Tuesday 29 September 2015

कॉमेडी बादशाह महमूद - - वीर विनोद छाबड़ा






Vir Vinod Chhabra 
34 mins
महमूद - कॉमेडी का बादशाह।
-वीर विनोद छाबड़ा 

आज दिवंगत महमूद अली का जन्म दिन है।
महमूद साठ और सत्तर के दशक के दौर की फिल्मों की कॉमेडी के बेताज बादशाह थे। पिता मुमताज़ अली प्रसिद्ध डांसर और चरित्र अभिनेता। बाल कलाकार के रूप में महमूद ने कई फिल्मों में काम किया। लेकिन जवान हुए तो फ़िल्में रास नहीं आईं। कई छोटे-मोटे काम किये। निर्माता-निर्देशक प्यारे लाल संतोषी की ड्राईवरी की। भाग्य का खेल है कि संतोषी के पुत्र राजकुमार संतोषी ने महमूद को 'अंदाज़ अपना में' (१९९३) में प्रोड्यूसर की भूमिका में कास्ट किया।
बहरहाल, महमूद ने ज़िंदा रहने के लिये मीना कुमारी को टेबल-टेनिस की ट्रेनिंग दी। बाद में मीना की छोटी बहन मधु से महमूद की शादी हुई। मीना की जब कमाल अमरोही से अनबन चल रही थी तो महमूद का ही वो घर था जहां मीना को आसरा मिला। मीना एक बड़ी एक्ट्रेस थी। उन्होंने बीआर चोपड़ा से महमूद की सिफ़ारिश की। लेकिन ख़ुद्दार महमूद को जब पता चला तो उन्होंने इंकार कर दिया। हालांकि वो 'धूल का फूल' और 'कानून' में छोटे छोटे किरदारों में दिखे।
महमूद यूं ही नहीं टॉप पर पहुंचे। कई छोटे-मोटे रोल किये। गुरुदत्त उन पर खासतौर पर मेहरबान रहे - सीआईडी, कागज़ के फूल,प्यासा आदि।
'परवरिश' में महमूद का बड़ा रोल था और वो भी भारी भरकम राजकपूर के सामने। बाद में उन्होंने कपूर ख़ानदान की 'कल आज और कल' की तर्ज 'हमजोली' में सफ़ल कॉपी की। यह बड़ा मज़ाक था। कपूर खानदान और उनके शुभचिंतकों ने इस पर ऐतराज़ भी किया। महमूद तब बहुत बड़े कॉमेडी स्टार थे। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने माफ़ी मांगी।
स्ट्रगल के दिनों में महमूद की किशोर कुमार से भेंट हुई। महमूद की प्रतिभा से वो वाकिफ़ थे। कई प्रोड्यूसरों से उनकी सिफ़ारिश की यह कहते हुए कि मैं अपने ही रोल तुम्हें दिला कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा हूं। तब महमूद ने उनसे वादा किया था कि एक दिन मैं आपको अपनी फिल्म में ज़रूर कास्ट करूंगा। आगे चल कर 'पड़ोसन' में किशोर यादगार अदाकारी की। दोनों 'साधु और शैतान' में भी हिट रहे।
महमूद के हास्य मर्म को दक्षिण भारत के फिल्मकारों ने खूब भुनाया - ससुराल, हमराही, गृहस्थी, बेटी-बेटे आदि।
'छोटे नवाब' बना कर खुद को कॉमेडी हीरो के रूप में प्रोजेक्ट किया। फ़िल्म भले नाकाम रही मगर महमूद ने लोहा मनवा लिया कि वो किसी भी हीरो को कॉमेडी के बूते पीछे धकेल सकते हैं। साठ और सत्तर के दौर की कोई भी फ़िल्म उठा कर देखें तो पता चलता है कि हीरो से ज्यादा महमूद की पूछ होती थी। मुख्य कहानी के साथ महमूद की अलग कहानी चलने लगी। और क्या बच्चे और क्या बूढ़े और जवान, सभी को महमूद की एंट्री का इंतज़ार रहने लगा। उनकी कॉमेडी ने न सिर्फ दर्शकों को हंसाया बल्कि कॉमेडी को भी हंसना सिखाया।
शोभा खोटे और अरुणा ईरानी के साथ उनकी जोड़ी खूब जमी। बरसों हवा भी रही की महमूद और अरूणा की शादी हो चुकी है। कई साल बाद जब महमूद से अनबन हुई तो अरुणा ने इससे इंकार किया।
रद्दी फ़िल्में भी महमूद की वज़ह से लिफ़्ट हुई। महमूद की मौजूदगी के कारण हीरो की चमक फीकी पड़ने लगी। शायद इसी कारण से महमूद के दुश्मनों की संख्या बढ़ गयी। तमाम हीरो लॉबी करने लगे - महमूद हटाओ। लेकिन महमूद डटे रहे। यह उनका दौर था। वितरकों ने साफ़ कर दिया महमूद नहीं तो फ़िल्म नहीं उठेगी।
