Friday, 10 July 2015

पाखंड का 'पर्दाफाश' करती :चित्रलेखा ---विजय राजबली माथुर

गुरुवार, 24 जुलाई 2014


पाखंड का 'पर्दाफाश' करती :चित्रलेखा

धर्म के ये ठेकेदार जनता को त्याग,पुण्य-दान के भ्रमजाल में फंसा कर खुद मौज कर रहे हैं। गरीब किसान,मजदूर कहीं अपने हक -हुकूक की मांग न कर बैठें इसलिए 'भाग्य और भगवान्'के झूठे जाल में फंसा कर उनका शोषण कर रहे हैं तथा साम्राज्यवादी साजिश के तहत पूंजीपतियों के ये हितैषी उन गलत बातों का महिमा मंडन कर रहे हैं। 

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हिन्दी के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार भगवती चरण वर्मा जी ने चौथी शताब्दी के चन्द्रगुप्त मौर्य काल की ऐतिहासिक घटना के आधार पर 1934 में 'चित्रलेखा' उपन्यास की रचना की थी जिसके आधार पर 1964 में केदार शर्मा जी ने 'चित्रलेखा' फिल्म का निर्माण किया था।

  हालांकि आज  भी धर्म के स्वम्भू ठेकेदार 'धर्म'का दुरूपयोग कर सम्पूर्ण सृष्टि को नुक्सान पहुंचा रहे हैं। परिणाम सामने है कि कहीं ग्लोबल वार्मिंग ,कहीं बाढ़,कहीं सूखा,कहीं दुर्घटना कहीं आतंकवाद से मानवता कराह रही है। धर्म के ये ठेकेदार जनता को त्याग,पुण्य-दान के भ्रमजाल में फंसा कर खुद मौज कर रहे हैं। गरीब किसान,मजदूर कहीं अपने हक -हुकूक की मांग न कर बैठें इसलिए 'भाग्य और भगवान्'के झूठे जाल में फंसा कर उनका शोषण कर रहे हैं तथा साम्राज्यवादी साजिश के तहत पूंजीपतियों के ये हितैषी उन गलत बातों का महिमा मंडन कर रहे हैं। पंचशील के नाम पर शान्ति के पुरोधा ने जब देशवासियों को गुमराह कर रखा था तो 1962  ई.में देश को चीन के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था। हमारा काफी भू-भाग आज भी चीन के कब्जे में ही है। तब 1964  में इसी ' चित्रलेखा ' फिल्म में साहिर लुधयानवी के गीत पर मीना कुमारी के माध्यम से  लता मंगेशकर ने यह गा कर धर्म के पाखण्ड पर प्रहार किया था-


संसार से भागे फिरते हो,भगवान् को तुम क्या पाओगे.
इस लोक को भी अपना न सके ,उस लोक में भी पछताओगे..
ये पाप हैं क्या,ये पुण्य हैं क्या,रीतों पर धर्म की मोहरें हैं.
हर युग में बदलते धर्मों को ,कैसे आदर्श बनाओगे..
ये भोग भी एक तपस्या है,तुम त्याग के मारे क्या जानो.
अपमान रचेता का होगा ,रचना को अगर ठुकराओगे..
हम कहते हैं ये जग अपना है,तुम कहते हो झूठा सपना है.
हम जनम बिताकर जायेंगे,तुम जनम गवां कर जाओगे..

हमारे यहाँ 'जगत मिथ्या 'का मिथ्या पाठ खूब पढ़ाया गया है और उसी का परिणाम था झूठी शान्ति के नाम पर चीन से करारी-शर्मनाक हार। आज भी बडबोले तथाकथित  धार्मिक ज्ञाता जनता को गुमराह करने हेतु' यथार्थ कथन' को 'मूर्खतापूर्ण कथन' कहते नहीं अघाते हैं।दुर्भाग्य से 'एथीस्टवादी ' 'नास्तिकता ' का जामा ओढ़ कर वास्तविक  धर्म (सत्य,अहिंसा :मनसा-वाचा-कर्मणा,अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य) को ठुकरा देते हैं लेकिन ढोंग-पाखंड-आडंबर को धर्म की संज्ञा प्रदान करते हैं और इस प्रकार वे दोनों एक-दूसरे के पूरक व सहयोगी के रूप में जनता को दिग्भ्रमित करके उसका शोषण मजबूत करते हैं।

केदार शर्मा जी ने तो 'चित्रलेखा' के माध्यम से जनता को 'ढोंग व पाखंड' से दूर रहने व यथार्थ में जीने का संदेश चीन से करारी हार के बाद ही दे दिया था किन्तु 1965,1971 और 1999 के युद्धों में पाकिस्तान पर विजय के बावजूद  'ढोंग व पाखंड' कम होने की बजाए और अधिक बढ़ा ही है। स्वानधीनता संघर्ष के दौर में जब साम्राज्यवादी लूट व शोषण के बँटवारे को लेकर एक विश्व युद्ध हो चुका था और दूसरे विसव युद्ध की रूप-रेखा बनाई जा रही थी हमारा देश स्वामी दयानन्द द्वारा फहराई 'पाखंड खंडिनी पताका' को छोड़/तोड़  चुका था तथा 'ढोंग व पाखंड' में पुनः आकंठ डूब चुका था तब स्वतन्त्रता सेनानी व साहित्यकार भगवती चरण वर्मा जी ने चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन में सामंत 'बीजगुप्त' और पटलीपुत्र राज्य की राज-नर्तकी 'चित्रलेखा' के ठोस व वास्तविक 'प्रेम' को आधार बना कर धर्म के नाम पर चल रहे अधर्म -पाखंड पर करारा प्रहार किया है जिसका सजीव चित्रण 'चित्रलेखा' फिल्म द्वारा हुआ है।

