Wednesday, 22 July 2015

मुकेश - आत्मा की आवाज़ --- वीर विनोद छाबड़ा / मुकुटधारी अग्रवाल

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मुकेश - आत्मा की आवाज़।
-वीर विनोद छाबड़ा
आज आत्मा की आवाज़ दिवंगत मुकेश माथुर का जन्मदिन है।
बेमिसाल एक्टर मोतीलाल ने मुकेश को एक महफ़िल में सुना। मोतीलाल उनके दूर के रिश्तेदार थे। वो उन्हें बंबई ले आये। गीत-संगीत में प्रवीण कराया। यह चालीस के दशक की शुरुआत थी। मुकेश का फ़िल्मी सफ़र 'निर्दोष'(१९४१) से बतौर हीरो शुरू हुआ।
उन दिनों कुंदन लाल सहगल की सेहत गिर रही थी। गीत-संगीत के क्षेत्र में लाख टके का सवाल था -सहगल के बाद कौन?
ऐसे फ़िक्रमंद माहौल में संगीतकार अनिल विश्वास मुकेश को ले आये- बोले यह है हीरा। सहगल का विकल्प।
मुकेश ने पूरे विश्वास से और दिल की गहराईयों से गाया - दिल जलता है तो जलने दो...(पहली नज़र-१९४५). इत्तिफ़ाक़ से मुकेश को दिल्ली से लाये मोतीलाल पर फिल्माया गया ये गाना।
जिसने भी मुकेश को सुना उसने कहा - सहगल जैसा दर्द और दिल की गहराइयों से गाया है। लेकिन असली परीक्षा बाकी थी। यह गाना सहगल ने सुना तो हैरान होकर बोले -मैंने कब गाया यह गाना?
लेकिन मुकेश की नज़र में सहगल तो सहगल ही थे। वो नहीं चाहते थे कि दुनिया उनको सहगल की नक़ल या क्लोन के रूप में याद करे।
उन्होंने रियाज पे रियाज किये। दिन रात एक कर दिया। ताकि सहगल से अलग एक मुक़ाम बना सकें।
इस बीच सहगल साब दिवंगत हो गए। मगर मुकेश ने दावा नहीं किया कि सहगल के जाने से खाली 'बड़े शून्य' को वो भर देंगे।
उन्होंने सहगल से अलग अपनी पहचान बनाई। इसमें उनको तराशा नौशाद ने। 'मेला' और 'अंदाज़' में मौका दिया। लेकिन फिर भी बरसों तक खास-ओ-आम मुकेश पर सहगल की शैडो देखता रहा। दरअसल सहगल जैसा दर्द सिर्फ़ मुकेश के स्वर में ही झलकता था।
मेला और अंदाज़ में में दिलीप कुमार की आवाज़ बने मुकेश। दिलीप को मुकेश इतना भाये कि वो चाहने लगे कि वो उनकी स्थाई आवाज़ बन जायें। लेकिन इस बीच राजकपूर ने मुकेश को अपनी आवाज़ बना लिया।
मुकेश ने एक बार पैर जमाये तो पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उनके लिए सबसे बड़ा दिन वो था जब रजनीगंधा के लिए उन्हें बेस्ट सिंगर का नेशनल अवार्ड मिला - कई बार यूं ही देखा है.
उन्हें चार बार बेस्ट सिंगर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला - सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी(अनाड़ी)…सबसे बड़ा नादान वही है जो समझे नादान मुझे(पहचान)…न इज़्ज़त की चिंता न फ़िक्र कोई ईमान की, जय बोलो बेईमान की(बेईमान)…कभी-कभी मेरे दिल में ख़्याल आता है(कभी-कभी).
होटों पे सच्चाई रहती है.…दोस्त दोस्त न रहा.…सावन का महीना पवन करे सोर....बस यही अपराध हर बार करता हूं आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं.…इक प्यार का नगमा है.…मैं न भूलूंगा इन कसमों इन वादों को....इक दिन बिक जायेगा तू माटी के मोल.…मैं पल दो पल का शायर हूं.…चंचल शीतल निर्मल कोमल…यह वो गाने हैं जिनके लिये फिल्मफेयर ने मुकेश को बेस्ट सिंगर की लिए नॉमिनेट किया।
मुकेश जी ने सैकड़ों यादगार गीत गाये हैं। मुझे तो हर गाना अवार्ड योग्य लगता है।
२७ अगस्त १९७६ को मुकेश जी ह्रदय गति रुकने से देहांत हो गया। वो सिर्फ़ ५३ साल के थे। उस दिन वो एक कार्यक्रम के सिलसिले में अमेरिका में थे। उनकी मृत्यु पर राजकपूर ने कहा था - मेरी तो आवाज़ ही चली गयी।
मुकेशजी ने आख़िरी गाना राजकपूर की सत्यम शिवम सुंदरम के लिए रिकॉर्ड कराया था - चंचल शीतल निर्मल कोमल…
मुकेश चंद माथुर का जन्म २२ जुलाई १९२३ को दिल्ली में हुआ था।
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२२-०७-२०१५


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1965 मे मैं अपनी पत्नी सुशीला जी और तीन वर्षीया पुत्री अरुणा के साथ अपने भाई साहिब चक्रधारी अग्रवालजी के नई दिल्ली के एच-4 ,हौज़ खास मे रहता था ।उन दिनो मैं कानपुर से प्रकाशित होनेवाले दैनिक जागरण का दिल्ली प्रतिनिधि भी था ।भाई साहब जिस किराये के मकान मे रहते थे ।उसके ऊपरी तल्ले मे माथुर साहिब कर प्ररिवार रहता था ।वे सफदरजंग हवाई अड्डे मे किसी अच्छे पोस्ट पर थे ।उनकी पत्नी और बच्चो के साथ हम लोगो के बहुत मधुर और पारिवारिक संबंध हो गए थे ,मुझे याद है -रविवार का दिन था ।बच्चे घूमने गए थे ,हम घर मे थे ।तभी उपर वाले माथुर साहिब के बच्चे आए और बोले अंकल ,तुरंत उपर चलिये ,मम्मी ने बुलाया है ।मुझे एकाएक उपर तल्ले पर बुलाने की बात समझ मे नहीं आई ।फिर भी अनमना हो कर चला गया। जब ड्राइंग रूम मे पहुंचा तो देखता क्या हूँ ।फिल्म जगत के प्रसिद्ध पार्श्वगायक मुकेशजी बैठे चाय पी रहे हैं ।मुझे देखते ही माथुर साहिब की पत्नी ने कहा आइये भैया ,आपकी भेंट मामाँ जी से कराती हूँ ।मुकेशजी उनके मामा थे ।मुकेशजी बड़े स्नेह से मिले ,अपने पास बैठा लिया ।बच्चो ने उन्हे कोई गीत सुनने को कहा वे बोले -बाजा होता तो ठीक होता ,फिर भी उन्होने गुनगुना कर कुछ बोल सुनाये ।माथुरजी की पत्नी की माताजी के वे चचेरे भाई थे ,जब भी वे दिल्ली आते समय निकाल हौज़ खास माथुरजी से मिलने आते ।मुझे बहुत ही सरल और ऊंचे दर्जे के इंसान लगे ।कोई अहंकार नहीं ।उनका मिलना एक यादगार पल बन कर रह गया है । .
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