Saturday, 29 August 2020

रिया ने कुछ भी झूठ नही बोला : आवेश तिवारी ------ पवन करन / संतोष भारती





28-08-2020 
आज एक लड़के से बेहद प्यार करने वाली एक लड़की ने बिकी हुई मीडिया, बेशर्म राजनीति  और पुरुषवादी, सवर्णवादी समाज के  ताने बाने की बघिया उधेड़ कर रख दी। आज भारत देखेगा कि अर्नब के चेहरे पर कालिख पोत कर घूमता है कि नही? आज भारत देखेगा कि बिहार को नरक बना देने वाले  नेता अपना चेहरा पीटते हैं कि नही? आज भारत देखेगा कि देश के पुरुष, अपनी मां, अपनी बहन, अपनी पत्नी, अपनी प्रेमिका से आंख मिला पाते हैं या नही?
राजदीप ने आज जो करके दिखाया है वो उन्हें सबसे अलग कतार में खड़ा कर देता है। भुखमरी बेचारगी और एक अंतहीन होते जा रहे रोग से जूझते देश मे एक प्रेमी जोड़े की निजता को तार तार कर एक सरकार पर निशाना बना रही मीडिया को इस जैसे तमाचे की ही जरूरत थी। निस्संदेह आज का थप्पड़ अर्नब और अंजना को हमेशा याद रहेगा। इस इंटरव्यू को देखनेके बाद जो कोई रिया के खिलाफ बोले तो सोचो उसके भीतर कौन छुपकर बैठा है।
मुमकिन है कि कुछ लोगों को रिया के आंसू झूठे लग रहे होंगे। कुछ लोग कहेंगे झूठ बोल रही थी रिया। दरअसल ऐसा कहने वाले वो स्त्री पुरूष हैं जिन्होंने कुछ भी किया हो कम से कम प्रेम तो नही किया होगा। बतौर जर्नलिस्ट मैं दावे के साथ कह सकता हूँ रिया ने कुछ भी झूठ नही बोला। पाले हुए धूर्त जमात के पत्रकारों, बॉलीवुड के कलाकारों  ने रिया के नाम का इस्तेमाल करके बिहार चुनाव में मुद्दों को भटकाने की तो  कोशिश की ही और कोरोना के प्रबंधन में अपनी असफलता पर भी पर्दा डालने की कोशिश की है। 
अब बारी सुशांत के परिवार के साथ साथ अर्नब गोस्वामी और कंगना रनौत जैसों की है। सुशांत की बहनों को जवाब देना होगा सुशांत ने सुसाइड क्यों किया? अर्नब को बताना होगा कि ईडी से उसे रिया के पर्सनल चैट कैसे मिले? सुशांत के पापा बातायें 5 साल तकः बेटे से क्यों नही मिले? कंगना बताए इस मामले में प्रोपोगंडा फैलाने के लिए उसे क्या तोहफा मिला?
आवेश तिवारी

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लाउत्सु पर बोलते ओशो बताते हैं कि कैसे एक बार उन्हें न्यायाधीश बनाया गया। एक चोरी का मामला आया, चोर रंगे हाथों पकड़ा गया था, लेकिन लाउत्सु ने जितनी सजा चोर को दी उतनी ही उस धनिक को भी जिस के यहां चोरी हुई। बड़ा अजीब लगा, लाउत्सु बोला कि किसी को चोरी करनी पड़ती है क्योंकि किसी ने जरूरत से अधिक जमा कर लिया है। ऐसे जुर्म में दोनों बराबर भागीदार हैं।
भारत का संविधान कहता है कि 99 दोषी बच जाये कोई बात नहीं, कोई निर्दोष नहीं फसना चाहिए। जब तक आरोप सिद्ध नहीं होता, व्यक्ति को निर्दोषी ही माना जाये, अपराधी नहीं। न्याय व्यवस्था, पुलिस, जांच एंजेसियों का अपना काम है, लेकिन खबरिया चैनल ने अपनी ग्राहकी बढ़ाने के लिए जितना अमानवीय काम लगातार किया है, उतना कोई दूसरा अपराध नहीं दिखाई देता है। आरूषी कांड में रात-दिन जो कुछ दिखाया गया, उस छोटी-सी बच्ची का जैसे चीरणहरण हुआ, उसके जिंदा माता-पिता को जिंदा लाश बना दिया गया...सिर्फ टी आर पी के लिए? 
