Monday, 30 November 2015

सुधा मल्होत्रा (1936) --- Shashank Mukut Shekhar




 



#आओयादकरें :

सुधा मल्होत्रा (1936 - present ) :

सुधा मल्होत्रा फ़िल्म संगीत के मैदान की वो खिलाड़ी हैं जिन्होने बहुत ज़्यादा लम्बी पारी तो नहीं खेली, पर अपनी छोटी सी पारी में ही कुछ ऐसे सदाबहार गानें हमें दे दिये हैं ,जिन्हे हम आज भी याद करते हैं, गुनगुनाते हैं, हमारे सुख दुख के साथी बने हुए हैं। यह हमारी बदकिस्मती ही है कि अत्यंत प्रतिभा सम्पन्न होते हुए भी सुधा जी चर्चा में कम ही रही ,प्रसिद्धी इन्हे कम ही मिली, और आज की पीढ़ी के लिए तो इनकी यादें दिन ब दिन धुंधली होती जा रही हैं। पर अपने कुछ चुनिंदा गीतों से अपनी अमिट छाप छोड़ जाने वाली सुधा मल्होत्रा सुधी श्रोताओं के दिलों पर हमेशा राज करती रहेंगी। । सुधा मल्होत्रा ने 'नरसी भगत' में "दर्शन दो घनश्याम", 'दीदी' में "तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको", 'काला पानी' में "ना मैं धन चाहूँ", 'बरसात की रात' में "ना तो कारवाँ की तलाश है" और 'प्रेम रोग' में "ये प्यार था कि कुछ और था" जैसे हिट गीत गाए हैं। लेकिन ज़्यादातर उन्हे कम बजट वाली फ़िल्मों में ही गाने के अवसर मिलते रहे। 'अब दिल्ली दूर नहीं' फ़िल्म में बच्चे के किरदार का प्लेबैक करने के बाद तो जैसे वो टाइप कास्ट से हो गईं और बच्चों वाले कई गीत उनसे गवाए गए।
सुधा मल्होत्रा का जन्म नई दिल्ली में 30 नवंबर 1936 में दिल्ली में हुआ था। उनका बचपन कुल तीन शहरों में बीता - लाहौर, भोपाल और फ़िरोज़पुर। आगरा विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और भारतीय शास्त्रीय संगीत में पारदर्शी बनीं उस्ताद अब्दुल रहमान ख़ान और पंडित लक्ष्मण प्रसाद जयपुरवाले जैसे गुरुओं से तालीम हासिल कर। उनकी यह लगन और संगीत के प्रति उनका प्यार उनके गीतों और उनकी गायकी में साफ़ झलकता है। जहाँ तक करियर का सवाल है, सुधा जी ने 6 साल की उम्र से गाना शुरु किया। उनकी प्रतिभा को पूरी दुनिया के सामने लाने का पहला श्रेय जाता है उस ज़माने के मशहूर संगीतकार मास्टर ग़ुलाम हैदर को, जिन्होने सुधा जी को फ़िरोज़पुर में रेड क्रॊस के एक जलसे में गाते हुए सुना था। सुधा जी की शारीरिक सुंदरता और मधुर आवाज़ की वजह से वो ऒल इंडिया रेडियो लाहौर में एक सफ़ल बाल कलाकार बन गईं। और सही मायने में यहीं से शुरु हुआ उनका संगीत सफ़र। उसके बाद उनका आगमन हुआ फ़िल्म संगीत में। इस क्षेत्र में उन्हे पहला ब्रेक दिया अनिल बिस्वास ने। साल था १९५० और फ़िल्म थी 'आरज़ू'। जी हाँ, इसी फ़िल्म में अनिल दा ने तलत महमूद को भी पहला ब्रेक दिया था। इस फ़िल्म में सुधा जी से एक गीत गवाया गया जिसे ख़ूब पसंद किया गया। गाना था "मिला गए नैन"। और दोस्तों, यहीं से शुरुआत हुई सुधा जी के फ़िल्मी गायन की।
सुधा जी उन दुर्लभ पार्श्वगायिकाओं में से हैं ,जिन्होंने अपने खुद का संगीतबद्ध किया हुआ गीत गाया है। सन 1956 की फिल्म "दीदी ' का गीत " तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको" को सुधा जी ने न केवल संगीतबद्ध किया ,बल्कि मुकेश के साथ मिलकर गाया भी। कहा जाता है कि जिस दिन यह गीत रिकॉर्ड होना था ,संगीतकार एन दत्ता बीमार पड़ गए। यह सुनकर सुधा जी ने कहा कि वो खुद ये गाना संगीतबद्ध करेंगी और किया भी।

