Sunday, 18 September 2016

कोई ये कैसे बताए कि वो तनहा क्यूं है ? ------ ध्रुव गुप्त

Dhruv Gupt

कोई ये कैसे बताए कि वो तनहा क्यूं है ?
आधुनिक भारतीय सिनेमा की महानतम अभिनेत्रियों में एक शबाना आज़मी ने सिनेमा में संवेदनशील और यथार्थवादी अभिनय के जो आयाम जोड़े, उसकी मिसाल भारतीय सिनेमा में तो क्या, विश्व सिनेमा में भी कम ही मिलती है। अभिनय की गहराई ऐसी कि उनकी एक-एक ख़ामोशी सौ-सौ लफ़्ज़ों पर भारी। परदे पर उनकी ज़ुबान कम, आंखें ज्यादा संवाद करती हैं। महान शायर कैफ़ी आज़मी की इस बेटी को फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट, पुणे से ग्रेजुएशन के बाद जो पहली फिल्म मिली, वह थी ख्वाजा अहमद अब्बास की 'फ़ासला', लेकिन परदे पर पहले आई श्याम बेनेगल की 'अंकुर'। इस फिल्म की सफलता और ख्याति ने उन्हें उस दौर की दूसरी महान अभिनेत्री स्मिता पाटिल के साथ तत्कालीन समांतर और कला सिनेमा का अनिवार्य हिस्सा बना दिया। शबाना ने चार दशक लंबे फिल्म कैरियर में पचास से ज्यादा हिंदी, बंगला और अंग्रेजी फिल्मों में अपने अभिनय के झंडे गाड़े, जिनमें कुछ यादगार फिल्में हैं - अंकुर, परिणय, निशांत, मंडी, शतरंजके खिलाड़ी, स्पर्श, तहजीब, अर्थ, खंडहर, जुनून, मासूम, मृत्युदंड,गॉडमदर, मकड़ी, आर्तनाद, धारावी, दिशा,नमकीन, थोड़ी सी बेवफ़ाई, दस कहानियां, फायर, लिबास, कल्पवृक्ष, भावना, पार,अवतार, उमराव जान, एक ही भूल, साज़, हनीमून ट्रेवल्स, मटरू की बिजली का मंडोला, पतंग, द मोर्निंग रागा, 15 पार्क अवेन्यू, द मिडनाइट चिल्ड्रेन, द बंगाली नाईट, साइड स्ट्रीट्स आदि। उन्होंने आर्थिक दबाव में कुछ फिल्मों में बेमतलब की ग्लैमरस भूमिकाएं भी की थी, जिन्हें वे खुद भी भूल जाना चाहेंगी। शबाना आज़मी पहली अभिनेत्री हैं जिन्हें अपनी फिल्मों में अभिनय के लिए पांच राष्ट्रीय और आठ फिल्मफेयर पुरस्कार मिले। अभिनय के अलावा स्त्री और बच्चों के अधिकारों और मानवीय समस्याओं के लिए लड़ने वाली एक योद्धा के रूप में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा है।
जन्मदिन (18 सितंबर) पर आपके लंबे और सृजनशील जीवन के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं, शबाना ! #ShabanaAzmi

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