हमारे देश में सेक्स बिकता है, जहां भी सेक्स के आसपास की कोई खबर है बस...याद है शीना बोरा, इंद्राणी मामला, सेक्स, स्त्री, मर्डर, चर्चित लोग...ये मसाले हैं टी आर पी में उछाल के गरमा-गरम मामले। लेकिन इस में इंसानियत पूरी तरह से नदारद, किसी को नहीं पड़ी कि एक इंसान की जिंदगी को यूं रोज-रोज तार-तार करना कितना बड़ा गुनाह है।
अब इन दिनों सुशांत का मामला चल रहा है। क्या कोई यह कह सकता है कि इन टी वी चैनल्स को सच में उसकी मृत्यु को लेकर कोई हमदर्दी हैं? राजनीति है, राजनीति फायदे का गणित है, सरकार को गिराने की जोड़-तोड़ है, किसी को बदनाम करने की कुटील चाले हैं, कोई भी कुछ भी बोल रहा है, किसी भी तरह का निम्न से निम्न आरोप लगाने में देर नहीं कर रहा...किसी को नहीं पड़ी कि जिस पर आरोप लगा रहे हो, उसकी जिंदगी का क्या होगा? 
मेरे देखे बात इतनी-सी है कि सुशांत को मानसिक परेशानी थी, यह आम बात है, भावुक, हृदय तल से जीने वाले, संवेदनशील, भोले, निर्दोष, सृजनकार अकसर मानसिक परेशानियों से गुजरते हैं...ये दुनिया या बहुसंख्यक या समाज की व्यवस्था ऐसे लोगों को असहनीय हो जाती है। वे अनफिट हो जाते हैं। एक विदेशी युवती के प्रश्न पर ओशो ने बताया कि संवेदनशील लोगों को आत्महत्या करनी पड़ती है क्योंकि उनका दम घुटता है...।
सुशांत अपनी मां से बहुत जुड़े हुए थे। भारत में यह आम बात है, मां के जाने के बाद अचेतन मन की कई पर्तें ऊपर आ जाती हैं। मैं स्वयं इस तरह के दौर से गुजरा हूं। कह सकता हूं कि मरते-मरते बचा। मैं भी ऐलोपैथी के चक्कर में पड़ा, लेकिन बहुत जल्दी ही मुझे लगा कि बीमारी को दबाने से काम नहीं चलेगा, उसे बाहर निकालना होगा तब सक्रिय ध्यान, मिस्टिक रोज, जिबरीश और अन्य इंटेस प्रयोग किये और मैं सामान्य हो गया...ऐलोपैथी की दवाइयां मामले को जटिल कर देती हैं।
रिया चक्रवर्ती एक सामान्य युवती है जिसे संयोग से किसी टी वी कार्यक्रम में सफलता मिली, फिर वह आगे बढ़ने लगी, लेकिन पक्का वह एक भोली युवती है, मासूम। सुशांत से उसका रिश्ता बन गया...किसी न किसी तल पर दोनों एक जैसे थे, बात बन गई, लेकिन सुशंात की मानसिक परेशानियां थीं...अब अंकिता लोखंड़े सालों पहले के वीडियो या जानकरियां लेकर आ रही है...हो सकता है कि उन दिनों में सुशांत की बीमारी ऊपर नहीं आई हो। नयी-नयी सफलता मिली थी, प्रसिद्धी मिली थी, स्टारडम मिली थी, प्रेम हुआ था...इसमें मानसिक परेशानियां दब जाती है...लेकिन समय के साथ सारी चकाचौंध फीकी पड़ने लगी, जीवन की कड़वी सच्चाइयां सामने आने लगी, फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश तो मिल गया लेकिन वहां जमे रहने में दिक्कतें आने लगी...महत्वाकांक्षाएं बढ़ने लगी...अनेक बातें हैं...ऐसे में मन हताश होने लगा, उदास होने लगा, गुस्सा आने लगा, अवसाद फिर सिर उठाने लगा...और वही ऐलोपैथी की दवाइयां...
