Wednesday 22 July 2015

मुकेश - आत्मा की आवाज़ --- वीर विनोद छाबड़ा / मुकुटधारी अग्रवाल

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मुकेश - आत्मा की आवाज़।
-वीर विनोद छाबड़ा
आज आत्मा की आवाज़ दिवंगत मुकेश माथुर का जन्मदिन है।
बेमिसाल एक्टर मोतीलाल ने मुकेश को एक महफ़िल में सुना। मोतीलाल उनके दूर के रिश्तेदार थे। वो उन्हें बंबई ले आये। गीत-संगीत में प्रवीण कराया। यह चालीस के दशक की शुरुआत थी। मुकेश का फ़िल्मी सफ़र 'निर्दोष'(१९४१) से बतौर हीरो शुरू हुआ।
उन दिनों कुंदन लाल सहगल की सेहत गिर रही थी। गीत-संगीत के क्षेत्र में लाख टके का सवाल था -सहगल के बाद कौन?
ऐसे फ़िक्रमंद माहौल में संगीतकार अनिल विश्वास मुकेश को ले आये- बोले यह है हीरा। सहगल का विकल्प।
मुकेश ने पूरे विश्वास से और दिल की गहराईयों से गाया - दिल जलता है तो जलने दो...(पहली नज़र-१९४५). इत्तिफ़ाक़ से मुकेश को दिल्ली से लाये मोतीलाल पर फिल्माया गया ये गाना।
जिसने भी मुकेश को सुना उसने कहा - सहगल जैसा दर्द और दिल की गहराइयों से गाया है। लेकिन असली परीक्षा बाकी थी। यह गाना सहगल ने सुना तो हैरान होकर बोले -मैंने कब गाया यह गाना?
लेकिन मुकेश की नज़र में सहगल तो सहगल ही थे। वो नहीं चाहते थे कि दुनिया उनको सहगल की नक़ल या क्लोन के रूप में याद करे।
उन्होंने रियाज पे रियाज किये। दिन रात एक कर दिया। ताकि सहगल से अलग एक मुक़ाम बना सकें।
इस बीच सहगल साब दिवंगत हो गए। मगर मुकेश ने दावा नहीं किया कि सहगल के जाने से खाली 'बड़े शून्य' को वो भर देंगे।
उन्होंने सहगल से अलग अपनी पहचान बनाई। इसमें उनको तराशा नौशाद ने। 'मेला' और 'अंदाज़' में मौका दिया। लेकिन फिर भी बरसों तक खास-ओ-आम मुकेश पर सहगल की शैडो देखता रहा। दरअसल सहगल जैसा दर्द सिर्फ़ मुकेश के स्वर में ही झलकता था।
मेला और अंदाज़ में में दिलीप कुमार की आवाज़ बने मुकेश। दिलीप को मुकेश इतना भाये कि वो चाहने लगे कि वो उनकी स्थाई आवाज़ बन जायें। लेकिन इस बीच राजकपूर ने मुकेश को अपनी आवाज़ बना लिया।
मुकेश ने एक बार पैर जमाये तो पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उनके लिए सबसे बड़ा दिन वो था जब रजनीगंधा के लिए उन्हें बेस्ट सिंगर का नेशनल अवार्ड मिला - कई बार यूं ही देखा है.
उन्हें चार बार बेस्ट सिंगर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला - सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी(अनाड़ी)…सबसे बड़ा नादान वही है जो समझे नादान मुझे(पहचान)…न इज़्ज़त की चिंता न फ़िक्र कोई ईमान की, जय बोलो बेईमान की(बेईमान)…कभी-कभी मेरे दिल में ख़्याल आता है(कभी-कभी).
होटों पे सच्चाई रहती है.…दोस्त दोस्त न रहा.…सावन का महीना पवन करे सोर....बस यही अपराध हर बार करता हूं आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं.…इक प्यार का नगमा है.…मैं न भूलूंगा इन कसमों इन वादों को....इक दिन बिक जायेगा तू माटी के मोल.…मैं पल दो पल का शायर हूं.…चंचल शीतल निर्मल कोमल…यह वो गाने हैं जिनके लिये फिल्मफेयर ने मुकेश को बेस्ट सिंगर की लिए नॉमिनेट किया।
मुकेश जी ने सैकड़ों यादगार गीत गाये हैं। मुझे तो हर गाना अवार्ड योग्य लगता है।
२७ अगस्त १९७६ को मुकेश जी ह्रदय गति रुकने से देहांत हो गया। वो सिर्फ़ ५३ साल के थे। उस दिन वो एक कार्यक्रम के सिलसिले में अमेरिका में थे। उनकी मृत्यु पर राजकपूर ने कहा था - मेरी तो आवाज़ ही चली गयी।
मुकेशजी ने आख़िरी गाना राजकपूर की सत्यम शिवम सुंदरम के लिए रिकॉर्ड कराया था - चंचल शीतल निर्मल कोमल…
मुकेश चंद माथुर का जन्म २२ जुलाई १९२३ को दिल्ली में हुआ था।
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२२-०७-२०१५


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1965 मे मैं अपनी पत्नी सुशीला जी और तीन वर्षीया पुत्री अरुणा के साथ अपने भाई साहिब चक्रधारी अग्रवालजी के नई दिल्ली के एच-4 ,हौज़ खास मे रहता था ।उन दिनो मैं कानपुर से प्रकाशित होनेवाले दैनिक जागरण का दिल्ली प्रतिनिधि भी था ।भाई साहब जिस किराये के मकान मे रहते थे ।उसके ऊपरी तल्ले मे माथुर साहिब कर प्ररिवार रहता था ।वे सफदरजंग हवाई अड्डे मे किसी अच्छे पोस्ट पर थे ।उनकी पत्नी और बच्चो के साथ हम लोगो के बहुत मधुर और पारिवारिक संबंध हो गए थे ,मुझे याद है -रविवार का दिन था ।बच्चे घूमने गए थे ,हम घर मे थे ।तभी उपर वाले माथुर साहिब के बच्चे आए और बोले अंकल ,तुरंत उपर चलिये ,मम्मी ने बुलाया है ।मुझे एकाएक उपर तल्ले पर बुलाने की बात समझ मे नहीं आई ।फिर भी अनमना हो कर चला गया। जब ड्राइंग रूम मे पहुंचा तो देखता क्या हूँ ।फिल्म जगत के प्रसिद्ध पार्श्वगायक मुकेशजी बैठे चाय पी रहे हैं ।मुझे देखते ही माथुर साहिब की पत्नी ने कहा आइये भैया ,आपकी भेंट मामाँ जी से कराती हूँ ।मुकेशजी उनके मामा थे ।मुकेशजी बड़े स्नेह से मिले ,अपने पास बैठा लिया ।बच्चो ने उन्हे कोई गीत सुनने को कहा वे बोले -बाजा होता तो ठीक होता ,फिर भी उन्होने गुनगुना कर कुछ बोल सुनाये ।माथुरजी की पत्नी की माताजी के वे चचेरे भाई थे ,जब भी वे दिल्ली आते समय निकाल हौज़ खास माथुरजी से मिलने आते ।मुझे बहुत ही सरल और ऊंचे दर्जे के इंसान लगे ।कोई अहंकार नहीं ।उनका मिलना एक यादगार पल बन कर रह गया है । .
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Sunday 19 July 2015

उसने कहा था का संदेश क्या था?---विजय राजबली माथुर

सोमवार, 1 सितंबर 2014


उसने कहा था का संदेश क्या था?

 गुलेरी जी ने लहना सिंह के बचपन के प्रेम को आधार बना कर इस कहानी के माध्यम से युद्ध की विभीषिका,छल-छद्यम,व्यापार मुनाफा,काला बाजारी सभी बातों को जनता के समक्ष रखा है सिर्फ प्रेम-गाथा को नहीं । सैनिकों की मनोदशा,उनके कष्टों तथा अदम्य साहस का वर्णन भी इस कहानी तथा फिल्म दोनों में है। 

  http://vidrohiswar.blogspot.in/2014/09/blog-post.html

************************************************************************************************* अपनी तीन कहानियों-उसने कहा था,बुद्धू का काँटा और सुखमय जीवन की रचना करके हिन्दी साहित्य में अमर स्थान प्राप्त करने वाले चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी की कहानी 'उसने कहा था' को आधार बना कर बिमल राय साहब ने मोनी भट्टाचार जी के निर्देशन में इसी नाम से निर्मित फिल्म को 1960 में प्रदर्शित किया था। जैसा कि मूल कहानी को दो किश्तों में प्रकाशित करते हुये हिंदुस्तान अखबार में बताया गया है कि सौ वर्ष पूर्व लिखी गई यह कहानी आदर्श प्रेम कहानी है। फिल्म में मूल कहानी के सिक्ख लहना सिंह को गैर सिक्ख नंदू (सुनील दत्त ) के रूप में प्रस्तुत किया गया है।मूल कहानी में वर्णित  युद्ध में यूरोप की  फ्रांस/बेल्जियम सीमा पर जर्मन फौज से भिड़ंत को फिल्म में  एशिया में जापानी फौज से भिड़ंत में बदल दिया गया है। यह परिदृश्य चंद्रधर शर्मा जी और उनकी मूल कहानी 'उसने कहा था' के साथ न्याय नहीं करता है। 

फिल्म में कमली (नंदा ) की शादी कराने वाले मध्यस्थ एक व्यापारी हैं और वह कमली के मामा से युद्ध के दौरान होने वाले बे इंतिहा मुनाफे का ज़िक्र करते हैं। मूल कहानी में भी ज़िक्र है कि भारतीय सैनिक ब्रिटिश साम्राज्यवाद के मुनाफे की खातिर कुर्बान हुये थे।

 वस्तुतः 28 जून 1914 को आस्ट्रिया के राजकुमार की हत्या की गई थी जिसके बाद युद्ध की चिंगारी सुलग उठी थी ।जर्मन सम्राट विलियम कौसर द्वितीय का प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रिंस बिस्मार्क ने जर्मनी  को ब्रिटेन के मुक़ाबले श्रेष्ठ साबित करने और जर्मन साम्राज्य स्थापित करने में बाधक 'प्रशिया' प्रांत को जर्मनी से निकाल दिया था जबकि प्रशियन जर्मनी में बने रहना चाहते थे और इस हेतु संघर्ष छेड़ दिया था। जर्मनी सामराज्य स्थापना करके ब्रिटेन के लिए चुनौती न प्रस्तुत करे इसलिए ब्रिटेन ने  04 अगस्त 1914 को जर्मनी के विरुद्ध   युद्ध की घोषणा कर दी थी ।

उस समय के प्रभावशाली कांग्रेस नेता बाल गंगाधर तिलक   मांडले जेल मे कैद थे और मोहनदास करमचंद गांधी  अफ्रीका से भारत आ गए थे और  गोपाल कृष्ण गोखले के स्वर मे स्वर मिलाने लगे थे । लाला हरदयाल ने विदेश में जाकर  गदर पार्टी की स्थापना देश को आज़ाद कराने हेतु की थी जिसको  सिंगापूर मे सफलता भी मिली थी।गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार को इस आश्वासन के बाद युद्ध में सहयोग किया था कि युद्ध समाप्त होते ही भारत को आज़ाद कर दिया जाएगा। इस युद्ध में  62 हज़ार मारे गए एवं 67 हज़ार घायल हुये  थे भारतीय सैनिक। उनमें से ही एक थे सरदार लहना सिंह अर्थात फिल्म के नंदू ।

 गुलेरी जी ने लहना सिंह के बचपन के प्रेम को आधार बना कर इस कहानी के माध्यम से युद्ध की विभीषिका,छल-छद्यम,व्यापार मुनाफा,काला बाजारी सभी बातों को जनता के समक्ष रखा है सिर्फ प्रेम-गाथा को नहीं । सैनिकों की मनोदशा,उनके कष्टों तथा अदम्य साहस का वर्णन भी इस कहानी तथा फिल्म दोनों में है। 






Saturday 18 July 2015

कितने संदेश हैं कटी पतंग में ?---विजय राजबली माथुर

शुक्रवार, 18 जुलाई 2014


कितने संदेश हैं कटी पतंग में ?