महमूद ने 'छोटे नवाब' में संगीतकार आरडी बर्मन को ब्रेक दिया। अमिताभ बच्चन के डूबते कैरियर को 'बांबे टू गोवा' में लिफ्ट किया। स्ट्रगल और कड़की के दिनों में अमिताभ को महमूद का ही सहारा था। वो उनके घर पर महीनों रहे। फ़िल्में दिलाने में भी महमूद ने उनकी बहुत मदद की। महमूद उनके भाईजान थे। महमूद दीवार, ज़ंज़ीर और शक्ति में उनके प्रदर्शन से खुश होते रहे। महमूद ने एक इंटरव्यू में अपना दर्द भी उड़ेला - जब अमिताभ के पिताजी की तबियत ख़राब थी तो मैं उनको देखने गया। लेकिन हफ़्ते बाद उसी अस्पताल में मेरी बाई-पास सर्जरी हुई। अमिताभ अपने पिताजी को देखने सुबह शाम आते रहे। लेकिन मुझे देखना तो दूर 'जल्दी निरोग हों' एक कार्ड तक नहीं भेजा।
आईएस जौहर से महमूद की खूब पटरी खाती थी। 'नमस्ते जी' और 'जौहर महमूद इन गोवा' बड़ी कामयाबियां थीं। लेकिन 'जौहर महमूद इन हांगकांग' फ्लॉप रही। जौहर चाहते थे कि महमूद के साथ उनकी जोड़ी लॉरल-हार्डी के माफ़िक चले। लेकिन महमूद ने मना कर दिया। जौहर की निगाह फ्रंट बेंचेर पर होती थी जबकि महमूद को हर वर्ग के प्यार की ज़रूरत थी।
महमूद बतौर हीरो भी कामयाब रहे। छोटे नवाब, नमस्ते जी और शबनम के अलावा लाखों में एक, मैं सुंदर हूं, मस्ताना, दो फूल, सबसे बड़ा रुपैया आदि इसकी मिसाल हैं।
महमूद ने बेशुमार फिल्मों में दक्षिण भारतीय किरदार अदा किये हैं। इस पर उन्हें खूब तालियां भी मिलीं। लेकिन यहां कुछ गलती कर गए वो। अस्सी के दशक में वो खुद को दोहराने लगे। जब उन्हें अहसास हुआ तब तक देर हो चुकी थी। नई खेप आ चुकी थी। दर्शकों की पसंद भी बदल चुकी थी। महमूद खुद को बदल नहीं सके और न पुराने महमूद को खोज सके। टाईमिंग गड़बड़ा गयी। उनके लिए चुटीले संवाद लिखने वाले लेखक जाने कहां चले गए। उन्हें हमेशा फैमिली का कॉमेडियन माना गया। ट्रेजेडी यह भी रही कि फैमिली फ़िल्में बनने ही बंद हो गयी। कल तक जिनकी फ़िल्में महमूद भाईजान की कॉमेडी की वज़ह से चलती थीं, वो सब किनारा कर गए।
महमूद ने १९९६ में दमदार एंट्री मारने की एक आख़िरी कोशिश की। अपने बेटे मंज़ूर अली का परिचय कराने के लिए 'दुश्मन दुनिया का' निर्देशित की। सलमान खान और शाहरुख़ खान भी भाईजान के प्रति प्रेम की ख़ातिर मेहमान बने। लेकिन दुनिया को हंसा नहीं सके।
महमूद सिर्फ़ संवाद और मैंनेरिज़्म के बूते ही फ़िल्म को हिट नहीं कराते थे, उन पर फ़िल्माये अनेक गाने भी सुपर-डुपर हिट रहे। हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं.…अपनी उल्फ़त पे ज़माने का यह पहरा न होता...वो दिन याद करो.…प्यार की आग़ में तन बदन जल गया.…आओ ट्विस्ट करें…ओ मेरी मैना, तू मान ले मेरा कहना…तुझको रखे राम तुझको अल्लाह रखे.…एक चतुर नार करके सिंगार…सज रही गली मेरी अम्मा चुनरी गोटे में.…
महमूद को दिल तेरा दीवाना के लिए श्रेष्ठ सह-अभिनेता और प्यार किये जा, वारिस, पारस और वरदान के लिए श्रेष्ठ कॉमेडियन का फिल्मफेयर पुरुस्कार मिला। इसके अलावा वो लव इन टोकियो, मेहरबान, नीलकमल, साधू और शैतान, मेरी भाभी, हमजोली, मैं सुंदर हूं, बांबे टू गोवा, दो फूल, दुनिया का मेला, कुंवारा बाप, क़ैद, सबसे बड़ा रुपैया, नौकर और खुद्दार के लिए बेस्ट कॉमेडियन नामांकित किये गए। उनकी कुछ अन्य चर्चित फ़िल्में हैं - छोटी बहन, बेटी-बेटे, राखी, आरती, दिल एक मंदिर, ज़िंदगी, ज़िद्दी, चित्रलेखा,दो दिल, आरज़ू, पत्थर के सनम, दो कलियाँ, औलाद, आंखें, प्यार ही प्यार, नया ज़माना, जिन्नी और जॉनी आदि।
महमूद ने छोटी-बड़ी लगभग तीन सौ फ़िल्में की। २३ जुलाई २००४ को नींद में ही महमूद ने आख़िरी सांस ली। कॉमेडी की ट्रैजिक बिदाई। उन दिनों वो अमेरिका में अपना ईलाज करा रहे थे। महमूद युग के बाद अनेक कॉमेडियन आये और गए, लेकिन उनके जैसा दूजा कोई न आया।
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२९-०९-२०१५

