Tuesday, 31 January 2017

सुरैया की पुण्यतिथि (31 जनवरी)) पर ------ ध्रुव गुप्त




Dhruv Gupt
 30-01-2017  
जब तुम ही नहीं अपने, दुनिया ही बेगानी है !
पिछली सदी के चौथे और पांचवे दशक की अभिनेत्री तथा गायिका सुरैया भारतीय सिनेमा की पहली 'ग्लैमर गर्ल' मानी जाती है। वे अपने अभिनय के लिए कम, अपने शालीन सौंदर्य और दिलफ़रेब अदाओं के लिए ज्यादा चर्चा में रही। अपनी सीमित अभिनय क्षमता के बावज़ूद उस दौर की कई बेहतरीन अभिनेत्रियों के बीच भी उनकी चमक कभी फीकी नहीं पड़ी। उनका रहस्यमय आभामंडल ऐसा था कि देश के कोने-कोने से लोग उनकी एक झलक पाने के लिए कई-कई दिनों तक उनके घर के आसपास पड़े रहते थे। देवानंद के साथ उनका असफल रिश्ता, उनका अविवाहित तथा एकाकी जीवन और उनकी गुमनाम मौत बॉलीवुड की सबसे दर्दनाक और त्रासद प्रेम कहानियों में एक रही है। नायिका के तौर पर उनकी पहली फिल्म 'तदबीर' 1945 में आई थी। सुरैया की अन्य चर्चित फिल्मे थीं - उमर खैयाम, विद्या, परवाना, अफसर, प्यार की जीत, शमा, बड़ी बहन , दिल्लगी, वारिस, विल्बमंगल, रंगमहल, माशूका, मालिक, जीत, खूबसूरत, दीवाना, डाकबंगला, अनमोल घडी, मिर्ज़ा ग़ालिब और रुस्तम सोहराब। अभिनेत्री के अलावा सुरैया अपने दौर की बेहतरीन गायिका थी जिनकी खनकती, महीन, सुरीली आवाज़ के लाखों मुरीद आज भी हैं। संगीतकार नौशाद ने पहली बार उन्हें फिल्म 'शारदा' में गाने का मौका दिया था। उनके कुछ बेहद लोकप्रिय गीत हैं - तू मेरा चांद मैं तेरी चांदनी, जब तुम ही नहीं अपने दुनिया ही बेगानी है, तुम मुझको भूल जाओ, ओ दूर जानेवाले वादा न भूल जाना, धड़कते दिल की तमन्ना हो मेरा प्यार हो तुम, नैन दीवाने एक नहीं माने, सोचा था क्या क्या हो गया, वो पास रहे या दूर रहे नज़रों में समय रहते हैं, मुरली वाले मुरली बजा, तेरे नैनो ने चोरी किया मेरा छोटा सा जिया, नुक्ताचीं है गमे दिल उसको सुनाए न बने, दिले नादां तुझे हुआ क्या है, ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाले यार होता, ये कैसी अज़ब दास्तां हो गई है, ऐ दिलरुबा नज़रे मिला आदि। सुरैया की पुण्यतिथि (31 जनवरी) पर खिराज-ए-अक़ीदत, फिल्म 'शमा' के लिए कैफ़ी आज़मी की लिखी और उनकी गाई एक ग़ज़ल के साथ !
धड़कते दिल की तमन्ना हो मेरा प्यार हो तुम 
मुझे क़रार नहीं जब से बेक़रार हो तुम
खिलाओ फूल कहीं भी किसी चमन में रहो 
जो दिल की राह से गुज़री है वो बहार हो तुम
ज़हे नसीब अता की जो दर्द की सौगात 
वो ग़म हसीन है जिस ग़म के ज़िम्मेदार हो तुम

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Saturday, 14 January 2017

कैफ़ी आज़मी अपने आप में एक व्यक्ति न होकर एक संस्था, एक युग थे ------ ध्रुव गुप्त




