Wednesday, 15 July 2015

स्थापित मान्यताओं पर आधारित 'राम राज्य' एक उत्तम कलात्मक फिल्म --- विजय राजबली माथुर

सोमवार, 30 मार्च 2015


स्थापित मान्यताओं पर आधारित 'राम राज्य' एक उत्तम कलात्मक फिल्म 


इस फिल्म में यद्यपि लोक प्रचलित मान्यतों के आधार पर ही प्रदर्शन है किन्तु मैंने अपने कई लेखों के माध्यम से राम-वनवास तथा सीता-वनवास के राजनीतिक,कूटनीतिक कारणों का उल्लेख किया है  

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 (फिल्म-सौजन्य से डॉ सुधाकर अदीब साहब )

72 वर्ष पूर्व 1943  में प्रदशित फिल्म 'राम राज्य ' की पट कथा कानू देसाई साहब ने महर्षि वाल्मीकि की रामायण के आधार पर लिखी है। इसका निर्देशन विजय भट्ट साहब ने किया है और संगीत शंकर राव साहब का है। राम के आदर्श चरित्र को सजीव किया है प्रेम अदीब साहब (  डॉ सुधाकर अदीब जी के पितामह ) ने एवं सीता के त्यागमय जीवन को साकार किया है शोभना समर्थ जी ने। 

गीत-संगीत और कलाकारों का अभिनय चित्ताकर्षक व मनोरम है। आम जन-मानस में राम व सीता की जो छवी है उस  कसौटी पर फिल्म पूरी तरह से अपने उद्देश्य को प्रस्तुत करने में सफल रही है। सीता-वनवास एक धोबी की आशंका पर ही इस फिल्म में भी दिखाया गया है। इन दृश्यों को चरितार्थ करने में प्रेम अदीब साहब व शोभना समर्थ जी का अभिनय वास्तविक ही लगता है। लव-कुश एवं वाल्मीकि के चरित्र भी लोक-मान्यताओं के अनुरूप ही हैं। फिल्म के अंतिम भाग में राम के अश्व मेध यज्ञ के दृश्य का वह भाग आज के संदर्भ में भी काफी कुछ सही प्रतीत होता है जिसमें लव-कुश के मुख से वाल्मीकि को यह बताते हुये दिखाया गया है कि अयोध्या के नगरीय जीवन और जनता से उनके वन का जीवन और वनवासी उत्तम हैं। लेकिन आज नगरों की भूख शांत करने के लिए वनों का दोहन व वनवासियों का शोषण किया जा रहा है । आज फिर से लोक जीवन के हिमायती लव-कुश की परंपरा को प्रश्रय देने की महती आवश्यकता है। 

इस फिल्म में यद्यपि लोक प्रचलित मान्यतों के आधार पर ही प्रदर्शन है किन्तु मैंने अपने कई लेखों के माध्यम से राम-वनवास तथा सीता-वनवास के राजनीतिक,कूटनीतिक कारणों का उल्लेख किया है उनमें से कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं। :---------------

*अयोध्या लौटकर राम द्वारा  भारी प्रशासनिक फेरबदल करते हुए पुराने प्रधानमंत्री वशिष्ठ ,विदेश मंत्री सुमंत आदि जो काफी कुशल और योग्य थे और जिनका जनता में काफी सम्मान था अपने अपने पदों से हटा दिया गया.इनके स्थान पर भरत को प्रधान मंत्री,शत्रुहन को विदेश मंत्री,लक्ष्मण को रक्षा मंत्री और हनुमान को प्रधान सेनापति नियुक्त किया गया.ये सभी योग्य होते हुए भी राम के प्रति व्यक्तिगत रूप से वफादार थे इसलिए राम शासन में निरंतर निरंकुश होते चले गए.अब एक बार फिर अपदस्थ वशिष्ठ आदि गणमान्य नेताओं ने वाल्मीकि के नेतृत्व में योजनाबद्ध तरीके से सीता को निष्कासित करा दिया जो कि उस समय   गर्भिणी थीं और जिन्होंने बाद में वाल्मीकि के आश्रम में आश्रय ले कर लव और कुश नामक दो जुड़वाँ पुत्रों को जन्म दिया.