Thursday 24 September 2015

बच्चे से लेकर बूढ़े तक ने उनसे बेहद मुहब्बत की : राजेश खन्ना --- -वीर विनोद छाबड़ा







Vir Vinod Chhabra
8 hrs
वक़्त वक़्त की बात है। 
-वीर विनोद छाबड़ा 
चार दिन पहले की बात है। दिमागी कसरत के लिए एक वीडियो म्यूज़िक चैनल खोले बैठा था मैं। ब्लैक एंड वाइट युग के गाने चल रहे थे। एक से बढ़ कर टॉप क्लॉस। तभी पर्दे पर दिखे राजेश खन्ना और आशा पारेख। आ जा पिया तोहे प्यार दूं गोरी बइयां तोपे वार दूं.…मजरूह का गाना और राहुलदेव बर्मन का संगीत। फ़िल्म थी - बहारों के सपने। १९६७ में रिलीज़।
उस दौर में कोई नहीं पूछता था राजेश खन्ना को। यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स टैलेंट हंट की खोज थे वो।
नासिर हुसैन एक क्विकी 
बनाना चाहते थे। बजट कम रखने के लिए ब्लैक एंड व्हाईट में बनाने का फैसला लिया। नाम रखा - बहारों के सपने। अब नए-नए हीरो राजेश के पास तो डेट ही डेट थीं।
लेकिन नायिका आशा पारेख पसड़ गयीं। मैं इतनी सीनियर। उम्र में भी दो महीने बड़ी। इस नए-नए लौंडे की हीरोइन बनूं! मार्किट वैल्यू गिर जायेगी। कितना असहज महसूस होगा? सवाल ही नहीं पैदा होता।
उन दिनों सबसे महंगी हीरोइन होती थी आशा। तीन लाख प्रति फ़िल्म। आज के तीन करोड़ से भी ज्यादा।
लेकिन नासिर हुसैन ने आशा को मना लिया। लड़का बहुत टैलेंटेड है। हज़ारों में से चुना गया है। यों समझो लाखों में एक।
वैसे नासिर हुसैन कहें और आशा न माने, ये हो ही नहीं सकता था। अब यह बात दूसरी है कि आगे चल कर राजेश खन्ना हो गए सुपर स्टार। राजेश आगे-आगे और आशा पीछे-पीछे। आशा संग तीन और फ़िल्में बनीं- कटी पतंग और आन मिलो सजना। धर्म और कानून में राजेश खन्ना की दोहरी भूमिका थी। बाप और बेटे की। और आशा पारेख राजेश की पत्नी और मां भी।
यह ऐसा शुरुआती दौर था जब राजेश खन्ना को ऐसी नायिकाएं मिली जो उम्र में उससे बड़ी थीं। इंद्राणी मुख़र्जी (आख़िरी ख़त), वहीदा रहमान (ख़ामोशी), नंदा (दि ट्रेन, इत्तिफ़ाक़ और जोरू का गुलाम) बड़ी उम्र थीं। और तनूजा (हाथी मेरे साथी), मुमताज़ (सच्चा झूठा) और शर्मीला टैगोर (आराधना) उम्र में छोटी मगर प्रोफेशन में बहुत सीनियर। नाक-भौं सिकोड़ी जाती थी। लेकिन राजेश ने कभी असहज महसूस नहीं किया और किया भी तो ज़ाहिर नहीं होने दिया।
और फिर 'आराधना' (१९६९) की रिलीज़ के बाद तो तख्ता ही पलट गया। सुपर स्टार बन गए राजेश खन्ना। जो भी उनके साथ काम करती, उसके कैरियर को पंख लग जाते। उन दिनों राजेश को लोग घमंडी भी कहने लगे थे।
साधना (दिल दौलत और दुनिया) और माला सिन्हा (मर्यादा) जैसी बड़ी उम्र नायिकाएं अपने कैरियर की डूबती नैया को बचाने के लिये राजेश की हीरोइन बनने के लिए तड़पने लगीं। आशा पारेख और नंदा तो उनके साथ काम कर ही रहीं थी। लेकिन राजेश खन्ना ने इंकार नहीं किया। बल्कि ख़ुशी ज़ाहिर की। अब किसी का वक़्त ही ख़राब हो तो कोई क्या कर सकता है। उनके कैरियर नहीं बचे। लेकिन यह बात कोई कम है क्या कि राजेश खन्ना, दि सुपर स्टार के साथ काम करने का मौका मिला।
वक्त वक्तन की बात है। फिर वो भी एक दौर आया जब राजेश खन्ना का कैरियर डूब गया। लेकिन उनकी हस्ती ख़ारिज नहीं कर सका कोई। उनसे पहले सुपर स्टार का तमगा कोई नहीं छीन सका। हर जेंडर के, हर मज़हब, हर जाति और हर वर्ग के बच्चे से लेकर बूढ़े तक ने उनसे बेहद मुहब्बत की।
 
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२४-०९-२०१५
साभार :
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1680107848889504&set=a.1395891353977823.1073741827.100006709143445&type=3

