Sunday, 18 June 2017

नसीम बानो : पुण्यतिथि 18 जून,2002







Sharwan Kumar
हिन्दी सिनेमा में चालीस के दशक की महान दिलक़श अदाकारा नसीम बानो की आज पुण्यतिथि है। आज ही की तिथि 18 जून,2002 को उनका निधन हो गया। 'ख़ून का ख़ून','खान बहादुर ',मीठा ज़हर ', 'पुकार','चल-चल रे नौजवान',
'उजाला' ,'शीशमहल','बेग़म' आदि उनकी महत्वपूर्ण लोकप्रिय फ़िल्में है । उन्होंने सशक्त अभिनय ,और अनोखी अदाओं के द्वारा हिन्दी सिनेमा में चार चांद लगा दिया । आइए, उनकी पुण्यतिथि पर हम उन्हे विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।
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परी चेहरा नसीम बानो
Posted By: swapniladminon: June 18, 2017

Surendra Sabhani
बला की खूबसूरत एक्ट्रेस परी चेहरा नसीम बानो (04/07/1916-18/06/2002) तीस के दशक की एक कामयाब अभिनेत्री थीं। नसीम बानो की अपनी मां, शमशाद बेगम (जिसे छमियां बाई भी कहा जाता है) से प्रतियोगिता थी, जो शास्त्रीय गायक और अपने आप में एक सितारा थी। उसने अपनी अभिनेत्री बेटी( सायरा बानो) की तुलना में अधिक कमाई की थी, नसीम बानो सोहराब मोदी के मिनर्वा मूविओटन के साथ 3500 रुपये प्रति महीने के अनुबंध पर थी। नसीम की मां उन्हें अभिनेत्री नहीं, बल्कि डॉक्टर बनाना चाहती थी।परिवार की मर्जी को धता बताकर नसीम बानो बॉलीवुड में आयीं और अपनी पहचान बनायीं। नसीम तीस के दशक की तमाम एक्ट्रेस में सबसे अधिक हसीन थीं इसीलिए उन्हें ब्यूटी-क्वीन भी कहा जाता था।नसीम बानो की परवरिश शाही ढंग से हुयी थी और वह पालकी से स्कूल जाती थी।उनकी सुंदरता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें किसी की नजर न लग जाए, इसलिये उन्हें पर्दे में रखा जाता था। नसीम बानो ने अहसान मियाँ नामक एक अमीर व्यक्ति से प्रेम विवाह किया था। अहसान मियाँ ने नसीम बानो की खातिर कुछ फ़िल्मों का निर्माण भी किया था। बाद के समय में नसीम बानो और अहसान मियाँ का दाम्पत्य रिश्ता टूट गया। भारत का विभाजन होने और पाकिस्तान बन जाने के बाद अहसान मियाँ कराची जाकर बस गये। पति से अलग होने के बाद नसीम बानो मुंबई में ही बनी रहीं। बाद में वे अपनी बेटी सायरा बानो और बेटे सुल्तान को लेकर लंदन में जा बसीं।
बचपन में फ़िल्म ‘सिल्वर किंग’ की शूटिंग देखने के बाद उन्होंने निश्चय किया कि वह अभिनेत्री के रुप में अपना सिने करियर बनायेंगी.’आलम आरा’ से बोलती फिल्मों का दौर शुरू होने के कुछ साल बाद 1935 में नसीम को फिल्मों में ब्रेक दिया मशहूर फिल्मकार सोहराब मोदी ने और ‘खून का खून’ फिल्म का निर्माण किया।
इसके बाद नसीम 1941 तक सोहराब मोदी की ही फिल्मों में व्यस्त रहीं और इस दौरान उनकी ‘खान बहादुर’ 1937, ‘डाइवोर्स’ तथा ‘मीठा जहर’ 1938, ‘पुकार’ 1939 और ‘मैं हारी’ 1940 में प्रदर्शित हुई । मुगल सम्राट जहांगीर के एक इंसाफ को आधार बनाकर बनाई गई ‘पुकार’ सुपरहिट रही। इसमें जहांगीर का किरदार अभिनेता चंद्रमोहन ने निभाया, जबकि नसीम बानो जहांगीर के बेगम की भूमिका में थीं। जब फिल्म प्रदर्शित हुई तो उस दौर में मुंबई के सिनेमाघरों में फिल्म देखने वालों की भारी भीड़ जुटी। उस फिल्म की सफलता के बाद नसीम बानो फिल्म उद्योग में स्टार के रूप में स्थापित हो गईं और इंडस्ट्री की सबसे व्यस्त अभिनेत्री बन गईं।
इसके बाद 1942 में उनकी पृथ्वीराज कपूर के साथ फिल्म ‘उजाला’ आई। इसे भी दर्शकों ने पसंद किया। ‘उजाला’ का निर्माण ताजमहल पिक्चर के बैनर तले हुआ था। फिल्मीस्तान कंपनी ने जब फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा तो अभिनेत्री के रूप में कंपनी की पहली पिक्चर में नसीम बानो को साइन किया। ‘चल-चल रे नौजवान’ नामक इस सफल फिल्म में नसीम के साथ नायक का किरदार निभाया दादा मुनि उर्फ अशोक कुमार ने। इस फिल्म ने भी अच्छा कारोबार किया और नसीम बानो और व्यस्त कलाकार बन गईं।
1945 में उनकी एक सफल फिल्म ‘बेगम’ प्रदर्शित हुई। सोहराब मोदी ने नसीम बानो को लेकर 1950 में एक और सुपरहिट फिल्म ‘शीश महल’ का निर्माण किया। इस फिल्म ने भी प्रदर्शित होते ही सिनेमाघरों में धूम मचा दी। फिल्मों का लेखा-जोखा रखने वाले बुजुर्ग समीक्षक सीएम देसाई ने बताया कि नसीम बानो 1951 में बनी ‘सबीस्तान’ फिल्म में भी नायिका का किरदार निभाया। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान भारतीय फिल्म इतिहास का सबसे दर्दनाक हादसा हुआ। अभिनेता श्याम की दौड़ते घोड़े से गिरने से मौत हो गई थी।
1952 में नसीम बानो की ‘सिंदबाद दी सेलर’ फिल्म आई। इस फिल्म की सहनायिका आजकल मां की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री निरुपा राय भी थीं। इसके बाद नसीम ने कुछ और फिल्मों में काम किया, लेकिन कुछ फिल्में या तो पूरी नहीं हुईं या फिर अच्छा कारोबार करने में सफल नहीं हुईं। इसके बावजूद नसीम बानो पचास के दशक तक फिल्मों में सक्रिय रहीं। उन्होंने फिल्मकार मेहबूब खान की कई फिल्मों में भी अभिनय किया।