राम के ही दोनों बालक राजसी वैभव से दूर उन्मुक्त वातावरण में पले,बढे और प्रशिक्षित हुए.वाल्मीकि ने लव एवं कुश को लोकतांत्रिक शासन की दीक्षा प्रदान की और उनकी भावनाओं को जनवादी धारा  में मोड़ दिया.राम के असंतुष्ट विदेश मंत्री शत्रुहन लव और कुश से सहानुभूति रखते थे और वह यदा कदा वाल्मीकि के आश्रम में उन से बिना किसी परिचय को बताये मिलते रहते थे.वाल्मीकि,वशिष्ठ आदि के परामर्श पर शत्रुहन ने पद त्याग करने की इच्छा को दबा दिया और राम को अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति से अनभिज्ञ रखा.इसी लिए राम ने जब अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया तो उन्हें लव-कुश के नेतृत्व में भारी जन आक्रोश का सामना करना पडा और युद्ध में भीषण पराजय के बाद जब राम,भारत और शत्रुहन बंदी बनाये जा कर सीता के सम्मुख पेश किये गए तो सीता को जहाँ साम्राज्यवादी -विस्तारवादी राम की पराजय की तथा लव-कुश द्वारा नीत लोकतांत्रिक शक्तियों की जीत पर खुशी हुई वहीं मानसिक विषाद भी कि,जब राम को स्वयं विस्तारवादी के रूप में देखा.वाल्मीकि,वशिष्ठ आदि के हस्तक्षेप से लव-कुश ने राम आदि को मुक्त कर दिया.यद्यपि शासन के पदों पर राम आदि बने रहे तथापि देश का का आंतरिक प्रशासन लव और कुश के नेतृत्व में पुनः लोकतांत्रिक पद्धति पर चल निकला और इस प्रकार राम की छाप जन-नायक के रूप में बनी रही और आज भी उन्हें इसी रूप में जाना जाता है.
http://krantiswar.blogspot.in/2011/04/blog-post_12.html 
** सीता -संक्षिप्त परिचय जैसा कि 'रावण वध एक पूर्व निर्धारित योजना' में पहले ही उल्लेख हो चुका है-राम के आविर्भाव के समय भारत-भू छोटे -छोटे राज्यों में विभक्त होकर परस्पर संघर्ष शील शासकों का अखाड़ा बनी हुयी थी.दूसरी और रावण के नेतृत्व में साम्राज्यवादी शक्तियां भारत को दबोचने के प्रयास में संलग्न थीं.अवकाश प्राप्त शासक मुनि विश्वमित्र जी जो महान वैज्ञानिक भी थे और जो अपनी प्रयोग शाला में 'त्रिशंकू' नामक कृत्रिम उपग्रह (सेटेलाईट)को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर चुके थे जो कि आज भी अपनी कक्षा (ऑर्बिट) में ज्यों का त्यों परिक्रमा कर रहा है जिससे हम 'त्रिशंकू तारा' के नाम से परिचित हैं. विश्वमित्र जी केवल ब्रह्माण्ड (खगोल) विशेषज्ञ ही नहीं थे वह जीव-विज्ञानी भी थे.उनकी प्रयोगशाला में गोरैया चिड़िया -चिरौंटा तथा नारियल वृक्ष का कृत्रिम रूप से सृजन करके इस धरती पर सफल परीक्षण किया जा चुका था .ऐसे ब्रह्मर्षि विश्वमित्र ने विद्वान का वीर्य और विदुषी का रज (ऋषियों का रक्त)लेकर परखनली (टेस्ट ट्यूब) के माध्यम से एक कन्या को अपनी प्रयोगशाला में उत्पन्न किया जोकि,'सीता'नाम से जनक की दत्तक पुत्री बनवा दी गयीं. वीरांगना-विदुषी सीता जनक जो एक सफल वैज्ञानिक भी थे सीता को भी उतना ही वैज्ञानिक और वीर बनाना चाहते थे और इस उद्देश्य में पूर्ण सफल भी रहे.सीता ने यथोचित रूप से सम्पूर्ण शिक्षा ग्रहण की तथा उसे आत्मसात भी किया.