Tuesday 8 September 2015

आशा भोंसले जन्मदिवस 8,सितम्बर 1933 --- संजोग वाल्टर


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Sanjog Walter

आशा भोंसले का जन्म 8,सितम्बर 1933 को हुआ था आशा ताई ने अपने कैरियर की शुरुआत 1943 में की थी छह दशकों से ज्यादा लम्बा है उनका कैरियर, 11,000 से अधिक बॉलीवुड फिल्मों के लिए अपनी आवाज़ दी है-इसके अलावा,कई निजी एल्बम के लिए भी उन्होंने अपनी आवाज दी है, भारत और विदेश में कई संगीत कार्यक्रम में हिस्सा लिया,आशा भोंसले लता मंगेशकर की बहन है, आशा भोंसले अपनी आवाज़ की रेंज के लिए मशहूर हैं फिल्म संगीत, पॉप,गजल,भजन,पारंपरिक भारतीय शास्त्रीय संगीत,लोक गीत,कव्वाली और रवींद्र संगीत और हिन्दी के अलावा, वह 20 से अधिक भारतीय और विदेशी भाषाओँ में अपनी आवाज़ को दर्ज़ करा चुकी है भारत सरकार ने 2000 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और 2008 में पदम विभूषण से सम्मानित किया आशा भोसले सांगली, बम्बई अब महाराष्ट्र में गोर के छोटे से गांव में हुआ था,उनके पिता मास्टर दीनानाथ मंगेशकर, संगीतकार रंगमंच अभिनेता और शास्त्रीय गायक थे, जब वह नौ साल की थी उनके पिता की मृत्यु हो गई परिवार पुणे से कोल्हापुर और फिर मुंबई आ गया और उसकी बड़ी बहन लता मंगेशकर ने परिवार के लिए फिल्मों में अभिनय करने और गायन का काम शुरू कर दिया था 1943 में अपना पहला गीत मराठी फिल्म माझा बाल के लिए गाया था,इस फिल्म के लिए संगीत दत्ता वात्रेतय़ द्वारा तैयार किया था 1948 में पहली बार हिंदी फिल्म चुनरिया से उन्होंने आगाज़ किया था इस फिल्म के संगीतकार थे हंसराज बहल,रात की रानी 1949 में उन्होंने पहली बार सोलो का मौका मिला था आशा भोंसले ने 16 की उम्र में, 31 साल के गणपतराव भोंसले के साथ शादी कर ली यह शादी परिवार की मर्ज़ी के खिलाफ थी उन दिनों में गणपतराव लता के निजी सचिव थे यह शादी नाकामयाब रही शादी के कुछ साल बाद, आशा ताई को बाहर कर दिया गया था 1960 के आसपास, गणपतराव ने आशा ताई अपने दो बच्चों और और तीसरा उनके दिनों उनके गर्भ में था के साथ मायके आ गयी अपने बच्चों को पालने के लिए पैसे कमाने के लिए फिल्मों में गाना जारी रखा,उस दौर में गीता दत्त,शमशाद बेगम और लता मंगेशकर का दबदबा था जो गाने कोई नहीं गाता था वो आशा ताई को मिलने लगे 1950 के दशक में, वह बॉलीवुड ’गिनती नहीं लता’ में सबसे पार्श्व गायकों की तुलना में अधिक गीत गाये इनमें से अधिकांश कम बजट बी या सी ग्रेड फिल्मों में थे इन फिल्मों के संगीतकार एआर कुरैशी, सज्ज़ाद हुसैन और गुलाम मोहम्मद हुआ करते थे फिल्म निर्देशक बिमल रॉय ने परिणीता 1953 में गाने का मौका दिया राज कपूर ने मोहम्मद रफी के साथ बूट पॉलिश 1954 में, नन्हे मुन्ने बच्चे के लिए मौका दिया.ओपी नैयर ने आशा ताई को सीआईडी में मौका दिया 1956 में उसके बाद बीआर चोपड़ा की नया दौर, 1957 मांग के साथ तुम्हारा, साथी हाथ बढ़ाना और उड़ें जब जब जुल्फें तेरी, साहिर लुधियानवी के गीतो को मोहम्मद रफी का साथ मिला उन्हें कामयाबी मिली पहली बार उन्होंने फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री के लिए सभी गीत गाये थे बीआर चोपड़ा ने गुमराह 1963, वक्त 1965, हमराज़ 1965, आदमी और इंसान 1966 और धुंध 1973 में मौका दिया,1966 में फिल्म तीसरी मंज़िल के साथ संगीत निर्देशक आरडी बर्मन से उनकी टयूनिंग बन गयी थी डांस नंबर आजा आजा सुना आशा भोंसले ने तो आरडी बर्मन को लगा कि वह इस पाश्चात्य धुन के गाने को नहीं गा सकेंगी लिहाज़ा बर्मन ने इस धुन को बदलने की पेशकश कर दी आशा भोंसले ने मना कर दिया, और इस गीत को चुनौती के रूप में लिया रिहर्सल के दस दिनों के बाद गीत पूरा किया और ओ हसीना ज़ुल्फोंवाली,ओ मेरे सोना रे रफी के साथ सभी तीन युगल के साथ, कामयाब रही 1960 70 के दौरान,हेलेन, जिन पर ओ हसीना जुल्फों वाली फिल्माया गया था हेलेन के लगभग सभी कैबरे न. को आशा ने अपनी आवाज़ दी पिया तू आजा अब कारवां और ये मेरा दिल डॉन, 1980 के दशक तक, भोसले,को स्टोरियोटाईप कैबरे सिंगर और पॉप गायिका के रूप में कोड जाता था, 1981 में वह रेखा अभिनीत फिल्म उमराव ज़ान के लिए दिल चीज़ क्या है, आंखों की मस्ती के,ये क्या जगह हैं दोस्तों,जुस्तज़ू जिसकी थी के लिए अलग शैली तैयार की थी, फिल्म के संगीत निर्देशक खययाम ने जिसका नतीज़ा भी सामने था कभी अपने कैरियर में गज़ल ना गाने वाली आशा को गज़ल गाने के लिए पहला राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड मिला इज़ाज़त 1987 मेरा कुछ सामान के लिए एक और राष्ट्रीय पुरस्कार जीता,1995 में, 62 वर्षीय भोंसले ने फिल्म रंगीला में अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर के लिए गाया था तनहा तनहा,रंगीला रे,संगीत निर्देशक एआर रहमान, के साथ साथ कई गाने रिकॉर्ड हुए 2000 के दशक में लगान का राधा कैसे ना जले 2001, प्यार तूने क्या किया कमबख्त इश्क 2001,ये लम्हा फिलहाल 2002 ,लकी 2005 । संगीत निर्देशकों के साथ भागीदारी,ओ पी नैयर ने आशा के साथ र्कई फिल्मों में लाज़वाब संगीत दिया कई लोगों को दोनों के बीच रोमांटिक रिश्ते का शक भी था नैयर छम छमा छम की संगीत रिकर्डिंग पर पहली बार 1952 में आशा,से मिले थे और फिल्म पहली बार मंगलू 1954 में मौका दिया पर सीआईडी में बड़ा ब्रेक मिला था 1956 में,हालांकि,नया दौर, 1957 की कामयाबी ने इस जोड़ी को मशहूर कर दिया था बताया जाता है के 1959 के बाद, वह भावनात्मक रूप से और पेशेवर तौर पर भी नैयर से जुड़ गयी थी ओ पी नैयर और आशा भोसले की टीम ने कई लाज़वाब गीत दिए तुमसा नहीं देखा 1957 आइये मेहरबान मधुबाला हावड़ा ब्रिज, 1958 एक मुसाफिर एक हसीना 1962, कश्मीर की कली 1964 ये हैं रेशमी जुल्फों का अंधेरा मुमताज मेरे सनम,1965 पर फिल्माया पर फिल्माया हैं आओ हुजूर तुमको किस्मत,और जाइए आप कहाँ;मेरे सनम भी लोकप्रिय थे वे, जैसी कई हिट फिल्मों के लिए गाने भी दर्ज की गई है ओपी नैयर उड़े जब जब जुल्फें, तेरी नया दौर,प्यार का राही हूं एक मुसाफिर एक हसीना, दीवाना हुआ बादल जैसे अपने सबसे लोकप्रिय युगल के लिए आशा भोंसले मोहम्मद रफी की जोड़ी का इस्तेमाल किया कश्मीर की कली इशारों इशारों में आशा ने फिल्म प्राण जाए पर वचन ना जाए 1974 में ओपी नैयर के लिए आखिरी बार गाया चैन से हमको कभी आपने ज़ीने न दिया ज़हर भी माँगा अगर इस गीत को कई अवार्ड मिले पर यह गीत फिल्म में शामिल नहीं किया गया,वे 5 अगस्त, 1972 को अलग हो गये थे,खययाम,खययाम ने आशा की प्रतिभा को पहचाना अपनी पहली फिल्म बीवी 1948 के अलावा खययाम ने 1950 के दशक में दर्द और फिर सुबह होगी,में आशा को मौका दिया लेकिन इस टीम का असली काम उमराव ज़ान के गीतों के लिए याद किया जाताहै। रवि,संगीतकार रवि ने अपने पसंदीदा Female singers में आशा को माना वह अपनी पहली फिल्म वचन 1955 की लोरी चन्दामामा से लेकर घराना,गृहस्थी,वक्त,चौदहवीं का चांद, गुमराह, बहू बेटी, चाइना टाउन, आदमी और इंसान, धुंध और हमराज़ काजल और फूल और पत्थर तक रवि आशा की आवाज़ का बेहतर इस्तेमाल करते रहे, किशोर कुमार के साथ लोकप्रिय गीत कैट माने बिल्ली दिल्ली का ठग का भजन तोरा मन दर्पण काजल आशा रवि के सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक माना जाता है,एक समय था जब संगीतकार आशा को उस वक्त याद करते थे जब बी ग्रेड नायिकाओं पर फिल्माये जाने वाले गाने को रिकॉर्ड करने की जरूरत होती थी,सचिन देव बर्मन बॉलीवुड के सबसे मशहूर संगीतकार सचिन देव बर्मन ने आशा को काला पानी, काला बाज़ार,इंसान जाग उठा, लाजवंती,सुजाता और तीन देवियाँ जैसी फिल्मों में कई हिट गाने दिए इन गीतों में से सबसे ज्यादा मोहम्मद रफी और किशोर कुमार के साथ युगल थे क्या आज भी को फिल्म सुजाता के इस गाने को कोई भूल सकता है तुम जियो हज़ारों साल, साल के दिन पचास हज़ार, बिमल रॉय की बंदिनी 1963 में गीत अब के बरस से उनके स्थिति और मज़बूत हो गयी थी,ज्वेल थीफ 1967 तनूजा पर फिल्माया गया गीत रात अकेली है बहुत लोकप्रिय हुआ था, जयदेव जब एसडी बर्मन के सहायक जयदेव ने जब बतौर जब संगीत निर्देशक के रूप में अपनी पारी की शुरुआत की तो हम दोनों 1961, मुझे जीने दो 1963, पानी 1971 बूँद और अन्य फिल्मों में आशा को ही मौका दिया 1971 में,इस जोड़ी ने आठ गैर फिल्म भक्ति गीत और गजल की एलपी जारी की थी जयदेव की 1987 में उनकी मौत के बाद पर, जयदेव के कम प्रसिद्ध गीतों का संकलन एलबम सुरांजलि जारी किया था । शंकर जयकिशन,शंकर-जयकिशन के साथ आशा को काम करने का कम मौका मिला पर्दे में रहने दो शिकार 1968 आशा को उनका दूसरा फिल्म फेयर पुरस्कार मिला जिंदगी एक सफर हैं सुहाना अंदाज़ 1971 जिसमें उन्होंने यूडलिंग किशोर कुमार के साथ की थी, जब राज कपूर ने मेरा नाम जोकर 1970 में आशा को फिर मौका दिया तब इस बार भी संगीतकार शंकर जयकिशन ही थे.