Sunday, 31 December 2017
Saturday, 30 December 2017
जज़्बा एफ एम पर नूपुर शर्मा
नूपुर शर्मा जी ने खुद अपना परिचय इस प्रकार दिया है " FITRAT se Punjabi? PUNJABI by nature? "
वैसे आपसे संबन्धित जो जानकारी उपलब्ध है उसमें से कुछ इस प्रकार है :
* AJK Mass Communication Research Centre, Jamia Millia Islamia
MA · New Delhi
(Film, TV, Radio)
** Cardiff University
Radio · Cardiff
Broadcast Journalism
दिल्ली विश्वविद्यालय से आपने इतिहास विषय में M. A. की डिग्री हासिल की है। आप मेरठ, उत्तर - प्रदेश की हैं और वर्तमान समय Portland, Oregon में निवास कर रही हैं। द वायर, हिन्दी पर प्रति रविवार आपका कार्यक्रम ' उर्दू वाला चश्मा ' प्रसारित होता है। जज़्बा FM पर हिन्दी के फिल्मी संगीतों का कार्यक्रम जो आपने प्रस्तुत किया है उसकी भूमिका और वर्णन बहुत ही सटीक रहा है। आप भी देखें :
Saturday, 22 July 2017
"दर्द भरी सुरीली आवाज के सरताज", "आवाज के जादूगर" और "दर्द भरे गीतों के बेताज बादशाह" #मुकेश चन्द्र माथुर ------ रजनीश कुमार श्रीवास्तव
Rajanish Kumar Srivastava
22-07-2017 ·
"दर्द भरी सुरीली आवाज के सरताज", "आवाज के जादूगर" और "दर्द भरे गीतों के बेताज बादशाह" #मुकेश चन्द्र माथुर जो फिल्म फेयर पुरस्कार पाने वाले पहले पुरूष पार्श्व गायक बने थे, के 94 वें जन्मदिन पर उनका शत शत नमन।
हिन्दी सिनेमा की पार्श्व गायकी के सुपर स्टार मुकेश का जन्म 22 जुलाई 1923 ई० को एक सम्पन्न कायस्थ परिवार में पिता जोरावर चन्द्र माथुर और माता चाँद रानी के घर दिल्ली में हुआ था।आवाज के इस जादूगर ने 1940 ई० से 27 अगस्त 1976 ई० तक अपने देहावसान के समय तक हिन्दी सिनेमा के 200 से ज्यादा फिल्मों में 1300 से ज्यादा बेमिसाल गीत गाए और अपने सदाबहार गीतों की वजह से लगातार तीन दशक तक श्रोताओं के दिल पर राज किया।भारत के अलावा रूस और अमेरिका में भी इनके करोड़ों चाहने वाले थे।रूस में जहाँ उनका गीत,"मेरा जूता है जापानी" लोगों के जुबान पर लम्बे समय तक चढ़ा रहा तो अमेरिका के डेट्रॉयट(मिशिगन) के एक समारोह में अपना प्रसिद्ध गीत "इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल,जग में रह जाएँगे प्यारे तेरे बोल " गाते हुए हृदयघात हो जाने से 27 अगस्त 1976 ई० को वे सदा के लिए अमर हो गए और रह गये तो सिर्फ उनके सुरीले बोल।
हिन्दी सिनेमा गायकी में उनका प्रवेश उनके दूर के रिश्तेदार प्रसिद्ध अभिनेता मोती लाल जी ने कराया था।इनके अविस्मर्णीय सहयोग से दिल्ली में पी डब्लू डी में असिस्टेन्ट सर्वेयर की नौकरी करने वाले मुकेश ने 1941 ई० में फिल्म "निर्दोष" से अपना कैरियर शुरू कर 1945 ई० में फिल्म "पहली नज़र" के प्रसिद्ध गीत "दिल जलता है तो जलने दे,आँसू ना बहा फरियाद ना कर" के द्वारा अपना जलवा पूरे फिल्मी जगत में फैला दिया और फिर इस उभरते सितारे का यादगार सफर तीन दशकों तक तीन सर्वकालिक महान अभिनेताओं #दिलीप कुमार,#राजकपूर और #मनोज कुमार की आवाज बनकर प्रसिद्धि के नित नए प्रतिमान गढ़ने लगा।