रिया ने अपनी तरफ से जो कुछ भी कर सकती थी, किया, प्रेम था, वह भावुक युवती है, उसके अपने सपने थे, उसकी अपनी उड़ान थी, प्रेमी था, उसकी सफलता का मजा था, लेकिन उसकी कठिनाइयों के अवरोध भी...हर रिश्ता शुरू बड़े इंद्रधनुषी रंग लेकर आता है, लेकिन समय के साथ रंग उड़ने लगते हैं...सफलताएं-असफलताएं, मानसिक रोग, गुस्से, शिकायतें, नकारात्मकता, खीज, दुख...ये किसी भी रिश्ते में जहर घोल देते हैं...दोनों को लगता है कि दूसरा मेरे दुखों के लिए जिम्मेदार है...तब तानाकशी, दोष मढ़ना, नीचा दिखाना, लड़ाई-झगड़े...बीच-बीच में कुछ अच्छे पल भी विशेषकर शारीरिक रिश्ते...उसमें प्रकृति अपना काम करती है...लेकिन सच बहुत अलग हो जाता है।
मुझे सुशांत-रिया का रिश्ता बेहद आम रिश्तों की तरह ही लगा, अधिकांश रिश्ते ऐसी ही पगडंडियों से गुजरते हैं औैर समय के साथ नई राहें निकल आती है...सुशांत का मां से जैसा लगाव था, उसे हर प्रेमिका में मां दिखती होगी, वह चाहता होगा कि उसकी प्रेमिका उसे मां की तरह संभाले...सामान्यतया लड़कियां ऐसा कर भी लेती हैं, लेकिन हर समय मां बने रहना तो संभव नहीं होता, वे प्रेमिका भी होती हैं...जब उनका वह पक्ष संतुष्ट नहीं होता तो दम घुटने लगता है...उन्हें एक मजबूत मर्द साथी की जरूरत होती है न कि कमजोर बच्चा जिसे रोज लोरी सुनानी पड़े...प्यार के होते लोरी सुना देती है, लेकिन कौन युवती होगी जो एक बच्चे को गोदी में लेकर बैठी रहे, लोरी ही सुनाती रहे? दिक्कतें रिश्तों में आती हैं...हर रिश्ता मधुर शुरू होता है, कडवाहट के साथ समाप्त होता है...!
बात बस इतनी-सी है...आत्महत्या, राजनीति, टी आर पी...रिया चक्रवर्ती माफ करना बेटी, न चाहकर भी तुम इस जहर कुंड में गिर चुकी हो या तुम्हें धकेला गया है...तुम्हारा इंटरव्यू सुना, तुम्हारे लिए मन उदास हो गया, रात नींद आना मुश्किल हो गई...तुम्हारी वेदना का कुछ अंश मेरे जैहन में घुलता चला गया...माफ करना बेटी।
हां, जब तुम्हें पूछा गया कि सुशांत से प्रेम करने का कोई पछतावा होता है--तुम तपाक से बोली, नहीं, कतई नहीं। सच कहूं उस समय लगा तुम्हारे पैर छू लूं। जो होगा, होगा, तुम्हारे प्रेम को नमन करता हूं।
निवेदन अगर अच्छा लगा हो तो शेयर करें... रिया की जिंदगी का सवाल है
इंसानियत के नाते जो कुछ किया जा सके
https://www.facebook.com/santosh.bharti.5095/posts/10157783906699037?__cft__[0]=AZXZHYMku4tSn7zhW0hAe0vDZpmdsCOO8hkZdpw5ec57kNHmyOuF58bJtZ_3ajZdXqt_2ODZCUTRzYc4YVNMCRRFpWBYO8h2ba81-1ACyqlFrKlYKEELGB8pMrfjN8SkDmO7vZeXeYUT8BKJcSB16MC46-_MFg_skd9-6SQgge0u-g&__tn__=%2CO%2CP-R

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