'वात्सल्य प्रेम' कभी भी निष्प्रभावी नहीं हो सकता। निश्छल प्रेम को अबोध बच्चा भी महसूस कर लेता है। माधवी ने पूनम के पुत्र को जो मातृत्व प्रदान किया था वह निस्वार्थ व निश्छल था और इसी का यह परिणाम था कि  पूनम के अबोध-नादान  पुत्र ने खेल-खेल में जहर की शीशी उठा कर रहस्य से पर्दा उठवा दिया और माधवी निर्दोष सिद्ध हो सकी। अतः प्रकृति-परमात्मा का अनुपम उपहार बच्चों से सदैव प्रेम-व्यवहार रखना चाहिए।

http://vidrohiswar.blogspot.in/2014/07/blog-post_18.html 

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18 जूलाई राजेश खन्ना जी की पुण्यतिथि पर  :

जो लोग मर कर भी अमर हो जाते हैं उनमें ही एक हैं राजेश खन्ना जी उनकी फिल्म 'कटी पतंग' का अवलोकन करने का अवसर 11 जूलाई को मिला था। शक्ति सामंत साहब द्वारा निर्मित व निर्देशित यह फिल्म सुप्रसिद्ध उपन्यासकार गुलशन नंदा जी के उपन्यास 'कटी पतंग' पर आधारित है। राजेश खन्ना जी 'कमल' और आशा पारेख जी 'माधवी' की भूमिकाओं में हैं और दोनों के जीवन-संघर्षों द्वारा अनेकों संदेश इस फिल्म के माध्यम से दिये गए हैं।

माधवी भी लड़कियों को गुमराह करके उनका उत्पीड़न करने वाले कैलाश के फेर में फंस चुकी थी और जब उसके विवाह के समय कैलाश ने उसके पूर्व में लिखे पत्रों को उसे उपहार में भेंट कर दिया तो वह घबड़ा गई । इसलिए वह मंडप छोड़ कर भाग गई और कमल को बारात वापिस लौटा ले जानी पड़ी। कमल ने माधवी की शक्ल नहीं देखी थी और अपने पिता श्री की माधवी के मामा से मित्रता के कारण रिश्ता स्वीकार कर लिया था । कैलाश द्वारा ठुकराये जाने पर माधवी  शहर छोडने के निश्चय के साथ रेलवे स्टेशन पहुंची जहां विश्रामालय में उसकी पुरानी सहपाठी/सहेली 'पूनम' अपने अबोध पुत्र के साथ प्रतीक्षा करते हुये मिल गई। माधवी की कहानी सुन कर और उसका गंतव्य निर्धारित न होने के कारण पूनम ने उससे अपने साथ अपनी सुसराल चलने को राज़ी कर लिया। पूनम के सुसराल वालों ने भी उसकी शक्ल नहीं देखी थी क्योंकि उनका विवाह उन लोगों की मर्ज़ी के विरुद्ध हुआ था। परंतु अपने पुत्र के निधन के बाद  पौत्र के मोह में उसके सुसर ने पत्र भेज कर उसे बुलाया था।

ट्रेन के दुर्घटना ग्रस्त होने और अपने न बचने की उम्मीद पर पूनम ने माधवी से अपने पुत्र को पाल लेने व उसकी सुसराल में 'पूनम' नाम से अपनी भूमिका निभाने का वचन ले लिया था। माधवी जब पूनम की भूमिका में टैक्सी से नैनीताल अपनी सुसराल के लिए चली तो मार्ग में ढाबे पर बच्चे के लिए दूध खरीदने हेतु ड्राईवर को रुपए देने के लिए पर्स खोला तो ड्राईवर की निगाह रुपयों पर गड़ गई अतः वह पर्स छीनने की नीयत से जंगल की ओर टैक्सी ले गया। पूनम/माधवी की चिल-पुकार सुन कर फारेस्ट आफ़ीसर कमल ने टैक्सी का पीछा करके ओवरटेक कर लिया। ड्राईवर पर्स छीन कर टैक्सी छोड़ कर भागा तो कमल ने उसका पीछा करना शुरू किया और तालाब में संघर्ष करके पर्स हासिल करके पूनम/माधवी को सौंप दिया तथा रात्रि में विश्राम हेतु अपने निवास पर ले गया।पूनम को ठहराकर कमल खुद रात्रि पार्टी में शामिल होने चला गया। नौकर से आग्रह करके माधवी अपनी सहेली  पूनम की सुसराल के लिए ट्रक में बैठ कर चली गई। शरीफ ट्रक ड्राईवर ने उसे सुरक्षित अपनी सहेली की सुसराल वाली हवेली पहुंचा दिया जहां माधवी को पूनम बन कर उसके बच्चे का लालन-पालन माँ के रूप में करना था।

माधवी के मामा और पूनम के सुसर दोनों ही कमल के पिता के मित्र थे।कमल पूनम के सुसर अर्थात अपने चाचा जी के पास अक्सर आता रहता था और अपने बचपन के मित्र की विधवा के रूप में पूनम से सहानुभूति रखने लगा जो वस्तुतः थी तो माधवी उसकी होने वाली पत्नि । माधवी तो पूनम के रूप में कमल की वस्तुस्थिति से परिचित हो चुकी थी किन्तु कमल उसे पूनम के रूप में मानता था। कैलाश ब्लेकमेलिंग के लिए माधवी को परेशान करने पीछा करते हुये नैनीताल भी पहुँच गया था। उसने पूनम की नौकरानी रमइय्या के जरिये जहर मिला दूध पूनम के सुसर को पिलवा कर उनका खात्मा कर दिया और माधवी को गिरफ्तार करा दिया।  किन्तु  कमल और पूनम का विवाह करने का निश्चय करके पूनम के सुसर ने कमल के पिता अपने मित्र को बुलवा लिया था और उनको बता दिया था कि यह पूनम नहीं उनकी होने वाली पुत्रवधू माधवी ही थी। पूनम के नादान पुत्र ने रसोई के पीछे से एक टूटी शीशी (जिसमे जहर की गोलियां लाकर कैलाश ने दूध के ग्लास में मिलाई थीं) उठा ली और खेल रहा था जिसे पूनम के सुसर के मित्र डॉ ने उस बच्चे से ले लिया और कमल की सख्ती से  रमइय्या ने सब कुछ सही-सही बता दिया।  उसके खुलासा करने पर कमल ने चतुराई से कैलाश और उसके षड्यंत्र में शामिल शबनम तथा   रमइय्या को गिरफ्तार करवाकर माधवी को मुक्त करा दिया था। परंतु माधवी थाने से जंगल की ओर चल कर आत्महत्या करने का मंसूबा पाले थी। कमल ने थाने से सूचना पाकर उसकी खोज की और पकड़ लिया तथा अपना इरादा भी स्पष्ट कर दिया कि माधवी के मर जाने पर वह भी मर जाएगा। अतः माधवी को अपना इरादा बदलना पड़ा।

*प्रारम्भिक संदेश तो यह मिलता है कि युवतियों को भावावेश में आकर पुरुषों के प्रेमजाल में नहीं फंसना चाहिए क्योंकि इसी कारण माधवी को शादी का मंडप छोड़ कर भागना पड़ा था।आजकल युवतियों को धोखा मिलने और उनसे दुर्व्यवहार होने की अनेकों घटनाएँ अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं। यह फिल्म युवतियों को सावधान रहने की ओर इंगित करती है।

*अपने साथ सम्पूर्ण रुपए-पैसे एक ही पर्स व एक ही जगह नहीं रखने चाहिए क्योंकि ज़्यादा धन के लालच में ही टैक्सी ड्राईवर पूनम को जंगल की ओर लेकर भागा था। यात्रा करते समय कुछ ज़रूरत भर रुपए ऊपर पर्स में रख कर बाकी धन गोपनीय रूप से अन्यत्र रखना चाहिए।

*'वात्सल्य प्रेम' कभी भी निष्प्रभावी नहीं हो सकता। निश्छल प्रेम को अबोध बच्चा भी महसूस कर लेता है। माधवी ने पूनम के पुत्र को जो मातृत्व प्रदान किया था वह निस्वार्थ व निश्छल था और इसी का यह परिणाम था कि  पूनम के अबोध-नादान  पुत्र ने खेल-खेल में जहर की शीशी उठा कर रहस्य से पर्दा उठवा दिया और माधवी निर्दोष सिद्ध हो सकी। अतः प्रकृति-परमात्मा का अनुपम उपहार बच्चों से सदैव प्रेम-व्यवहार रखना चाहिए।

*अधीरता या जल्दबाज़ी में कोई निष्कर्ष या निर्णय नहीं लेना चाहिए। बार-बार माधवी ने जल्दबाज़ी में फैसले किए और कदम उठाए जिस कारण कदम-कदम पर उसे परेशानियों का सामना करना पड़ा।

*कमल की भांति सदैव धैर्यवान व संयमित रहना चाहिए जो सफलता दिलाने वाले सूत्र हैं। 

*'लालच सदा ही बुरी बला 'होता है जिसके शिकार -कैलाश,शबनम और  रमइय्या को अंततः अपने गुनाहों की सजा भुगतानी ही पड़ी। अतः लालच के फेर में कभी भी नहीं पड़ना चाहिए।


Friday 17 July 2015

मुझे प्यार,तू जो,आज से पहले,गोरी तेरा : ज़रीना वहाब : 17 जुलाई 1959


ज़रीना वहाब : 17 जुलाई 1959
 साभार :
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=497708726922082&set=a.213322672027357.71686.100000488781382&type=1&theater
Zarina Wahab(17 July 1959 )Vishakapatnam, Andhra Pradesh,is an actress and former model, who was critically acclaimed for starring roles, such as in Chit Chor and Gopal Krishna in the 1970s. She has also appeared in Malayalam films including the critically acclaimed Madanolsavam, Chamaram, Palangal and Adaminte Makan Abu.Zarina was born into a Andhra Muslim family in Vishakapatnam, Andhra Pradesh. She is fluent in Telugu, Urdu, Hindi and English. She was trained at Film and Television Institute of India (FTII), Pune. Zarina has three sisters and one brother.Filmmaker Raj Kapoor was unimpressed with her look, when he met her at FTII. So Zarina worked on her appearance and attended film parties and events. She eventually got noticed and was cast in films. She was usually cast as the middle-class, natural beauty. She had a major hit film in Basu Chatterjee's Chit Chor (1976). She earned a Filmfare nomination as Best Actress for her role in Gharonda (1977).She has acted in Telugu, Tamil, Malayalam films, and has become fluent in Malayalam.She made a comeback to Malayalam films with Calendar, which released in 2009. She appeared in My Name Is Khan as the mother of Rizwan Khan (Shah Rukh Khan's character).She prefers Telugu films, and has encouraged her daughter Sana to start acting in a South Indian film, the way she had in a Telugu film Gajula Kistayya (1975) with Krishna.Sana has tried her hand at acting in 2006. Wahab currently plays older roles in television serials.Wahab met actor Aditya Pancholi on the sets of Kalank Ka Tika.[8] They married in 1986 and have a daughter, Sana and son Suraj. Her husband is younger than her. News of their turbulent marriage, her husband's temper and rumors of infidelity have been in the gossip columns.Yet, they are still together.
 
