Sunday 31 July 2016

मुमताज़ जिसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं है --- संजोग वाल्टर

जन्मदिवस 31 जुलाई के शुभ अवसर पर मुमताज़ जी को शुभकामनायें :











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मुमताज़ ( 31 जुलाई 1947) :



मुमताज़ हिंदी फ़िल्में का वो नाम है जिसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं है मामूली रोल से शुरुआत और फिर अपनी मेंहनत और ईमानदारी की वजह से टाप पर पहुँचने की कोई दूसरी मिसाल नहीं है,मुमताज़ ( 31 जुलाई 1947, बॉम्बे ) का नाम ज़ेहन में आता है तो याद आती है वो फ़िल्में जिनमें उन्होंने extra का रोल किया था मुझे जीने दो (1963 ) में उनके हिस्से में सम्वाद था माँ भैया आये है,उनका गहरा दाग (1963 ) में राजेन्द्र कुमार की बहन का रोल,मेरे सनम (1965) में वैम्प का किरदार "यह है रेशमी जुल्फों का अँधेरा" यह गाना तो आज भी मशहूर है मुमताज़ ने जम कर दोस्ती भी निभाई,फिरोज खान जब 1970 में अपराध से निर्माता बने तो मुमताज़ ने हीरो प्रधान फिल्म में काम किया और फ़िरोज़ खान के कहने पर बिकनी भी पहनी,अपनी बेटी नताशा की शादी फिरोज खान के बेटे फरदीन खान से कर अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दिया,जीतेन्द्र की फिल्म हमजोली में एक आइटम सिंह किया टिक टिक मेरा दिल बोले देव साहब के कहने पर फिल्म हरे रामा हरे कृष्ण भी इस फिल्म में मुमताज़ सिर्फ नाम की हेरोइन थी,पूरी फिल्म जीनत अमान के इर्द गिर्द थी,तेरे मेरे सपने (1971), खिलौना (1970) मुमताज़ की वो चुनिन्दा फ़िल्में जिनमें उन्होने जान डाल थी खिलौना के लिए Filmfare Best Movie Award.के साथ Filmfare Best Actress Award,भी हासिल किया था,मुमताज़ के वालिद-वालिदा का नाम था अब्दुल सलीम अस्करी- शादी हबीब आगा.मुझे जीने दो (1963 ) में दिखी एक छोटे से किरदार,इस दौर में उनकी जोड़ी बनी दारा सिंह के सात इस जोड़ी की 16 फ़िल्में आई थी बौक्सर, सेमसन,टार्ज़न,किंग कोंग, फौलाद ,वीर भीमसेन , हर्क्यूलिस Tarzan Comes to Delhi, Sikandar E Azam, Rustom-E-Hind, Raaka, Boxer, Daku Mangal सिंह,तब दारा सिंह को मिलते ४.५ लाख रुय्पे एक फिल्म के मुमताज़ को २.५ लाख रूपये,मुमताज़ बी ग्रेड की फिल्मों में हेरोइन बन कर आ रही थी तो ऐ ग्रेड की फिल्मों में छोटे छोटे रोल कर रही थी पत्थर के सनम इसकी मिसाल है,राम और श्याम (1967). में उन्होंने दिलीप कुमार के साथ काम किया जो 1967 की टॉप हिट फिल्म थी शर्मीला टैगोर के साथ सावन की घटा (1966 ), यह रात फिर न आएगी (1966) मेरे हमदम मेरे दोस्त (1968) .