तात्कालिक समय के पार्श्व गायकी के दिग्गज और अपने आदर्श कुन्दन लाल सहगल तथा पंकज मलिक की छत्रछाया से बाहर निकल कर हिन्दी सिनेमा की पार्श्व गायकी के स्वर्ण युग में मोहम्मद रफी और किशोर कुमार के अद्भुत गायकी के विशिष्ट दौर में अपनी अनमोल छाँप छोड़कर ट्रेजड़ी किंग दिलीप कुमार, हिन्दी सिनेमा के शो मैन राजकपूर और बेमिसाल सुपर स्टार मनोज कुमार की लगातार तीन दशकों तक आवाज बने रहना एक बेमिसाल कारनामें से कम नहीं था।तभी तो मुकेश के देहावसान पर शोक में डूबे शो मैन राजकपूर ने सार्वजनिक उदघोष करते हुए कहा था कि,"मैने अपनी आवाज सदा के लिए खो दी है।" राजकपूर अक्सर कहा करते थे कि," मैं तो बस शरीर हूँ मेरी आत्मा तो मुकेश है।"
संगीतकार नौसाद,अनिल विश्वास और शंकर जयकिशन के साथ मुकेश की अदभुत गायकी ने एक से बढ़कर एक अनमोल गीत भारतीय सिनेमा को दिए।मुकेश को अपनी लाजवाब गायकी के कारण 1959, 1970, 1972 और 1976 ई० में चार बार फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ तो 1974 ई० में फिल्म रजनीगंधा के गीत "कई बार यूँ भी देखा है" के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।
रोशन, कल्याणजी आनंदजी, लक्ष्मीप्यारे के साथ भी इनका काम उल्लेखनीय...3 फिल्मफेयर बेस्ट सिंगर में संगीत एस जे डुओ का व 1 में खय्याम का रहा है...
"किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार" से लेकर "सावन का महीना पवन करे शोर" और फिर "दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई" से लेकर "सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है" के सदाबहार गीतों को अपनी बेमिसाल गायकी से अमर कर देने वाले मुकेश केवल पल दो पल के शायर ही नहीं बल्कि हर पल के नायाब फनकार थे।इस सर्वकालिक महान पार्श्व गायक का उनके जन्मदिन पर शत शत नमन।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1891866267804645&set=a.1488982591426350.1073741827.100009438718314&type=3&permPage=1
Wednesday, 19 July 2017
Tuesday, 18 July 2017
Monday, 17 July 2017
कानन देवी ------ श्रवण कुमार
Sharwan Kumar
'दादा साहेब फाल्के पुरस्कार' से सम्मानित सुप्रसिद्ध अभिनेत्री, गायिका एवं फ़िल्म निर्माता कानन देवी की आज पुण्यतिथि है। आज की तिथि 17 जुलाई ,1992 को कोलकाता में उनका निधन हो गया ।वह पश्चिम बंगाल की पहली ऐसी अभिनेत्री थी, जिन्हे भारतीय फ़िल्म में महत्वपूर्ण योगदान के लिए 'दादा साहेब फाल्के पुरस्कार', प्रदान किया गया । 'मुक्ति', 'वनफूल', 'माँ ', 'जबाब', 'हाॅस्पिटल', 'चंद्रशेखर', 'शेष उत्तर', 'हार-जीत', 'राजलक्ष्मी' आदि उनकी महत्वपूर्ण फ़िल्में हैं। 'न्यू थियेटर' से भी उनका गहरा जुड़ाव था। संगीत के क्षेत्र में उस्ताद अल्लारक्खा से उन्होंने संगीत की शिक्षा ली ।
आइए, उनकी पुण्यतिथि पर हम उन्हे श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।
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Sunday, 9 July 2017
Wednesday, 21 June 2017
Sunday, 18 June 2017
नसीम बानो : पुण्यतिथि 18 जून,2002
Sharwan Kumar
18-06-2017