 
 

Thursday 16 July 2015

स्मिता पाटिल और ज्योतिष विज्ञान ---विजय राजबली माथुर

स्मिता पाटिल जी द्वारा अमिताभ बच्चन जी को जो ज्योतिषीय परामर्श दिया था उस पर भी मैंने अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है :

ज्योतिष का मखौल उड़ाना जितना आसान है उसकी अवहेलना करने पर हानि से बचना नहीं। काश स्मिता जी पूर्ण आयु प्राप्त करतीं तो समाज उनके ज्योतिषीय ज्ञान से लाभ उठा सकता था। परंतु दुनिया का यह दुखद दस्तूर है कि किसी के जीवित रहते उसको उसका वाजिब हक व सम्मान नहीं दिया जाता है। जिन साहब ने मृतयोपरांत स्मिता  पाटिल जी के ज्योतिषीय ज्ञान को रेखांकित किया वह साधूवाद के पात्र हैं।

http://vidrohiswar.blogspot.in/2014/08/blog-post_25.html

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उपरोक्त दोनों कटिंग्स स्वतः स्पष्ट हैं। दुनिया में दो तरह के अंध-विश्वासी हैं-एक वे जो ज्योतिष का नाम लेकर कही गई किसी भी अनर्गल बात को भी सिर माथे पर रख लेते हैं;दूसरे वे जो 'नास्तिकता' या 'एथीस्टवाद' के नाम पर ज्योतिष का  नाम लेने पर ही बिदक जाते हैं और उसे अवैज्ञानिक व अविश्वसनीय बताते नहीं थकते हैं। हालांकि ऐसे दो एथीस्टो ने खुद अपने,अपनी पत्नी एवं पुत्री की जन्मपत्रियों का विश्लेषण मुझसे करवाया भी है और ज्योतिष की आलोचना करना अपना परम धर्म भी समझते हैं। 

वस्तुतः 'विज्ञान' केवल प्रयोगशाला के बीकर में किए गए प्रयोगों का ही नाम नहीं है। "किसी भी विषय के नियमबद्ध एवं क्रमबद्ध अध्यन को विज्ञान कहा जाता है । " यह समस्त संसार स्वम्य में ही एक प्रयोगशाला है और यहाँ नित्य नए-नए प्रयोग हो रहे हैं। मनुष्य के भविष्य से संबन्धित वैज्ञानिक अध्यन को ज्योतिष   विज्ञान कहा जाता है। 

ज्योतिष में गणित के सिद्धांतों के आधार पर गणना होती है । अंक गणित पर 'अंक ज्योतिष',बीज गणित पर 'जन्म कुंडली विश्लेषण' और रेखा गणित पर 'हस्त रेखा' का अध्यन आधारित है। ज्योतिष का मुख्य कारक ग्रह 'शुक्र' है साथ ही 'सूर्य'व 'बुध' भी ज्योतिष की प्रेरणा देते हैं। हथेली में यदि चंद्र रेखा का अस्तित्व हो तो इसे रखने वाला बिना किसी गणना के अन्तः प्रेरणा के आधार पर पूर्वानुमान करने में सक्षम होता है।

'स्मिता 'जी के संबंध में समाचार कहता है कि वह 'हस्त रेखा ' का ज्ञान तो रखती ही थीं ,उनको पूर्वानुमान करने की भी क्षमता प्राप्त थी। अमिताभ जी के बारे में उनकी गणना व पूर्वानुमान दोनों सही निकले थे और शबाना जी द्वारा उनके इस ज्ञान के संबंध में पुष्टि करने की भी चर्चा है। 

Saturday, April 7, 2012

शबाना आज़मी को सम्मान क्यों? http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_07.html
Thursday, April 19, 2012

रेखा -राजनीति मे आने की सम्भावना--http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_19.html
रेखा जी के सांसद मनोनीत होने पर ब्लाग जगत में पूना प्रवासी भ्रष्ट-धृष्ट-निकृष्ट ब्लागर की पहल पर( जो खुद चार जन्म कुंडलियों का निशुल्क विश्लेषण मुझसे प्राप्त कर चुका था )मेरे ज्योतिषीय ज्ञान की खिल्ली उड़ाई गई थी। IBN7 से संबन्धित  उसके समर्थक एक ब्लागर द्वारा  अनेकों पोस्ट्स के माध्यम से  ज्योतिष विज्ञान की निंदा व आलोचना की गई थी। 
'स्मिता'जी के ज्योतिषीय ज्ञान के संबंध में संबन्धित लोगों से बढ़ कर दूसरा कौन जान सकता है? उनकी कोई जन्म कुंडली तो  किसी अखबार छ्पी नहीं देखी है। परंतु जो विवरण छ्पा है उसके अनुसार उनका 'शुक्र' ग्रह निश्चय ही प्रभावशाली था जिसका एक प्रमाण उनके प्रसिद्ध कलाकार होने से ही सिद्ध हो जाता है। निश्चित ही उनकी हथेली में प्रबल 'चंद्र' रेखा का अस्तित्व रहा ही होगा जो वह स्वप्न के आधार पर अमिताभ बच्चन जी को आगाह कर सकीं। उनकी चेतावनी पर ध्यान न देने के कारण ही  अमिताभ बच्चन जी त्रस्त हुये थे। 
ज्योतिष का मखौल उड़ाना जितना आसान है उसकी अवहेलना करने पर हानि से बचना नहीं। काश स्मिता जी पूर्ण आयु प्राप्त करतीं तो समाज उनके ज्योतिषीय ज्ञान से लाभ उठा सकता था। परंतु दुनिया का यह दुखद दस्तूर है कि किसी के जीवित रहते उसको उसका वाजिब हक व सम्मान नहीं दिया जाता है। जिन साहब ने मृतयोपरांत स्मिता  पाटिल जी के ज्योतिषीय ज्ञान को रेखांकित किया वह साधूवाद के पात्र हैं। 


Wednesday 15 July 2015

स्थापित मान्यताओं पर आधारित 'राम राज्य' एक उत्तम कलात्मक फिल्म --- विजय राजबली माथुर

सोमवार, 30 मार्च 2015


स्थापित मान्यताओं पर आधारित 'राम राज्य' एक उत्तम कलात्मक फिल्म 


इस फिल्म में यद्यपि लोक प्रचलित मान्यतों के आधार पर ही प्रदर्शन है किन्तु मैंने अपने कई लेखों के माध्यम से राम-वनवास तथा सीता-वनवास के राजनीतिक,कूटनीतिक कारणों का उल्लेख किया है  

http://vidrohiswar.blogspot.in/2015/03/blog-post_52.html

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 (फिल्म-सौजन्य से डॉ सुधाकर अदीब साहब )

72 वर्ष पूर्व 1943  में प्रदशित फिल्म 'राम राज्य ' की पट कथा कानू देसाई साहब ने महर्षि वाल्मीकि की रामायण के आधार पर लिखी है। इसका निर्देशन विजय भट्ट साहब ने किया है और संगीत शंकर राव साहब का है। राम के आदर्श चरित्र को सजीव किया है प्रेम अदीब साहब (  डॉ सुधाकर अदीब जी के पितामह ) ने एवं सीता के त्यागमय जीवन को साकार किया है शोभना समर्थ जी ने। 

गीत-संगीत और कलाकारों का अभिनय चित्ताकर्षक व मनोरम है। आम जन-मानस में राम व सीता की जो छवी है उस  कसौटी पर फिल्म पूरी तरह से अपने उद्देश्य को प्रस्तुत करने में सफल रही है। सीता-वनवास एक धोबी की आशंका पर ही इस फिल्म में भी दिखाया गया है। इन दृश्यों को चरितार्थ करने में प्रेम अदीब साहब व शोभना समर्थ जी का अभिनय वास्तविक ही लगता है। लव-कुश एवं वाल्मीकि के चरित्र भी लोक-मान्यताओं के अनुरूप ही हैं। फिल्म के अंतिम भाग में राम के अश्व मेध यज्ञ के दृश्य का वह भाग आज के संदर्भ में भी काफी कुछ सही प्रतीत होता है जिसमें लव-कुश के मुख से वाल्मीकि को यह बताते हुये दिखाया गया है कि अयोध्या के नगरीय जीवन और जनता से उनके वन का जीवन और वनवासी उत्तम हैं। लेकिन आज नगरों की भूख शांत करने के लिए वनों का दोहन व वनवासियों का शोषण किया जा रहा है । आज फिर से लोक जीवन के हिमायती लव-कुश की परंपरा को प्रश्रय देने की महती आवश्यकता है। 

इस फिल्म में यद्यपि लोक प्रचलित मान्यतों के आधार पर ही प्रदर्शन है किन्तु मैंने अपने कई लेखों के माध्यम से राम-वनवास तथा सीता-वनवास के राजनीतिक,कूटनीतिक कारणों का उल्लेख किया है उनमें से कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं। :---------------

