Thursday, 31 March 2016

मीना कुमारी की पुण्यतिथि (31 मार्च) पर खिराज़े अकीदत ------ ध्रुव गुप्त




जो कही गई न मुझसे वो ज़माना कह रहा है !
'ट्रेजेडी क्वीन' के नाम से मशहूर हिंदी और उर्दू सिनेमा की भावप्रवण अभिनेत्री और उर्दू की संवेदनशील शायरा मीना कुमारी उर्फ़ माहज़बीं बानो रूपहले परदे पर अपने लाज़वाब अभिनय के अलावा अपनी बिखरी और बेतरतीब निज़ी ज़िन्दगी के लिए भी जानी जाती है। भारतीय स्त्री के जीवन के दर्द को रूपहले परदे पर साकार करते-करते कब वह ख़ुद दर्द की मुकम्मल तस्वीर बन गई, इसका पता शायद उन्हें भी न चला होगा। भूमिकाओं में विविधता के अभाव के बावज़ूद उनकी खास अभिनय-शैली और मोहक आवाज़ का जादू भारतीय दर्शकों पर हमेशा छाया रहा।1939 में बाल कलाकार के रूप में उन्होंने बेबी मीना के नाम से अपना फिल्मी सफ़र शुरू किया। नायिका के रूप में 1949 की 'वीर घटोत्कच' उनकी पहली फिल्म थी, लेकिन उन्हें मक़बूलियत हासिल हुई विमल राय की फिल्म 'परिणीता से। 33 साल लम्बे फिल्म कैरियर में उनकी कुछ कालजयी फ़िल्में हैं - परिणीता, दो बीघा ज़मीन, फुटपाथ, एक ही रास्ता, शारदा, बैजू बावरा, दिल अपना और प्रीत पराई, कोहिनूर, आज़ाद, चार दिल चार राहें, प्यार का सागर, बहू बेगम, मैं चुप रहूंगी, दिल एक मंदिर, आरती, चित्रलेखा, साहब बीवी गुलाम, सांझ और सवेरा, मंझली दीदी, भींगी रात, नूरज़हां, काजल, फूल और पत्थर, पाकीज़ा, मेरे अपने और गोमती के किनारे। मीना कुमारी मशहूर फिल्मकार कमाल अमरोही के साथ अपने असफल दाम्पत्य और तब के संघर्षशील अभिनेता धर्मेन्द्र के साथ अपने अधूरे प्रेम संबंध की वज़ह से भी हमेशा चर्चा में रहीं। उनकी बेपनाह भावुकता ने उन्हें नशे की दुनिया में भटकाया, लेकिन उनकी शायरी ने उन्हें मुक्ति भी दी। उन्होंने अपनी पचीस निजी डायरियों में अपनी संवेदनाओं को शब्द दिए थे जिन्हें उनकी वसीयत के मुताबिक़ फिल्मकार और शायर गुलज़ार ने संकलित और प्रकाशित कराया। मीना कुमारी की पुण्यतिथि (31 मार्च) पर खिराज़े अकीदत उन्ही की एक ग़ज़ल के साथ !
आबला-पा कोई इस दश्त में आया होगा 
वरना आंधी में दिया किसने जलाया होगा
ज़र्रे ज़र्रे पे जड़े होंगे कुंवारे सजदे 
एक-एक बुत को खुदा उसने बनाया होगा
प्यास जलते हुए कांटों की बुझाई होगी 
रिसते पानी को हथेली पे सजाया होगा
मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर 
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा
खून के छींटे कहीं पोछ न लें राहों से 
किसने वीराने को गुलज़ार बनाया होगा
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Sunday, 27 March 2016