राजेश खन्ना के साथ दो रास्ते (1969) और बंधन के बाद इस जोड़ी ने आठ फ़िल्में की. सच्चा झूठा (1970 ) में शशी कपूर ने उनके साथ काम करने से मना कर दिया था,(हीरो राजेश खन्ना) 1974 की सुपर हिट फिल्म "चोर मचाये सर शोर" शशी कपूर की यह कम बैक फिल्म थी,मुमताज़ ने यह जानते हुए भी इस फिल्म के हीरो शशी है काम करने से मना नहीं किया,मुमताज़ ने करीब 108 फिल्मों में काम किया था,धर्मेन्द्र,संजीव कुमार,जेतेंद्र सुनील दत्त,फिरोज खान,बिस्वजीत,देव आन्नद,अमिताभ बच्चन के साथ भी काम किया 1969-१९७५ के बीक उनकी और राजेश खन्ना की जोड़ी ने कई हिट फ़िल्में दी.राजेश खन्ना के साथ उनकी कमाल की जुगल बंदी थी.१९७४ में जब मुमताज़ अपने करियर की उंचाई पर थी तब millionaire मयूर माधवानी से शादी का फैसला कर लिया तब बाकी था काम आप की कसम ,रोटी और प्रेम कहानी का इन तीनों फिल्मों में उनके हीरो थे राजेश खन्ना इसके अलावा उन्होंने लफंगे (रंधीर कपूर) और नागिन का काम पूरा करने के बाद फ़िल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया और लन्दन जा बसी.1989 में वो फिल्म आंधिया में आई य फिल्म भारत में फलाप रही पर पकिस्तान में इस फिल्म ने सिल्वर जुबली की थी,In 1996 she received the Filmfare Lifetime Achievement Award.In June 2008, she was honored for her "Achievement in Indian Cinema" by the International Indian Film Academy (IIFA) in Bangkok. Mumtaz has featured recently in UniGlobe Entertainment's cancer docudrama 1 a Minute with a number of international stars.मुमताज़ की दो बेटियां है,मुमताज़ का नाम राजेश खन्ना के साथ भी जुड़ा,पर उनके और शम्मी कपूर के बीच रोमांस की खूब चर्चा है,बताया जाता है इस रिश्ते से "पापा कपूर" नहीं खुश थे वो नहीं चाहते थे उनके खानदान में एक और बहु फ़िल्मी दुनिया से हो (गीता बाली) शम्मी ने बाद में भाव नगर की नीला देवी से शादी कर ली थी "फिल्म ब्रह्मचारी के दौरान मुमताज़ शम्मी का रोमांस जोरो पर था " फिल्म  ब्रह्मचारी का एक गाना इस रिश्त्ते पर मोहर भी लगाता है "आज कल तेर मेरे प्यार के चर्चे हर जुबान पर.मुमताज़ स्टायलिश हेरोइन थी,उनकी मुमताज़ साड़ी बहुत मशहूर उस ज़माने में खूब बिक्री होती थी "मुमताज़ साड़ी" की ( इस पर फिर कभी) बेहतरीन अदाकारा के साथ वो लाज़वाब डांसर भी थी । 



