Rajanish Kumar Srivastava
22-07-2017 ·
"दर्द भरी सुरीली आवाज के सरताज", "आवाज के जादूगर" और "दर्द भरे गीतों के बेताज बादशाह" #मुकेश चन्द्र माथुर जो फिल्म फेयर पुरस्कार पाने वाले पहले पुरूष पार्श्व गायक बने थे, के 94 वें जन्मदिन पर उनका शत शत नमन।
हिन्दी सिनेमा की पार्श्व गायकी के सुपर स्टार मुकेश का जन्म 22 जुलाई 1923 ई० को एक सम्पन्न कायस्थ परिवार में पिता जोरावर चन्द्र माथुर और माता चाँद रानी के घर दिल्ली में हुआ था।आवाज के इस जादूगर ने 1940 ई० से 27 अगस्त 1976 ई० तक अपने देहावसान के समय तक हिन्दी सिनेमा के 200 से ज्यादा फिल्मों में 1300 से ज्यादा बेमिसाल गीत गाए और अपने सदाबहार गीतों की वजह से लगातार तीन दशक तक श्रोताओं के दिल पर राज किया।भारत के अलावा रूस और अमेरिका में भी इनके करोड़ों चाहने वाले थे।रूस में जहाँ उनका गीत,"मेरा जूता है जापानी" लोगों के जुबान पर लम्बे समय तक चढ़ा रहा तो अमेरिका के डेट्रॉयट(मिशिगन) के एक समारोह में अपना प्रसिद्ध गीत "इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल,जग में रह जाएँगे प्यारे तेरे बोल " गाते हुए हृदयघात हो जाने से 27 अगस्त 1976 ई० को वे सदा के लिए अमर हो गए और रह गये तो सिर्फ उनके सुरीले बोल।
हिन्दी सिनेमा गायकी में उनका प्रवेश उनके दूर के रिश्तेदार प्रसिद्ध अभिनेता मोती लाल जी ने कराया था।इनके अविस्मर्णीय सहयोग से दिल्ली में पी डब्लू डी में असिस्टेन्ट सर्वेयर की नौकरी करने वाले मुकेश ने 1941 ई० में फिल्म "निर्दोष" से अपना कैरियर शुरू कर 1945 ई० में फिल्म "पहली नज़र" के प्रसिद्ध गीत "दिल जलता है तो जलने दे,आँसू ना बहा फरियाद ना कर" के द्वारा अपना जलवा पूरे फिल्मी जगत में फैला दिया और फिर इस उभरते सितारे का यादगार सफर तीन दशकों तक तीन सर्वकालिक महान अभिनेताओं #दिलीप कुमार,#राजकपूर और #मनोज कुमार की आवाज बनकर प्रसिद्धि के नित नए प्रतिमान गढ़ने लगा।तात्कालिक समय के पार्श्व गायकी के दिग्गज और अपने आदर्श कुन्दन लाल सहगल तथा पंकज मलिक की छत्रछाया से बाहर निकल कर हिन्दी सिनेमा की पार्श्व गायकी के स्वर्ण युग में मोहम्मद रफी और किशोर कुमार के अद्भुत गायकी के विशिष्ट दौर में अपनी अनमोल छाँप छोड़कर ट्रेजड़ी किंग दिलीप कुमार, हिन्दी सिनेमा के शो मैन राजकपूर और बेमिसाल सुपर स्टार मनोज कुमार की लगातार तीन दशकों तक आवाज बने रहना एक बेमिसाल कारनामें से कम नहीं था।तभी तो मुकेश के देहावसान पर शोक में डूबे शो मैन राजकपूर ने सार्वजनिक उदघोष करते हुए कहा था कि,"मैने अपनी आवाज सदा के लिए खो दी है।" राजकपूर अक्सर कहा करते थे कि," मैं तो बस शरीर हूँ मेरी आत्मा तो मुकेश है।"
संगीतकार नौसाद,अनिल विश्वास और शंकर जयकिशन के साथ मुकेश की अदभुत गायकी ने एक से बढ़कर एक अनमोल गीत भारतीय सिनेमा को दिए।मुकेश को अपनी लाजवाब गायकी के कारण 1959, 1970, 1972 और 1976 ई० में चार बार फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ तो 1974 ई० में फिल्म रजनीगंधा के गीत "कई बार यूँ भी देखा है" के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।
रोशन, कल्याणजी आनंदजी, लक्ष्मीप्यारे के साथ भी इनका काम उल्लेखनीय...3 फिल्मफेयर बेस्ट सिंगर में संगीत एस जे डुओ का व 1 में खय्याम का रहा है...
"किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार" से लेकर "सावन का महीना पवन करे शोर" और फिर "दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई" से लेकर "सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है" के सदाबहार गीतों को अपनी बेमिसाल गायकी से अमर कर देने वाले मुकेश केवल पल दो पल के शायर ही नहीं बल्कि हर पल के नायाब फनकार थे।इस सर्वकालिक महान पार्श्व गायक का उनके जन्मदिन पर शत शत नमन।
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