*अयोध्या लौटकर राम द्वारा  भारी प्रशासनिक फेरबदल करते हुए पुराने प्रधानमंत्री वशिष्ठ ,विदेश मंत्री सुमंत आदि जो काफी कुशल और योग्य थे और जिनका जनता में काफी सम्मान था अपने अपने पदों से हटा दिया गया.इनके स्थान पर भरत को प्रधान मंत्री,शत्रुहन को विदेश मंत्री,लक्ष्मण को रक्षा मंत्री और हनुमान को प्रधान सेनापति नियुक्त किया गया.ये सभी योग्य होते हुए भी राम के प्रति व्यक्तिगत रूप से वफादार थे इसलिए राम शासन में निरंतर निरंकुश होते चले गए.अब एक बार फिर अपदस्थ वशिष्ठ आदि गणमान्य नेताओं ने वाल्मीकि के नेतृत्व में योजनाबद्ध तरीके से सीता को निष्कासित करा दिया जो कि उस समय   गर्भिणी थीं और जिन्होंने बाद में वाल्मीकि के आश्रम में आश्रय ले कर लव और कुश नामक दो जुड़वाँ पुत्रों को जन्म दिया.राम के ही दोनों बालक राजसी वैभव से दूर उन्मुक्त वातावरण में पले,बढे और प्रशिक्षित हुए.वाल्मीकि ने लव एवं कुश को लोकतांत्रिक शासन की दीक्षा प्रदान की और उनकी भावनाओं को जनवादी धारा  में मोड़ दिया.राम के असंतुष्ट विदेश मंत्री शत्रुहन लव और कुश से सहानुभूति रखते थे और वह यदा कदा वाल्मीकि के आश्रम में उन से बिना किसी परिचय को बताये मिलते रहते थे.वाल्मीकि,वशिष्ठ आदि के परामर्श पर शत्रुहन ने पद त्याग करने की इच्छा को दबा दिया और राम को अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति से अनभिज्ञ रखा.इसी लिए राम ने जब अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया तो उन्हें लव-कुश के नेतृत्व में भारी जन आक्रोश का सामना करना पडा और युद्ध में भीषण पराजय के बाद जब राम,भारत और शत्रुहन बंदी बनाये जा कर सीता के सम्मुख पेश किये गए तो सीता को जहाँ साम्राज्यवादी -विस्तारवादी राम की पराजय की तथा लव-कुश द्वारा नीत लोकतांत्रिक शक्तियों की जीत पर खुशी हुई वहीं मानसिक विषाद भी कि,जब राम को स्वयं विस्तारवादी के रूप में देखा.वाल्मीकि,वशिष्ठ आदि के हस्तक्षेप से लव-कुश ने राम आदि को मुक्त कर दिया.यद्यपि शासन के पदों पर राम आदि बने रहे तथापि देश का का आंतरिक प्रशासन लव और कुश के नेतृत्व में पुनः लोकतांत्रिक पद्धति पर चल निकला और इस प्रकार राम की छाप जन-नायक के रूप में बनी रही और आज भी उन्हें इसी रूप में जाना जाता है.
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** सीता -संक्षिप्त परिचय जैसा कि 'रावण वध एक पूर्व निर्धारित योजना' में पहले ही उल्लेख हो चुका है-राम के आविर्भाव के समय भारत-भू छोटे -छोटे राज्यों में विभक्त होकर परस्पर संघर्ष शील शासकों का अखाड़ा बनी हुयी थी.दूसरी और रावण के नेतृत्व में साम्राज्यवादी शक्तियां भारत को दबोचने के प्रयास में संलग्न थीं.अवकाश प्राप्त शासक मुनि विश्वमित्र जी जो महान वैज्ञानिक भी थे और जो अपनी प्रयोग शाला में 'त्रिशंकू' नामक कृत्रिम उपग्रह (सेटेलाईट)को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर चुके थे जो कि आज भी अपनी कक्षा (ऑर्बिट) में ज्यों का त्यों परिक्रमा कर रहा है जिससे हम 'त्रिशंकू तारा' के नाम से परिचित हैं. विश्वमित्र जी केवल ब्रह्माण्ड (खगोल) विशेषज्ञ ही नहीं थे वह जीव-विज्ञानी भी थे.उनकी प्रयोगशाला में गोरैया चिड़िया -चिरौंटा तथा नारियल वृक्ष का कृत्रिम रूप से सृजन करके इस धरती पर सफल परीक्षण किया जा चुका था .ऐसे ब्रह्मर्षि विश्वमित्र ने विद्वान का वीर्य और विदुषी का रज (ऋषियों का रक्त)लेकर परखनली (टेस्ट ट्यूब) के माध्यम से एक कन्या को अपनी प्रयोगशाला में उत्पन्न किया जोकि,'सीता'नाम से जनक की दत्तक पुत्री बनवा दी गयीं. वीरांगना-विदुषी सीता जनक जो एक सफल वैज्ञानिक भी थे सीता को भी उतना ही वैज्ञानिक और वीर बनाना चाहते थे और इस उद्देश्य में पूर्ण सफल भी रहे.सीता ने यथोचित रूप से सम्पूर्ण शिक्षा ग्रहण की तथा उसे आत्मसात भी किया.उनके वयस्क होने पर मैग्नेटिक मिसाईल (शिव-धनुष) की मैग्नेटिक चाभी एक अंगूठी में मड़वा कर उन्हें दे दी गयी जिसे उन्होंने ऋषियों की योजनानुसार पुष्पवाटिका में विश्वमित्र के शिष्य के रूप में पधारे दशरथ-पुत्र राम को सप्रेम -भेंट कर दिया और जिसके प्रयोग से राम ने उस मैग्नेटिक मिसाईल उर्फ़ शिव-धनुष को उठा कर नष्ट (डिफ्यूज ) कर दिया ,जिससे कि इस भारत की धरती पर उसके युद्धक प्रयोग से होने वाले विनाश से बचा जा सका.इस प्रकार हुआ सीता और राम का विवाह उत्तरी भारत के दो दुश्मनों को सगी रिश्तेदारी में बदल कर जनता के लिए वरदान के रूप में आया क्योंकि अब संघर्ष प्रेम में बदल दिया गया था. दूरदर्शी कूटनीतिज्ञ सीता सीता एक योग्य पुत्री,पत्नी,भाभी आदि होने के साथ-साथ जबरदस्त कूट्नीतिग्य भी थीं.इसलिए जब राष्ट्र -हित में राम-वनवास हुआ तो वह भी राम के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चल दीं.वस्तुतः साम्राज्यवाद को अस्त्र-शस्त्र की ताकत से नहीं कूट-नीति के कमाल से परास्त किया जा सकता था और यही कार्य सीता ने किया.सीता वन में रह कर आमजनों के बीच घुल मिल कर तथ्यों का पता लगातीं थीं और राम के साथ मिल कर आगे की नीति निर्धारित करने में पूर्ण सहयोग देतीं थीं.रावण के बाणिज्य-दूतों (खर-दूषण ) द्वारा खुफिया जानकारियाँ हासिल करने के प्रयासों के कारण सीता जी ने उनका संहार करवाया.रावण की बहन-सम प्रिय जासूस स्वर्ण-नखा (जिसे विकृत रूप में सूपनखा कहा जाता है ) को अपमानित करवाने में सीता जी की ही उक्ति काम कर रही थी .इसी घटना को सूपनखा की नाक काटना एक मुहावरे के रूप में कहा जाता है.स्वर्ण-नखा का अपमान करने का उद्देश्य रावण को सामने लाना और बदले की कारवाई के लिए उकसाना था जिसमें सीता जी सफल रहीं.रावण अपने गुप्तचर मुखिया मारीची पर बहुत नाज करता था और मान-सम्मान भी देता था इसी लिए उसे रावण का मामा कहा जाता है.मारीची और रावण दोनों वेश बदल कर यह पता लगाने आये कि,राम कौन हैं ,उनका उद्देश्य क्या है?वह वनवास में हैं तो रावण के गुप्तचरों का संहार क्यों कर रहे हैं ?वह वन में क्या कर रहे हैं?. राम और सीता ने रावण के सामने आने पर एक गंभीर व्यूह -रचना की और उसमें रावण को फंसना ही पडा.वेश बदले रावण के ख़ुफ़िया -मुखिया मारीची को काफी दूर दौड़ा कर और रावण की पहुँच से बाहर हो जाने पर मार डाला और लक्ष्मण को भी वहीं सीता जी द्वारा भेज दिया गया.निराश और हताश रावण ने राम को अपने सामने लाने हेतु छल से सीता को अपने साथ लंका ले जाने का उपक्रम किया लेकिन वह अनभिग्य था कि,यही तो राम खुद चाहते थे कि वह सीता को लंका ले जाए तो सीता वहां से अपने वायरलेस (जो उनकी अंगूठी में फिट था) से लंका की गोपनीय जानकारियाँ जुटा -जुटा कर राम को भेजती रहें. सीता जी ने रावण को गुमराह करने एवं राम को गमन-मार्ग का संकेत देने हेतु प्रतीक रूप में कुछ गहने विमान से गिरा दिए थे.बाली के अवकाश प्राप्त एयर मार्शल जटायु ने रावण के विमान पर इसलिए प्रहार करना चाहा होगा कि वह किस महिला को बगैर किसी सूचना के अपने साथ ले जा रहा है.चूंकि वह रावण के मित्र बाली की वायु सेना से सम्बंधित था अतः रावण ने केवल उसके विमान को क्षति पहुंचाई और उसे घायलावस्था में छोड़ कर चला गया.जटायु से सम्पूर्ण वृत्तांत सुन कर राम ने सुग्रीव से मित्रता कर ली और उद्भट विद्वान एवं उपेक्षित वायु-सेना अधिकारी हनुमान को पूर्ण मान -सम्मान दिया.दोनों ने राम को सहायता एवं समर्थन का ठोस आश्वासन दिया जिसे समय के साथ -साथ पूर्ण भी किया.राम ने भी रावण के सन्धि- मित्र बाली का संहार कर सुग्रीव को सत्तासीन करा दिया. हनुमान अब प्रधान वायु सेनापति (चीफ एयर मार्शल) बना दिए गए जो कि कूटनीति के भी विशेषज्ञ थे. सीता द्वारा भेजी लंका की गुप्त सूचनाओं के आधार पर राम ने हनुमान को पूर्ण विशवास में लेकर लंका के गुप्त मिशन पर भेजा.हनुमान जी ने लंका की सीमा में प्रवेश अपने विमान को इतना नीचे उड़ा कर किया जिससे वह समुद्र में लगे राडार 'सुरसा'कीपकड़ से बचे रहे ,इतना ही नहीं उन्होंने 'सुरसा'राडार को नष्ट भी कर दिया जिससे आने वाले समय में हमलावर विमानों की खबर तक रावण को न मिल सके. लंका में प्रवेश करके हनुमान जी ने सबसे पहले सीता जी से भेंट की तथा गोपनीय सूचनाओं का आदान-प्रदान किया और सीता जी के परामर्श पर रावण के सबसे छोटे भाई विभीषण जो उससे असंतुष्ट था ही से संपर्क साधा और राम की तरफ से उसे पूर्ण सहायता तथा समर्थन का ठोस आश्वासन भी प्रदान कर दिया.अपने उद्देश्य में सफल होकर उन्होंने सीता जी को सम्पूर्ण वृत्तांत की सूचना दे दी.सीता जी से अनुमति लेकर हनुमान जी ने रावण के कोषागारों एवं शस्त्रागारों पर अग्नि-बमों (नेपाम बम) की वर्षा कर डाली.खजाना और हथियार नष्ट कर के गूढ़ कूटनीति के तहत और सीता जी के आशीर्वाद से उन्होंने अपने को रावण की सेना द्वारा गिरफ्तार करा लिया और दरबार में रावण के समक्ष पेश होने पर खुद को शांति-दूत बताया जिसका विभीषण ने भी समर्थन किया और उन्हें अंतरष्ट्रीय कूटनीति के तहत छोड़ने का प्रस्ताव रखा.अंततः रावण को मानना ही पडा. परन्तु लौटते हुए हनुमान के विमान की पूँछ पर संघातक प्रहार भी करवा दिया.हनुमान जी तो साथ लाये गए स्टैंड बाई छोटे विमान से वापिस लौट आये और बदली हुयी परिस्थितियों में सीता जी से उनकी अंगूठी में जडित वायरलेस भी वापिस लेते गए. विभीषण ने शांति-दूत हनुमान के विमान पर प्रहार को मुद्दा बना कर रावण के विदेश मंत्री पद को त्याग दिया और खुल कर राम के साथ आ गया.सीता जी का लंका प्रवास सफल रहा -अब रावण की फ़ौज और खजाना दोनों खोखले हो चुके थे,उसका भाई अपने समर्थकों के साथ उसके विरुद्ध राम के साथ आ चुका था.अब लंका पर राम का आक्रमण एक औपचारिकता मात्र रह गया था फिर भी शांति के अंतिम प्रयास के रूप में रावण के मित्र बाली के पुत्र अंगद को दूत बना कर भेजा गया. रावण ने समपर्ण की अपेक्षा वीर-गति प्राप्त करना उपयुक्त समझा और युद्ध में तय पराजय का वरण किया. इस प्रकार महान कूटनीतिज्ञ सीता जी के कमाल की सूझ-बूझ ने राम को साम्राज्यवादी रावण के गढ़ में ही उसे परास्त करने का मार्ग प्रशस्त किया. आज फिर आवश्यकता है एक और सीता एवं एक और राम की जो साम्राज्यवाद के जाल को काट कर विश्व की कोटि-कोटि जनता को शोषण तथा उत्पीडन से मुक्त करा सकें.जब तक राम की वीर गाथा रहेगी सीता जी की कूटनीति को भुलाया नहीं जा सकेगा.
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*** विद्रोह या क्रांति कोई ऐसी चीज़ नहीं होती जिसका विस्फोट एकाएक होता हो,बल्कि इसके अनन्तर अन्तर क़े तनाव को बल मिलता रहता है और जब यह अन्तर असह्य हो जाता है तभी इसका विस्फोट हो जाता है.अयोध्यापति राम क़े विरुद्ध सीता का विद्रोह ऐसी ही एक घटना थी.परन्तु पुरुष-प्रधान समाज ने इतनी बड़ी घटना को क्षुद्र रूप में इस प्रकार प्रचारित किया कि,एक धोबी क़े आक्षेप करने पर राम ने लोक-लाज की मर्यादा की रक्षा क़े लिये महारानी सीता को निकाल दिया.कितना बड़ा उपहास है यह वीरांगना सीता का जिन्होंने राम क़े वेद-विपरीत अधिनायकवाद का कडा प्रतिवाद किया और उनके राज-पाट को ठुकरा कर वन में लव और कुश दो वीर जुड़वां बेटों को जन्म दिया.सीता निष्कासन की दन्त-कथायें नारी-वर्ग और साथ ही समाज में पिछड़े वर्ग की उपेक्षा को दर्शाती हैं जो दन्त-कथा गढ़ने वाले काल की दुर्दशा का ही परिचय है.जबकि वास्तविकता यह थी कि,साम्राज्यवादी रावण क़े अवसान क़े बाद राम अयोद्ध्या क़े शासक क़े रूप में नहीं विश्वपति क़े रूप में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते थे.सत्ता सम्हालते ही राम ने उस समय प्रचलित वेदोक्त-परिपाटी का त्याग कर ऋषियों को मंत्री मण्डल से अपदस्थ कर दिया था.वशिष्ठ मुनि को हटा कर अपने आज्ञाकारी भ्राता भरत को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया.विदेशमंत्री पद पर सुमन्त को हटा कर शत्रुहन को नियुक्त कर दिया और रक्षामंत्री अपने सेवक-सम भाई लक्ष्मण को नियुक्त कर दिया था.राम क़े छोटे भाई जानते हुये भी गलत बात का राम से विरोध करने का साहस नहीं कर पाते थे और अपदस्थ मंत्री अर्थात ऋषीवृन्द कुछ कहते तो राम को खड़यन्त्र की बू आने लगती थी.महारानी सीता कुछ कहतीं तो उन्हें चुप करा देते थे.राम को अपने विरुद्ध कुछ भी सुनने की बर्दाश्त नहीं रह गई थी.उन्होंने कूटनीति का प्रयोग करते हुये पहले ही बाली की विधवा तारामणि से सुग्रीव क़े साथ विवाह करा दिया था जिससे कि,भविष्य में तारा अपने पुत्र अंगद क़े साथ सुग्रीव क़े विरुद्ध बगावत न कर सके.इसी प्रकार रावण की विधवा मंदोदरी का विवाह विभीषण क़े साथ करा दिया था कि,भविष्य में वह भी विभीषण क़े विरुद्ध बगावत न कर सके.राम ने तारा और मंदोदरी क़े ये विवाह वेदों में उल्लिखित "नियोग"विधान क़े अंतर्गत ही कराये थे अतः ये विधी-सम्मत और मान्य थे."नियोग विधान"पर सत्यार्थ-प्रकाश क़े चौथे सम्मुल्लास में महर्षि दयानंद ने विस्तार से प्रकाश डाला है और पुष्टि की है कि,विधवा को दे-वर अर्थात दूसरा वर नियुक्त करने का अधिकार वेदों ने दिया है.सुग्रीव और विभीषण राम क़े एहसानों तले दबे हुये थे वे उनके आधीन कर-दाता राज्य थे और इस प्रकार उनके विरुद्ध संभावित बगावत को राम ने पहले ही समाप्त कर दिया था.इसलिए राम निष्कंटक राज्य चलाना चाहते थे. महारानी सीता जो ज्ञान-विज्ञान व पराक्रम तथा बुद्धि में किसी भी प्रकार राम से कम न थीं उनकी हाँ में हाँ नहीं मिला सकती थीं.जब उन्होंने देखा कि राम उनके विरोध की परवाह नहीं करते हैं तो उन्होंने ऋषीवृन्द की पूर्ण सहमति एवं सहयोग से राम-राज्य को ठुकराना ही उचित समझा.राम क़े अधिनायकवाद से विद्रोह कर सीता ने वाल्मीकि मुनि क़े आश्रम में शरण ली वहीं लव-कुश को जन्म दिया और उन्हें वाल्मीकि क़े शिष्यत्व में शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया.राम क़े भ्राता और विदेशमंत्री शत्रुहन यह सब जानते थे परन्तु उन्होंने अपनी भाभी व भतीजों क़े सम्बन्ध में राजा राम को बताना उचित न समझा क्योंकि वे सब भाई भी राम की कार्य-शैली से दुखी थे परन्तु मुंह खोलना नहीं चाहते थे.ऋषि-मुनियों का भी महारानी सीता को समर्थन प्राप्त था.लव और कुश को महर्षि वाल्मीकि ने लोकतांत्रिक राज-प्रणाली में पारंगत किया था और अधिनायकवाद क़े विरुद्ध लैस किया था. इसलिए जब राम ने अश्वमेध्य यज्ञ को विकृत रूप में चक्रवर्ती सम्राट बनने हेतु सम्पन्न कराना चाहा तो सीता-माता क़े संकेत पर लव और कुश नामक नन्हें वीर बालकों ने राम क़े यज्ञ अश्व को पकड़ लिया. राम की सेना का मुकाबला करने क़े लिये लव-कुश ने अपने नेतृत्व में बाल-सेना को सबसे आगे रखा ,उनके पीछे महिलाओं की सैन्य-टुकड़ी थी और सबसे पीछे चुनिन्दा पुरुषों की टुकड़ी थी. राम की सेना बालकों और महिलाओं पर आक्रमण करे ऐसा आदेश तो रक्षामंत्री लक्ष्मण भी नहीं दे सकते थे,फलतः बिना युद्ध लड़े ही उन्होंने आत्म-समर्पण कर दिया और इस प्रकार लव-कुश विजयी हुये एवं राम को पराजय स्वीकार करनी पडी.  जब महर्षि वाल्मीकि ने लव-कुश का सम्पूर्ण परिचय दिया तो राम भविष्य में वेद -सम्मत लोकतांत्रिक पद्धति से शासन चलाने पर सहमत हो गये तथा लव-कुश को अपने साथ ही ले गये.परन्तु सीता ने विद्रोह क़े पश्चात पुनः राम क़े साथ लौट चलने का आग्रह स्वीकार करना उपयुक्त न समझा क्योंकि वह पति की पराजय भी न चाहतीं थीं.अतः उन्होंने भूमिगत परमाणु विस्फोट क़े जरिये स्वंय की इह-लीला ही समाप्त कर दी.सीता वीरांगना थीं उन्हें राजा राम ने निष्कासित नहीं किया था उन्होंने वेद-शास्त्रों की रक्षा हेतु स्वंय ही विद्रोह किया था जिसका उद्देश्य मानव-मात्र का कल्याण था.अन्ततः राम ने भी सीता क़े दृष्टिकोण को ही सत्य माना और स्वीकार तथा अंगीकार किया.अतः सीता का विद्रोह सार्थक और सफल रहा जिसने राम की मर्यादा की ही रक्षा की