उसके बाद अपनी बेटी सायरा बानो का दौर शुरू हो जाने से उन्होंने खुद को हिंदी सिनेमा की मुख्यधारा से अलग कर लिया। यह संयोग ही है कि सायरा उनसे भी ज्यादा मशहूर अभिनेत्री हुईं ।
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Friday, 16 June 2017

हेमन्त कुमार : 16जून, सन् 1920

Sharwan Kumar

'रवींद्र संगीत' के विशेषज्ञ हेमन्त दा एक महान संगीतज्ञ एवं पार्श्वगायक थे। आज ही की तिथि 16जून, सन् 1920 को उत्तरप्रदेश में उनका जन्म हुआ। भारतीय जननाट्य संध(इप्टा) के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में उन्होंने कई वर्षों तक काम किया । 'हेमन्त बेला प्रोडक्शन' नामक फ़िल्म कम्पनी की भी स्थापना की । इसके तहत मृणाल सेन के निर्देशन में एक प्रसिद्ध बांग्ला फ़िल्म 'नील आकाशेर नीचे ' का निर्माण हेमन्त दा ने किया । इस फ़िल्म को 'प्रेसिडेंट गोल्ड मेडल' मिला। 'मन डोले मेरा तन डोले मेरा', 'जरा नज़रों से कह दो जी निशाना चूक न जाए',है अपना दिल आवारा जाने किस पे आएगा','इंसाफ की डगर पे','दिल की सुनो दुनिया वालों ',बेकरार करके हमें यूँ न जाइए' आदि लोकप्रिय गीतों को उन्होंने संगीत से सजाया और सँवारा । आइए, इस प्रतिभाशाली महान व्यक्तित्व को उनकी जयन्ती पर हम श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं ।
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