उनके वयस्क होने पर मैग्नेटिक मिसाईल (शिव-धनुष) की मैग्नेटिक चाभी एक अंगूठी में मड़वा कर उन्हें दे दी गयी जिसे उन्होंने ऋषियों की योजनानुसार पुष्पवाटिका में विश्वमित्र के शिष्य के रूप में पधारे दशरथ-पुत्र राम को सप्रेम -भेंट कर दिया और जिसके प्रयोग से राम ने उस मैग्नेटिक मिसाईल उर्फ़ शिव-धनुष को उठा कर नष्ट (डिफ्यूज ) कर दिया ,जिससे कि इस भारत की धरती पर उसके युद्धक प्रयोग से होने वाले विनाश से बचा जा सका.इस प्रकार हुआ सीता और राम का विवाह उत्तरी भारत के दो दुश्मनों को सगी रिश्तेदारी में बदल कर जनता के लिए वरदान के रूप में आया क्योंकि अब संघर्ष प्रेम में बदल दिया गया था. दूरदर्शी कूटनीतिज्ञ सीता सीता एक योग्य पुत्री,पत्नी,भाभी आदि होने के साथ-साथ जबरदस्त कूट्नीतिग्य भी थीं.इसलिए जब राष्ट्र -हित में राम-वनवास हुआ तो वह भी राम के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चल दीं.वस्तुतः साम्राज्यवाद को अस्त्र-शस्त्र की ताकत से नहीं कूट-नीति के कमाल से परास्त किया जा सकता था और यही कार्य सीता ने किया.सीता वन में रह कर आमजनों के बीच घुल मिल कर तथ्यों का पता लगातीं थीं और राम के साथ मिल कर आगे की नीति निर्धारित करने में पूर्ण सहयोग देतीं थीं.रावण के बाणिज्य-दूतों (खर-दूषण ) द्वारा खुफिया जानकारियाँ हासिल करने के प्रयासों के कारण सीता जी ने उनका संहार करवाया.रावण की बहन-सम प्रिय जासूस स्वर्ण-नखा (जिसे विकृत रूप में सूपनखा कहा जाता है ) को अपमानित करवाने में सीता जी की ही उक्ति काम कर रही थी .इसी घटना को सूपनखा की नाक काटना एक मुहावरे के रूप में कहा जाता है.स्वर्ण-नखा का अपमान करने का उद्देश्य रावण को सामने लाना और बदले की कारवाई के लिए उकसाना था जिसमें सीता जी सफल रहीं.रावण अपने गुप्तचर मुखिया मारीची पर बहुत नाज करता था और मान-सम्मान भी देता था इसी लिए उसे रावण का मामा कहा जाता है.मारीची और रावण दोनों वेश बदल कर यह पता लगाने आये कि,राम कौन हैं ,उनका उद्देश्य क्या है?वह वनवास में हैं तो रावण के गुप्तचरों का संहार क्यों कर रहे हैं ?वह वन में क्या कर रहे हैं?. राम और सीता ने रावण के सामने आने पर एक गंभीर व्यूह -रचना की और उसमें रावण को फंसना ही पडा.वेश बदले रावण के ख़ुफ़िया -मुखिया मारीची को काफी दूर दौड़ा कर और रावण की पहुँच से बाहर हो जाने पर मार डाला और लक्ष्मण को भी वहीं सीता जी द्वारा भेज दिया गया.निराश और हताश रावण ने राम को अपने सामने लाने हेतु छल से सीता को अपने साथ लंका ले जाने का उपक्रम किया लेकिन वह अनभिग्य था कि,यही तो राम खुद चाहते थे कि वह सीता को लंका ले जाए तो सीता वहां से अपने वायरलेस (जो उनकी अंगूठी में फिट था) से लंका की गोपनीय जानकारियाँ जुटा -जुटा कर राम को भेजती रहें. सीता जी ने रावण को गुमराह करने एवं राम को गमन-मार्ग का संकेत देने हेतु प्रतीक रूप में कुछ गहने विमान से गिरा दिए थे.बाली के अवकाश प्राप्त एयर मार्शल जटायु ने रावण के विमान पर इसलिए प्रहार करना चाहा होगा कि वह किस महिला को बगैर किसी सूचना के अपने साथ ले जा रहा है.चूंकि वह रावण के मित्र बाली की वायु सेना से सम्बंधित था अतः रावण ने केवल उसके विमान को क्षति पहुंचाई और उसे घायलावस्था में छोड़ कर चला गया.