जैसे गीत आज भी दिल को छुते है.अनीता (1967) से सरोज खान को मौक़ा मिला था,सरोज खान उन दिनों के मशहूर डांस मास्टर सोहन लाल की सहायक थी गाना था झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में इस गाने को आवाज़ दी दी थी आशा भोसले ने उस दौर में जब यह यह गाना स्क्रीन पर आता था तो दर्शक दीवाने हो जाते थे,और परदे पर सिक्कों की बौछार शुरू हो जाती थी जिन्हें लुटने के लिए लोग आपस में लड़ जाते थे. इस फिल्म के गीत भी राजा मेंहदी अली खान ने लिखे थे.कहते हैं की साधना को नजर लग गयी थी उन्हें थायरॉयड हो गया था अपने ऊँचे फ़िल्मी कैरियर के बीच वो इलाज़ के लिए अमेरिका के बोस्टन चली गयी अमेरिका से लौटने के बाद, वो फिर फ़िल्मी दुनिया में लौटी और कई कामयाब फ़िल्में उन्होंने की इंतकाम (1969) में अभिनय किया, एक फूल माली इन दोनों फिल्मों के हीरो थे संजय (1969), बीमारी ने साधना का साथ नहीं छोड़ा अपनी बीमारी को छिपाने के लिए उन्होंने अपने गले में पट्टी बंधी अक्सर गले में दुपट्टा बांध लेती थी,यही साधना आइकन बन गया था और उस दौर की लड़कियों ने इसे भी फैशन के रूप में लिया था,साल 1974 गीता मेरा नाम रिलीज़ हुई जो उनकी आखिरी कमर्शियल हिट थी,इस फिल्म की डाइरेक्टर वो थी इस फिल्म में भी उनका डबल रोल था सुनील दत्त और फ़िरोज़ खान हीरो थे. साधना की कई फ़िल्में बहुत देर से रिलीज़ हुई 1970 के आस पास अमानत को रिलीज़ होना था वो 1975 में रिलीज़ हुई तब बहुत कुछ बदल चुका था 1978 में महफ़िल और 1994 में उल्फत की नयी मंजिलें.
साधना ने 6 मार्च 1966 को निर्देशक आर.के. नैयर, के साथ शादी कर ली जो 1995 में हमेशा के उनका साथ छोड़ गये इस शादी से साधना के पिता खुश नहीं थे,क्यों आर.के. नैयर दमे के मरीज़ थे,दमा दम के साथ जता है और आर.के. नैयर के साथ भी यही हुआ साधना के कोई आस औलाद नहीं हुई.कहा जाता है की राज खोसला और आर.के. नैयर साधना की ज़िन्दगी यही दो नाम थे दोनों ही साधना के दीवाने थे राज खोसला और आर.के. नैयर ने साधना के साथ जितनी भी फ़िल्में की उस में पूरी जान इन दोनों ने लगा दी थी,राज खोसला और आर.के. नैयर ने अलग अलग वक्त में साधना के फ़िल्मी सफर को नये मुकाम तक पहुंचाया था.
कई हिंदी फिल्मों में उनके पिता का रोल उनके सगे चाचा हरी शिवदासानी ने किया था जो अभिनेत्री बबिता के पिता है(नयी उम्र की नयी फसल के लिए,करिश्मा और करीना के नाना) साधना की चचेरी बहन बबिता ने फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा यह बात और है बबिता अपनी बहन से बहुत ज्यादा प्रभावित थी लिहाजा उन्होंने ने भी साधना स्टाईल को अपनाया बबिता ने फिल्म अभिनेता रंधीर कपूर से शादी कर फिल्मों को अलविदा कह दिया.अपने फ़िल्मी करियर को लेकर साधना बहुत संजीदा थी.She suffered from a disorder of her eyes due to hyperthyroidism .
कई साल वो तनहा रही उनकी तन्हाई को कम करने के लिए उनकी दोस्त नंदा हेलन वहीदा रहमान उनसे मिलने जाती थी ,साल 2010 में साधना एक बार फिर ख़बरों में आई बिल्डर यूसुफ लकड़ावाला ने उनसे उस फ्लैट को खाली करने को कहा था जिसमें वो रह रही थी यह अपार्टमेन्ट आशा भोसलें का है जहा बरसों से वो किराये पर रह रही थी फ़िलहाल यह मामला अब कोर्ट में हैं. 2014 में वो रणबीर कपूर के साथ रैंप पर भी दिखी थीं.
2014 में मुँह के कैंसर की वजह से साधना की सर्जरी हुई थी. इसी बीमारी के चलते 25 दिसंबर 2015 में उनका निधन हो गया।
हिंदी सिनेमा में योगदान के लिए, अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फिल्म अकादमी (आईफा) द्वारा 2002 में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है. 1955 श्री 420, गीत “ईचक दाना बीचक दाना” में कोरस लड़की की भूमिका, 1958 अबना पहली सिंधी फिल्म,1960 लव इन शिमला,परख 1961 हम दोनों ,1962 एक मुसाफिर एक हसीना,प्रेम पत्र,मन मौजी,असली नकली,1963 मेरे मेहबूब ,1964 वो कौन थी,राजकुमार,पिकनिक,दूल्हा दुल्हन 1965 वक्त,आरजू 1966 मेरा साया 1967 अनीता 1968 स्त्री उड़िया 1969 सच्चाई, इंतकाम,एक दो फूल माली 1970 इश्क पर जोर नहीं 1971 आप आये बहार आयी 1972 दिल दौलत दुनिया 1973 हम सब चोर हैं 1974 गीता मेरा नाम, छोटे सरकार, वंदना 1975 अमानत 1978 महफिल 1987 नफरत 1988 आखिरी निश्चय 1994 उल्फत की नयी मंजिलें।
http://swapnilsansar.org/2016/09/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%B6-%E0%A4%86%E0%A4%87%E0%A4%95%E0%A5%89%E0%A4%A8-%E0%A4%A5%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%A8%E0%A4%BE/

