जन्म तिथि : 14 फरवरी 1933 , पुण्य तिथि : 23 फरवरी 1969
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मधुबाला जब मात्र नौ वर्ष की ही थीं तब उनके पिता अताउल्लाह साहब का सम्पूर्ण व्यवसाय चौपट हो गया एवं एक दुर्घटना में में घर भी फुंक गया था। दाने-दाने को मोहताज़ होने की कगार पर उनका 13 सदस्यीय परिवार पहुंच गया था । अताउल्लाह साहब की साख इतनी खराब हो गई किकोई उन्हें कोई काम तक देने को तैयार नहीं था। मधुबाला 11 भाई-बहनों में पांचवें नंबर पर थीं जो देखने में बेहद दिलकश, चंचल और खूबसूरत लगती थीं । किसी हमदर्द की राय पर अताउल्लाह साहब नौ वर्षीय बालिका मधुबाला को स्टूडियो ले गये। मधुबाला को फौरन काम मिल गया - फिल्म ‘बसंत’ (1942) में । उनको मुमताज शांति की बेटी की भूमिका दी गई थी। मुमताज जहां बेगम देहल्वी बड़ी जल्दी बाल कलाकार के रूप में बेबी मुमताज नाम से मशहूर हो गईं। 1944 में ‘ज्वार भाटा’ की शूटिंग के दौरान प्रसिद्ध नायिका देविका रानी ने उनको मुमताज से मधुबाला बना दिया।
‘ज्वार भाटा’ के सेट पर ही 11 वर्षीय मधुबाला की हीरो दिलीप कुमार से मुलाकात हुई थी। दोनों की पुनः भेंट 1949 में ‘हर सिंगार’ के सेट पर हुई।1952 में ‘तराना’ को इनकी परफेक्ट लव कमेस्ट्री ने खासी कामयाबी दिलायी। फिर महबूब की ‘अमर’ (1954) की कामयाबी की वजह भी यही जोड़ी बनी।
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हमें काश तुमसे मुहब्बत न होती !
'भारत की वीनस' के रूप में चर्चित अभिनेत्री मधुबाला उर्फ़ मुमताज़ ज़हां देहलवी रुपहले परदे पर अपने स्वप्निल सौन्दर्य, दिलफ़रेब अदाओं तथा सहज और उन्मुक्त अभिनय के लिए जानी जाती है। उनकी तिरछी, रहस्यमयी मुस्कान उनके दौर का सबसे बड़ा मिथक बनी। परदे पर उनकी उपस्थिति का जादू ऐसा था कि उनकी औसत दरजे की फिल्म भी तिलिस्म की तरह दर्शकों को सिनेमा हॉल तक खींच लाती थी। उनकी मौत के दशकों बाद भी उनके चाहने वाले कम नहीं हुए हैं। बेबी मुमताज़ के नाम से उनकी पहली फ़िल्म 'बसन्त' 1942 में आई थी। देविका रानी ने उनके अभिनय से बहुत प्रभावित होकर उन्हें अभिनय की बारीकियां सिखाई और उनका नाम मधुबाला रख दिया। दो दशक लंबे फ़िल्मी सफ़र में मधुबाला की चर्चित फिल्में थीं - नील कमल, पारस, शराबी, हाफ टिकट, झुमरू, बरसात की रात, इन्सान जाग उठा, मुग़ल-ए-आज़म, कल हमारा है, हाबड़ा ब्रिज, चलती का नाम गाडी, फागुन, गेटवे ऑफ़ इंडिया, यहूदी की लड़की, राज हठ, शीरी फरहाद, मिस्टर एंड मिसेज 55, अमर, संगदिल, महल, दुलारी और ज्वाला। दिलीप कुमार के साथ असफल प्रेम, लाईलाज़ बीमारी के सदमे, तलाक़शुदा किशोर कुमार के साथ समझौते की शादी और किश्तों में घटी दर्दनाक मौत उनके जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव थे। उनकी समूची ज़िन्दगी हंसने की नाक़ाम कोशिश करती हुई एक उदास कविता की तरह थी। उनकी मुस्कान एक ऐसी परछाई जो वक़्त की खिड़की पर कुछ उदास धब्बे छोड़ सहसा अनुपस्थित हो जाती है। प्रेम की शाश्वत प्यास की प्रतीक मरहूम मधुबाला को उनके जन्मदिन (14 फरवरी) पर खेराज़-ए-अक़ीदत उनकी फिल्म 'अमर' के गीत को पंक्तियों के साथ !
