भारतीय सिनेमा की अदाकारा स्मिता पाटिल : जिसके कम्युनिस्ट पिता आजादी आंदोलन में 12 साल जेलों में रहे ❤
छोटी उम्र में अलविदा कहने वाली अभिनेत्री स्मिता पाटिल की कहानी ❤
महज 14 साल की उम्र में AISF और सीपीआई से जुड़ गए थे स्मिता के पिता शिवाजीराव पाटिल ❤
न्यूज एंकर रही स्मिता राज बब्बर की पत्नी थी छोटी उम्र हो गया था देहांत . सांमतवादी व्यवस्था के बीच पिसती औरत की संघर्ष की कहानी बयां करती थी उनकी फिल्में
5 दिन पहले स्मिता पाटिल का 17 अक्तूबर को जन्मदिन था . 1955 को पैदा हुई थी एक कम्युनिस्ट और स्वतंत्रता सेनानी परिवार में । छोटी सी उम्र 30 साल भरी जवानी में उनका देहांत हो गया था । स्मिता पाटिल एक सक्रिय नारीवादी होने के अतिरिक्त मुंबई के महिला केंद्र की सदस्य भी थीं। वे महिलाओं के मुद्दों पर पूरी तरह से वचनबद्ध थीं और इसके साथ ही उन्होने उन फिल्मो मे काम करने को प्राथमिकता दी जो परंपरागत भारतीय समाज मे शहरी मध्यवर्ग की महिलाओं की प्रगति उनकी कामुकता तथा सामाजिक परिवर्तन का सामना कर रही महिलाओं के सपनों की अभिवयक्ति कर सकें.
स्मिता पाटिल का जन्म 17 अक्तूबर 1955 को पुणे (महाराष्ट्र) के राजनीतिज्ञ स्वतंत्रता सेनानी शिवाजीराव गिरधर पाटिल और सामाजिक कार्यकर्ता विद्याताई पाटिल के यहाँ कुनबी मराठा परिवार में हुआ था।
पहली बार 1970 के दशक में टीवी न्यूज़रीडर के रूप में कैमरा का सामना किया। उस वक्त वो सरकारी खबर प्रसारक मुंबई दूरदर्शन पर बतौर न्यूज़रीडर के रूप में काम करती थी।
सन 1975 में श्याम बेनेगल की “निशांत” से फ़िल्मी करियर की शुरुवात करने वाली स्मिता 1976 में मंथन और 1977 में भूमिका से सशक्त अभिनेत्री के रूप में सामने आयी | “भूमिका” के रोल के लिए उन्हें पहला राष्ट्रीय पुरुस्कार भी मिला | मराठी के प्रसिद्ध साहित्यकार जयवंत दलवी की कृति पर आधारित “चक्र” में अम्मा की भूमिका के लिए उन्हें दुबारा राष्ट्रीय पुरुस्कार से सम्मानित किया गया | “बाजार” में स्मिता (Smita Patil) ने एक मुस्लिम लडकी का किरदार निभाया , जो अपनी आँखों के सामने ही औरत के सौदा होने की गवाह बनी | वही जब्बार पटेल की सुबह में उन्होंने एक ऐसे अधिकारी की पत्नी का रोल अदा किया था जो पत्नी की गैर-मौजूदगी में एक दुसरी औरत से रिश्ता कायम कर लेता है |
“स्मिता की मृत्यु से फ़िल्मी दुनिया में जो खालीपन आया था वह कभी नही भरा जा सका । उनकी गैर-मौजूदगी हिन्दी सिनेमा के साथ साथ विश्व सिनेमा को भी खलती रही है ।
विद्रोही रही स्मिता की बडी़ आंखों और सांवले सौंदर्य ने पहली नज़र मे ही सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था । कालांतर मे स्मिता पाटिल के प्रेम संबंध राज बब्बर से हो गये जिनकी परिणिति अंतंतः विवाह मे हुई। राज बब्बर जो पहले से ही विवाहित थे और उन्होने स्मिता से शादी करने के लिये अपनी पहली पत्नी को छोडा़ था।