'चित्रलेखा' फिल्म द्वारा जनता के समक्ष पाखंडी तथाकथित धर्मोपदेशकों के धूर्त स्वभाव को लाया गया है कि किस प्रकार वे भोली जनता को ठगते हैं। कुमार गिरि और श्वेतांक के चरित्र ऐसे ही रहस्योद्घाटन करते हैं। जबकि  बीजगुप्त व चित्रलेखा के चरित्र त्याग की भावना का पालन करते हैं क्योंकि उनको जीवन एवं प्रेम की सच्ची अनुभूति है जबकि ढ़ोंगी पाखंडी सन्यासी सत्य व यथार्थ से कोसों दूर है तथा खुद को व जनता को भी दिग्भ्रमित करता रहता है। चित्रलेखा युवावस्था में 'विधवा' हो जाने तथा समाज से ठुकराये जाने व त्रस्त  किए जाने के कारण 'नृत्य कला' के माध्यम से अपना जीवन निर्वाह करती है। इस जानकारी के बावजूद बीजगुप्त राज-पाट को त्याग कर चित्रलेखा के सच्चे प्यार को प्राप्त करता है जबकि ढ़ोंगी सन्यासी छल से चित्रलेखा को प्राप्त करने हेतु तथाकथित 'त्याग-तपस्या' को त्याग देता है व छोभ तथा प्रायश्चित के वशीभूत होकर प्राणोत्सर्ग कर देता है। 

 आज समाज में व्याप्त बलात्कार,ठगी,लूट,शोषण -उत्पीड़न और अत्याचार की घटनाओं में बढ़ोतरी होने का कारण ढ़ोंगी-पाखंडी तथाकथित महात्मा,सन्यासी,बापू,स्वामी आदि ही हैं।  पाखंडियों ने कृष्ण का माँ तुल्य मामी 'राधा' को उनकी प्रेमिका बना कर जो रास-लीलाएँ प्रचलित कर रखी हैं वे भी अनैतिकता वृद्धि में सहायक हैं। रुक्मणी हरण व सुभद्रा हरण की कपोल कल्पित गाथाएँ आज समाज में अपहरण व बलात्कार का हेतु बनी हुई हैं।  विदेशी शासन में पोंगा-पंडितों द्वारा उनके हितार्थ लिखे 'कुरान' की तर्ज़ पर  'पुराण' कुरान की भांति पाक-साफ नहीं हैं बल्कि जनता को गुमराह करते हैं। कुमारगिरी सरीखे एक तथाकथित धर्मोपदेशक बलात्कार के मामले में जेल में तो हैं लेकिन उनको जेल से बाहर निकालने के लिए 'हत्या' व 'आतंक' का सहारा लिया जा रहा है। अतः आज भी 'चित्रलेखा' फिल्म की प्रासंगिकता बनी हुई है कि उससे प्रेरणा लेकर जनता इन ढोंगियों के चंगुल से मुक्त होकर अपने जीवन को सार्थक बना सकती है।

वास्तव में' धर्म 'वह है जो शरीर को धारण करने के लिए आवश्यक है। शरीर में 'वात,पित्त,कफ' एक नियमित मात्रा में रहते हैं तो शरीर को धारण करने के कारण' धातु' कहलाते हैं,जब उनमें किसी कारण विकार आ जाता है और वे दूषित होने लगते हैं तो' दोष' कहलाते हैं और दोष जब मलिन होकर शरीर को कष्ट पहुंचाने लगते हैं तब उन्हें 'मल' कहा जाता है और उनका त्याग किया जाता है।



वात -वायु और आकाश से मिलकर बनता है.
कफ -भूमि और जल से मिलकर बनता है
पित्त - अग्नि से बनता है। 

भगवान्-प्रकृति के ये पञ्च तत्व =भूमि,गगन,वायु,अनल और नीर मिलकर (इनके पहले अक्षरों का संयोग )'भगवान्' कहलाता है। जो GENERATE ,OPERATE ,DESTROY करने के कारण" GOD '' भी कहलाता है और चूंकि प्रकृति के ये पञ्च तत्व वैज्ञानिक आधार पर खुद ही बने हैं इन्हें किसी प्राणी ने बनाया नहीं है इसलिए ये 'खुदा ' भी हैं । हमें मानव जाति तथा सम्पूर्ण सृष्टि के हित में 'भगवान्'(GOD या खुदा )की रक्षा करनी चाहिए उनका दुरूपयोग नहीं करना चाहिए।

नैसर्गिक-प्राकृतिक 'प्रेम' का संदेश देती  और पाखंड का पर्दाफाश  करती 'चित्रलेखा' प्रेरक व अनुकरणीय सामाजिक फिल्म है जिससे सतत सीख ली जा सकती है।

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