हिन्दी सिनेमा में चालीस के दशक की महान दिलक़श अदाकारा नसीम बानो की आज पुण्यतिथि है। आज ही की तिथि 18 जून,2002 को उनका निधन हो गया। 'ख़ून का ख़ून','खान बहादुर ',मीठा ज़हर ', 'पुकार','चल-चल रे नौजवान','उजाला' ,'शीशमहल','बेग़म' आदि उनकी महत्वपूर्ण लोकप्रिय फ़िल्में है । उन्होंने सशक्त अभिनय ,और अनोखी अदाओं के द्वारा हिन्दी सिनेमा में चार चांद लगा दिया । आइए, उनकी पुण्यतिथि पर हम उन्हे विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।
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परी चेहरा नसीम बानो
Posted By: swapniladminon: June 18, 2017
Surendra Sabhani
बला की खूबसूरत एक्ट्रेस परी चेहरा नसीम बानो (04/07/1916-18/06/2002) तीस के दशक की एक कामयाब अभिनेत्री थीं। नसीम बानो की अपनी मां, शमशाद बेगम (जिसे छमियां बाई भी कहा जाता है) से प्रतियोगिता थी, जो शास्त्रीय गायक और अपने आप में एक सितारा थी। उसने अपनी अभिनेत्री बेटी( सायरा बानो) की तुलना में अधिक कमाई की थी, नसीम बानो सोहराब मोदी के मिनर्वा मूविओटन के साथ 3500 रुपये प्रति महीने के अनुबंध पर थी। नसीम की मां उन्हें अभिनेत्री नहीं, बल्कि डॉक्टर बनाना चाहती थी।परिवार की मर्जी को धता बताकर नसीम बानो बॉलीवुड में आयीं और अपनी पहचान बनायीं। नसीम तीस के दशक की तमाम एक्ट्रेस में सबसे अधिक हसीन थीं इसीलिए उन्हें ब्यूटी-क्वीन भी कहा जाता था।नसीम बानो की परवरिश शाही ढंग से हुयी थी और वह पालकी से स्कूल जाती थी।उनकी सुंदरता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें किसी की नजर न लग जाए, इसलिये उन्हें पर्दे में रखा जाता था। नसीम बानो ने अहसान मियाँ नामक एक अमीर व्यक्ति से प्रेम विवाह किया था। अहसान मियाँ ने नसीम बानो की खातिर कुछ फ़िल्मों का निर्माण भी किया था। बाद के समय में नसीम बानो और अहसान मियाँ का दाम्पत्य रिश्ता टूट गया। भारत का विभाजन होने और पाकिस्तान बन जाने के बाद अहसान मियाँ कराची जाकर बस गये। पति से अलग होने के बाद नसीम बानो मुंबई में ही बनी रहीं। बाद में वे अपनी बेटी सायरा बानो और बेटे सुल्तान को लेकर लंदन में जा बसीं।
बचपन में फ़िल्म ‘सिल्वर किंग’ की शूटिंग देखने के बाद उन्होंने निश्चय किया कि वह अभिनेत्री के रुप में अपना सिने करियर बनायेंगी.’आलम आरा’ से बोलती फिल्मों का दौर शुरू होने के कुछ साल बाद 1935 में नसीम को फिल्मों में ब्रेक दिया मशहूर फिल्मकार सोहराब मोदी ने और ‘खून का खून’ फिल्म का निर्माण किया।
इसके बाद नसीम 1941 तक सोहराब मोदी की ही फिल्मों में व्यस्त रहीं और इस दौरान उनकी ‘खान बहादुर’ 1937, ‘डाइवोर्स’ तथा ‘मीठा जहर’ 1938, ‘पुकार’ 1939 और ‘मैं हारी’ 1940 में प्रदर्शित हुई । मुगल सम्राट जहांगीर के एक इंसाफ को आधार बनाकर बनाई गई ‘पुकार’ सुपरहिट रही। इसमें जहांगीर का किरदार अभिनेता चंद्रमोहन ने निभाया, जबकि नसीम बानो जहांगीर के बेगम की भूमिका में थीं। जब फिल्म प्रदर्शित हुई तो उस दौर में मुंबई के सिनेमाघरों में फिल्म देखने वालों की भारी भीड़ जुटी। उस फिल्म की सफलता के बाद नसीम बानो फिल्म उद्योग में स्टार के रूप में स्थापित हो गईं और इंडस्ट्री की सबसे व्यस्त अभिनेत्री बन गईं।