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Tuesday 14 July 2015

खेल कारपोरेट ट्रेड यूनियनिज़्म का :'नमक हराम' से 'चक्रव्यूह' तक ---विजय राजबली माथुर

रविवार, 1 फ़रवरी 2015


खेल कारपोरेट ट्रेड यूनियनिज़्म का :'नमक हराम' से 'चक्रव्यूह' तक

 हालांकि फिल्म निर्माता तो मनोरंजन और मुनाफे को ध्यान में रख कर आजकल फिल्में बनाते हैं। किन्तु आज़ादी से पहले और बाद में भी कुछ फिल्मों द्वारा समाज और राजनीति को नई दिशाएँ बताने का कार्य किया गया है। हाल की चक्रव्यूह और 40 वर्ष पुरानी नमक हराम फिल्में मालिक द्वारा मजदूर और किसानों के शोषण पर प्रकाश डालती तथा अपना समाधान प्रस्तुत करती हैं।

'नमक हराम' में बताया गया है कि विक्की और  सोनू दो अलग-अलग समाज वर्गों से आने के बावजूद एक अच्छे मित्र है।षड्यंत्र पूर्वक मजदूर नेता की हत्या कराये जाने से क्षुब्ध अमीर अपने धनाढ्य पिता से बदला लेने हेतु खुद हत्या का इल्ज़ाम लेकर जेल चला जाता है लेकिन पिता के गलत कार्यों में सहयोग नहीं करता है। 

'चक्रव्यूह' द्वारा कारपोरेट कंपनियों की लूट को सामने लाया गया है। इसी लूट के कारण आदिवासी किसानों के मध्य नक्सलवादी आंदोलन की लोकप्रियता पर भी प्रकाश डाला गया है और इस आंदोलन की आड़ में स्वार्थी तत्वों द्वारा आंदोलन से विश्वासघात का भी चित्रांकन किया गया है। 