प्रिया राजवंश : परी कथा सी ज़िंदगी ------ -फ़िरदौस ख़ान


 ख़ूबसूरत और मिलनसार प्रिया राजवंश की ज़िंदगी की कहानी किसी परी कथा से कम नहीं है. पहाड़ों की ख़ूबसूरती के बीच पली-बढ़ी एक लड़की कैसे लंदन पहुंचती है और फिर वापस हिंदुस्तान आकर फ़िल्मों में नायिका बन जाती है. एक ऐसी नायिका जिसने फ़िल्में तो बहुत कम कीं, इतनी कम कि उन्हें अंगुलियों पर गिना जा सकता है, लेकिन अपने ख़ूबसूरत अंदाज़ और दिलकश आवाज़ से उसने सबका दिल जीत लिया.प्रिया राजवंश का जन्म 1937 में नैसर्गिक सौंदर्य के शहर शिमला में हुआ था. उनका बचपन का नाम वीरा था. उनके पिता सुंदर सिंह वन विभाग में कंजरवेटर थे. प्रिया राजवंश ने शिमला में ही पढ़ाई की. इसी दौरान उन्होंने कई अंग्रेज़ी नाटकों में हिस्सा लिया. जब उनके पिता संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ़ से ब्रिटेन गए, तो प्रिया राजवंश ने लंदन की प्रतिष्ठित संस्था रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट्स में दाख़िला ले लिया. सौभाग्य से उन्हें फ़िल्मों में भी काम करने का मौक़ा मिल गया. हुआ यूं कि लंदन के एक फोटोग्राफर ने उनकी तस्वीर खींची. चेतन आनंद ने अपने एक दोस्त के घर यह तस्वीर देखी तो वह प्रिया राजवंश की ख़ूबसूरती के क़ायल हो गए. उन दिनों चेतन आनंद को अपनी फ़िल्म के लिए नए चेहरे की तलाश थी. 20 अक्टूबर, 1962 को चीन ने देश पर हमला कर दिया था. हिंदुस्तानी फ़ौज को भारी नुक़सान हुआ था और फ़ौज को पीछे हटना पड़ा. इस थीम पर चेतन आनंद हक़ीक़त नाम से फ़िल्म बनाना चाहते थे. उन्होंने प्रिया राजवंश से संपर्क किया और उन्हें फ़िल्म की नायिका के लिए चुन लिया गया. 1964 में बनी इस फ़िल्म के निर्माण के दौरान प्रिया राजवंश ने चेतन आनंद की हर स्तर पर मदद की. संवाद लेखन से लेकर पटकथा लेखन, निर्देशन, अभिनय और संपादन तक में उनका दख़ल रहा. चेतन आनंद उन दिनों अपनी पत्नी उमा से अलग हो चुके थे. इसी दौरान प्रिया राजवंश और चेतन आनंद एक दूसरे के क़रीब आ गए और फिर ज़िंदगी भर साथ रहे. प्रिया राजवंश उम्र में चेतन आनंद से तक़रीबन 22 साल छोटी थीं, लेकिन उम्र का फ़ासला उनके बीच कभी नहीं आया.प्रिया राजवंश ने बहुत कम फ़िल्मों में काम किया. फ़िल्म हक़ीक़त के बाद 1970 में उनकी फ़िल्म हीर रांझा आई. 1973 में हिंदुस्तान की क़सम और हंसते ज़ख्म, 1977 में साहेब बहादुर, 1981 में क़ुदरत और 1985 में हाथों की लकीरें आई. प्रिया राजवंश ने सिर्फ़ चेतन आनंद की फ़िल्मों में ही काम किया और चेतन ने भी हक़ीक़त के बाद प्रिया राजवंश को ही अपनी हर फ़िल्म में नायिका बनाया. उन्हें फ़िल्मों के बहुत से प्रस्ताव मिलते थे, लेकिन वह इंकार कर देती थीं. उनकी खुशी तो सिर्फ़ और सिर्फ़ चेतन आनंद के साथ थी. हालांकि दोनों ने विवाह नहीं किया था, लेकिन फ़िल्मी दुनिया में उन्हें पति-पत्नी ही माना जाता था. चेतन आनंद के साथ अपनी छोटी सी दुनिया में वह बहुत सुखी थीं. कहा जाता है कि हीर रांझा प्रिया राजवंश को केंद्र में रखकर ही बनाई