भुवन शोम फिल्म के माध्यम से निर्देशक ने हास्य नाटकीयता के द्वारा यह सिद्ध किया है कि, एक सिद्धांतनिष्ठ कडक प्रशासनिक अधिकारी को भी नारी सुलभ ममता द्वारा व्यावहारिक धरातल पर नर्म मानवीय व्यवहार बरतने हेतु परिवर्तित किया जा सकता है। रेलवे के प्रशासनिक अधिकारी भुवन शोम के रूप में उत्पल दत्त जी व ग्रामीण नारी गौरी के रूप में सुहासिनी मुले जी ने मार्मिक अभिनय किया है। प्रारम्भिक अभिनेत्री होते हुये भी परिपक्व अभिनेता उत्पल दत्त जी के साथ सुहासिनी मुले जी का अभिनय सराहनीय है। यह गौरी का ही चरित्र था जिसने उसके पति जाधव पटेल का निलंबन रद्द करने को भुवन शोम जी को प्रेरित कर दिया। ( साभार : Er S D Ojha . March 29 at 8:54pm https://www.facebook.com/sd.ojha.3/posts/1808246549501223 )
'नौकरी' फिल्म में शीला रमानी ने किशोर कुमार की नायिका की भूमिका का निर्वहन किया है। 1954 में भी देश में बेरोजगारी की समस्या विकट थी।किशोर कुमार ने एक मेधावी किन्तु गरीब बेरोजगार की भूमिका अदा की है। जबकि शीला रमानी एक समृद्ध पिता की पुत्री होते हुये भी किशोर कुमार की साथिन बनी हैं। किशोर कुमार जब एक नौकरी पा जाते हैं और अपनी सहृदयता के कारण एक बुजुर्ग की गलती को अपने ऊपर लेकर फिर नौकरी गंवा भी देते हैं तभी शीला रमानी अपने पिता का घर छोड़ कर वहाँ पहुँच जाती हैं। लाचार किशोर कुमार शीला रमानी को सोता छोड़ कर आत्म- हत्या के लिए निकल पड़ते हैं और वह रेल के सामने कूदते ठीक उसी वक्त शीला रमानी पीछे से पकड़ कर उनको खींच लेती हैं और उनका जीवन बच जाता है। यह घटना किशोर कुमार द्वारा पूर्व में एक अन्य बेरोजगार की इसी प्रकार जीवन रक्षा करने के सदृश्य घटित होती है। यह फिल्म आज़ादी के सात वर्ष बाद आई थी और आज उसके 64 वर्ष बाद बेरोजगारी की समस्या बेहद विस्फोटक हो चुकी है। नौकरी फिल्म में शीला रमानी द्वारा अभिनीत भूमिका के आज व्यवहार पाये जाने की कोई संभावना नहीं है फिर भी बेरोजगार युवक - युवती उनके अभिनय से प्रेरणा तो ले ही सकते हैं।
पारंपरिक भारतीय सौंदर्य की प्रतिमूर्ति नूतन हिन्दी सिनेमा की एक बेहद
प्रतिभाशाली और भावप्रवण अभिनेत्री रही हैं। परदे पर भारतीय स्त्री की
गरिमा, ममता, सहृदयता, विवशता, तकलीफ और संघर्ष को जिस जीवंतता से उन्होंने
जिया है, उसे देखना एक दुर्लभ सिनेमाई अनुभव रहा है। वे हिंदी सिनेमा की
पहली अभिनेत्री थी जो चेहरे से ही नहीं, बल्कि हाथ-पैर की उंगलियों से भी
अभिनय कर सकती थी। अपने दौर में 'मिस
इंडिया' रह चुकी नूतन ने कम उम्र में ही अपने फिल्मी सफर की शुरूआत 1950
में अपनी मां और चौथे दशक की अभिनेत्री शोभना समर्थ द्वारा निर्देशित फिल्म
'हमारी बेटी' से की थी, लेकिन उन्हें ख्याति मिली 1955 की फिल्म 'सीमा' से
जिसमें बलराज सहनी उनके नायक थे। इस फिल्म में नूतन ने चोरी के झूठे
इल्जाम में जेल में दिन काट रही एक विद्रोहिणी नायिका का सशक्त किरदार
निभाया था। नूतन ने सत्तर से ज्यादा फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा बिखेरा
था,, जिनमें कुछ प्रमुख फ़िल्में हैं - सीमा, हमलोग, आखिरी दाव, मंजिल,
पेइंग गेस्ट, दिल्ली का ठग, बारिश, लैला मजनू, छबीली, कन्हैया, सोने की
चिड़िया, अनाड़ी, छलिया, दिल ही तो है, खानदान, दिल ने फिर याद किया,
रिश्ते नाते, दुल्हन एक रात की, सुजाता, बंदिनी, लाट साहब, यादगार, तेरे घर
के सामने, सरस्वतीचंद्र, अनुराग, सौदागर, मिलन, देवी, मैं तुलसी तेरे आंगन
की, साजन की सहेली आदि। 'सुजाता' में अछूत कन्या के किरदार,
'सरस्वतीचंद्र' में नाकाम प्रेमिका और पीड़ित पत्नी के भावपूर्ण अभिनय और
'बंदिनी' में अभिनय की संपूर्णता के लिए वे सदा याद की जाएगी। अस्सी के दशक
में नूतन ने 'मेरी जंग', 'नाम' और 'कर्मा' जैसी कुछ फिल्मों में चरित्र
भूमिकाएं निभाई थी। उत्कृष्ट अभिनय के लिए उन्हें आधा दर्ज़न 'फिल्मफेयर'
पुरस्कार हासिल हुए थे। पुण्यतिथि (21 फरवरी) पर इस विलक्षण अभिनेत्री को
श्रधांजलि, उनकी फिल्म 'बंदिनी' के गीत की पंक्तियों के साथ !
मत खेल जल जाएगी कहती है आग मेरे मन की मैं बंदिनी पिया की चिर संगिनी हूँ साजन की मेरा खींचती है आँचल... मन मीत तेरी हर पुकार मेरे साजन हैं उस पार, मैं इस पार अबकी बार, ले चल पार ओ रे माझी, ओ रे मांझी !
रीना रॉय के 62 वें जन्मदिवस की पूर्व संध्या पर विविध भारती के कार्यक्रम में रीना रॉय द्वारा पूर्व - प्रस्तुत फौजी भाइयों के कार्यक्रम का पुनर्प्रसारण किया गया। गीतों का चयन और उनका परिचय जिस रूप में रीना रॉय द्वारा फ़ौजियों को संबोधित करते हुये दिया गया उससे उनके ज्ञान व मनोभावों का बोध होता है कि वह अपने कर्म के प्रति कितना जागरूक व ध्येयनिष्ठ रही हैं। एक गीत की प्रस्तुति में उन्होने कहा कि, उनका भागने का रोल था और वह गंतव्य से अधिक भाग गईं थीं जिस कारण धक्का देने में विलेन घायल हो गया जिसका उनको दुख हुआ कि, उन्हें यों भागना नहीं चाहिए था और फिर ' चित्रलेखा ' का मीना कुमारी पर फिल्माया ' संसार से भागे फिरते हो ' गीत प्रस्तुत किया। इससे उनके चयन की विषय- वस्तु और परिप्रेक्ष्य के प्रति उनकी जागरूकता का पता चलता है। प्रत्येक गीत इसी अंदाज़ में प्रस्तुत किया गया था।