Saturday 27 August 2016

पुण्यतिथि/ महान पार्श्वगायक मुकेश ----- कुलदीप कुमार 'निष्पक्ष'



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कुलदीप कुमार 'निष्पक्ष'
फूल तुम्हें भेजा है ख़त में, फूल नहीं मेरा दिल है...!
पुण्यतिथि/ महान पार्श्वगायक मुकेश
'छोड़ गए बालम, मुझे हाय अकेला छोड़ गए' और 'किसी की मुस्कुराहटों पर हो निसार' जैसे गीतों से श्वेत-श्याम पटल पर दर्द को रंग और संवेदना को सहारा देने वालें गायक मुकेश जी ने हर तरह के गीत गाएं हैं। लेकिन उन्हें उनके दर्द भरे गीतों के लिए विशेषरूप से याद किया जाता है। उनकी कशिश भरी आवाज़ और दर्द भरे अंदाज़ मन को एक अलग शांति देतें हैं। मुकेश जी का जन्म 22 जुलाई 1923 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता एक अभियंता थें। उनकी 10 संतान थीं और मुकेश उनकी छटवीं संतान। जब मुकेश जी छोटें थें तब उनकी बहन को संगीत की शिक्षा देने एक शिक्षक आतें थें। मुकेश जी उनको छिपकर सुनते थे।  धीरे-धीरे वह संगीत की बारीकियों से परिचित हुयें और गायिकी की तरफ उनका रुझान होने लगा। हाईस्कूल पास करने के बाद वह पीडब्लूडी में काम करने लगे। उसी समय उनके दूर के रिश्तेदार मोतीलाल उनसे मिले और उनसे प्रभावित होकर उन्हें मुम्बई ले आए। यहीं से मुकेश जी के फ़िल्मी कैरियर की शुरुवात हुई। बतौर अभिनेता और गायक उनकी पहली फ़िल्म 1941 में आयी 'निर्दोष' थी। उनके कैरियर का पहला गीत था 'दिल ही बुझ गया होता' इसके अलावा बतौर अभिनेता उन्होंने 'माशुका, आह, अनुराग और दुल्हन' फ़िल्म में काम किया। यह सभी फिल्में असफल रही।
मुकेश जी के आदर्श गायक सहगल जी थें। जब मुकेश जी फिल्मी दुनिया में नहीं आए थे तब वह अपने दोस्तों को सहगल जी के गाये गाने उनकी आवाज़ में कॉपी करके सुनाते थे। इसका प्रभाव उनके गायिकी पर भी पड़ा। एक वह भी दौर आया जब लोग आपस में शर्त लगाने लगे कि 'यह गीत सहगल ने गाया है या मुकेश ने।' एक बार सहगल जी भी मुकेश जी को सुनकर अचंभे में पड़ गए थे। अपने 40 साल लम्बे फ़िल्मी कैरियर में मुकेश जी ने लगभग 200 फिल्मों के लिए गीत गाए। 40 के दशक के उन्होंने अधिकतर गीत दिलीप कुमार, 50 के दशक में वह राजकपूर और 60 के दशक में राजेन्द्र कुमार मनोज कुमार के लिए कई यादगार गीत गाए हैं। 50 का दशक उनके कैरियर और हिंदी सिनेमा के लिए महत्वपूर्ण दशक है। इस दौरान वो राजकपूर जी की आवाज़ बने और बॉलीवुड की सबसे सफल तिकड़ी शैलेन्द्र-मुकेश-शंकर जयकिशन एक साथ काम करने शुरू किये। इस तिकड़ी ने आम भारतीय जनमानस में फ़िल्मी गीतों को काफी लोकप्रियता दिलाई। हसरत जयपुरी साहब के लिखे कई बेहतरीन गीतों को भी मुकेश जी ने आवाज़ दी। राजकपूर जी के साथ उन्होंने 'अंदाज़, आवारा, श्री 420, छलिया, अनाड़ी, संगम, जिस देश में गंगा बहती है, मेरा नाम जोकर, तीसरी कसम' जैसी म्यूजिकल हिट्स फिल्मों में काम किया। 1951 में आयी फ़िल्म 'मल्हार' और 1956 में आयी फ़िल्म 'अनुराग' के निर्माता मुकेश जी थे। यह दोनों फ़िल्में भी असफल रही थीं। मुकेश जी सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का फ़िल्म फेयर अवार्ड पाने वाले पहले गायक हैं। उन्होंने अपने कैरियर में 4 बार फ़िल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त किया। उनका अंतिम फ़िल्म फेयर उनकी मृत्यु के बाद मिला। उन्हें फ़िल्म फेयर पुरस्कार 'सब कुछ सीखा हमने (अनाड़ी 1959), सबसे बड़ा नादान वहीँ (पहचान 1970), जय बोलो बेईमान की (बेईमान 1972) और कभी कभी मेरे दिल में (कभी कभी 1976)' के लिए मिला। उन्हें साल 1974 में आयी फ़िल्म 'रजनीगंधा' के गीत 'कई बार यूँ ही देखा है' के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार प्राप्त हुआ। मुकेश जी 27 अगस्त 1976 को अमेरिका में एक कार्यक्रम में ' एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल' गीत गा रहे थे तभी उनको दिल का दौरा पड़ा और उनकी उसी समय मौत हो गयी। उनके मृत्यु का समाचार सुनकर राजकपूर ने कहा था 'आज मेरी आवाज़ और आत्मा दोनों चली गयी'
महान पार्श्वगायक को उनके एक गीत के साथ श्रद्धांजलि !
'दीवानों से ये मत पूछो, दीवानों पे क्या गुज़री है 
हाँ उनके दिलों से ये पूछो, अरमानों पे क्या गुज़री है
औरों को पिलाते रहते हैं और खुद प्यासे रह जाते हैं 
ये पीनेवाले क्या जाने, पैमानों पे क्या गुज़री है
मालिक ने बनाया इंसां को, इंसान मोहब्बत कर बैठा 
वो उपर बैठा क्या जाने, इंसानों पे क्या गुज़री है'
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=598222747026339&set=a.102967489885203.3918.100005158561797&type=3

Sunday 31 July 2016

मुमताज़ जिसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं है --- संजोग वाल्टर