इसके बाद 1942 में उनकी पृथ्वीराज कपूर के साथ फिल्म ‘उजाला’ आई। इसे भी दर्शकों ने पसंद किया। ‘उजाला’ का निर्माण ताजमहल पिक्चर के बैनर तले हुआ था। फिल्मीस्तान कंपनी ने जब फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा तो अभिनेत्री के रूप में कंपनी की पहली पिक्चर में नसीम बानो को साइन किया। ‘चल-चल रे नौजवान’ नामक इस सफल फिल्म में नसीम के साथ नायक का किरदार निभाया दादा मुनि उर्फ अशोक कुमार ने। इस फिल्म ने भी अच्छा कारोबार किया और नसीम बानो और व्यस्त कलाकार बन गईं।
1945 में उनकी एक सफल फिल्म ‘बेगम’ प्रदर्शित हुई। सोहराब मोदी ने नसीम बानो को लेकर 1950 में एक और सुपरहिट फिल्म ‘शीश महल’ का निर्माण किया। इस फिल्म ने भी प्रदर्शित होते ही सिनेमाघरों में धूम मचा दी। फिल्मों का लेखा-जोखा रखने वाले बुजुर्ग समीक्षक सीएम देसाई ने बताया कि नसीम बानो 1951 में बनी ‘सबीस्तान’ फिल्म में भी नायिका का किरदार निभाया। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान भारतीय फिल्म इतिहास का सबसे दर्दनाक हादसा हुआ। अभिनेता श्याम की दौड़ते घोड़े से गिरने से मौत हो गई थी।
1952 में नसीम बानो की ‘सिंदबाद दी सेलर’ फिल्म आई। इस फिल्म की सहनायिका आजकल मां की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री निरुपा राय भी थीं। इसके बाद नसीम ने कुछ और फिल्मों में काम किया, लेकिन कुछ फिल्में या तो पूरी नहीं हुईं या फिर अच्छा कारोबार करने में सफल नहीं हुईं। इसके बावजूद नसीम बानो पचास के दशक तक फिल्मों में सक्रिय रहीं। उन्होंने फिल्मकार मेहबूब खान की कई फिल्मों में भी अभिनय किया।
उसके बाद अपनी बेटी सायरा बानो का दौर शुरू हो जाने से उन्होंने खुद को हिंदी सिनेमा की मुख्यधारा से अलग कर लिया। यह संयोग ही है कि सायरा उनसे भी ज्यादा मशहूर अभिनेत्री हुईं ।
http://swapnilsansar.org/2017/06/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%9A%E0%A5%87%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%AE-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8B/
Friday, 16 June 2017
हेमन्त कुमार : 16जून, सन् 1920
Sharwan Kumar
'रवींद्र संगीत' के विशेषज्ञ हेमन्त दा एक महान संगीतज्ञ एवं पार्श्वगायक थे। आज ही की तिथि 16जून, सन् 1920 को उत्तरप्रदेश में उनका जन्म हुआ। भारतीय जननाट्य संध(इप्टा) के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में उन्होंने कई वर्षों तक काम किया । 'हेमन्त बेला प्रोडक्शन' नामक फ़िल्म कम्पनी की भी स्थापना की । इसके तहत मृणाल सेन के निर्देशन में एक प्रसिद्ध बांग्ला फ़िल्म 'नील आकाशेर नीचे ' का निर्माण हेमन्त दा ने किया । इस फ़िल्म को 'प्रेसिडेंट गोल्ड मेडल' मिला। 'मन डोले मेरा तन डोले मेरा', 'जरा नज़रों से कह दो जी निशाना चूक न जाए',है अपना दिल आवारा जाने किस पे आएगा','इंसाफ की डगर पे','दिल की सुनो दुनिया वालों ',बेकरार करके हमें यूँ न जाइए' आदि लोकप्रिय गीतों को उन्होंने संगीत से सजाया और सँवारा । आइए, इस प्रतिभाशाली महान व्यक्तित्व को उनकी जयन्ती पर हम श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं ।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1932090917060342&set=a.1388791514723621.1073741826.100007783560528&type=3