जटायु से सम्पूर्ण वृत्तांत सुन कर राम ने सुग्रीव से मित्रता कर ली और उद्भट विद्वान एवं उपेक्षित वायु-सेना अधिकारी हनुमान को पूर्ण मान -सम्मान दिया.दोनों ने राम को सहायता एवं समर्थन का ठोस आश्वासन दिया जिसे समय के साथ -साथ पूर्ण भी किया.राम ने भी रावण के सन्धि- मित्र बाली का संहार कर सुग्रीव को सत्तासीन करा दिया. हनुमान अब प्रधान वायु सेनापति (चीफ एयर मार्शल) बना दिए गए जो कि कूटनीति के भी विशेषज्ञ थे. सीता द्वारा भेजी लंका की गुप्त सूचनाओं के आधार पर राम ने हनुमान को पूर्ण विशवास में लेकर लंका के गुप्त मिशन पर भेजा.हनुमान जी ने लंका की सीमा में प्रवेश अपने विमान को इतना नीचे उड़ा कर किया जिससे वह समुद्र में लगे राडार 'सुरसा'कीपकड़ से बचे रहे ,इतना ही नहीं उन्होंने 'सुरसा'राडार को नष्ट भी कर दिया जिससे आने वाले समय में हमलावर विमानों की खबर तक रावण को न मिल सके. लंका में प्रवेश करके हनुमान जी ने सबसे पहले सीता जी से भेंट की तथा गोपनीय सूचनाओं का आदान-प्रदान किया और सीता जी के परामर्श पर रावण के सबसे छोटे भाई विभीषण जो उससे असंतुष्ट था ही से संपर्क साधा और राम की तरफ से उसे पूर्ण सहायता तथा समर्थन का ठोस आश्वासन भी प्रदान कर दिया.अपने उद्देश्य में सफल होकर उन्होंने सीता जी को सम्पूर्ण वृत्तांत की सूचना दे दी.सीता जी से अनुमति लेकर हनुमान जी ने रावण के कोषागारों एवं शस्त्रागारों पर अग्नि-बमों (नेपाम बम) की वर्षा कर डाली.खजाना और हथियार नष्ट कर के गूढ़ कूटनीति के तहत और सीता जी के आशीर्वाद से उन्होंने अपने को रावण की सेना द्वारा गिरफ्तार करा लिया और दरबार में रावण के समक्ष पेश होने पर खुद को शांति-दूत बताया जिसका विभीषण ने भी समर्थन किया और उन्हें अंतरष्ट्रीय कूटनीति के तहत छोड़ने का प्रस्ताव रखा.अंततः रावण को मानना ही पडा. परन्तु लौटते हुए हनुमान के विमान की पूँछ पर संघातक प्रहार भी करवा दिया.हनुमान जी तो साथ लाये गए स्टैंड बाई छोटे विमान से वापिस लौट आये और बदली हुयी परिस्थितियों में सीता जी से उनकी अंगूठी में जडित वायरलेस भी वापिस लेते गए. विभीषण ने शांति-दूत हनुमान के विमान पर प्रहार को मुद्दा बना कर रावण के विदेश मंत्री पद को त्याग दिया और खुल कर राम के साथ आ गया.सीता जी का लंका प्रवास सफल रहा -अब रावण की फ़ौज और खजाना दोनों खोखले हो चुके थे,उसका भाई अपने समर्थकों के साथ उसके विरुद्ध राम के साथ आ चुका था.अब लंका पर राम का आक्रमण एक औपचारिकता मात्र रह गया था फिर भी शांति के अंतिम प्रयास के रूप में रावण के मित्र बाली के पुत्र अंगद को दूत बना कर भेजा गया. रावण ने समपर्ण की अपेक्षा वीर-गति प्राप्त करना उपयुक्त समझा और युद्ध में तय पराजय का वरण किया. इस प्रकार महान कूटनीतिज्ञ सीता जी के कमाल की सूझ-बूझ ने राम को साम्राज्यवादी रावण के गढ़ में ही उसे परास्त करने का मार्ग प्रशस्त किया. आज फिर आवश्यकता है एक और सीता एवं एक और राम की जो साम्राज्यवाद के जाल को काट कर विश्व की कोटि-कोटि जनता को शोषण तथा उत्पीडन से मुक्त करा सकें.जब तक राम की वीर गाथा रहेगी सीता जी की कूटनीति को भुलाया नहीं जा सकेगा.