जन्मदिवस 31 जुलाई के शुभ अवसर पर मुमताज़ जी को शुभकामनायें :











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मुमताज़ ( 31 जुलाई 1947) :



मुमताज़ हिंदी फ़िल्में का वो नाम है जिसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं है मामूली रोल से शुरुआत और फिर अपनी मेंहनत और ईमानदारी की वजह से टाप पर पहुँचने की कोई दूसरी मिसाल नहीं है,मुमताज़ ( 31 जुलाई 1947, बॉम्बे ) का नाम ज़ेहन में आता है तो याद आती है वो फ़िल्में जिनमें उन्होंने extra का रोल किया था मुझे जीने दो (1963 ) में उनके हिस्से में सम्वाद था माँ भैया आये है,उनका गहरा दाग (1963 ) में राजेन्द्र कुमार की बहन का रोल,मेरे सनम (1965) में वैम्प का किरदार "यह है रेशमी जुल्फों का अँधेरा" यह गाना तो आज भी मशहूर है मुमताज़ ने जम कर दोस्ती भी निभाई,फिरोज खान जब 1970 में अपराध से निर्माता बने तो मुमताज़ ने हीरो प्रधान फिल्म में काम किया और फ़िरोज़ खान के कहने पर बिकनी भी पहनी,अपनी बेटी नताशा की शादी फिरोज खान के बेटे फरदीन खान से कर अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दिया,जीतेन्द्र की फिल्म हमजोली में एक आइटम सिंह किया टिक टिक मेरा दिल बोले देव साहब के कहने पर फिल्म हरे रामा हरे कृष्ण भी इस फिल्म में मुमताज़ सिर्फ नाम की हेरोइन थी,पूरी फिल्म जीनत अमान के इर्द गिर्द थी,तेरे मेरे सपने (1971), खिलौना (1970) मुमताज़ की वो चुनिन्दा फ़िल्में जिनमें उन्होने जान डाल थी खिलौना के लिए Filmfare Best Movie Award.के साथ Filmfare Best Actress Award,भी हासिल किया था,मुमताज़ के वालिद-वालिदा का नाम था अब्दुल सलीम अस्करी- शादी हबीब आगा.मुझे जीने दो (1963 ) में दिखी एक छोटे से किरदार,इस दौर में उनकी जोड़ी बनी दारा सिंह के सात इस जोड़ी की 16 फ़िल्में आई थी बौक्सर, सेमसन,टार्ज़न,किंग कोंग, फौलाद ,वीर भीमसेन , हर्क्यूलिस Tarzan Comes to Delhi, Sikandar E Azam, Rustom-E-Hind, Raaka, Boxer, Daku Mangal सिंह,तब दारा सिंह को मिलते ४.५ लाख रुय्पे एक फिल्म के मुमताज़ को २.५ लाख रूपये,मुमताज़ बी ग्रेड की फिल्मों में हेरोइन बन कर आ रही थी तो ऐ ग्रेड की फिल्मों में छोटे छोटे रोल कर रही थी पत्थर के सनम इसकी मिसाल है,राम और श्याम (1967). में उन्होंने दिलीप कुमार के साथ काम किया जो 1967 की टॉप हिट फिल्म थी शर्मीला टैगोर के साथ सावन की घटा (1966 ), यह रात फिर न आएगी (1966) मेरे हमदम मेरे दोस्त (1968) .