'मजदूर' द्वारा भी मालिक-मजदूर के सम्बन्धों पर व्यापक प्रकाश डालते हुये पूंजीपति वर्ग की शोषण प्रवृति को उजागर किया गया है।  मजदूरों की संगठित एकता के बल पर समानान्तर रोजगार की उपलब्धि बताना भी इस फिल्म का लक्ष्य रहा है। IPTA और भाकपा में लोकप्रिय गीत की प्रस्तुति इस फिल्म में चार चाँद लगा देती है।

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अब जब जाति और संप्रदाय पर आधारित ट्रेड यूनियन्स मैदान में हैं तथा सबसे बढ़ कर कारपोरेट ट्रेड यूनियन्स का बाज़ार गर्म है तब फासिस्ट सरकार के जमाने में इन सरकारी कर्मचारियों को कौन राहत दिलाएगा?
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=826727240722587&set=a.154096721318979.33270.100001559562380&type=1&theater


हालांकि फिल्म निर्माता तो मनोरंजन और मुनाफे को ध्यान में रख कर आजकल फिल्में बनाते हैं। किन्तु आज़ादी से पहले और बाद में भी कुछ फिल्मों द्वारा समाज और राजनीति को नई दिशाएँ बताने का कार्य किया गया है। हाल की चक्रव्यूह और 40 वर्ष पुरानी नमक हराम फिल्में मालिक द्वारा मजदूर और किसानों के शोषण पर प्रकाश डालती तथा अपना समाधान प्रस्तुत करती हैं।

'नमक हराम' में बताया गया है कि विक्की और  सोनू दो अलग-अलग समाज वर्गों से आने के बावजूद एक अच्छे मित्र है।षड्यंत्र पूर्वक मजदूर नेता की हत्या कराये जाने से क्षुब्ध अमीर अपने धनाढ्य पिता से बदला लेने हेतु खुद हत्या का इल्ज़ाम लेकर जेल चला जाता है लेकिन पिता के गलत कार्यों में सहयोग नहीं करता है। 

'चक्रव्यूह' द्वारा कारपोरेट कंपनियों की लूट को सामने लाया गया है। इसी लूट के कारण आदिवासी किसानों के मध्य नक्सलवादी आंदोलन की लोकप्रियता पर भी प्रकाश डाला गया है और इस आंदोलन की आड़ में स्वार्थी तत्वों द्वारा आंदोलन से विश्वासघात का भी चित्रांकन किया गया है। 

'मजदूर' द्वारा भी मालिक-मजदूर के सम्बन्धों पर व्यापक प्रकाश डालते हुये पूंजीपति वर्ग की शोषण प्रवृति को उजागर किया गया है।  मजदूरों की संगठित एकता के बल पर समानान्तर रोजगार की उपलब्धि बताना भी इस फिल्म का लक्ष्य रहा है। IPTA और भाकपा में लोकप्रिय गीत की प्रस्तुति इस फिल्म में चार चाँद लगा देती है। :


लेकिन लाल इमली मिल के सरकारी मजदूरों  के समान अधिकांश मजदूरों को अब तक न्याय न मिलना सरकारी 'श्रम' विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार और पूंजीपति वर्ग की लूट के प्रति सहानुभूति ही जिम्मेदार है। क्या कारपोरेट और क्या सरकारी अंडरटेकिंग्स का प्रबंध तंत्र सभी गुंडों व दौलत का सहारा लेकर मजदूर वर्ग पर घोर अत्याचार ढाते जाते हैं कभी कभार ही अदालतों से किसी मजदूर को अपवाद स्वरूप न्याय मिल जाता है तो वह नगण्य ही है। निजी क्षेत्र में तो मेनेजमेंट सरलता से अपनी हितैषी यूनियनें बनवा कर मजदूर आंदोलन को विभक्त कर ही देता है। सरकारी क्षेत्रों के कर्मचारी नेता भी निजी लाभ के लिए अपने वर्ग से विश्वासघात करते हुये प्रबंध तंत्र को ही लाभ पहुंचाते रहते हैं। RSS प्रायोजित बी एम एस निजी क्षेत्रों में मजदूर विरोधी कृत्यों में संलग्न रहता है किन्तु सरकारी क्षेत्रों में जम कर प्रबंध तंत्र के विरुद्ध संघर्ष करता है जिससे वामपंथी यूनियनें भ्रमित होकर उसको अपने साथ जोड़े हुये हैं। जबकि बी एम एस का योगदान विनिवेश द्वारा निजीकरण को प्रोत्साहित करने का ही है। वामपंथी यूनियनों के नेताओं के विश्वासघात से सम्पूर्ण वामपंथी आंदोलन प्रभावित हुआ है और आज पूर्ण बहुमत की फासिस्ट सरकार सत्ता में आकर वर्तमान संविधान को नष्ट करने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है। उग्र-सशस्त्र क्रान्ति के समर्थक वामपंथियों के सिर पर दुधारी तलवार लटक रही है और संसदीय साम्यवाद के समर्थक दल RSS द्वारा फैलाये विभ्रम का शिकार होकर खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं। 
इसी प्रकार RSS प्रायोजित हज़ारे का समर्थन किया गया था जैसा कि अब केजरीवाल का किया जा रहा है जबकि यही शख्स बनारस में मोदी की आसान जीत के लिए जिम्मेदार है। जब सम्पूर्ण वामपंथ को केजरीवाल द्वारा ध्वस्त कर दिया जाएगा तब उनको मोदी के विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर दिया जाएगा किन्तु फ़ासिज़्म तब तक चट्टानी व फौलादी बन चुका होगा और इसका खामियाजा संसदीय व क्रांतिकारी सभी वामपंथियों को भुगतना होगा। 

यदि अभी भी थोड़ा समय रहते ही साम्यवाद/वामपंथ को देश आधारित प्राकृतिक नियमों से सम्बद्ध कर लिया जाये तो हम जनता को समझा सकते हैं कि परमात्मा व प्रकृति की ओर से सभी जीवधारियों को समान अवसर प्राप्त हैं किन्तु पोंगापंथी ढ़ोंगी मजहब/संप्रदाय/रिलीजन शोषण का पोषण करते हैं अतः उनका परित्याग करके वास्तविक धर्म को अंगीकार किया जाये जिसे साम्यवादी/वामपंथी ही स्थापित कर सकते हैं । यदि हम ऐसा कर सके तो निश्चय ही सफलता हमारे चरण चूम लेगी। 
(संदर्भ:-
http://communistvijai.blogspot.in/2015/01/blog-post_30.html


Monday 13 July 2015

दो कलियाँ आज भी प्रेरक फिल्म ----- विजय राजबली माथुर

गुरुवार, 18 दिसंबर 2014


दो कलियाँ आज भी प्रेरक फिल्म

वीभत्स आतंकवाद (पेशावर कांड ) के शिकार सवा सौ से अधिक बच्चों के मार्मिक दुखांत ने हमें 1968 में रिलीज़ हुई 'दो कलियाँ' देखने को प्रेरित कर दिया। जिसमें बाल-कलाकार के रूप में नीतू सिंह की मुख्य भूमिका है। निर्देशक द्वय आर कृष्णन व एस पंजू ने इस फिल्म के माध्यम से मनोरंजन करते हुये जो संदेश दिया है वह वास्तव में नितांत गंभीर है। इसके माध्यम से समाज की तमाम विकृतियों, विभ्रम, स्वार्थ-लिप्सा, अनैतिक कार्यों के दृष्टांत प्रस्तुत करते हुये यह भी दिखाया गया है कि इसी पथ -भ्रष्ट समाज में कुछ लोग  अपने साहस व लगन के द्वारा उन पर विजय हासिल करने में भी समर्थ हैं। हालांकि फिल्म के उपसंहार में बालाजी पर आस्था व विश्वास के दृश्यों द्वारा समाज में व्याप्त अंध-विश्वास व ढोंग को महिमामंडित कर दिया गया है जिससे जनता में कर्तव्य पथ से परे परा -  शक्ति  पर भरोसा रखने की प्रवृत्ति को बेजा बढ़ावा मिलता है। यदि फिल्म के अंतिम पाखंडी दृश्यों की उपेक्षा कर दी जाये तो बाकी फिल्म प्रेरक प्रतीत होती है जिसने दो छोटी-छोटी बच्चियों के साहस,बुद्धि-कौशल व दृढ़ निश्चय को दर्शाया है। इन दोनों जुड़वां बहनों ने न केवल अपनी माँ के प्रति उत्पन्न अपने पिता की गलत फहमी को दूर किया वरन अपनी घमंडना  नानी को एड़ियों के बल खड़ा होने पर मजबूर कर दिया। 

http://vidrohiswar.blogspot.in/2014/12/blog-post.html 

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 वीभत्स आतंकवाद (पेशावर कांड ) के शिकार सवा सौ से अधिक बच्चों के मार्मिक दुखांत ने हमें 1968 में रिलीज़ हुई 'दो कलियाँ' देखने को प्रेरित कर दिया। जिसमें बाल-कलाकार के रूप में नीतू सिंह की मुख्य भूमिका है। निर्देशक द्वय आर कृष्णन व एस पंजू ने इस फिल्म के माध्यम से मनोरंजन करते हुये जो संदेश दिया है वह वास्तव में नितांत गंभीर है। इसके माध्यम से समाज की तमाम विकृतियों, विभ्रम, स्वार्थ-लिप्सा, अनैतिक कार्यों के दृष्टांत प्रस्तुत करते हुये यह भी दिखाया गया है कि इसी पथ -भ्रष्ट समाज में कुछ लोग  अपने साहस व लगन के द्वारा उन पर विजय हासिल करने में भी समर्थ हैं। हालांकि फिल्म के उपसंहार में बालाजी पर आस्था व विश्वास के दृश्यों द्वारा समाज में व्याप्त अंध-विश्वास व ढोंग को महिमामंडित कर दिया गया है जिससे जनता में कर्तव्य पथ से परे परा -  शक्ति  पर भरोसा रखने की प्रवृत्ति को बेजा बढ़ावा मिलता है। यदि फिल्म के अंतिम पाखंडी दृश्यों की उपेक्षा कर दी जाये तो बाकी फिल्म प्रेरक प्रतीत होती है जिसने दो छोटी-छोटी बच्चियों के साहस,बुद्धि-कौशल व दृढ़ निश्चय को दर्शाया है। इन दोनों जुड़वां बहनों ने न केवल अपनी माँ के प्रति उत्पन्न अपने पिता की गलत फहमी को दूर किया वरन अपनी घमंडना  नानी को एड़ियों के बल खड़ा होने पर मजबूर कर दिया। 

'गंगा'/'जमुना'  के रूप में बाल-कलाकार बेबी सोनिया नाम से  नीतू सिंह की भूमिकाएँ और उनका प्रस्तुतिकरण सराहनीय व प्रशंसनीय हैं।  किरण के रूप में माला सिन्हा की भूमिकाएँ ठीक रही हैं जबकि निगार सुलताना को उनकी माँ के रूप में विकृत चेहरा प्रस्तुत करना पड़ा है। उनके समकक्ष शबनम की माँ मधुमती  के रूप में मनोरमा को भी अनैतिकता का सहारा लेते दिखाया गया है। सुजाता के रूप में सुजाता की भूमिका भी आदर्श प्रस्तुतीकरण है।शेखर के रूप में  बिस्वजीत किरण की माँ के व्यवहार की प्रतिक्रिया  वश मधुमती के  प्रपंच व जाल में फँसते दिखाये गए हैं।