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*** विद्रोह या क्रांति कोई ऐसी चीज़ नहीं होती जिसका विस्फोट एकाएक होता हो,बल्कि इसके अनन्तर अन्तर क़े तनाव को बल मिलता रहता है और जब यह अन्तर असह्य हो जाता है तभी इसका विस्फोट हो जाता है.अयोध्यापति राम क़े विरुद्ध सीता का विद्रोह ऐसी ही एक घटना थी.परन्तु पुरुष-प्रधान समाज ने इतनी बड़ी घटना को क्षुद्र रूप में इस प्रकार प्रचारित किया कि,एक धोबी क़े आक्षेप करने पर राम ने लोक-लाज की मर्यादा की रक्षा क़े लिये महारानी सीता को निकाल दिया.कितना बड़ा उपहास है यह वीरांगना सीता का जिन्होंने राम क़े वेद-विपरीत अधिनायकवाद का कडा प्रतिवाद किया और उनके राज-पाट को ठुकरा कर वन में लव और कुश दो वीर जुड़वां बेटों को जन्म दिया.सीता निष्कासन की दन्त-कथायें नारी-वर्ग और साथ ही समाज में पिछड़े वर्ग की उपेक्षा को दर्शाती हैं जो दन्त-कथा गढ़ने वाले काल की दुर्दशा का ही परिचय है.जबकि वास्तविकता यह थी कि,साम्राज्यवादी रावण क़े अवसान क़े बाद राम अयोद्ध्या क़े शासक क़े रूप में नहीं विश्वपति क़े रूप में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते थे.सत्ता सम्हालते ही राम ने उस समय प्रचलित वेदोक्त-परिपाटी का त्याग कर ऋषियों को मंत्री मण्डल से अपदस्थ कर दिया था.वशिष्ठ मुनि को हटा कर अपने आज्ञाकारी भ्राता भरत को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया.विदेशमंत्री पद पर सुमन्त को हटा कर शत्रुहन को नियुक्त कर दिया और रक्षामंत्री अपने सेवक-सम भाई लक्ष्मण को नियुक्त कर दिया था.राम क़े छोटे भाई जानते हुये भी गलत बात का राम से विरोध करने का साहस नहीं कर पाते थे और अपदस्थ मंत्री अर्थात ऋषीवृन्द कुछ कहते तो राम को खड़यन्त्र की बू आने लगती थी.महारानी सीता कुछ कहतीं तो उन्हें चुप करा देते थे.राम को अपने विरुद्ध कुछ भी सुनने की बर्दाश्त नहीं रह गई थी.उन्होंने कूटनीति का प्रयोग करते हुये पहले ही बाली की विधवा तारामणि से सुग्रीव क़े साथ विवाह करा दिया था जिससे कि,भविष्य में तारा अपने पुत्र अंगद क़े साथ सुग्रीव क़े विरुद्ध बगावत न कर सके.इसी प्रकार रावण की विधवा मंदोदरी का विवाह विभीषण क़े साथ करा दिया था कि,भविष्य में वह भी विभीषण क़े विरुद्ध बगावत न कर सके.राम ने तारा और मंदोदरी क़े ये विवाह वेदों में उल्लिखित "नियोग"विधान क़े अंतर्गत ही कराये थे अतः ये विधी-सम्मत और मान्य थे."नियोग विधान"पर सत्यार्थ-प्रकाश क़े चौथे सम्मुल्लास में महर्षि दयानंद ने विस्तार से प्रकाश डाला है और पुष्टि की है कि,विधवा को दे-वर अर्थात दूसरा वर नियुक्त करने का अधिकार वेदों ने दिया है.