न मिलता ग़म तो बर्बादी के
अफ़साने कहां जाते
अगर दुनिया चमन होती,
तो वीराने कहां जाते
तुम ही ने ग़म की दौलत दी,
बड़ा एहसान फरमाया
ज़माने भर के आगे
हाथ फैलाने कहां जाते !
(शकील बदायूंनी)
अफ़साने कहां जाते
अगर दुनिया चमन होती,
तो वीराने कहां जाते
तुम ही ने ग़म की दौलत दी,
बड़ा एहसान फरमाया
ज़माने भर के आगे
हाथ फैलाने कहां जाते !
(शकील बदायूंनी)
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मधुबाला जब मात्र नौ वर्ष की ही थीं तब उनके पिता अताउल्लाह साहब का सम्पूर्ण व्यवसाय चौपट हो गया एवं एक दुर्घटना में में घर भी फुंक गया था। दाने-दाने को मोहताज़ होने की कगार पर उनका 13 सदस्यीय परिवार पहुंच गया था । अताउल्लाह साहब की साख इतनी खराब हो गई किकोई उन्हें कोई काम तक देने को तैयार नहीं था। मधुबाला 11 भाई-बहनों में पांचवें नंबर पर थीं जो देखने में बेहद दिलकश, चंचल और खूबसूरत लगती थीं । किसी हमदर्द की राय पर अताउल्लाह साहब नौ वर्षीय बालिका मधुबाला को स्टूडियो ले गये। मधुबाला को फौरन काम मिल गया - फिल्म ‘बसंत’ (1942) में । उनको मुमताज शांति की बेटी की भूमिका दी गई थी। मुमताज जहां बेगम देहल्वी बड़ी जल्दी बाल कलाकार के रूप में बेबी मुमताज नाम से मशहूर हो गईं। 1944 में ‘ज्वार भाटा’ की शूटिंग के दौरान प्रसिद्ध नायिका देविका रानी ने उनको मुमताज से मधुबाला बना दिया।
‘ज्वार भाटा’ के सेट पर ही 11 वर्षीय मधुबाला की हीरो दिलीप कुमार से मुलाकात हुई थी। दोनों की पुनः भेंट 1949 में ‘हर सिंगार’ के सेट पर हुई।1952 में ‘तराना’ को इनकी परफेक्ट लव कमेस्ट्री ने खासी कामयाबी दिलायी। फिर महबूब की ‘अमर’ (1954) की कामयाबी की वजह भी यही जोड़ी बनी।
मधुबाला के पिता अतालुल्लाह खान हर हाल में मधु को दिलीप कुमार से दूर रखना चाहते थे।किन्तु दिलीप साहब के कहने पर के.आसिफ ने ‘मुगल-ए-आज़म’ की अनारकली के लिये मधु को साईन कर लिया।
उनके ही कहने पर बी.आर.चोपड़ा ने ‘नया दौर’ के लिये मधुबाला को साईन किया।किन्तु ग्वालियर शूटिंग के लिए न जाने से मधुबाला को फिल्म से निकाल दिया और उनकी जगह वैजयंती माला को ले लिया ।
मधुबाला और दिलीप साहब अपने-अपने कैरीयर में सफल हो गये।इस दौरान ‘मुगल-ए-आज़म’ भी बनती रही। दोनों सेट पर मिलते। इस फिल्म में एक ऐतिहासिक लव सीन भी फिल्माया गया जिसमें शहजादे दिलीप कुमार को एक परिंदे के पंख से अनारकली मधुबाला को प्यार करते हुए दिखाया गया है। बिना एक लफ़्ज बोले इतना पुरअसर लव सीन दोबारा क्रियेट नहीं किया जा सका है। इस फिल्म में मधुबाला ने अपनी खूबसूरती के अलावा अनारकली के किरदार में जान फूंकने के लिये अपना पूरा कौशल लगा दिया। ‘प्यार किया कोई चोरी नहीं की, छुप-छुप के आहें भरना क्या, जब प्यार किया तो डरना क्या...’ और ‘मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये...’ इन गानों में मधुबाला दिलीप कुमार को दिलीप कुमार से कहीं ज्यादा प्यार करती हुई दिखती है। सन 1960 में रिलीज़ हुई ‘मुगल-ए-आज़म’ सुपर-डुपर हिट हुई थी।