राजेश खन्ना के साथ दो रास्ते (1969) और बंधन के बाद इस जोड़ी ने आठ फ़िल्में की. सच्चा झूठा (1970 ) में शशी कपूर ने उनके साथ काम करने से मना कर दिया था,(हीरो राजेश खन्ना) 1974 की सुपर हिट फिल्म "चोर मचाये सर शोर" शशी कपूर की यह कम बैक फिल्म थी,मुमताज़ ने यह जानते हुए भी इस फिल्म के हीरो शशी है काम करने से मना नहीं किया,मुमताज़ ने करीब 108 फिल्मों में काम किया था,धर्मेन्द्र,संजीव कुमार,जेतेंद्र सुनील दत्त,फिरोज खान,बिस्वजीत,देव आन्नद,अमिताभ बच्चन के साथ भी काम किया 1969-१९७५ के बीक उनकी और राजेश खन्ना की जोड़ी ने कई हिट फ़िल्में दी.राजेश खन्ना के साथ उनकी कमाल की जुगल बंदी थी.१९७४ में जब मुमताज़ अपने करियर की उंचाई पर थी तब millionaire मयूर माधवानी से शादी का फैसला कर लिया तब बाकी था काम आप की कसम ,रोटी और प्रेम कहानी का इन तीनों फिल्मों में उनके हीरो थे राजेश खन्ना इसके अलावा उन्होंने लफंगे (रंधीर कपूर) और नागिन का काम पूरा करने के बाद फ़िल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया और लन्दन जा बसी.1989 में वो फिल्म आंधिया में आई य फिल्म भारत में फलाप रही पर पकिस्तान में इस फिल्म ने सिल्वर जुबली की थी,In 1996 she received the Filmfare Lifetime Achievement Award.In June 2008, she was honored for her "Achievement in Indian Cinema" by the International Indian Film Academy (IIFA) in Bangkok. Mumtaz has featured recently in UniGlobe Entertainment's cancer docudrama 1 a Minute with a number of international stars.मुमताज़ की दो बेटियां है,मुमताज़ का नाम राजेश खन्ना के साथ भी जुड़ा,पर उनके और शम्मी कपूर के बीच रोमांस की खूब चर्चा है,बताया जाता है इस रिश्ते से "पापा कपूर" नहीं खुश थे वो नहीं चाहते थे उनके खानदान में एक और बहु फ़िल्मी दुनिया से हो (गीता बाली) शम्मी ने बाद में भाव नगर की नीला देवी से शादी कर ली थी "फिल्म ब्रह्मचारी के दौरान मुमताज़ शम्मी का रोमांस जोरो पर था " फिल्म  ब्रह्मचारी का एक गाना इस रिश्त्ते पर मोहर भी लगाता है "आज कल तेर मेरे प्यार के चर्चे हर जुबान पर.मुमताज़ स्टायलिश हेरोइन थी,उनकी मुमताज़ साड़ी बहुत मशहूर उस ज़माने में खूब बिक्री होती थी "मुमताज़ साड़ी" की ( इस पर फिर कभी) बेहतरीन अदाकारा के साथ वो लाज़वाब डांसर भी थी । 