राहुल देव बर्मन उर्फ़ पंचम,आशा ताई पंचम मिले तब वो तीन बच्चों की मां थी उनकी भागीदारी तीसरी मंज़िल 1966 से शुरू हुई थी कैबरे, रॉक, डिस्को, गजल और शास्त्रीय धुनें पर आशा ताई ने अपनी आवाज़ दी 1970 के दशक में, आशा और पंचम की जुगल बंदी ने धूम मचा दी थी कैबरे पिया तू आजा अब कारवां,दम मारो दम हरे रामा हरे कृष्णा,1971 दुनिया में अपना देश, 1972 चुरा लिया है तुमने यादों की बारात, 1973 मेरा कुछ सामान, खाली हाथ शाम आयी हैं,कतरा कतरा 1980 के दशक में इजाज़त से उन्हेंने फिर अवार्ड हासिल किये-आशा को आर डी बर्मन"Bubs" कह कर बुलाते थे 1980 में दोनों ने शादी कर ली राहुल देव बर्मन ने आशा ताई को बंगाली भाषा के लिये कई गानों में मौका दिया,जो हिट रहे,इलैयाराजा,दक्षिण भारतीयी फिल्म संगीतकार इलैयाराजा ने 1980 के दशक की शुरुआत में आशा को फिल्म Moondram 1982 में मौका दिया 1983 में सदमा के नाम से बनी थी और 1990 के दशक के उत्तरार्ध तक जारी रहा इस दौर में अवधि से कई हिट न. तमिल में थे 2000 में, आशा ताई ने कमल हासन की राजनीतिक फिल्म हे राम के लिए थीम गीत गाया गायक हरिहरन के साथ एक युगल गीत भी था,आर ए रहमान,ए आर रहमान और आशा रंगीला 1994 से साथ जुड़े,तनहा तनहा, रंगीला रे जैसे गीत,मुझे दे रंग,राधा कैसे ना जले,लगान,उदित नारायण के साथ युगल, कहीं आग लगे ताल, हे भंवरे की दौड़,केजे येसुदास के साथ युगल,1999 धुआँ,मीनाक्षी, 2004 रहे, अनु मलिक,संगीतकार अनु मलिक और आशा का साथ अन्नू मलिक की पहली फिल्म सोहनी महिवाल 1984 से लेकर अब तक बना हुआ है गौर तलब है की आशा ताई ने अन्नू मलिक के पिता सरदार मलिक के लिए भी गाया था सारंगा 1960 मे,मदन मोहन के साथ मेरा साया 1966 झुमका गिरा रे सलिल चौधरी के साथ जागते रहो 1956 छोटी सी बात 1975 में,जानेमन जानेमन,ष्ठंडी ठंडी सावन की फुहार जैसे मशहूर गीत गए,संगीतकार संदीप चोव्टा के साथ कमबख्त इश्क, फिल्म प्यार तूने क्या किया 2001, गाया आशा ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, नौशाद, रवींद्र जैन,एन दत्ता और हेमंत कुमार जतिन ललित,बप्पी लाहिड़ी,कल्याणजी आनंदजी,उषा खन्ना,चित्रगुप्त,और रोशन के साथ भी काम किया गीतकार गुलजार, संगीत निदेशक आर.डी. बर्मन और आशा भोंसले एक साथ आए थे, डबल एल्बम, दिल पड़ोसी है, जो 8 सितंबर, 1987 को जारी किया गया था.1990 के दशक में, आशा ताई ने remixed आरडी बर्मन गाने के साथ प्रयोग किया. तब खय्याम सहित कई लोगों ने पुरानी धुन के साथ छेड़छाड़ करने के लिए आलोचना की थी. फिर भी, राहुल और मैं जैसे एलबम काफी लोकप्रिय हो गये थे 1997 में, पॉप एलबम लेस्ली लुईस के साथ जनम समझा करो. रिलीज़ हुआ जिसे 1997 एमटीवी पुरस्कार सहित कई पुरस्कार मिले पाकिस्तानी गायक अदनान सामी के नज़र मिलाओ युगल गाया. दोनों एक साथ फिर से साथ आये एलबम बरसे बादल में. एलबम में आठ गाने, भारतीय शास्त्रीय संगीत पर आधारित हैं.आशा ताई ने कई एलबम के लिए गजलें गाई है मेराज - ऐ - गजल, आबशार -ऐ-ग़ज़ल, कशिश. मेहदी हसन, गुलाम अली, फरीदा खानम और जगजीत सिंह- 2005 में, आशा ने चार ग़ज़ल maestros के लिए श्रद्धांजलि के रूप में एलबम जारी किया . एलबम फरीदा ख़ानम का आज जाने की जिद न करो , गुलाम अली चुपके चुपके, आवारगी और दिल में एक लहर , जगजीत के सिंह आहिस्ता आहिस्ता और मेहदी हसन रंजिश हाय साही, रफ्ता रफ्ता, मुझे तुम नज़र जारी किये इसके अलावा गोल्डन कलेक्शन: यादगार गजल (गैर फिल्म गुलाम अली, आरडी बर्मन और नज़र हुसैन जैसे संगीतकारों द्वारा गजल), गोल्डन कलेक्शन उनके 60 वें जन्मदिन पर , ईएमआई तीन कैसेट जारी किये गये थे .2006 में, एक और एलबम आशा और दोस्त रिलीज़ हुए जिसमें वो फिल्म अभिनेता संजय दत्त और उर्मिला मातोंडकर और प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी ब्रेट ली के साथ है, 1980,1990 के दशक में, आशा ने विश्वयात्रा, के तहत कनाडा, दुबई, ब्रिटेन, अमेरिका और कई अन्य देशों में संगीत कायर्कर्म पेश किये 1989 में, 20 दिनों में 13 अमेरिकी शहरों में प्रदर्शन किया.आशाताई को खाना पकाने का शौक है. वह अक्सर बॉलीवुड हस्तियों के लिए कड़ाई गोश्त और बिरयानी पकती रही हैं आशा ताई के रेस्तरां और दुबई और कुवैत में जो पारंपरिक उत्तर - पश्चिमी भारतीय भोजन उपलब्ध कराता है. आशा ताई बर्मिंघम, ब्रिटेन में हाल ही में एक नया रेस्तरां खोला गया है.