या दिल की सुनो दुनिया वालों या मुझको अभी चुप रहने दो !
बीसवी सदी के महानतम शायरों में एक मरहूम कैफ़ी आज़मी अपने आप में एक व्यक्ति न होकर एक संस्था, एक युग थे जिनकी रचनाओं में हमारा समय और समाज अपनी तमाम खूबसूरती और कुरूपताओं के साथ बोलता नज़र आता है। एक तरफ उन्होंने आम आदमी के दुख-दर्द को शब्दों में जीवंत कर अपने हक के लिए लड़ने का हौसला दिया तो दूसरी तरफ सौंदर्य और प्रेम की नाज़ुक संवेदनाओं को इस बारीकी से बुना कि पढ़ने-सुनने वालों के मुंह से बरबस आह निकल जाय। कैफ़ी साहब साहिर लुधियानवी और शकील बदायूनी की तरह उन गिने-चुने शायरों में थे जिन्हें अदब के साथ सिनेमा में भी अपार सफलता और शोहरत मिली। 1951 में फिल्म 'बुज़दिल' के लिए उन्होंने पहला गीत लिखा- 'रोते-रोते गुज़र गई रात'। उसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। उनके लिखे सैकड़ों फ़िल्मी गीत आज हमारी अनमोल संगीत धरोहर का हिस्सा हैं। गीतकार के रूप में उनकी प्रमुख फ़िल्में हैं - शमा, गरम हवा, शोला और शबनम, कागज़ के फूल, आख़िरी ख़त, हकीकत, रज़िया सुल्तान, नौनिहाल, सात हिंदुस्तानी, अनुपमा, कोहरा, हिंदुस्तान की क़सम, पाक़ीज़ा, हीर रांझा, उसकी कहानी, सत्यकाम, हंसते ज़ख्म, अनोखी रात, बावर्ची, अर्थ, फिर तेरी कहानी याद आई। इतनी सफलता के बावज़ूद हिंदी फ़िल्मी गीतों के बारे में उनका अनुभव यह था - 'फ़िल्मों में गाने लिखना एक अजीब ही चीज थी। आम तौर पर पहले ट्यून बनती थी, फिर उसमें शब्द पिरोए जाते थे। ठीक ऐसे कि पहले आपने क़ब्र खोदी, फिर उसमें मुर्दे को फिट करने की कोशिश की। कभी मुर्दे का पैर बाहर रह जाता था, कभी हाथ।मेरे बारे में सिनेमा वालों को जब यकीन हो गया कि मैं मुर्दे ठीक-ठाक गाड़ लेता हूं, तो मुझे काम मिलने लगा।' उन्होंने फिल्म हीर रांझा, गरम हवा और मंथन के लिए संवाद भी लिखे थे। देश के इस विलक्षण शायर और गीतकार के यौमे पैदाईश (14 जनवरी) पर खिराज़-ए-अक़ीदत, उनकी एक ग़ज़ल के साथ !
मैं ढूंढता हूं जिसे वह ज़हां नहीं मिलता
नई ज़मीन, नया आसमां नहीं मिलता
वो तेग़ मिल गई जिससे हुआ है क़त्ल मेरा
किसी के हाथ का उस पर निशां नहीं मिलता
वो मेरा गांव है, वो मेरे गांव के चूल्हे
कि जिनमें शोले तो शोले धुआं नहीं मिलता
जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूं
यहां तो कोई मेरा हमज़बां नहीं मिलता
खड़ा हूं कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे-सा कुछ भी यहां नहीं मिलता

Monday, 9 January 2017

जयंती/ पार्श्वगायक महेंद्र कपूर ------ कुलदीप कुमार 'निष्पक्ष'



कुलदीप कुमार 'निष्पक्ष'
09-01-2017 
है रीत जहाँ की प्रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूँ...
जयंती/ पार्श्वगायक महेंद्र कपूर
देशभक्ति गीतों के लिए प्रसिद्ध महेंद्र कपूर जी का कैरियर नौशाद अली की फ़िल्म 'सोहनी महिवाल' से शुरू हुआ था। इसके बाद फ़िल्म नवरंग के गीत 'आधा है चंद्रमा रात आधी' से काफी लोकप्रियता प्राप्त हुई। जिस तरह राज कपूर के लिए मुकेश और शम्मी कपूर के लिए रफ़ी ने बहुत गीत गए ठीक उसी तरह महेंद्र जी ने मनोज कुमार के लिए बहुत से फिल्मों में गीत गए जिनमें उपकार, पूरब और पश्चिम, रोटी कपड़ा और मकान और क्रांति जैसी फ़िल्में शामिल है। इन्होंने निर्माता और निर्देशक बी•आर• चोपड़ा के फिल्मों के लिए भी बहुत गीत गए जिनमें धूल का फूल, गुमराह, वक़्त, हमराज़ और धुंध जैसी फ़िल्में शामिल हैं। कैरियर के शुरुवाती दौर से ही मोहम्मद रफ़ी साहब और महेंद्र कपूर जी के बीच काफी बढ़िया दोस्ती थीं। महेंद्र जी रफ़ी साहब को अपना गुरु भी मानते थे। और कैरियर के शुरुवाती गानों में उन्होंने रफ़ी साहब को कॉपी भी करने की कोशिस की जो उनके गीतों में साफ़ झलकता है। महेंद्र कपूर जी ने हिंदी के अलावा मराठी, पंजाबी और भोजपुरी आदि क्षेत्रीय भाषाओ में लगभग 25000 हज़ार गीतों को अपने स्वर से संवारा है। इन्होंने काफी भजन भी गाएं हैं। यह पहलें भारतीय गायक थे जिन्होंने कोई अंग्रेजी गीत रिकॉर्ड करवाया था।
महेंद्र कपूर जी को 1968 में उपकार फ़िल्म के गीत 'मेरे देश की धरती सोना उगले' के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार, 1964 में गुमराह फ़िल्म के गीत 'चलों एक बार फिर से', 1968 में हमराज़ फ़िल्म के गीत 'नीले गगन के तले, और 1975 में आयी फ़िल्म रोटी कपड़ा और मकान के गीत 'और नहीं बस और नहीं' के लिए कुल मिलाकर तीन बार फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला है।
जयंती पर महेंद्र जी की गायी दो पंक्तियों के साथ श्रद्धांजलि..!
'फूलों की तरह दिल में बसाये हुये रखना 
यादों के चरागों को जलाये हुये रखना 
लंबा है सफ़र इस में कही रात तो होगी
ये साथ गुज़ारे हुये लमहात की दौलत 
जज़बात की दौलत ये ख़यालात की दौलत 
कुछ पास न हो पास ये सौगात तो होगी
बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी...'
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