Tuesday 19 July 2016

वो न आएंगे पलट के उन्हें लाख हम बुलाएं ! ------ ध्रुव गुप्त



वो न आएंगे पलट के उन्हें लाख हम बुलाएं !
अपनी सुरीली, भावुक, उनींदी और रेशमी आवाज़ के लिए मशहूर गुज़रे ज़माने की विख्यात गायिका मुबारक़ बेगम का पिछली रात निधन एक स्तब्ध कर देने वाली ख़बर है। लगभग अस्सी साल की बेगम अपनी बीमारी और आर्थिक अभाव की वजह से पिछले कुछ सालों से अपने जीवन के सबसे बड़े संकट से गुज़र रही थीं। मुंबई के जोगेश्वरी इलाके में अपने एक  पुराने फ्लैट  के बेडरूम में अकेली रहने वाली बेगम अकेलेपन में ही चल बसी । पिछले दिनों उनके हालात पर मेरा पोस्ट पढ़ने के बाद कई मित्रों ने उनकी आर्थिक मदद भी की थी। हिंदी फिल्मों की संगीत राजनीति की वज़ह से बेगम को बहुत मौके नहीं मिले, लेकिन उनके गाए कुछ गीत हमारी संगीत धरोहर के अमूल्य हिस्से हैं। उनकी गहरी, कच्ची, भावुक आवाज़ हमारी पीढ़ी के लोगों के हिस्से के इश्क़ और अधूरेपन की कभी हमराह हुआ करती थी। उनके गाए कुछ प्रमुख गीत हैं - कभी तन्हाइयों में भी हमारी याद आएगी (हमारी याद आएगी), वो न आएंगे पलट के उन्हें लाख हम बुलाएं (देवदास), हम हाले दिल सुनायेंगे, सुनिए कि न सुनिए (मधुमती), बेमुरव्वत बेवफ़ा बेगानाए दिल आप हैं (सुशीला), नींद उड़ जाए तेरी चैन से सोने वाले (जुआरी), निगाहों से दिल में चले आइएगा (हमीर हठ), कुछ अज़नबी से आप हैं कुछ अजनबी से हम (शगुन), मेरे आंसूओं पे न मुस्कुरा कई ख़्वाब थे जो मचल गए (मेरे मन मितवा), मुझको अपने गले लगा लो ऐ मेरे हमराही (हमराही), जब इश्क़ कहीं हो जाता है तब ऐसी हालत होती है (आरज़ू) और वादा हमसे किया दिल किसी को दिया (सरस्वतीचन्द्र)।
मरहूमा मुबारक़ बेग़म को खिराज़-ए-अक़ीदत !