सुग्रीव और विभीषण राम क़े एहसानों तले दबे हुये थे वे उनके आधीन कर-दाता राज्य थे और इस प्रकार उनके विरुद्ध संभावित बगावत को राम ने पहले ही समाप्त कर दिया था.इसलिए राम निष्कंटक राज्य चलाना चाहते थे. महारानी सीता जो ज्ञान-विज्ञान व पराक्रम तथा बुद्धि में किसी भी प्रकार राम से कम न थीं उनकी हाँ में हाँ नहीं मिला सकती थीं.जब उन्होंने देखा कि राम उनके विरोध की परवाह नहीं करते हैं तो उन्होंने ऋषीवृन्द की पूर्ण सहमति एवं सहयोग से राम-राज्य को ठुकराना ही उचित समझा.राम क़े अधिनायकवाद से विद्रोह कर सीता ने वाल्मीकि मुनि क़े आश्रम में शरण ली वहीं लव-कुश को जन्म दिया और उन्हें वाल्मीकि क़े शिष्यत्व में शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया.राम क़े भ्राता और विदेशमंत्री शत्रुहन यह सब जानते थे परन्तु उन्होंने अपनी भाभी व भतीजों क़े सम्बन्ध में राजा राम को बताना उचित न समझा क्योंकि वे सब भाई भी राम की कार्य-शैली से दुखी थे परन्तु मुंह खोलना नहीं चाहते थे.ऋषि-मुनियों का भी महारानी सीता को समर्थन प्राप्त था.लव और कुश को महर्षि वाल्मीकि ने लोकतांत्रिक राज-प्रणाली में पारंगत किया था और अधिनायकवाद क़े विरुद्ध लैस किया था. इसलिए जब राम ने अश्वमेध्य यज्ञ को विकृत रूप में चक्रवर्ती सम्राट बनने हेतु सम्पन्न कराना चाहा तो सीता-माता क़े संकेत पर लव और कुश नामक नन्हें वीर बालकों ने राम क़े यज्ञ अश्व को पकड़ लिया. राम की सेना का मुकाबला करने क़े लिये लव-कुश ने अपने नेतृत्व में बाल-सेना को सबसे आगे रखा ,उनके पीछे महिलाओं की सैन्य-टुकड़ी थी और सबसे पीछे चुनिन्दा पुरुषों की टुकड़ी थी. राम की सेना बालकों और महिलाओं पर आक्रमण करे ऐसा आदेश तो रक्षामंत्री लक्ष्मण भी नहीं दे सकते थे,फलतः बिना युद्ध लड़े ही उन्होंने आत्म-समर्पण कर दिया और इस प्रकार लव-कुश विजयी हुये एवं राम को पराजय स्वीकार करनी पडी.  जब महर्षि वाल्मीकि ने लव-कुश का सम्पूर्ण परिचय दिया तो राम भविष्य में वेद -सम्मत लोकतांत्रिक पद्धति से शासन चलाने पर सहमत हो गये तथा लव-कुश को अपने साथ ही ले गये.परन्तु सीता ने विद्रोह क़े पश्चात पुनः राम क़े साथ लौट चलने का आग्रह स्वीकार करना उपयुक्त न समझा क्योंकि वह पति की पराजय भी न चाहतीं थीं.अतः उन्होंने भूमिगत परमाणु विस्फोट क़े जरिये स्वंय की इह-लीला ही समाप्त कर दी.सीता वीरांगना थीं उन्हें राजा राम ने निष्कासित नहीं किया था उन्होंने वेद-शास्त्रों की रक्षा हेतु स्वंय ही विद्रोह किया था जिसका उद्देश्य मानव-मात्र का कल्याण था.अन्ततः राम ने भी सीता क़े दृष्टिकोण को ही सत्य माना और स्वीकार तथा अंगीकार किया.अतः सीता का विद्रोह सार्थक और सफल रहा जिसने राम की मर्यादा की ही रक्षा की

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