स्मिता पाटिल ने 1980 में प्रदर्शित फ़िल्म 'चक्र' में झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाली महिला के किरदार को रूपहले पर्दे पर जीवंत कर दिया। इसके साथ ही फ़िल्म 'चक्र' के लिए वह दूसरी बार 'राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार' से सम्मानित की गईं। अस्सी के दशक में स्मिता पाटिल ने व्यावसायिक सिनेमा की ओर भी अपना रुख़ कर लिया। इस दौरान उन्हें सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के साथ 'नमक हलाल' और 'शक्ति (1982 ) जैसी फ़िल्मों में काम करने का अवसर मिला, जिसकी सफलता ने स्मिता पाटिल को व्यावसायिक सिनेमा में भी स्थापित कर दिया। अस्सी के दशक में स्मिता पाटिल ने व्यावसायिक सिनेमा के साथ-साथ समानांतर सिनेमा में भी अपना सामंजस्य बनाये रखा ।
1985 में स्मिता पाटिल की फ़िल्म 'मिर्च-मसाला' प्रदर्शित हुई। सौराष्ट्र की आज़ादी के पूर्व की पृष्ठभूमि पर बनी इस फ़िल्म ने निर्देशक केतन मेंहता को अंतराष्ट्रीय ख्याति दिलाई। यह फ़िल्म सांमतवादी व्यवस्था के बीच पिसती औरत की संघर्ष की कहानी बयां करती है। यह फ़िल्म आज भी स्मिता पाटिल के सशक्त अभिनय के लिए याद की जाती है ।
उनके पिता शिवाजीराव गिरधर पाटिल स्वतंत्रता सेनानी थे । सामाजिक कार्यकर्ता और महाराष्ट्र के नेता थे . देश के पहले छात्र संगठन AISF से जुड़कर आजादी आंदोलन में भाग लिया । स्वतंत्रता के बाद, वह विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े थे और एक कार्यकाल के लिए महाराष्ट्र विधान परिषद , महाराष्ट्र विधान सभा और यहां तक कि राज्य सभा के सदस्य भी रहे थे। 2013 में, उन्हें भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया ।
पाटिल कम उम्र से ही एक सक्रिय राजनेता थे, और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी CPI से लंबे समय तक जुड़े रहे । फिर कांग्रेस पार्टी , समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी सहित कई राजनीतिक दलों से जुड़े रहे ।
पाटिल ने एक क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में अपना करियर शुरू किया, और एक किशोर के रूप में कम्युनिस्ट आंदोलन की ओर आकर्षित हुए। 1939 में, केवल 14 वर्ष की आयु में, वह अखिल भारतीय छात्र संघ (एआईएसएफ) के अध्यक्ष बने, जो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) की छात्र शाखा है। अगस्त 1936 में स्थापित, एआईएसएफ छात्रों का पहला राष्ट्रीय भारतीय संघ था। एआईएसएफ के माध्यम से, पाटिल ने भारत में ब्रिटिश शासन को खत्म करने के उद्देश्य से विभिन्न गतिविधियों में भाग लिया। इनमें से कुछ गतिविधियाँ हिंसक थीं, और पाटिल को गिरफ्तार किया गया, उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें बारह वर्षों तक जेल में रखा गया। हालांकि, उन्होंने अपनी सजा पूरी नहीं की और पकड़े जाने से पहले कुछ समय के लिए लखनऊ में अंडरकवर होकर जेल से बाहर निकल आए।
पाटिल 1960 से 1967 तक महाराष्ट्र विधान परिषद (उच्च सदन) और 1967 से 1978 तक महाराष्ट्र विधान सभा (निचले सदन) के सदस्य रहे, उन्होंने शिरपुर से 1967 और 1972 का चुनाव लड़ा और जीता । उन्होंने महाराष्ट्र सरकार में दो कार्यकालों के लिए मंत्री के रूप में कार्य किया: 1968-72 वसंतराव नाइक के अधीन और 1976-78 शंकरराव चव्हाण और वसंतदादा पाटिल के अधीन । ये सभी मंत्री कांग्रेस पार्टी के थे । मंत्री के रूप में, पाटिल ने सिंचाई, बिजली, प्रोटोकॉल, सहकारिता और विधायी मामलों के विभागों को संभाला। बाद में, वह 1992 से 1998 तक एक कार्यकाल के लिए राज्य सभा के सदस्य भी रहे।