Monday 4 July 2016

हिन्दी सिनेमा की पहली ब्यूटी क्वीन नसीम बानू ------ संजोग वॉल्टर



 भारतीय सिने जगत में अपनी दिलकश अदाओं से दर्शकों को दीवाना बनाने वाली अभिनेत्रियों की संख्या यू तो बेशुमार है लेकिन चालीस के दशक में एक अभिनेत्री ऐसी हुयी। जिसे ब्यूटी क्वीन कहा जाता था और आज के सिने प्रेमी शायद  ही उसे जानते हों, वह अभिनेत्री थीं नसीम बानू 4 जुलाई 1916 को को जन्मी नसीम बानू की परवरिश शाही ढग़ से हुयी थी। वह स्कूल पढऩे के लिए पालकी से जाती थीं। नसीम बानू की सुंदरता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें किसी की नजर न लग जाए इसलिये उन्हें पर्दे में रखा जाता था। फिल्म जगत में नसीम बानू का प्रवेश संयोगवश हुआ। एक बार नसीम बानो अपनी स्कूल की छुटियों के दौरान अपनी मां के साथ फिल्म सिल्वर किंग की शूटिंग देखने गयीं। फिल्म की शूटिंग देखकर नसीम बानू मंत्रमुग्ध हो गयीं और उन्होंने निश्चय किया कि वह अभिनेत्री के रुप में अपना सिने करियर बनायेंगी। इधर स्टूडियों में नसीम बानू की सुंदरता को देख कई फिल्मकारों ने नसीम बानू के सामने फिल्म अभिनेत्री बनने का प्रस्ताव रखा लेकिन उनकी मां ने यह कहकर सभी प्रस्ताव ठुकरा दिये कि नसीम अभी बच्ची है। नसीम की मां उन्हें अभिनेत्री नहीं बल्कि डॉक्टर बनाना चाहती थीं। इसी दौरान फिल्म निर्माता सोहराब मोदी ने अपनी फिल्म ‘हेमलेट’ के लिये बतौर अभिनेत्री नसीम बानू को काम करने के लिए प्रस्ताव दिया और इस बार भी नसीम बानू की मां ने इंकार कर दिया लेकिन इस बार नसीम अपनी जिद पर अड़ गयी कि उन्हें अभिनेत्री बनना ही है। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी बात मनवाने के लिये भूख हडताल भी कर दी । 70 के दशक में उनकी पहचान सायरा बानू की माँ के रूप में बनी,गोपी के बाद वो दिलीप कुमार की सास के रूप में जानी गयी, कभी दिलीप कुमार के साथ फिल्मों में हेरोइन बन कर आने वाली नसीम बानू 1970 में दिलीप कुमार की सास बनी,नसीम बानू ने अभिनय के बाद 1960 में रिलीज़ सायरा बानू की पहली फिल्म जंगली से ड्रेस डिजायनिंग का काम किया सिर्फ अपनी बेटी की ही फिल्मों में 18 जून 2002 को मुबई में 83 साल की उम्र में स्वर्गवास हो गया था.नसीम बानू ने सोहराब मोदी की कई फिल्मों में काम किया था खून का खून 1935,तलाक 1938,पुकार 1939 उजाला 1942,चल चल रे नौज़वान 1944 ,बेगम 1945 ,दूर चलें 1946 ,जीवन आशा 1946 ,अनोखी अदा 1948 ,चांदनी रात 1949 , शीश महल 1950 ,शबिस्तान 1951 ,अजीब लड़की 1952 ,बागी 1953 , नौशेर्वाने आदिल 1957 काला बाज़ार 1960 ,हौली डे इन बॉम्बे 1963 नबाव सिराज़ुद्दौल्ला 1967 ,पाकीज़ा 1972 कभी कभी 1976

