जो कही गई न मुझसे वो ज़माना कह रहा है !
'ट्रेजेडी क्वीन' के नाम से मशहूर हिंदी और उर्दू सिनेमा की भावप्रवण अभिनेत्री और उर्दू की संवेदनशील शायरा मीना कुमारी उर्फ़ माहज़बीं बानो रूपहले परदे पर अपने लाज़वाब अभिनय के अलावा अपनी बिखरी और बेतरतीब निज़ी ज़िन्दगी के लिए भी जानी जाती है। भारतीय स्त्री के जीवन के दर्द को रूपहले परदे पर साकार करते-करते कब वह ख़ुद दर्द की मुकम्मल तस्वीर बन गई, इसका पता शायद उन्हें भी न चला होगा। भूमिकाओं में विविधता के अभाव के बावज़ूद उनकी खास अभिनय-शैली और मोहक आवाज़ का जादू भारतीय दर्शकों पर हमेशा छाया रहा।1939 में बाल कलाकार के रूप में उन्होंने बेबी मीना के नाम से अपना फिल्मी सफ़र शुरू किया। नायिका के रूप में 1949 की 'वीर घटोत्कच' उनकी पहली फिल्म थी, लेकिन उन्हें मक़बूलियत हासिल हुई विमल राय की फिल्म 'परिणीता से। 33 साल लम्बे फिल्म कैरियर में उनकी कुछ कालजयी फ़िल्में हैं - परिणीता, दो बीघा ज़मीन, फुटपाथ, एक ही रास्ता, शारदा, बैजू बावरा, दिल अपना और प्रीत पराई, कोहिनूर, आज़ाद, चार दिल चार राहें, प्यार का सागर, बहू बेगम, मैं चुप रहूंगी, दिल एक मंदिर, आरती, चित्रलेखा, साहब बीवी गुलाम, सांझ और सवेरा, मंझली दीदी, भींगी रात, नूरज़हां, काजल, फूल और पत्थर, पाकीज़ा, मेरे अपने और गोमती के किनारे। मीना कुमारी मशहूर फिल्मकार कमाल अमरोही के साथ अपने असफल दाम्पत्य और तब के संघर्षशील अभिनेता धर्मेन्द्र के साथ अपने अधूरे प्रेम संबंध की वज़ह से भी हमेशा चर्चा में रहीं। उनकी बेपनाह भावुकता ने उन्हें नशे की दुनिया में भटकाया, लेकिन उनकी शायरी ने उन्हें मुक्ति भी दी। उन्होंने अपनी पचीस निजी डायरियों में अपनी संवेदनाओं को शब्द दिए थे जिन्हें उनकी वसीयत के मुताबिक़ फिल्मकार और शायर गुलज़ार ने संकलित और प्रकाशित कराया। मीना कुमारी की पुण्यतिथि (31 मार्च) पर खिराज़े अकीदत उन्ही की एक ग़ज़ल के साथ !
आबला-पा कोई इस दश्त में आया होगा
वरना आंधी में दिया किसने जलाया होगा
ज़र्रे ज़र्रे पे जड़े होंगे कुंवारे सजदे
एक-एक बुत को खुदा उसने बनाया होगा
प्यास जलते हुए कांटों की बुझाई होगी
रिसते पानी को हथेली पे सजाया होगा
मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा
खून के छींटे कहीं पोछ न लें राहों से
किसने वीराने को गुलज़ार बनाया होगा