पाटिल महाराष्ट्र में चीनी क्षेत्र में सहकारी आंदोलन में भी सक्रिय थे, जो राज्य में अत्यधिक राजनीतिक और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है। 1981 में, उन्होंने धुले जिले के शिरपुर में सहकारी चीनी कारखाना "शिरपुर सहकारी साखर कारखाना" शुरू करने में मदद की । वह 2009 तक लगातार 27 वर्षों तक इसके अध्यक्ष रहे, जब वसंतराव पाटिल चुने गए। 2012 तक पाटिल नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज के निदेशकों में से एक हैं।
1996 में, उनकी अध्यक्षता में, स्मिता पाटिल चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना उनकी बेटी, अभिनेत्री स्मिता पाटिल की याद में की गई थी, जिनकी 1986 में प्रसव के दौरान मृत्यु हो गई थी। ट्रस्ट शिरपुर तालुका के दहीवाड़ गाँव में एक स्मिता पाटिल पब्लिक स्कूल चलाता है। ग्रामीण क्षेत्र में छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के मिशन के साथ धुले जिला ।
2013 में, भारत सरकार ने उन्हें सार्वजनिक मामलों में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया। यह पुरस्कार भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है।
पाटिल की शादी विद्याताई पाटिल से हुई थी। विद्याताई शिवाजीराव द्वारा एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में आयोजित कुछ जलसों में शामिल थीं और उनके जोश और कार्य से प्रेरित होकर अपनी मंगनी तोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में शामिल हो गई । वे नास्तिक और गैर-अनुष्ठानवादी दोनों थे और उनकी शादी साने गुरुजी द्वारा की गई थी । 1938 में हुई यह शादी 77 साल तक चली । विद्याताई पाटिल की मार्च 2015 में मृत्यु हो गई। विद्याताई पाटिल ने अपने पति का 12 साल का कारावास, मंत्री पद की पावर और फिल्म-स्टार बेटी स्मिता की उथल-पुथल और मृत्यु भरी जिंदगी को देखा ।पाटिल तीन बेटियों अनीता, स्मिता और मान्या के माता-पिता थे। अनीता का विवाह शंकर देशमुख से हुआ था, इस दंपति के दो बेटे हैं, (वरुण और आदित्य देशमुख)। अनीता वर्तमान में मुंबई में रहती है और पुकार की कार्यकारी निदेशक है । अनीता की पोती का नाम उनकी बहन स्मिता के नाम पर ज़ो स्मिता देशमुख रखा गया है। तीसरी और सबसे छोटी बेटी, मान्या सेठ, एक पूर्व पोशाक डिजाइनर हैं, और स्मिता पाटिल फाउंडेशन के अध्यक्ष के रूप में कार्य करती हैं।
स्मिता पाटिल ने एक न्यूज़रीडर के रूप में अपना करियर शुरू किया था, लेकिन जल्दी ही फिल्मों में चली गईं। वह समीक्षकों द्वारा प्रशंसित हिंदी फिल्म अभिनेत्री बन गईं और अपने शानदार प्रदर्शन के लिए कई पुरस्कार जीते। अभिनेता से नेता बने राज बब्बर से शादी की, जो पहले से ही नादिरा बब्बर से शादी कर चुके थे, जिनसे उनके पहले से ही दो बच्चे थे। इस रिश्ते से स्मिता गर्भवती हो गई और दिसंबर 1986 में उसने एक बेटे को जन्म दिया। बच्चे को जन्म देने के तुरंत बाद उसकी मौत हो गई। इस समय पाटिल और उनकी पत्नी दोनों ने अपना 60वां जन्मदिन पार कर लिया था। फिर भी, उन्होंने नवजात बच्चे को पालने की जिम्मेदारी संभाली, जो बड़ा होकर अभिनेता प्रतीक बब्बर के रूप में फेमस हुआ ।
स्मिता पाटिल को याद करते हुए - रोशन सुचान