Monday, 12 June 2017
Thursday, 8 June 2017
Wednesday, 26 April 2017
मौसमी चटर्जी : 26 अप्रैल 1948
Mausmi Chatterjee Did Rape Scene During Her Pregnancy
प्रेग्नेंसी में इस एक्ट्रेस ने किया था रेप सीन, शूटिंग के दौरान रोई, उल्टियां भी की
dainikbhaskar.com | Apr 19, 2017, 14:37 IST
मुंबई. एक्ट्रेस मौसमी चटर्जी 69 साल की होने जा रही हैं। 26 अप्रैल 1948 को कोलकाता में जन्मीं मौसमी ने कई फिल्मों में काम किया है। लेकिन 'रोटी कपड़ा और मकान' (1974) उनकी सबसे सक्सेसफुल फिल्म मानी जाती है। डायरेक्टर मनोज कुमार की इस फिल्म में मौसमी ने रेप सरवाइवर तुलसी का रोल किया था। फिल्म का रेप सीन हिंदी सिनेमा के सबसे डिस्टर्बिंग सीन्स में गिना जाता है। खास बात यह है कि मौसमी ने प्रेग्नेंसी की हालत में यह सीन किया था।रेप सीन के दौरान रो पड़ी थीं मौसमी...
- 2015 में एक इंटरव्यू में मौसमी ने 'रोटी कपड़ा और मकान' के रेप सीन की शूटिंग का किस्सा शेयर किया था।
- मौसमी ने कहा था, "इस सीन की खूब चर्चा रही थी। लोगों को यह सेंसिटिव लगा था। लेकिन इसकी शूटिंग बहुत मुश्किल थी। सीन में विलेन को मेरा ब्लाउज खींचते दिखाया गया है। मुझे चिंता थी कि यह सीन कैसे शूट होगा। सीन के लिए मैंने दो ब्लाउज पहने थे और विलेन ने ऊपर वाला ब्लाउज खींचा था।"
- इंटरव्यू में मौसमी ने बताया था कि जिस वक्त वे उस रेप सीन की शूटिंग कर रही थीं, उस वक्त उनके बाल बहुत लंबे थे। शूटिंग के दौरान उनके ऊपर ढेर सारा आटा गिर गया। वे पसीने से तर थीं और हर चीज उनसे चिपक जा रही थी। आटा भी उनके बालों में जा चिपका। अपनी हालत देखकर वे सेट पर रोने लगीं।
- मौसमी के मुताबिक, शूटिंग के बाद रात में 10.30 बजे वे घर पहुंचीं और बालों से आटा निकालते-निकालते उन्हें रात के 2 बज गए।
- मौसमी ने यह भी बताया था कि कुछ आटा उनके मुंह में चला गया था, जिसकी वजह से उन्हें खूब उल्टियां हुईं और उनकी हालत खराब हो गई। हालांकि, मौसमी की मानें तो डायरेक्टर मनोज कुमार ने उनकी खूब केयर की।
- मौसमी के मुताबिक, प्रेग्नेंसी की वजह से 'रोटी कपड़ा और मकान' का सॉन्ग 'तेरी दो टकिया की नौकरी' जीनत अमान को दे दिया गया था।
http://bollywood.bhaskar.com/news/ENT-BNE-this-actress-did-rape-scene-in-pregnancy-news-hindi-5578174-PHO.html
इंदिरा चटर्जी का जन्म 26 अप्रैल 1953 में कोलकाता में हुआ था, जिनका नाम मशहूर बंगाली फिल्म निर्देशक तरुण मजूमदार द्वारा बदलकर मौसमी चटर्जी कर दिया गया था. चौदह साल की उम्र में मौसमी चटर्जी बालिका वधू बन गईं.
खिलखिलाती सहेलियों के साथ स्कूल जाते हुए. मासूमियत भरी मस्ती और हंसने पर बढ़ा हुआ दांत दिखना, कंधे पर बस्ता टांगे हुए, लंबी- लंबी दो चोटियां उन्हें और भी मासूम बना देता था.
