रविवार, 11 मई 2014
टी वी चेनल्स,सोशल मीडिया,कारपोरेट प्रिंट मीडिया एक स्वर से 'सांप्रदायिक तानाशाही' का स्वागत करते प्रतीत हो रहे हैं। उस पार्टी द्वारा 10 हज़ार करोड़ रुपए विज्ञापनों पर खर्च किए जा चुकने का अनुमान है।
क्या संदेश है नई उम्र की नई फसल का ?http://vidrohiswar.blogspot.in/2014/05/blog-post_11.html ***************************************************************************
कल 12 मई को 16 वीं संसद हेतु अंतिम चरण का मतदान होगा। इन चुनावों में 10 करोड़ नए मतदाता जुड़े हैं। विश्लेषक घोषणा कर रहे हैं कि इन नए युवा मतदाताओं का निर्णय नई दिशा देगा। टी वी चेनल्स,सोशल मीडिया,कारपोरेट प्रिंट मीडिया एक स्वर से 'सांप्रदायिक तानाशाही' का स्वागत करते प्रतीत हो रहे हैं। उस पार्टी द्वारा 10 हज़ार करोड़ रुपए विज्ञापनों पर खर्च किए जा चुकने का अनुमान है। साप्रदायिक दंगों ,व्यक्तिगत दोषारोपण का भी भरपूर प्रयोग किया गया है।
फिल्म 'नई उम्र की नई फसल ' में भी नए युवा वर्ग के जोश और व्यापारी की तिकड़मों -छल और धन के कुत्सित खेल को दर्शाया गया है। एक होनहार छात्र राजीव को सेठ जगन्नाथ ने उन वर्मा जी को हराने के उद्देश्य से उनके विरुद्ध खड़ा करवा दिया जो छात्रों व जनता के हितैषी थे। सेठ जगन्नाथ अपने पैसों और तिकड़म के बल पर जीत के मंसूबे पाले हुये थे। किन्तु जब चुनाव परिणाम आए तब सेठ जी की जमानत ज़ब्त हो गई और युवा जोश का प्रतीक राजीव सिर्फ एक वोट से हार गया।
जनतंत्र में जनता अब जागरूक है और उद्योगपतियों व व्यापारियों के छल को समझती है। हम उम्मीद करते हैं कि इन चुनावों के माध्यम से नई उम्र की नई फसलकी भांति ही कारपोरेट जगत व सांप्रदायिक शक्तियों का गठजोड़ भारी पराजय का सामना करेगा और युवा वर्ग को भविष्य हेतु नई प्रेरणा मिलेगी जिससे भविष्य में वह फिर गुमराह न हो सके।
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