आज पुरानी राहों से कोई मुझे आवाज़ तो दे !:
भारतीय सिनेमा के महानतम अभिनेता, हिंदी सिनेमा के पहले महानायक दिलीप कुमार उर्फ़ युसूफ खान का उदय भारतीय सिनेमा की शायद सबसे बड़ी घटना थी। बगैर शारीरिक हावभाव के चेहरे और आंखों से भी अभिनय किया जा सकता है, यह साबित करने वाले देश के वे पहले अभिनेता थे। अपनी छह दशक लम्बी अभिनय-यात्रा में उन्होंने अभिनय की जिन ऊचाइयों और गहराईयों को छुआ, वह अद्भुत, असाधारण और अकल्पनीय था। सत्यजीत राय ने उन्हें ' The Ultimate Method Actor ' की संज्ञा दी थी। भारतीय उपमहाद्वीप में उनकी लोकप्रियता का आलम यह है कि पाकिस्तान सरकार ने वहां उनके पैतृक घर को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया हुआ है। फिल्मों में प्रेम की व्यथा की जीवंत अभिव्यक्ति के कारण उन्हें ' ट्रैजेडी किंग ' कहा गया, लेकिन 'कोहिनूर' 'आज़ाद' और 'राम और श्याम' जैसी फिल्मों में उन्होंने साबित किया कि हास्य भूमिकाओं में भी उनका कोई सानी नहीं है। 1941 में 'ज्वारभाटा' से अपनी फिल्मी पारी शुरू करने वाले दिलीप साहब ने साठ से ज्यादा फिल्मों में अभिनय के नए-नए प्रतिमान गढ़े। उनकी कुछ यादगार फ़िल्में हैं - मिलन, जुगनू, शहीद, नदिया के पार, हलचल, मेला, अंदाज़, दाग, बाबुल, दीदार, आरज़ू, संगदिल, आन, कोहिनूर, आज़ाद, शिक़स्त, मुसाफिर, फुटपाथ, अमर, उड़न खटोला, देवदास, नया दौर, यहूदी, मधुमती, पैग़ाम, मुग़ल-ए-आज़म, गंगा जमना, आदमी, लीडर, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम, संघर्ष, सगीना महतो, गोपी, मजदूर, सौदागर, मशाल, धर्म अधिकारी, शक्ति, क्रांति और कर्मा। मधुबाला के साथ उनका असफल प्रेम उस दौर की सबसे चर्चित प्रेम कहानियों में एक रही है। हाल में उनकी आत्मकथा ' The Substance And The Shadow' प्रकाशित और चर्चित हुई है जिसमें उन्होंने अपने जीवन के कई अनखुले पहलुओं पर रोशनी डाली है । सिनेमा में अप्रतिम योगदान के लिए उन्हें सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान 'दादासाहब फाल्के अवार्ड' से नवाज़ा गया।
दिलीप कुमार के जन्मदिन पर उनके लंबे और स्वस्थ जीवन की हार्दिक शुभकामनाएं !
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आज दिलीप साहब के जन्मदिन पर उनसे मुलाक़ात की बात ::
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दिलीप साहब का जन्मदिन मुबारक हो। हम उनके सुंदर,स्वस्थ,सुखद,समृद्ध
उज्ज्वल भविष्य एवं दीर्घायुष्य की मंगल कामना करते हैं।
आज दिलीप साहब के जन्मदिन पर उनसे मुलाक़ात की बात ::
1981 में मैं पाँच माह के डेपुटेशन पर अन्य लोगों के साथ होटल मुगल शेरेटन,आगरा से होटल हाई लैण्ड्स,कारगिल भेजा गया था। किन्तु एक साथी के साथ मैं जूलाई में बीच में ही वापिस लौट आया था।
उस समय होटल मुगल में 'विधाता' की शूटिंग सुभाष घई साहब के निर्देशन में चल रही थी। लॉबी में हो रही 'कुणाल महल' की दिलीप साहब की शूटिंग मैंने भी देखी थी। स्टाफ केफेटेरिया में पद्मिनी कोल्हापूरे के डायलाग-"मक्के की रोटी"की शूटिंग भी मैंने देखी थी। लेकिन ज़्यादातर मैं आफिस से गायब होकर शूटिंग देखने वालों में शामिल नहीं रहता था। एक रोज़ मेनेजमेंट ने पूरे स्टाफ के साथ फिल्म -टीम को चाय पर गार्डेन में आमंत्रित किया था। जेनरल मेनेजर सरदार नृपजीत सिंह चावला साहब ने वरिष्ठ अभिनेता जनाब यूसुफ खान साहब से मेरा परिचय कराते हुये कहा था -" दिलीप साहब मीट आवर सीनियर मोस्ट एम्प्लाई विजय माथुर" । दिलीप साहब ने बड़े ही उत्साह और आत्मीयता के साथ मुझसे हाथ मिलाया था। हमारे दूसरे साथी मुकेश भटनागर का परिचय जी एम साहब ने शम्मी कपूर साहब से करवाया था। ये दोनों महान अभिनेता जी एम साहब के अगल-बगल चल रहे थे।
(विजय राजबली माथुर)
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