Tuesday 19 July 2016

वो न आएंगे पलट के उन्हें लाख हम बुलाएं ! ------ ध्रुव गुप्त



वो न आएंगे पलट के उन्हें लाख हम बुलाएं !
अपनी सुरीली, भावुक, उनींदी और रेशमी आवाज़ के लिए मशहूर गुज़रे ज़माने की विख्यात गायिका मुबारक़ बेगम का पिछली रात निधन एक स्तब्ध कर देने वाली ख़बर है। लगभग अस्सी साल की बेगम अपनी बीमारी और आर्थिक अभाव की वजह से पिछले कुछ सालों से अपने जीवन के सबसे बड़े संकट से गुज़र रही थीं। मुंबई के जोगेश्वरी इलाके में अपने एक  पुराने फ्लैट  के बेडरूम में अकेली रहने वाली बेगम अकेलेपन में ही चल बसी । पिछले दिनों उनके हालात पर मेरा पोस्ट पढ़ने के बाद कई मित्रों ने उनकी आर्थिक मदद भी की थी। हिंदी फिल्मों की संगीत राजनीति की वज़ह से बेगम को बहुत मौके नहीं मिले, लेकिन उनके गाए कुछ गीत हमारी संगीत धरोहर के अमूल्य हिस्से हैं। उनकी गहरी, कच्ची, भावुक आवाज़ हमारी पीढ़ी के लोगों के हिस्से के इश्क़ और अधूरेपन की कभी हमराह हुआ करती थी। उनके गाए कुछ प्रमुख गीत हैं - कभी तन्हाइयों में भी हमारी याद आएगी (हमारी याद आएगी), वो न आएंगे पलट के उन्हें लाख हम बुलाएं (देवदास), हम हाले दिल सुनायेंगे, सुनिए कि न सुनिए (मधुमती), बेमुरव्वत बेवफ़ा बेगानाए दिल आप हैं (सुशीला), नींद उड़ जाए तेरी चैन से सोने वाले (जुआरी), निगाहों से दिल में चले आइएगा (हमीर हठ), कुछ अज़नबी से आप हैं कुछ अजनबी से हम (शगुन), मेरे आंसूओं पे न मुस्कुरा कई ख़्वाब थे जो मचल गए (मेरे मन मितवा), मुझको अपने गले लगा लो ऐ मेरे हमराही (हमराही), जब इश्क़ कहीं हो जाता है तब ऐसी हालत होती है (आरज़ू) और वादा हमसे किया दिल किसी को दिया (सरस्वतीचन्द्र)।
मरहूमा मुबारक़ बेग़म को खिराज़-ए-अक़ीदत !







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