गंगा जब वेश बदल कर जमुना के रूप में ननसाल में माँ के साथ रहती है तो उसकी मार्मिक भूमिका में बालिका नीतू सिंह का कमाल इस गीत के माध्यम से देखिये- 
 

किरण के पिता के रूप में ओमप्रकाश व शेखर के मित्र के रूप में महमूद अली की भूमिकाएँ भी कम सराहनीय नहीं हैं। समाज में फैले भ्रष्टाचार, कर-चोरी, जनता के शोषण-उत्पीड़न पर हास्य प्रस्तुति के रूप में महमूद के कृत्य का कायल हुये बगैर नहीं रहा जा सकता है- 
   

खुले दिल और दिमाग से देखें  और पाखंड को त्याज्य दें तो आज की परिस्थितियों में भी फिल्म 'दो कलियाँ' एक आदर्श मनोरंजक फिल्म सिद्ध होती है।

Sunday 12 July 2015

Sulakshana Pratap Narain Pandit (12 July 1954) ---Sanjog

Sulakshana Pratap Narain Pandit (12 July 1954)
Sanjog
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Sulakshana Pratap Narain Pandit (12 July 1954) is a Filmfare Award winning playback singer and actor. Her brothers are the composing duo Jatin Lalit and her younger sister is Vijeta Pandit who achieved fame with her debut movie Love Story. Her uncle is the accomplished classical vocalist Pandit Jasraj.
Sulakshana's career as heroine spanned the 1970s and early '80s. As a leading lady she worked with Jeetendra, Sanjeev Kumar, Shammi Kapoor, Amitabh Bachchan, Rajesh Khanna, Vinod Khanna, Rishi Kapoor, Raj Babbar and Rakesh Roshan. Her acting career began with the suspense thriller Uljhan in 1975 opposite Sanjeev Kumar.
In Anil Ganguly's Sankoch (1976) which was based on the novel Parineeta she portrayed Lolita. Some of her popular hit films are Uljhan, Hera Pheri, Apnapan, Sankoch, Khandaan, Raaz, Thief of Baghdad, Chehre Pe Chehra, Dharam Kanta and Waqt Ki Deewar.
She acted in a Bangali movie, Bondie, where she was paired opposite Uttam Kumar.
Sulakshana had a singing career alongside her acting one. She began her as a child singer singing the popular song "Saat Samundar Paar se" with Lata Mangeshkar in the 1967 film Taqdeer. Thereafter, she recorded with famed musicians like Hemant Kumar and Kishore Kumar. She sang in Hindi, Bengali, Marathi, Oriya and Gujarati. Some of her popular songs are listed in the Filmography section below.
In 1980 she released an album titled Jazbaat (HMV), wherein she rendered ghazals.
She sang duets with accomplished singers like Lata Mangeshkar, Mohd. Rafi, Kishore Kumar, Shailender Singh, Yesudas, Mahendra Kapoor and Udit Narayan. She sang under music directors like Shankar Jaikishan, Laxmikant Pyarelal, Kalyanji Anandji, Kanu Roy, Bappi Lahiri, Usha Khanna, Rajesh Roshan, Khayyam, Rajkamal and several others.
Sulakshana comes from a musical family originating from Pili Mandori Village in Hissar (now Fatehabad) district of Haryana state. Pandit Jasraj is her uncle. She started singing at the age of 9. Her elder brother Mandheer Pandit (who was earlier a music composer in the 1980s with Jatin Pandit, better known as Mandheer - Jatin) was her constant companion in Mumbai; they performed and sang on stage until Sulakshana became a leading playback singer through many of their live concerts with legends like Kishore Kumar and Mohammad Rafi.
She has three brothers (Mandheer, Jatin and Lalit Pandit) and three sisters (Maya, Sandhya and Vijeta Pandit). Her father Pratap Narain Pandit was an accomplished classical vocalist. Her nephew Yash Pandit is an Indian television actor. Nieces Shradha Pandit and Shweta Pandit are playback singers.
Sulakshana has never been married. Actor Sanjeev Kumar turned down her marriage proposal, because he never got over his heartbreak after actress Hema Malini rejected him to marry her frequent co-star Dharmendra.
She fell on hard times when she stopped getting work. In 2002, she was living in an apartment with no furniture and that required serious repairs.She was forced to put it up for sale. It remained on the market for several months, until her former leading man Jeetendra came to her rescue by convincing his brother-in-law to purchase the flat. From the proceeds of the sale, she was able to pay off her debts and purchase three apartments.Her sister Vijeta Pandit and brother-in-law, music composer Aadesh Shrivastava, sold her house; now she lives with them.Aadesh has indicated that he was composing a devotional album for Sulakshana, but he has failed to do anything yet.

Filmfare Best Female Playback Award in 1975 for the song "Tu Hi Saagar Hai Tu Hi Kinara" in Sankalp (1975).
Miyan Tansen Award in 1975 for the song "Tu Hi Saagar Hai Tu Hi Kinara" in Sankalp.
Nominated as Filmfare Best Female Playback Award for rendering the classical "Bandhi Re Kahe Preet" in Sankoch (1976)

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Saturday 11 July 2015

इन्सानी भाई चारे का संदेश है 'काबुलीवाला'---विजय राजबली माथुर

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014


इन्सानी भाई चारे का संदेश है 'काबुलीवाला'

 मिनी और उनके पिता श्री द्वारा खान साहब के प्रति जो उदारता व सदाशयता ' काबुलीवाला ' कहानी में गुरुवर रवीन्द्र नाथ ठाकुर साहब ने दिखाई थी उसे इस फिल्म में निर्माता बिमल राय व निर्देशक हेमेन गुप्ता ने ज्यों का त्यों कायम रखा है। 53 वर्ष पूर्व प्रदर्शित यह फिल्म आज भी ज्यों का त्यों समाज व राष्ट्र के समक्ष सांप्रदायिकता के विरुद्ध संघर्ष में सहायक है। 16 वीं लोकसभा चुनावों के पूर्व व पश्चात जिस प्रकार सांप्रदायिकता को उभार कर व्यापार जगत ने सामाजिक सौहार्द को नष्ट  करके मानवता का हनन किया है उसको काबू करने में  'काबुलीवाला ' बहुत हद तक सफल साबित हो सकती है।

  http://vidrohiswar.blogspot.in/2014/08/blog-post_22.html

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गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर की सुप्रसिद्ध कहानी 'काबुलीवाला ' पर आधारित बिमल राय साहब द्वारा 1961 में प्रस्तुत  इसी नाम की फिल्म द्वारा मानवीय संवेगों तथा भाई चारे को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रदर्शित किया गया है।

अब्दुल रेहमान खान (बलराज साहनी ) काबुल में अपनी वृदधा माँ और नन्ही बच्ची अमीना (बेबी फरीदा ) के साथ गुज़र-बसर कर रहे थे। ज़मीन और मकान का कर्ज़ अदा करने की खातिर उनको हिंदुस्तान आकर मेवा बेचने वाले का कार्य करना पड़ा।  फेरी लगाने के दौरान खान साहब को एक नन्ही बच्ची मिनी (सोनू ) में अपनी पुत्री अमीना की छ्वी नज़र आई और वह उसे मेवे देने के बहाने से अक्सर मिलने आने लगे। मिनी के पिता श्री (साजन ) एक सहृदय लेखक थे उनको तो खान और अपनी बेटी की मुलाक़ात पर एतराज़ न था किन्तु उसकी माँ रमा (ऊषा किरण ) को यह पसंद न था उनको भय था कि खान उनकी बच्ची का अपहरण कर ले जाएगा। अतः मिनी को खान से मिलने पर प्रतिबंध लगा दिया जबकि खान साहब ने मिनी को उसके जन्मदिन पर आने का वायदा कर दिया था ।गुलज़ार साहब के डाइरेक्शन में छोटे-छोटे बच्चों द्वारा  वाद्य संगीत तथा मिनी के नृत्य का दृश्य बेहद मनोहारी है।   मिनी के बुलावे पर  आए तो खान साहब परंतु  उनकी मुलाक़ात नहीं करवाई गई।मिनी ने उनके हिस्से का नाश्ता छिपा कर रख लिया और अगले दिन उनको ढूंढ कर देने निकली तो भटक गई और बारिश में भीग कर एक पार्क के चबूतरे पर सो गई। 

घर के लोगों ने समझा कि काबुलीवाला ही उसे उठा ले गया किन्तु उसके पिता को उन पर भरोसा था वह जानते भी थे कि मिनी ने उनके लिए नाश्ता छिपाया हुआ था । पता चलने पर खान साहब भी मिनी को ढूँढने निकले और मिलने पर उसे गोद में लेकर घर पहुंचाने चले परंतु मोहल्ले के लोगों ने उन पर हमला करके घायल कर दिया। मिनी के पिताजी ने उनको बचाया परंतु घटना का मानसिक आघात और बारिश में भींगने से मिनी को बुखार आ गया। डॉ साहब (अरुण बोस ) ने उपचार तथा खान साहब ने 'दुआ ' की जिससे मिनी ठीक हो गई। 

अपनी बेटी की याद आने से खान साहब अपने वतन काबुल लौटने के लिए उधार वसूली करने को निकले तो एक शाल उधार  लेने वाले  ने न केवल इन्कार कर दिया बल्कि गाली-गुफ्तार भी कर दी जिस पर संघर्ष में वह खान साहब के हाथों मारा गया। अदालत में वकील के झूठ समझाने के बावजूद सिद्धांतों पर अडिग खान साहब ने सच्चाई बयान की जिस पर प्रसन्न होकर जज साहब ने कहा कि आज के जमाने में भी सच्चाई पर चलने के कारण वह मौत की बजाए खान साहब को दस वर्ष कारावास की सजा देते हैं। 

जब खान साहब सजा काट कर लौटे तो उस रोज़ मिनी की शादी थी। खान साहब ने मिनी के पिताजी द्वारा पूछने पर बताया कि उनके देश में भी सरकार अमीरों का ही  ख्याल रखती है और उन जैसे गरीब लोगों को किस्मत के भरोसे जीना होता है। सजावट,बाजे के लिए जमा रकम मिनी के पिताजी ने उससे मिलने आए खान साहब को उनकी बेटी अमीना की शादी के लिए ज़बरदस्ती सौंप दी तथा मिनी ने भी अपनी पसंद के कंगन अमीना के लिए भेंट कर दिये। खान साहब तो छोटी-छोटी लाल चूड़ियाँ ही मिनी के लिए उतना ही छोटा बच्चा समझ कर लाये थे।