मशहूर बंगाली फिल्म निर्देशक तरुण मजूमदार नायिका के रोल के लिए उन्हें स्कूली लड़की की तलाश थी, जो देखने में मासूम लगे और चंचल भी. तरुण मजूमदार को लगा कि यह छात्रा उस रोल के लिए सही रहेगी. तरुण मजूमदार रोज मौसमी चटर्जी को देखते. उनकी निगाह में मौसमी चटर्जी की मासूमियत इस कदर बस गई कि उन्होंने सोच लिया कि मौसमी ही उनकी फिल्म में बालिका वधू बनेंगी.
उन्होंने जब इंदिरा से पूछा कि मेरी फिल्म में काम करोगी, तब बड़ी मासूमियत से उन्होंने ‘हां’ कह दिया, और पूछा कब से काम शुरू करना है? क्या आज से ही करना होगा? लेकिन मैं स्कूल से छुट्टी नहीं ले सकती. मुझे बाबा (पिताजी) से पूछना पड़ेगा.
सेना में नौकरी करने वाले सख्त स्वभाव वाले इंदिरा के पिता प्रांतोष चट्टोपाध्याय ने साफ मना कर दिया, ‘सवाल ही नहीं उठता. मेरी बेटी पढ़ेगी और खूब पढ़ेगी.’ तब तरुण मजूमदार ने बाबा को मनाने की जिम्मेदारी अपनी पत्नी संध्या राय को सौंपी जो उस समय बंगाल की लोकप्रिय कलाकार थीं. संध्या ने जैसे-तैसे बाबा को मना लिया और इस तरह चौदह साल की उम्र में इंदिरा बालिका वधू बन गई. लेकिन उन्हें अपना नाम बदलना पड़ा.
मौसमी का विवाह बहुत कम उम्र में हो गया था वे जितनी कम उम्र में परदे पर आई, उतनी ही कम उम्र में उनका विवाह भी हो गया. संयोग से प्रसिद्ध गायक हेमंत कुमार ने अपने बेटे रीतेश के लिए मौसमी का हाथ मांग लिया.शादी के बाद वे कोलकाता में रहने लगीं कोलकाता से मुंबई आने पर हेमंत कुमार ने मौसमी से कहा, ‘तुममें अच्छे कलाकार के सभी गुण मौजूद हैं. तुम्हारा चेहरा भी सिल्वर स्क्रीन के लिए एकदम सही है. तुम प्रतिभावान हो, फिल्मों में अभिनय जारी रखो. इस तराह उनके पति ने भी उन्हें हौसला दिया | उस समय तक कई जाने-माने निर्देशक पटकथा लेकर हेमंत कुमार के पास आते थे. तब उन्हें शक्ति सामंत की फिल्म ‘अनुराग’ की कहानी बहुत पसंद आई और 1972 में उन्होंने ‘अनुराग’ में काम करने के लिए शक्ति सामंत को हामी भर दी, लड़की की भूमिका इतने सशक्त ढंग से निभाई कि उस वर्ष की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार उन्हें दिया गया. इस फिल्म के सभी गाने खूब लोकप्रिय हुए थे. इस तरह यह सिलसिला चल निकला.
उसके बाद मौसमी ने कई प्रमुख फिल्मों में उस दौर के सभी बड़े अभिनेताओं के साथ काम किया. ‘रोटी, कपड़ा और मकान’, ‘उधार की जिंदगी’, ‘मंजिल’, ‘बेनाम’, ‘जहरीले इंसान’, ‘हमशक्ल’, ‘सबसे बड़ा रुपइया’ और ‘स्वयंवर’ उल्लेखनीय फिल्में हैं.
उनकी छोटी बेटी पायल भी कैमरे की बारीकियां समझने लगी हैं. हाल ही में मौसमी चटर्जी को बंगाल सिने आर्टिस्ट द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड प्रदान किया गया. मौसमी की बड़ी बेटी मेघा को भी उनकी ही तरह तरुण मजूमदार बंगाली फिल्म ‘भालोबासेर अनेक’ नाम से फिल्मी दुनिया में पदार्पण करवा चुके हैं. यह जानना दिलचस्प होगा कि इस फिल्म में मौसमी ने मेघा की चचेरी बहन की भूमिका अदा की है.
http://www.indiajunctionnews.com/biography-about-moushumi-chatterjee/
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