आशा भोसले ने सात बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार हासिल किया और 18 बार फ़िल्मफ़ेयर नामांकन मिला वह 1967 और 1968 में अपने पहले दो पुरस्कार जीते. (इस से पहले फ़िल्मफ़ेयर बेस्ट फिमेल प्लेबैक अवॉर्ड को मंगेशकर अवॉर्ड कहा जाता था क्योंकि हर बार फिमेल प्लेबैक अवॉर्ड सिर्फ लता को मिलता था 1967,1968 में आशा ताई ने इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया तो 1969 में लता दीदी ने यह कह कर इस अवॉर्ड के लिए मना कर दिया की नई प्रतिभाओं को बढ़ावा मिलना चाहिए ) 1979 में फ़िल्मफ़ेयर बेस्ट फिमेल प्लेबैक अवॉर्ड आशा ताई के हिस्से में गया और उन्होंने ने भी लता दीदी की राह पकड़ ली अनुरोध किया है कि इसके बाद नामांकन के लिए उसके नाम पर विचार नहीं किया जाये 1996 में रंगीला के लिए विशेष पुरस्कार और 2001 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया था. आशा और लता ने एक साथ कम ही गाने गाये फिल्म दमन 1951 के लिए पहली बार गया चोरी चोरी,1956,मिस मैरी, 1957,शारदा 1957, मेरे महबूब में क्या नही मेरे मेहबूब, 1963, ऐ काश किसी दीवाने को आए दिन बहार के, 1966,मैं चली मैं चली पड़ोसन, 1968, के बाद छाप तिलक सब मैं तुलसी तेरे आंगन की,1978, दोनों की आवाज़ का जादू एक साथ दिखा उत्सव,1984 में मन क्यों बहका के बाद इन दोनों ने फिर एक साथ नहीं गाया कहा जाता है की लता और आशा के बीच कुछ नाराजगियां थे लता के अपने कैम्प थे बहुत से संगीतकार और निर्माता निर्देशक लता के अलावा किसी और और को मौका नहीं देते फिर भी आशा ने कई लता के खास माने गये संगीतकारों के साथ काम किया ओपी नैयर ही एकलौते संगीतकार रहे जिन्होंने कभी लता को मौका नहीं दिया और वे आशा के साथ हिट पर हिट फिल्में देते रहे,’मंगेशकर बैरियऱ’को पार करने का दम सिर्फ आशा ने ही दिखाया था ’मंगेशकर बैरियर’ ने कई गायाकिओं को दबा दिया था,फ़िल्मफ़ेयर बेस्ट फिमेल प्लेबैक अवॉर्ड- 1968: "गरीबों की सुनो" (दस लाख, 1966)-1969: "पर्दे में रहने करो" (शिकार, 1968)-1972: "पिया तू आजा अब" (कारवां, 1971)-1973: "दम मारो दम '(हरे रामा हरे कृष्णा, 1972)- (नैना, 1973) "लगी हैं रात"-1975: "चैन से हमको कभी" (प्राण जाए पर वचन न जाए, 1974)-1979: "ये मेरा दिल" (डॉन, 1978)-विशेष पुरस्कार 1996 -(रंगीला, 1995)-लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार-2001 - फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार- राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार-बेस्ट फिमेल प्लेबैक सिंगर के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दो बार जीता है:-1981: दिल चीज़ क्या है (उमराव जान)-1986: मेरा कुछ सामान (इजाज़त)-आइफा पुरस्कार बेस्ट फिमेल प्लेबैक के लिए आईफा पुरस्कार-2002: "राधा कैसा ना जले" (लगान)-अन्य पुरस्कार- 1987: एशिया कोकिला.पुरस्कार (भारत - पाक एसोसिएशन, ब्रिटेन) -1989: लता मंगेशकर पुरस्कार (मध्य प्रदेश सरकार).-1997: स्क्रीन वीडियोकॉन अवार्ड लिए (एल्बम जानम समझा करो)-1997: एमटीवी पुरस्कार (एलबम जानम समझा करो).-1997: चैनल वी अवार्ड (एलबम जानम समझा करो)-1998: दयावती मोदी पुरस्कार-1999: लता मंगेशकर पुरस्कार (महाराष्ट्र सरकार)-2000: मिलेनियम (दुबई)-2000: जी गोल्ड बॉलीवुड पुरस्कार-2001: एमटीवी पुरस्कार (कमबख्त इश्क के लिए)-2002: बीबीसी लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड-2002: ज़ी सिने अवार्ड सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायन के लिए (लगान राधा कैसे ना जले के लिए)-2002: हॉल ऑफ फेम के लिए जी सिने विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया.-2002: सनसुई मूवी अवार्ड (लगान राधा कैसे ना जले के लिए)-2003: भारतीय संगीत के लिए उत्कृष्ट योगदान के लिए स्वरालय येसुदास पुरस्कार-2004: भारतीय वाणिज्य और उद्योग चैंबर के संघ द्वारा जीवित किंवदंती पुरस्कार.-2005: एमटीवी Immies, आज जाने की जिद न करो के लिए सर्वश्रेष्ठ महिला पॉप-2005: संगीत में सबसे स्टाइलिश.-1997 में, आशा भारतीय विरासत, उस्ताद अली अकबर खान के साथ एलबम के लिए ग्रैमी अवार्ड के लिए नामित 2000 में भारतीय सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार प्राप्त किया. अमरावती और जलगांव विश्वविद्यालय से साहित्य में डॉक्टरेट की मानद उपाधि.- भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.-2011 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में संगीत के इतिहास में सबसे दर्ज कलाकार के रूप में आधिकारिक तौर पर भोंसले को स्वीकार किया."1947 के बाद से 11,000 एकल, युगल और कोरस समर्थित गाने और 20 से अधिक भारतीय भाषाओं में रिकॉर्डिंग के लिए स्टूडियो रिकॉर्डिंग (एकल)" के लिए सम्मानित किया गया था.