 मिनी और उनके पिता श्री द्वारा खान साहब के प्रति जो उदारता व सदाशयता ' काबुलीवाला ' कहानी में गुरुवर रवीन्द्र नाथ ठाकुर साहब ने दिखाई थी उसे इस फिल्म में निर्माता बिमल राय व निर्देशक हेमेन गुप्ता ने ज्यों का त्यों कायम रखा है। 53 वर्ष पूर्व प्रदर्शित यह फिल्म आज भी ज्यों का त्यों समाज व राष्ट्र के समक्ष सांप्रदायिकता के विरुद्ध संघर्ष में सहायक है। 16 वीं लोकसभा चुनावों के पूर्व व पश्चात जिस प्रकार सांप्रदायिकता को उभार कर व्यापार जगत ने सामाजिक सौहार्द को नष्ट  करके मानवता का हनन किया है उसको काबू करने में  'काबुलीवाला ' बहुत हद तक सफल साबित हो सकती है।


Friday 10 July 2015

पाखंड का 'पर्दाफाश' करती :चित्रलेखा ---विजय राजबली माथुर

गुरुवार, 24 जुलाई 2014


पाखंड का 'पर्दाफाश' करती :चित्रलेखा

धर्म के ये ठेकेदार जनता को त्याग,पुण्य-दान के भ्रमजाल में फंसा कर खुद मौज कर रहे हैं। गरीब किसान,मजदूर कहीं अपने हक -हुकूक की मांग न कर बैठें इसलिए 'भाग्य और भगवान्'के झूठे जाल में फंसा कर उनका शोषण कर रहे हैं तथा साम्राज्यवादी साजिश के तहत पूंजीपतियों के ये हितैषी उन गलत बातों का महिमा मंडन कर रहे हैं। 

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हिन्दी के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार भगवती चरण वर्मा जी ने चौथी शताब्दी के चन्द्रगुप्त मौर्य काल की ऐतिहासिक घटना के आधार पर 1934 में 'चित्रलेखा' उपन्यास की रचना की थी जिसके आधार पर 1964 में केदार शर्मा जी ने 'चित्रलेखा' फिल्म का निर्माण किया था।

  हालांकि आज  भी धर्म के स्वम्भू ठेकेदार 'धर्म'का दुरूपयोग कर सम्पूर्ण सृष्टि को नुक्सान पहुंचा रहे हैं। परिणाम सामने है कि कहीं ग्लोबल वार्मिंग ,कहीं बाढ़,कहीं सूखा,कहीं दुर्घटना कहीं आतंकवाद से मानवता कराह रही है। धर्म के ये ठेकेदार जनता को त्याग,पुण्य-दान के भ्रमजाल में फंसा कर खुद मौज कर रहे हैं। गरीब किसान,मजदूर कहीं अपने हक -हुकूक की मांग न कर बैठें इसलिए 'भाग्य और भगवान्'के झूठे जाल में फंसा कर उनका शोषण कर रहे हैं तथा साम्राज्यवादी साजिश के तहत पूंजीपतियों के ये हितैषी उन गलत बातों का महिमा मंडन कर रहे हैं। पंचशील के नाम पर शान्ति के पुरोधा ने जब देशवासियों को गुमराह कर रखा था तो 1962  ई.में देश को चीन के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था। हमारा काफी भू-भाग आज भी चीन के कब्जे में ही है। तब 1964  में इसी ' चित्रलेखा ' फिल्म में साहिर लुधयानवी के गीत पर मीना कुमारी के माध्यम से  लता मंगेशकर ने यह गा कर धर्म के पाखण्ड पर प्रहार किया था-


संसार से भागे फिरते हो,भगवान् को तुम क्या पाओगे.
इस लोक को भी अपना न सके ,उस लोक में भी पछताओगे..
ये पाप हैं क्या,ये पुण्य हैं क्या,रीतों पर धर्म की मोहरें हैं.
हर युग में बदलते धर्मों को ,कैसे आदर्श बनाओगे..
ये भोग भी एक तपस्या है,तुम त्याग के मारे क्या जानो.
अपमान रचेता का होगा ,रचना को अगर ठुकराओगे..
हम कहते हैं ये जग अपना है,तुम कहते हो झूठा सपना है.
हम जनम बिताकर जायेंगे,तुम जनम गवां कर जाओगे..

हमारे यहाँ 'जगत मिथ्या 'का मिथ्या पाठ खूब पढ़ाया गया है और उसी का परिणाम था झूठी शान्ति के नाम पर चीन से करारी-शर्मनाक हार। आज भी बडबोले तथाकथित  धार्मिक ज्ञाता जनता को गुमराह करने हेतु' यथार्थ कथन' को 'मूर्खतापूर्ण कथन' कहते नहीं अघाते हैं।दुर्भाग्य से 'एथीस्टवादी ' 'नास्तिकता ' का जामा ओढ़ कर वास्तविक  धर्म (सत्य,अहिंसा :मनसा-वाचा-कर्मणा,अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य) को ठुकरा देते हैं लेकिन ढोंग-पाखंड-आडंबर को धर्म की संज्ञा प्रदान करते हैं और इस प्रकार वे दोनों एक-दूसरे के पूरक व सहयोगी के रूप में जनता को दिग्भ्रमित करके उसका शोषण मजबूत करते हैं।

केदार शर्मा जी ने तो 'चित्रलेखा' के माध्यम से जनता को 'ढोंग व पाखंड' से दूर रहने व यथार्थ में जीने का संदेश चीन से करारी हार के बाद ही दे दिया था किन्तु 1965,1971 और 1999 के युद्धों में पाकिस्तान पर विजय के बावजूद  'ढोंग व पाखंड' कम होने की बजाए और अधिक बढ़ा ही है। स्वानधीनता संघर्ष के दौर में जब साम्राज्यवादी लूट व शोषण के बँटवारे को लेकर एक विश्व युद्ध हो चुका था और दूसरे विसव युद्ध की रूप-रेखा बनाई जा रही थी हमारा देश स्वामी दयानन्द द्वारा फहराई 'पाखंड खंडिनी पताका' को छोड़/तोड़  चुका था तथा 'ढोंग व पाखंड' में पुनः आकंठ डूब चुका था तब स्वतन्त्रता सेनानी व साहित्यकार भगवती चरण वर्मा जी ने चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन में सामंत 'बीजगुप्त' और पटलीपुत्र राज्य की राज-नर्तकी 'चित्रलेखा' के ठोस व वास्तविक 'प्रेम' को आधार बना कर धर्म के नाम पर चल रहे अधर्म -पाखंड पर करारा प्रहार किया है जिसका सजीव चित्रण 'चित्रलेखा' फिल्म द्वारा हुआ है।

'चित्रलेखा' फिल्म द्वारा जनता के समक्ष पाखंडी तथाकथित धर्मोपदेशकों के धूर्त स्वभाव को लाया गया है कि किस प्रकार वे भोली जनता को ठगते हैं। कुमार गिरि और श्वेतांक के चरित्र ऐसे ही रहस्योद्घाटन करते हैं। जबकि  बीजगुप्त व चित्रलेखा के चरित्र त्याग की भावना का पालन करते हैं क्योंकि उनको जीवन एवं प्रेम की सच्ची अनुभूति है जबकि ढ़ोंगी पाखंडी सन्यासी सत्य व यथार्थ से कोसों दूर है तथा खुद को व जनता को भी दिग्भ्रमित करता रहता है। चित्रलेखा युवावस्था में 'विधवा' हो जाने तथा समाज से ठुकराये जाने व त्रस्त  किए जाने के कारण 'नृत्य कला' के माध्यम से अपना जीवन निर्वाह करती है। इस जानकारी के बावजूद बीजगुप्त राज-पाट को त्याग कर चित्रलेखा के सच्चे प्यार को प्राप्त करता है जबकि ढ़ोंगी सन्यासी छल से चित्रलेखा को प्राप्त करने हेतु तथाकथित 'त्याग-तपस्या' को त्याग देता है व छोभ तथा प्रायश्चित के वशीभूत होकर प्राणोत्सर्ग कर देता है। 

 आज समाज में व्याप्त बलात्कार,ठगी,लूट,शोषण -उत्पीड़न और अत्याचार की घटनाओं में बढ़ोतरी होने का कारण ढ़ोंगी-पाखंडी तथाकथित महात्मा,सन्यासी,बापू,स्वामी आदि ही हैं।  पाखंडियों ने कृष्ण का माँ तुल्य मामी 'राधा' को उनकी प्रेमिका बना कर जो रास-लीलाएँ प्रचलित कर रखी हैं वे भी अनैतिकता वृद्धि में सहायक हैं। रुक्मणी हरण व सुभद्रा हरण की कपोल कल्पित गाथाएँ आज समाज में अपहरण व बलात्कार का हेतु बनी हुई हैं।  विदेशी शासन में पोंगा-पंडितों द्वारा उनके हितार्थ लिखे 'कुरान' की तर्ज़ पर  'पुराण' कुरान की भांति पाक-साफ नहीं हैं बल्कि जनता को गुमराह करते हैं। कुमारगिरी सरीखे एक तथाकथित धर्मोपदेशक बलात्कार के मामले में जेल में तो हैं लेकिन उनको जेल से बाहर निकालने के लिए 'हत्या' व 'आतंक' का सहारा लिया जा रहा है। अतः आज भी 'चित्रलेखा' फिल्म की प्रासंगिकता बनी हुई है कि उससे प्रेरणा लेकर जनता इन ढोंगियों के चंगुल से मुक्त होकर अपने जीवन को सार्थक बना सकती है।

वास्तव में' धर्म 'वह है जो शरीर को धारण करने के लिए आवश्यक है। शरीर में 'वात,पित्त,कफ' एक नियमित मात्रा में रहते हैं तो शरीर को धारण करने के कारण' धातु' कहलाते हैं,जब उनमें किसी कारण विकार आ जाता है और वे दूषित होने लगते हैं तो' दोष' कहलाते हैं और दोष जब मलिन होकर शरीर को कष्ट पहुंचाने लगते हैं तब उन्हें 'मल' कहा जाता है और उनका त्याग किया जाता है।



वात -वायु और आकाश से मिलकर बनता है.
कफ -भूमि और जल से मिलकर बनता है
पित्त - अग्नि से बनता है। 

भगवान्-प्रकृति के ये पञ्च तत्व =भूमि,गगन,वायु,अनल और नीर मिलकर (इनके पहले अक्षरों का संयोग )'भगवान्' कहलाता है। जो GENERATE ,OPERATE ,DESTROY करने के कारण" GOD '' भी कहलाता है और चूंकि प्रकृति के ये पञ्च तत्व वैज्ञानिक आधार पर खुद ही बने हैं इन्हें किसी प्राणी ने बनाया नहीं है इसलिए ये 'खुदा ' भी हैं । हमें मानव जाति तथा सम्पूर्ण सृष्टि के हित में 'भगवान्'(GOD या खुदा )की रक्षा करनी चाहिए उनका दुरूपयोग नहीं करना चाहिए।

नैसर्गिक-प्राकृतिक 'प्रेम' का संदेश देती  और पाखंड का पर्दाफाश  करती 'चित्रलेखा' प्रेरक व अनुकरणीय सामाजिक फिल्म है जिससे सतत सीख ली जा सकती है।