Sunday 3 July 2016

खुद से भी ज़ुदा लगता था :राज कुमार ------ ध्रुव गुप्त




Dhruv Gupt
July 3, 2013
आप मुझे भूल गए क्या, जानी ?
राज कुमार उर्फ़ कुलभूषण पंडित का मुंबई के माहिम थाने के थानेदार से फिल्मों में स्टारडम तक का सफ़र एक सपने जैसा रहा था। अपने व्यक्तिगत जीवन में बेहद आत्मकेंद्रित, अक्खड़ और रहस्यमय राज कुमार के अभिनय की एक अलग और विलक्षण शैली रही जो उनके किसी पूर्ववर्ती या समकालीन अभिनेता से मेल नहीं खाती थी। उनके अभिनय में विविधता चाहे न रही हो, लेकिन यह सच है कि अपनी ज्यादातर फिल्मों में उन्होंने जिस अक्खड़, बेफिक्र और दंभ की सीमाएं छूते आत्मविश्वासी व्यक्ति का चरित्र जिया है, उसे जीना सिर्फ उन्हीं के बूते की बात थी। उनका अपना एक अलग दर्शक वर्ग रहा है जिसे आज भी उनकी कमी खलती है। उनके बाद नाना पाटेकर ने उनकी अभिनय शैली को सफलतापूर्वक अपनाया। 1952 में ' रंगीली ' फिल्म से अपना कैरियर शुरू करने वाले राज कुमार ने पचास से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें कुछ प्रमुख फ़िल्में थीं - मदर इंडिया, दुल्हन, जेलर, दिल अपना और प्रीत पराई, पैगाम, अर्धांगिनी, उजाला, घराना, दिल एक मंदिर, गोदान, फूल बने अंगारे, दूज का चांद, प्यार का बंधन, ज़िन्दगी, वक़्त, पाकीजा, काजल, लाल पत्थर, ऊंचे लोग, हमराज़, नई रौशनी, मेरे हुज़ूर, नीलकमल, वासना, हीर रांझा, कुदरत, मर्यादा, सौदागर, हिंदुस्तान की कसम। अपने जीवन के आखिरी वर्षों में उन्हें कर्मयोगी, चंबल की कसम, तिरंगा, धर्मकांटा, जवाब जैसी कुछ फिल्मों में बेहद स्टीरियोटाइप भूमिकाएं निभाने को मिलीं। अपनी स्थापित छवि के विपरीत उनकी कुछ फिल्मों - मदर इंडिया, गोदान और दिल एक मंदिर ने यह साबित किया कि उनके अभिनय में विविधता की गुंजाईश है, लेकिन उनकी इस विविधता का इस्तेमाल बहुत कम हो सका ! इस विलक्षण अभिनेता की पुण्य तिथि (3 जुलाई) पर उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि, एक शेर के साथ !
वो आग था किसी बारिश का बुझा लगता था 
अजीब शख्स था, खुद से भी ज़ुदा लगता था !