Tuesday 19 July 2016

वो न आएंगे पलट के उन्हें लाख हम बुलाएं ! ------ ध्रुव गुप्त



वो न आएंगे पलट के उन्हें लाख हम बुलाएं !
अपनी सुरीली, भावुक, उनींदी और रेशमी आवाज़ के लिए मशहूर गुज़रे ज़माने की विख्यात गायिका मुबारक़ बेगम का पिछली रात निधन एक स्तब्ध कर देने वाली ख़बर है। लगभग अस्सी साल की बेगम अपनी बीमारी और आर्थिक अभाव की वजह से पिछले कुछ सालों से अपने जीवन के सबसे बड़े संकट से गुज़र रही थीं। मुंबई के जोगेश्वरी इलाके में अपने एक  पुराने फ्लैट  के बेडरूम में अकेली रहने वाली बेगम अकेलेपन में ही चल बसी । पिछले दिनों उनके हालात पर मेरा पोस्ट पढ़ने के बाद कई मित्रों ने उनकी आर्थिक मदद भी की थी। हिंदी फिल्मों की संगीत राजनीति की वज़ह से बेगम को बहुत मौके नहीं मिले, लेकिन उनके गाए कुछ गीत हमारी संगीत धरोहर के अमूल्य हिस्से हैं। उनकी गहरी, कच्ची, भावुक आवाज़ हमारी पीढ़ी के लोगों के हिस्से के इश्क़ और अधूरेपन की कभी हमराह हुआ करती थी। उनके गाए कुछ प्रमुख गीत हैं - कभी तन्हाइयों में भी हमारी याद आएगी (हमारी याद आएगी), वो न आएंगे पलट के उन्हें लाख हम बुलाएं (देवदास), हम हाले दिल सुनायेंगे, सुनिए कि न सुनिए (मधुमती), बेमुरव्वत बेवफ़ा बेगानाए दिल आप हैं (सुशीला), नींद उड़ जाए तेरी चैन से सोने वाले (जुआरी), निगाहों से दिल में चले आइएगा (हमीर हठ), कुछ अज़नबी से आप हैं कुछ अजनबी से हम (शगुन), मेरे आंसूओं पे न मुस्कुरा कई ख़्वाब थे जो मचल गए (मेरे मन मितवा), मुझको अपने गले लगा लो ऐ मेरे हमराही (हमराही), जब इश्क़ कहीं हो जाता है तब ऐसी हालत होती है (आरज़ू) और वादा हमसे किया दिल किसी को दिया (सरस्वतीचन्द्र)।
मरहूमा मुबारक़ बेग़म को खिराज़-ए-अक़ीदत !







Monday 4 July 2016

हिन्दी सिनेमा की पहली ब्यूटी क्वीन नसीम बानू ------ संजोग वॉल्टर



 भारतीय सिने जगत में अपनी दिलकश अदाओं से दर्शकों को दीवाना बनाने वाली अभिनेत्रियों की संख्या यू तो बेशुमार है लेकिन चालीस के दशक में एक अभिनेत्री ऐसी हुयी। जिसे ब्यूटी क्वीन कहा जाता था और आज के सिने प्रेमी शायद  ही उसे जानते हों, वह अभिनेत्री थीं नसीम बानू 4 जुलाई 1916 को को जन्मी नसीम बानू की परवरिश शाही ढग़ से हुयी थी। वह स्कूल पढऩे के लिए पालकी से जाती थीं। नसीम बानू की सुंदरता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें किसी की नजर न लग जाए इसलिये उन्हें पर्दे में रखा जाता था। फिल्म जगत में नसीम बानू का प्रवेश संयोगवश हुआ। एक बार नसीम बानो अपनी स्कूल की छुटियों के दौरान अपनी मां के साथ फिल्म सिल्वर किंग की शूटिंग देखने गयीं। फिल्म की शूटिंग देखकर नसीम बानू मंत्रमुग्ध हो गयीं और उन्होंने निश्चय किया कि वह अभिनेत्री के रुप में अपना सिने करियर बनायेंगी। इधर स्टूडियों में नसीम बानू की सुंदरता को देख कई फिल्मकारों ने नसीम बानू के सामने फिल्म अभिनेत्री बनने का प्रस्ताव रखा लेकिन उनकी मां ने यह कहकर सभी प्रस्ताव ठुकरा दिये कि नसीम अभी बच्ची है। नसीम की मां उन्हें अभिनेत्री नहीं बल्कि डॉक्टर बनाना चाहती थीं। इसी दौरान फिल्म निर्माता सोहराब मोदी ने अपनी फिल्म ‘हेमलेट’ के लिये बतौर अभिनेत्री नसीम बानू को काम करने के लिए प्रस्ताव दिया और इस बार भी नसीम बानू की मां ने इंकार कर दिया लेकिन इस बार नसीम अपनी जिद पर अड़ गयी कि उन्हें अभिनेत्री बनना ही है। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी बात मनवाने के लिये भूख हडताल भी कर दी । 70 के दशक में उनकी पहचान सायरा बानू की माँ के रूप में बनी,गोपी के बाद वो दिलीप कुमार की सास के रूप में जानी गयी, कभी दिलीप कुमार के साथ फिल्मों में हेरोइन बन कर आने वाली नसीम बानू 1970 में दिलीप कुमार की सास बनी,नसीम बानू ने अभिनय के बाद 1960 में रिलीज़ सायरा बानू की पहली फिल्म जंगली से ड्रेस डिजायनिंग का काम किया सिर्फ अपनी बेटी की ही फिल्मों में 18 जून 2002 को मुबई में 83 साल की उम्र में स्वर्गवास हो गया था.नसीम बानू ने सोहराब मोदी की कई फिल्मों में काम किया था खून का खून 1935,तलाक 1938,पुकार 1939 उजाला 1942,चल चल रे नौज़वान 1944 ,बेगम 1945 ,दूर चलें 1946 ,जीवन आशा 1946 ,अनोखी अदा 1948 ,चांदनी रात 1949 , शीश महल 1950 ,शबिस्तान 1951 ,अजीब लड़की 1952 ,बागी 1953 , नौशेर्वाने आदिल 1957 काला बाज़ार 1960 ,हौली डे इन बॉम्बे 1963 नबाव सिराज़ुद्दौल्ला 1967 ,पाकीज़ा 1972 कभी कभी 1976