गई थी. इस फ़िल्म की ख़ासियत यह है कि इसके सारे संवाद पद्य यानी काव्य रूप में हैं, जिन्हें कैफ़ी आज़मी ने लिखा था. इसे काव्य फ़िल्म कहना ग़लत न होगा. इसके गीत भी कैफ़ी आज़मी ने ही लिखे थे. प्रिया राजवंश पर फ़िल्माया गया गीत-मिलो न तुम तो, हम घबराएं, मिलो तो आंख चुराएं, हमें क्या हो गया है…बहुत मशहूर हुआ. इसी तरह फ़िल्म हंसते जख्म का कैफ़ी आज़मी का लिखा और मदन मोहन के संगीत से सजा गीत-बेताब दिल की तमन्ना यही है…आज भी लोग गुनगुना उठते हैं.अंग्रेज़ी के लेखक आरके नारायण के उपन्यास गाइड पर आधारित फ़िल्म गाइड बनाने के वक़्त पहला विवाद नायिका को लेकर ही हुआ था. देव आनंद माला सिन्हा को नायिका रोज़ी की भूमिका के लिए लेना चाहते थे, लेकिन चेतन की पसंद प्रिया राजवंश थीं. विजय आनंद का मानना था कि रोज़ी की भूमिका वहीदा रहमान से बेहतर कोई और अभिनेत्री नहीं निभा सकती, लेकिन वहीदा रहमान राज खोसला के साथ काम नहीं करती थीं. दरअसल, हुआ यह था कि देव आनंद गाइड के निर्देशन के लिए पहले ही राज खोसला से बात कर चुके थे. अब उन्हें राज खोसला और वहीदा रहमान में से किसी एक को चुनना था. चेतन आनंद और विजय आनंद ने वहीदा का समर्थन किया और फिर चेतन आनंद की सलाह पर निर्देशन की ज़िम्मेदारी विजय आनंद को सौंप दी गई. वहीदा रहमान ने कमाल का अभिनय किया और फ़िल्म मील का पत्थर साबित हुई.प्रिया राजवंश की ज़िंदगी में अकेलापन और परेशानियां उस वक़्त आईं, जब 6 फ़रवरी, 1997 को चेतन आनंद का देहांत हो गया. प्रिया राजवंश अकेली रह गईं. वह जिस बंगले में रहती थीं, उसकी क़ीमत दिनोदिन बढ़ती जा रही थी. चेतन के बेटे केतन आनंद और विवेक आनंद प्रिया राजवंश को इस बंगले से निकाल देना चाहते थे, लेकिन जब वे इसमें कामयाब नहीं हो पाए तो उन्होंने नौकरानी माला चौधरी और अशोक स्वामी के साथ मिलकर 27 मार्च, 2000 को प्रिया राजवंश का बेहरहमी से क़त्ल कर दिया. मुंबई की एक अदालत ने प्रिया राजवंश हत्याकांड में 31 जुलाई, 2002 को केतन आनंद और विवेक आनंद तथा उनके सहयोगियों नौकरानी माला चौधरी और अशोक स्वामी को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई.कुछ अरसा पहले चेतन आनंद की ज़िंदगी पर आधारित उनकी पत्नी उमा और बेटे केतन आनंद की एक किताब आई थी. इस किताब में ज़िंदगी भर चेतन आनंद के साथ रहने वाली प्रिया राजवंश का ज़िक्र नहीं के बराबर है. दरअसल, चेतन आनंद ने अपने लिए अलग एक बंगला बनवाया था, जिसमें वह प्रिया राजवंश के साथ रहा करते थे. यही बंगला बाद में प्रिया राजवंश की मौत की वजह बना यानी एक बंगले के लालच ने प्रिया राजवंश से उनकी ज़िंदगी छीन ली. वह अपने घर में मृत पाई गई थीं. उनके हत्यारों को तो अदालत ने सज़ा दे दी, लेकिन उनके प्रशंसक शायद ही उनके क़ातिलों को कभी मा़फ़ कर पाएं. अपनी फ़िल्मों की बदौलत वह हमेशा हमारे बीच रहेंगी, मुस्कराती और चहकती हुई.
साभार :
Written by Swapnil Sansar Saturday, 26 March 2016 22:53



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