पहले 1954 में वासन की ‘बहुत दिन हुए’ की शूटिंग के दौरान मद्रास में मधु को खून की उल्टी हो चुकी थी। तब मधु को लंबे आराम और मुकम्मल चेक-अप की सलाह दी गयी थी। मगर मधु ने परवाह नहीं की थी। ‘मुगल-ए-आज़म’ की शूटिंग के दौरान भी मधु की तबीयत कई बार बिगड़ी थी। खासतौर पर उन सीन में जिसमें मधु को भारी-भारी लोहे की जंजीरों में जकड़ा हुआ दिखाया गया था। मगर सीन में जान फूंकने की गरज़ से मधु ने सब बर्दाश्त किया।उन्होने इसके बाद किशोर कुमार से शादी कर ली। किशोर के साथ मधु ने चलती का नाम गाड़ी, झुमरू, हाॅफ टिकट आदि कई हिट फिल्में की थीं।वस्तुतः यह किशोर साहब की दूसरी शादी थी।
किशोर को भी मधु की बीमारी का जानकारी थी। मगर इसकी गंभीरता का ज्ञान उन्हें भी नहीं था। मर्ज़ बढ़ता देख किशोर मधु को चेक-अप के लिये लंदन ले गये। वहां डाक्टरों ने बताया कि मधु के दिल में एक बड़ा सुराख है और बाकी जिंदगी दो-तीन साल है।
मधु मायके आ गयी। किशोर इलाज का खर्च उठाते रहे। महीने दो महीने में एक-आध बार आकर मिल भी लेते।
23 फरवरी, 1969 को इस जिंदगी से मधुबाला छुटकारा पा गईं । मधु की ख्वाहिश के मुताबिक उसके जिस्म के साथ-साथ उसकी उस पर्सनल डायरी को भी उसके साथ दफ़न कर दिया गया ।
मधुबाला ने लगभग 70 फिल्मों में काम किया जिनमें से 15 हिट रहीं । मुगले आज़म, हावड़ा ब्रिज, चलती का नाम गाड़ी, मिस्टर एंड मिसेज़ 55, जाली नोट, महल, तराना आदि फिल्में मधुबाला के प्रदर्शन का लोहा मनवाती हैं । उन्होने दिलीप कुमार, देवानंद, राजकपूर, गुरूदत्त, प्रदीप कुमार, अशोक कुमार, किशोर कुमार, जयराज, भारत भूषण, सुनील दत्त, रहमान, शम्मीकपूर आदि के साथ फिल्मों में काम किया था । अमेरिका की मशहूर पत्रिका ‘थियेटर आर्टस’ द्वारा अपने अगस्त, 1952 के अंक में मधुबाला को विशेष स्थान देने से सम्पूर्ण बालीवुड अवाक रह गया था। इनके पूर्व किसी भारतीय हीरोइन को विश्व प्रसिद्ध पत्रिका से ऐसा सम्मान नहीं मिला था। उनको ‘भारतीय सिनेमा की वीनस’ कहा जाता है लेकिन सन 2010 में उनकी कब्र को ध्वस्त कर दिया गया।
मधुबाला ने लगभग 70 फिल्मों में काम किया जिनमें से 15 हिट रहीं । मुगले आज़म, हावड़ा ब्रिज, चलती का नाम गाड़ी, मिस्टर एंड मिसेज़ 55, जाली नोट, महल, तराना आदि फिल्में मधुबाला के प्रदर्शन का लोहा मनवाती हैं । उन्होने दिलीप कुमार, देवानंद, राजकपूर, गुरूदत्त, प्रदीप कुमार, अशोक कुमार, किशोर कुमार, जयराज, भारत भूषण, सुनील दत्त, रहमान, शम्मीकपूर आदि के साथ फिल्मों में काम किया था । अमेरिका की मशहूर पत्रिका ‘थियेटर आर्टस’ द्वारा अपने अगस्त, 1952 के अंक में मधुबाला को विशेष स्थान देने से सम्पूर्ण बालीवुड अवाक रह गया था। इनके पूर्व किसी भारतीय हीरोइन को विश्व प्रसिद्ध पत्रिका से ऐसा सम्मान नहीं मिला था। उनको ‘भारतीय सिनेमा की वीनस’ कहा जाता है लेकिन सन 2010 में उनकी कब्र को ध्वस्त कर दिया गया।
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