Monday 14 December 2015

पुण्यतिथि (14 दिसम्बर) मानवीय संवेदना के गीतकार शैलेन्द्र को अश्रुपूर्ण नमन ------ कुलदीप कुमार 'निष्पक्ष '







हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें, हम दर्द के सुर में गाते हैं,
जब हद से गुज़र जाती है ख़ुशी, आँसू भी छलकते आते हैं.......! 

 पुण्यतिथि (14 दिसम्बर) पर श्वेत-श्याम पटल पर जीवन की रंगीन सच्चाई को उकेरने वाले मानवीय संवेदना के गीतकार शैलेन्द्र को अश्रुपूर्ण नमन्।

अपने गीतों में मानवीयता, समर्पण, प्रेम, विरह और भावनात्मकता को प्रमुखता देने वाले गीतकार शैलेन्द्र जी का कैरियर रेलवे इंजीनियर से शुरू हुआ था। उसी दौर में वह शासन विरोधी लेखों के कारण कई बार प्रताड़ित भी किये जा चुके थे। इसके बाद अगस्त आंदोलन में उन्हें जेल भी जाना पड़ा और उनके लेखनी की दिशा बदल गयी। इसके बाद उन्होंने अपने कविता में मजदूरों के हक़, प्रजातंत्र की असफलता, शासन की दमनपूर्ण एवं गलत नीतियों और भूख के विरुद्ध वर्ग संघर्ष की लड़ाई को प्रमुखता देने लगे। 'न्यौता और चुनौती' नामक उनके कविता संग्रह उनकी लेखनी के सशक्त उदाहरण हैं। उनके कविता 'जलता है पंजाब' 1947 की तत्कालीन राजनीति पर लिखी गयी है उसको पढ़कर राजकपूर साहब ने अपने फिल्मों के लिए लिखने को कहा। लेकिन शैलेन्द्र साहब ने मना कर दिया। लेकिन बेरोजगारी के कारण उन्हें सिनेमा की तरफ जाना पड़ा और उन्हें राजकपूर साहब ने अपनी फ़िल्म 'बरसात' के लिये लिखने का मौका दिया। इसके बाद शुरू हुआ सफर ऐसा सफर रहा जिसके बिना हिंदी फ़िल्मी गीतों का इतिहास अधूरा रह जाये। शैलेन्द्र, मुकेश, शंकर-जयकिशन, और राजकपूर की जोड़ी ने हिंदी सिनेमा को अतुलनीय गाने दिए।

आवारा हूँ, तू प्यार का सागर है, मेरा जूता है जापानी, दिल का हाल सुने दिलवाला, होठों पर सच्चाई रहती है, पूछों ना कैसे रैन बिताई, कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, रुला के गया सपना मेरा, रमैय्या वस्तावैया, सजनवा बैरी भये हमार, मुड़-मुड़ के न देख मुड़-मुड़ के, प्यार हुआ इकरार हुआ, सूर ना सजे क्या गाउँ, ये रात भींगी भींगी, अबकी बरस भेज भईया को बाबुल, भैया मेरे राखी के बंधन को, नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में, दिन ढल जाए, बरसात में हम तुमसे मिले सजन,ओ बसंती पवन जैसे गानों ने अपने समय में सभी को अपने रस से रसज्ञ किया।

मासूम दिल के शैलेन्द्र साहब ने अपनी जीवन की सारी पूँजी अपने निर्देशित फ़िल्म 'तीसरी कसम' में लगा दी थी।फ़िल्म बहुत अच्छी बनी थी। फ़िल्म को आज भी हिंदी सिनेमा के क्लासिकल फिल्मों में सबसे ऊपर रखा जाता है। लेकिन फ़िल्म बॉक्सऑफिस पर असफल हो गयी। शैलेन्द्र जी गहरे आर्थिक संकटों मे फंस गए, उनके फ़िल्म में काम करने वाले उनके करीबी लोगों ने भी अपने फीस में कुछ कमी नहीं की और ना ही किसी प्रकार से उनके सहायता के लिए आगे आये थें। और नाज़ुक मिज़ाज़ गीतकार जीवन की इस सच्चाई से टूट गया, बिखर गया और और संकटों के भँवर में उलझकर जीवन से हार गया।
नमन् मेरे प्रिय गीतकार को _/\_.

असली नकली चेहरे देखे
दिल पे सौ सौ पहरे देखे
मेरे दुखते दिल से पूछो
क्या क्या ख्वाब सुनहरे देखे
टूटा जिस तारे पे नज़र थी हमारी
सच है दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी....!



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