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Monday 27 June 2016

जन्मदिवस (27 जून)/ सदाबहार पार्श्वगायक नितिन मुकेश ------ कुलदीप कुमार 'निष्पक्ष'


कुलदीप कुमार 'निष्पक्ष'
उन आँखों का हँसना भी क्या
जिन आँखों में पानी न हो
वो जवानी जवानी नहीं
जिसकी कोई कहानी न हो......
जन्मदिवस (27 जून)/ सदाबहार पार्श्वगायक नितिन मुकेश
27 जून 1950 को पैदा हुए युवा दिलों के गायक नितिन मुकेश महान पार्श्वगायक मुकेश जी के पुत्र हैं। सन् 1970 से 2000 तक गायिकी के क्षेत्र में सक्रीय रहने वालें नितिन मुकेश ने अपने 3 दशक के फ़िल्मी कैरियर में बहुत कम गीत गायें हैं। लेकिन जितना भी गीत अपनी खनकती आवाज़ में गाया सभी उस दौर से लगाय आज भी श्रोताओं को पसंद आता है। और इनके गीतों को सुनने के बाद वह जुबां पर भी चढ़ जाता है। नितिन मुकेश साहब ने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, ख़य्याम, बप्पी लहरी, राजेश रौशन, नदीम-श्रवण और आनंद मिलिंद जैसे दिग्गज संगीतकरों के साथ काम किया। मनोज कुमार और अनिल कपूर के ऊपर फिल्माया गया इनका गीत काफी लोकप्रिय भी रहा है। क्रांति, त्रिशूल, तेज़ाब, नूरी, चांदनी, जैसी करनी वैसी भरनी, राम लखन, किंग अंकल, मेरी जंग, बेवफ़ा सनम, काला बाजार और आईना' फ़िल्म के लिये गाये गए गीत इनकी गायिकी प्रतिभा के हस्ताक्षर हैं। इनके द्वारा गाये गए सुपरहिट्स गीतों में 'गपुची गपुची गमगम, चना जोर गरम, आजा रे ओ मेरे दिलबर आजा, ज़िन्दगी की न टूटे लड़ी, जाते हो परदेश पिया, ज़िन्दगी हर क़दम एक नयी जंग हैं, माई नेम इज़ लखन, जैसी करनी वैसी भरनी, मेरे ख्याल से तुम, याद तुम्हारी जब जब आये, चाँद की साईकिल सोने की सीट, दिल ने दिल से क्या कहा, पैसा बोलता है, वफ़ा ना रास आयी, इस जहाँ की नहीं है तुम्हारी आँखें' आदि गाने शामिल हैं। इसके अलावा नितिन मुकेश ने कई प्रसिद्ध भजनों को भी आवाज दिया है।
सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक को उनके गाये और मेरे पसंदीदा गीत की कुछ पंक्तियों के साथ जन्मदिवस की शुभकामनाएँ !
'हौसला न छोड़ कर सामना जहाँ का
वो बदल रहा है देख रंग आसमान का
ये शिकस्त का नहीं फ़तेह का रंग है
ज़िंदगी हर क़दम एक नई जंग है
जीत जाएंगे हम तू अगर संग है....!'

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Tuesday 7 June 2016

श्यामा ------ संजोग वाल्टर

'धर्मयुग', 26 अप्रैल 1953 




 07-06-2016  at 2:51pm ·
Shyama was one of the most beautiful actresses to have graced the screen. She was charming, gorgeous, lively, expressive and there was something very refreshing about her.
It was her birthday on 7th June. Though a little late, here’s wishing her a very Happy Birthday!!!
Her real name was Khurshid Akhtar. was born in Lahore,(now in Pakistan) British India on 7 June, 1935 . Shyama, her screen name, was given to her by Guru Dutt. Her best known roles were in Aar Paar (1954), Barsaat Ki Raat (1960) and Tarana. She was also noticed in 'Sawan Bhadon', 'Dil Diya Dard Liya', 'Milan' and 'Sharda' for which she was awarded Filmfare Award for Best Supporting Actress.Director Vijay Bhatt gave her the stage name Shyama by which she is credited in her movies. She had starring roles in Guru Dutt's classic Aar Paar and later in Barsaat Ki Raat which was perhaps her best performance. She was a major star in the 1950s and 60s and acted in more than 200 movies, many in starring roles.
She was married to cinematographer, Fali Mistry in 1953, and the couple had two sons, Farooq and Rohin, and a daughter Shireen. Mistry died in 1979, thereafter she continued to stay in Mumbai.Today, her son Zubin Mistry is also a cinematographer based in London.