Sunday 3 July 2016

खुद से भी ज़ुदा लगता था :राज कुमार ------ ध्रुव गुप्त




Dhruv Gupt
July 3, 2013
आप मुझे भूल गए क्या, जानी ?
राज कुमार उर्फ़ कुलभूषण पंडित का मुंबई के माहिम थाने के थानेदार से फिल्मों में स्टारडम तक का सफ़र एक सपने जैसा रहा था। अपने व्यक्तिगत जीवन में बेहद आत्मकेंद्रित, अक्खड़ और रहस्यमय राज कुमार के अभिनय की एक अलग और विलक्षण शैली रही जो उनके किसी पूर्ववर्ती या समकालीन अभिनेता से मेल नहीं खाती थी। उनके अभिनय में विविधता चाहे न रही हो, लेकिन यह सच है कि अपनी ज्यादातर फिल्मों में उन्होंने जिस अक्खड़, बेफिक्र और दंभ की सीमाएं छूते आत्मविश्वासी व्यक्ति का चरित्र जिया है, उसे जीना सिर्फ उन्हीं के बूते की बात थी। उनका अपना एक अलग दर्शक वर्ग रहा है जिसे आज भी उनकी कमी खलती है। उनके बाद नाना पाटेकर ने उनकी अभिनय शैली को सफलतापूर्वक अपनाया। 1952 में ' रंगीली ' फिल्म से अपना कैरियर शुरू करने वाले राज कुमार ने पचास से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें कुछ प्रमुख फ़िल्में थीं - मदर इंडिया, दुल्हन, जेलर, दिल अपना और प्रीत पराई, पैगाम, अर्धांगिनी, उजाला, घराना, दिल एक मंदिर, गोदान, फूल बने अंगारे, दूज का चांद, प्यार का बंधन, ज़िन्दगी, वक़्त, पाकीजा, काजल, लाल पत्थर, ऊंचे लोग, हमराज़, नई रौशनी, मेरे हुज़ूर, नीलकमल, वासना, हीर रांझा, कुदरत, मर्यादा, सौदागर, हिंदुस्तान की कसम। अपने जीवन के आखिरी वर्षों में उन्हें कर्मयोगी, चंबल की कसम, तिरंगा, धर्मकांटा, जवाब जैसी कुछ फिल्मों में बेहद स्टीरियोटाइप भूमिकाएं निभाने को मिलीं। अपनी स्थापित छवि के विपरीत उनकी कुछ फिल्मों - मदर इंडिया, गोदान और दिल एक मंदिर ने यह साबित किया कि उनके अभिनय में विविधता की गुंजाईश है, लेकिन उनकी इस विविधता का इस्तेमाल बहुत कम हो सका ! इस विलक्षण अभिनेता की पुण्य तिथि (3 जुलाई) पर उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि, एक शेर के साथ !
वो आग था किसी बारिश का बुझा लगता था 
अजीब शख्स था, खुद से भी ज़ुदा लगता था !

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