Monday, 6 July 2015

उमरावजान का आधुनिक सुल्तान कौन?रेखा राजनीति में कैसे??---विजय राजबली माथुर

शनिवार, 4 जनवरी 2014


उमरावजान का आधुनिक सुल्तान कौन?रेखा राजनीति में कैसे??

आज 'आप'/केजरीवाल उसी भूमिका में हैं जिसमें उस वक्त के सुल्तान और नवाब थे। जनता के उत्पीड़न और शोषण से संग्रहीत धन को कारपोरेट घराने इन नए सुल्तानों पर लुटा रहे हैं और ये नए सुल्तान मनमोहनी अदाओं से आज की उमराव जान अर्थात बेगुनाह जनता को दिवा-स्वप्न या ख़्वामख़्वाह के झूठे सब्जबाग दिखा रहे हैं ,जैसे इस सुल्तान ने उमरावजान को दिखाये थे।

http://vidrohiswar.blogspot.in/2014/01/blog-post.html

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 मिर्ज़ा हादी  रुसवा द्वारा 1905 में लिखित उर्दू उपन्यास 'उमरावजान अदा'पर आधारित -1981 में प्रदर्शित फिल्म 'उमराव जान' के माध्यम से मुजफ्फर अली साहब ने 1840 से 1857 तक के काल खंड में ब्रिटिश साम्राज्य के सहारे चल रही नवाबों/सुल्तानों की विलासिता और ईमानदारों को कर्तव्य पालन के कारण होने वाली दुश्वारीयों/हानियों तथा निर्दोषों के उत्पीड़न-शोषण की जानकारी उपलब्ध कराई थी। किन्तु शायद इस फिल्म को भी मनोरंजन के ही एक दृष्टिकोण  से लिया गया प्रतीत होता है। तभी तो आज दिग्गज चिंतक-विचारक और बड़े कम्युनिस्ट नेता भी 'आप' और केजरीवाल के दीवाने बने घूम रहे हैं।

आज 'आप'/केजरीवाल उसी भूमिका में हैं जिसमें उस वक्त के सुल्तान और नवाब थे। जनता के उत्पीड़न और शोषण से संग्रहीत धन को कारपोरेट घराने इन नए सुल्तानों पर लुटा रहे हैं और ये नए सुल्तान मनमोहनी अदाओं से आज की उमराव जान अर्थात बेगुनाह जनता को दिवा-स्वप्न या ख़्वामख़्वाह के झूठे सब्जबाग दिखा रहे हैं ,जैसे इस सुल्तान ने उमरावजान को दिखाये थे। :



एक दारोगा की कर्तव्यपालन में बरती ईमानदारी की सजा उसकी पुत्री को दर-दर भटकने और ठोकरें खाने के रूप में प्राप्त हुई थी। चाह कर भी वह एक बार फँसने के बाद दलदल से न निकल सकी थी। यहाँ तक कि 1857 की क्रांति  की तैयारियों में संलिप्त एक योद्धा ने जब उस लड़की को बचा कर निकालने का प्रयास किया तो उसको ही अपनी जान से हाथ धोना पड़ गया। क्रांति की विभीषिका में जब लखनऊ छोड़ कर बनारस जाने के फैजाबाद पड़ाव में भाग कर जब वह लड़की उमरावजान छिप कर वहीं डेरा जमा लेती है तो उसका अपना छोटा भाई जो उसके अपहरण का चश्मदीद गवाह था उसको भगा देता है और उसकी माँ भी उसकी रक्षा नहीं कर पाती है। 

बिलकुल उसी लड़की जैसी दशा इस समय देश की जनता की हो रही है। कांग्रेस/भाजपा के साम्राज्यवादी मंसूबों को पूरा करने में संभावित संदेह को देखते हुये आज के नए 'सुल्तान' के रूप में 'आप'/केजरीवाल का अवतरण किया गया है। देश की राजधानी दिल्ली की जनता को ठगने में सफल हो जाने के बाद इस सुल्तान के हौसले बुलंद हैं। सारे देश की जनता उमरावजान की भांति ठगे जाने को आतुर प्रतीत हो रही है। दुखद स्थिति यह है कि साम्राज्यवाद के विरुद्ध गर्जन/तर्जन करने वाले वामपंथी और कम्युनिस्ट भी इस नए सुल्तान पर फिदा होकर जनता को ठगे जाने की प्रक्रिया में ही शामिल होते दीख रहे हैं। छिट-पुट संघर्ष करने वालों की आवाज़ को उसी तरह दबा दिया जाएगा जिस प्रकार तब गदर के एक नायक फैज अली को उमरावजान को बचाने के प्रयास में मौत के घाट उतार दिया गया था। 
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उमरावजान की प्रधान नायिका 'रेखा'का ज्योतिषीय विश्लेषण मैंने 'क्रांतिस्वर' में 19 अप्रैल 2012 को दिया था और तत्कालीन राष्ट्रपति महोदया ने 26 अप्रैल 2012 को रेखा जी को राज्यसभा में मनोनीत करने की घोषणा कर दी थी। प्रस्तुत है वह आलेख :

Thursday, April 19, 2012


रेखा -राजनीति मे आने की सम्भावना---विजय राजबली माथुर 

सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री 'रेखा'
हिंदुस्तान,आगरा,03 जून 2007 मे प्रकाशित 'रेखा'की जन्म कुंडली 



सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री 'रेखा' किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। उनके पिता सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता 'जेमिनी' गनेशन ने उनकी माता सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री पुष्पावल्ली से विधिवत विवाह नहीं किया था। उन्हें पिता का सुख प्राप्त नहीं हुआ और न ही पिता का धन ही प्राप्त हुआ। कुल-खानदान से भी लाभ नहीं मिला और समाज से भी आलोचनाओ का सामना करना पड़ा। इतनी जानकारी पत्र-पत्रिकाओं मे छ्पी है। किन्तु ऐसा क्यों हुआ हम ज्योतिष के आधार पर देखेंगे।

धनु लग्न और कुम्भ राशि मे जन्मी रेखा घोर 'मंगली'हैं और उनके द्वादश भाव मे 'शुक्र'ग्रह स्थित है जिसने उन्हे परिवार व समाज से लाभ नहीं प्राप्त होने दिया है। उनके दशम भाव मे जो पिता,कर्म व राज्य का हेतु होता है -कन्या राशि का सूर्य है। इस भाव मे सूर्य की स्थिति उनकी माता और पिता के विचारों मे असमानता का द्योतक है। इसी सूर्य ने उनकी माता को उनके पिता से अलग रखा और इसी सूर्य ने उन्हें खुद को पिता,परिवार व कुल से लाभ नहीं मिलने दिया। तृतीय भाव मे चंद्र ने बैठ कर कुटुंब सुख को और कम किया तथा पति भाव-सप्तम मे बैठ कर 'केतू' ने पति-सुख से वंचित रखा। द्वादश भाव मे 'शुक्र' मंगल की वृश्चिक राशि मे स्थित है जो जीवन भर 'उपद्रव'कराने वाला है और इसी ने उन्हें व्यसनी भी बनाया।

लग्न मे बैठे 'मंगल' की दृष्टि ने वैवाहिक सुख तो नहीं मिलने दिया किन्तु कला-ज्ञान और धन की प्रचुरता उसी ने उपलब्ध करवाई। लग्न मे ही बैठे 'राहू' ने उन्हें शारीरिक 'स्थूलता' प्रदान की थी जिसे उन्होने अपने प्रयासों से नियंत्रित कर लिया है। यही 'राहू'  उन्हें छोटी परंतु पैनी आँखें ,संकरा तथा अंदर खिचा हुआ सीना,चालाकी तथा ऐय्याशी भी प्रदान कर रहा है।

तृतीय भाव मे बैठा चंद्र 'रेखा' को अल्पभाषी,व म्रदुल व्यवहार वाला भी बना रहा है जिसके प्रभाव से वह कम से कम बोल कर अधिक से अधिक कार्य करके दिखा सकी हैं। अष्टम भाव मे उच्च का ब्रहस्पति उन्हें दीर्घायु भी प्रदान कर रहा है तथा धनवान व स्वस्थ भी रख रहा है।

राज योग :

दशम भाव मे कन्या राशि का सूर्य 'रेखा' को 'राज्य-भंग ' योग भी प्रदान कर रहा है। इसका अर्थ हुआ कि पहले उन्हें 'राज्य-सुख 'और 'राज्य से धन'प्राप्ति होगी फिर उसके बाद ही वह भंग हो सकता है। लग्न मे बैठा 'राहू' भी उन्हें राजनीति-निपुण बना रहा है। एकादश भाव मे बैठा उच्च का 'शनि' उन्हें 'कुशल प्रशासक' बनने की क्षमता प्रदान कर रहा है। नवम  भाव मे 'सिंह' राशि का होना जीवन के उत्तरार्द्ध मे सफलता का द्योतक है। अभी वह कुंडली के दशम भाव मे 58 वे वर्ष मे चल रही हैं और आगामी जन्मदिन के बाद एकादश भाव मे 59 वे वर्ष मे प्रवेश करेंगी। समय उनके लिए अनुकूल चल रहा है।

राज्येश'बुध' की महादशा मे 12 अगस्त 2010 से 23 फरवरी 2017 तक की अंतर्दशाये भाग्योदय कारक,अनुकूल सुखदायक और उन्नति प्रदान करने वाली हैं। 24 फरवरी 2017 से 29 जून 2017 तक बुध मे 'सूर्य' की अंतर्दशा रहेगी जो लाभदायक राज्योन्नति प्रदान करने वाली होगी।

अभी तक रेखा के किसी भी राजनीतिक रुझान की कोई जानकारी किसी भी माध्यम से प्रकाश मे नहीं आई है ,किन्तु उनकी कुंडली मे प्रबल राज्य-योग हैं। जब ग्रहों के दूसरे परिणाम चरितार्थ हुये हैं तो निश्चित रूप से इस राज्य-योग का भी लाभ मिलना ही चाहिए। हम 'रेखा' के राजनीतिक रूप से भी सफल होने की मंगलकामना करते हैं। 

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हिंदुस्तान,लखनऊ के 27-04-2012 अंक मे प्रकाशित सूचना-

 एक मार्क्स वादी पिता की पुत्री होने के बावजूद रेखा जी को आज कम्युनिस्टों का समर्थन न प्राप्त होना सोचनीय विषय है जबकि उनका खुद का जीवन उत्पीड़न और संघर्षों से भरा रहा है। 'दूरदर्शिता' का यह आभाव ही भारत में साम्यवाद के सफल न होने का एक कारण है। 

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