Monday 7 September 2015

बाबू राम इशारा 7 सितंबर 1934 --- संजोग वाल्टर

 

हिंदी फिल्मों में ऐसे बहुत से ऐसे नाम है जिनकी शुरुआती ज़िंदगी के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है,ऐसे ही एक फिल्म कार थे बाबू राम इशारा जिन्होंने 1970 के दशक में अपनी बोल्ड फिल्मों से तहलका मचा दिया था बाबू राम इशारा (बी.आर.इशारा) इस फानी दुनिया को अलविदा कह गये, बी.आर.इशारा की पैदाइश 7 सितंबर 1934 में चिंतपूर्णी में हुई थी. चिंतपूर्णी तब पंजाब का हिस्सा था (अब हिमांचल ,वो हिमाचल प्रदेश के उना के रहने वाले थे फिल्मों की चाह में उना से भाग कर बम्बई आ गये और हिंदी फिल्मों के सेट पर " tea boy " के रूप में काम करने लगे,और ना जाने कब वो छोटी छोटी हिंदी फिल्मों के संवाद लेखक बन गये. 1969 में इन्साफ का मंदिर की कहानी लिखी थी ,1970 में रिलीज़ हुई गुनाह और कानून से लोग उन्हें पहचानने लगे थे,बी.आर.इशारा के पास जो कहानिया थी उस दौर के हिसाब से बेहद बोल्ड थी जो उस वक्त के मध्यम वर्ग में मौजूद " यौन" भावना को लेकर थी.सामाजिक और रोमांटिक फिल्मों के दौर में बोल्ड सब्जेक्ट वाली फिल्मों के लिए निर्माता नहीं मिलते थे,आई.एम्.कन्नू को बी.आर.इशारा की कहानी पसंद आई और 1970 में रिलीज़ हुई थी,"चेतना" (जिसका यह गीत आज भी लोकप्रिय है --में तो हर मोड़ पर दूंगा तुझको सदा) हीरो थे नए नवेले अनिल धवन साथ में थे शत्रुघन सिन्हा. हेरोइन थी रेहाना सुलतान जो गोल्ड मेडल थी FTII, पुणे (graduated 1966) जो 1970 की मशहूर फिल्म दस्तक से अपने फ़िल्मी कैरियर का आगाज़ कर चुकी थी इस फिल्म के लिए वो National Award as Best Actress 1970 का जीत चुकी थी. "चेतना" बोल्ड स्टोरी बोल्ड बेडरूम सीन्स की वज़ह से हिट रही. फिल्म चेतना की शूटिंग रिकार्ड 28 दिनों में पूरी की गयी थी,चेतना बम्बई की एक सेक्स वर्कर की कहानी थी फिल्म का सन्देश था की सेक्स वर्कर भी अपना घर बसा सकती है, चेतना के बाद 1971 ,मन तेरा तन मेरा,1972 मान जाइए,एक नज़र (अमिताभ बच्चन और जाया भादुड़ी इस फिल्म का मशहूर गाना था पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है ) 1972 में सायरा नाम की एक नयी हेरोइन को फिल्म "ज़रूरत" में लाये और अब सायरा का फ़िल्मी नाम था रीना रॉय, "ज़रूरत" भी बोल्ड स्टोरी बोल्ड बेडरूम सीन्स की वज़ह से हिट रही. 1973 में नयी दुनिया नए लोग,हाथी के दांत,एक नाव दो किनारे,और आई थी दिल की राहें जैसी गंभीर फिल्म.1973 में चरित्र के ज़रिये बी.आर.इशारा ने उस वक्त के मशहूर क्रिकेटर सलीम दुर्रानी (हीरो ) के साथ परवीन बाबी( हेरोइन) को पेश किया था, चरित्र फिल्म चेतना का सिक्वल थी. 1974 में देव साहब के साथ प्रेम शास्त्र,1974 में दावत,बाज़ार बंद करो भी आई,1975 में सारिका और राज किरण को फिल्म कागज़ की नाव के ज़रिये पेश किया अब तक सारिका बाल कलाकार (मास्टर सूरज) के रूप में आती थी.राज किरण की यह पहली फिल्म थी,1978 में राहू केतु और पल दो पल का साथ,1979 में घर की लाज,1981 खरा खोटा, कारण कोटा और कारण रिलीज़ हुई ,1982 में लोग क्या कहेंगे ,1983 जय बाबा अमर नाथ,1984 औरत का इंतकाम,हम दो हमारे दो,1985 सौतेला पति,1986 औरत,1987 बेसहारा,1988 वो फिर आयेगी,सिला,1994 जन्म से पहले,1996 सौतेला भाई और हुकुमनामा,रिलीज़ हुई थी. सपन जगमोहन ने बतौर संगीतकार बी.आर.इशारा की फिल्मों में लाज़वाब संगीत दिया, सपन जगमोहन की लाज़वाब धुनों पर मुकेश ने कई गीत गाये, फिल्म ज़िंदगी और तूफ़ान 1975 का यह गीत एक हसरत थी की आंचल का प्यार मिले आज भी लोकप्रिय है, बी.आर.इशारा की फिल्मों में से ज्यादातर नए कलाकारों ने शुरुआत की ,फिल्म सन आफ इंडिया के वंडर बाल कलाकार मास्टर साजिद को बतौर हीरो फिल्म ज़िंदगी और तूफ़ान 1975 में पेश किया, बी.आर.इशारा ने अपनी कई फिल्मों की हेरोइन रही रेहाना सुलतान से 1984 में शादी की थी. हिंदी फिल्मों में संवादकार,लेखक,निर्माता,निर्देशक के रूप में दिए उनके योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा,बी.आर.इशारा की मौत 25 जुलाई 2012 को मुबई के अस्पताल में हुई

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