सुधा जी का नाम प्रसिद्ध गीतकार साहिर लुधयानवी के साथ जोड़ा गया और कहा जाता है की साहिर जी उनसे प्रेम करते थे। परन्तु यह प्रेम अधूरा रह गया।
79 वर्षीय सुधाजी इन दिनों मुंबई में अपने परिवार के साथ रह रही है। 4 वर्ष पूर्व उनके पति गिरधर मोटवानी का निधन हो चुका है। 2013 में भारत सरकार ने उन्हें हिंदी फिल्म संगीत में महत्वपूर्ण योगदान के लिए पदमश्री से सम्मानित किया।
"धन्यवाद "
 —साभार :
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=623165211120298&set=a.619615448141941.1073741827.100002804754852&type=1

Sunday, 15 November 2015

विद्या सिन्हा : जन्मदिन मुबारक ------ संजोग वाल्टर (Swapnil Sansar )






Swapnil Sansar


Vidya Sinha is an actress who has acted in Bollywood films, most known for Rajnigandha (1974) and Chhoti Si Baat (1975).
Sinha was born in Bombay to Rana Pratap Singh, an Indian film producer, son-in-law of film director Mohan Sinha a.k.a. Sd. Maan Singh, resident of village Jodhawali, Punjab, Undivided India.
She began modelling and acting at the age of 18. She was Miss Bombay and modelled for several brands which led to her discovery by Basu Chatterjee.Her first movie, however, came after marriage - her debut was in Raja Kaka (1974) opposite Kiran Kumar. However, fame came to her through a low-budget, alternative cinema break-away hit Rajnigandha (1974), directed by her mentor Basu Chatterjee. The movie, although having none of the trappings of a typical Bollywood blockbuster, was a major box office success. This was followed by many more small-budget films like Choti Si Baat (1975), and later by more mainstream, bigger budget Bollywood productions like Pati Patni Aur Woh (1977). She is known for her pleasant roles in various movies she acted during her active career life. She did 30 movie roles over a period of 12 years.
By the mid-1980s, this type of role was no longer popular in the Hindi film industry. She wound down her film work and finally called it a day by 1986. After some years in Australia, Vidya returned to India and gradually came back to acting,She returned to films in Salman Khan's Bodyguard in 2011.
Vidya Sinha acted in TV serials like Bahu Rani (2000), Hum Do Hain Na, Bhabhi and Kavyanjali (2004). In 2011 she appeared in the NDTV Imagine serial Haar Jeet. She is currently doing the hit Zee TV show, Qubool Hai.
Vidya Sinha was born on 15 November 1947 in Mumbai. Her father, Rana Pratap Singh, was an Indian film producer, son-in-law of film director Mohan Sinha & his previous name was Sd. Maan Singh, native resident of village Jodhawali, Punjab, undivided India.She married Venkateshwaran Iyer in 1968 and had a daughter, Jhanvi, in 1989. The next few years were spent in taking care of Jhanvi and her ailing husband, who eventually died in 1996. They then moved to Sydney for a few years. She met the elderly Australian doctor Netaji Bhimrao Salunke online in 2001, and married him after a quick courtship and a small temple wedding. They adopted a daughter shortly after.
On 9 January 2009 Vidya filed a complaint with the police accusing Netaji Bhimrao Salunkhe of physical and mental torture.[3] They were divorced soon afterwards, and after a protracted battle she won her case against him for maintenance.

(SANJOG WALTAR)