Saturday 24 October 2015

पुण्य तिथि :मन्ना डे - तू प्यार का सागर है… - वीर विनोद छाबड़ा

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Vir Vinod Chhabra

मन्ना डे - तू प्यार का सागर है…
- वीर विनोद छाबड़ा 
प्रबोध चंद्र डे उर्फ मन्ना डे की आज पुण्य तिथि है। 

ऐ मेरे प्यारे वतन...ये कहानी है दिये और तूफ़ान की...ये रात भीगी-भीगी...प्यार हुआ इकरार हुआ...रमैया वता वैया....मुस्कुरा लाड़ले मुस्कुरा, कोई भी फूल नहीं है तुझसा खूबसूरत...याला-याला दिल ले गयी...ऐ मेरी ज़ोहरा जबीं...कौन आया मेरे दिल के द्वारे....पूछो ना कैसे मैंने रैन बिताई...लागा चुनरी में दाग़ ...झनक झनक मोरी बाजे पायलिया...किसने चिलमन से मारा…ऐ भाई ज़रा देख के चलो...चलत मुसाफिर ले लियो पिंजरे वाली मुनिया...मस्ती भरा ये समां है...कस्मे वादे, प्यार-वफ़ा सब....ना मांगू सोना-चांदी....फिर न कहना माईकल दारू पीके दंगा करता है.…प्यार की आग में तन-बदन जल गया...हंसने की चाह न मुझे....तुझे सूरज कहूं या चंदा...फुल गेंदवा ना मारो...तू प्यार का सागर है....अभी तो हाथ में जाम है.…आदि बेशुमार अमर नग़मों के गायक प्रबोध चंद्र डे घरेलू नाम ’मन्ना’ डे के नाम से विख्यात हुए।

मन्ना सोलो में ही युगल गानों के भी उस्ताद रहे। लता जी के साथ सौ से अधिक युगल गाये। मस्ती भरा ये समां है...नैन मिले चैन कहां...तुम गगन के चंद्रमा हो, मैं धरा की धूल हूं...दिल की गिरह खोल दो...चुनरी संभाल गोरी...आदि अप्रितम गायन की सीमा हैं। 
आशा के साथ भी मन्ना की जोड़ी भी खूब जमी। ये हवा, ये नदी का किनारा...तू छुपी है कहां मैं तड़पता यहां....जोड़ी हमारी जमेगा कैसे जानी...न तो कारवां की तलाश है....जिंदगी है खेल, कोई पास कोई फेल...आज भी जु़बान पर हैं। 
मोहम्मद रफी के साथ भी मन्ना ने अनगिनित गीत गाये। बड़े मियां दीवाने ऐसे न बनो...दो दीवाने दिल के...आदि के दीवाने तो आज भी हैं। 
मन्ना ने किशोर कुमार के साथ भी खूब गाया। बाबू समझो इशारे, हारन पुकारे....एक चुतर नार करके श्रंगार...तो आज भी याद हैं। 'पड़ोसन' के ‘एक चतुर नार...’ के बाद मन्ना की किशोर से अनबन हो गयी थी। दरअसल, किशोर क्लासिकल गाने के माहिर नहीं थे। बताते हैं, मन्ना ने ही उनको खूब रियाज़ कराया। लेकिन जब अंततः रिकार्ड सामने आया तो मन्ना को लगा कि उन्हें जान-बूझ कर किशोर से हारा हुआ प्रोजेक्ट किया गया है। बाद में बामुश्किल मन्ना की ग़लतफ़हमी दूर की गयी कि वो हार उनकी नहीं क़िरदार की थी। उन्होंने किशोर के साथ फिर से कई गाने गाये। इसमें यह गाना तो बेहद पापुलर हुआ- ये दोस्ती हम नहीं छोडेंगे....। मन्ना ने लता व आशा के साथ सौ से ज्यादा और रफी व किशोर के साथ पचास से ज्यादा जुगलबंदियां कीं।
मन्ना के प्रेरणा स्त्रोत उनके चाचा विख्यात संगीतज्ञ-गायक के.सी.डे रहे। वो जन्मांध थे। उनकी मदद के वास्ते ही मन्ना कलकत्ता से मुंबई आए थे। शास़्त्रीय संगीत में मन्ना की पकड़ इतनी अच्छी थी कि महापंडित भीमसेन जोशी भी उनके गायन के मुरीद थे। मन्ना को एकल गाने का पहला ब्रेक १९४३ में मिला। हुआ यों कि ‘राम राज्य’के लिये के.सी. डे को प्लेबैक का ऑफर मिला। लेकिन उन्होंने मना कर दिया कि अपनी आवाज़ किसी अन्य एक्टर को उधार नहीं दे सकता। तब उनके साथ आये मन्ना से डायरेक्टर विजय भट्ट और संगीत निर्देशक शंकर राव व्यास ने बात की। तनिक झिझक के बाद वो तैयार हो गए। ये गीत था- गयी तू गयी, सीता सती...। 
मन्ना किसी एक एक्टर की आवाज़ नहीं रहे। उनके एक से बढ़ कर एक मशहूर गाने राजकपूर, देवानंद, शम्मीकपूर, बलराज साहनी, राजकुमार, अशोक कुमार, प्राण सरीखे नामी अभिनेताओं पर फिल्माए गये। हालांकि कोशिश ज़रूर हुई कि उन्हें सिर्फ आगा, अनूप कुमार, महमूद आदि कामेडियन की आवाज़ तक सीमित रखा जाए। 
कहा जाता है कि किसी भी गायक को कॉपी करना आसान है मगर मन्ना की आवाज़ की जस-की-तस कॉपी करना नामुमकिन रहा। भला भी आत्मा से निकली आवाज़ की कभी कॉपी हो सकती है। 
हर इंसान के कैरीयर का अंत सुनिश्चित है।चाहे वो छोटा हो या बड़ा। नए-नए गायकों के आने के कारण साठ के दशक का अंत आते-आते मन्ना की डिमांड घटने लगी। सत्तर के दशक में उन्होंने कम गाया। अस्सी के दशक में उन्हें न के बराबर काम मिला। अंततः उन्होंने फिल्म इंडस्टी को अलविदा कह दी। 
फुटबाल, क्रिकेट, कुश्ती व पतंगबाजी के बेहद शौकीन मन्ना ने संगीत से शास्त्रीयता व मिठास को गायब होते देख २००१ में मंबई को अलविदा कह दिया और छोटी बेटी सुमिता के घर बैंगलौर आ गए। उन्हों साठ से ज्यादा साल तक गायन को अपनी आत्मा दी थी। 
बांग्ला में प्रकाशित ‘जीबोनेर जलसा घरे’उनकी आत्मकथा है जो हिंदी में ‘यादें जी उठीं’के नाम से प्रकाशित हुई। पद्मश्री, पद्मविभूषण, दादा साहब फालके, फ़िल्मफे़यर लाईफ़टाईम आदि अनेक अवार्ड उन्हें मिले। मगर हर बार यही दिखा कि इससे मन्ना नहीं अपितु अवार्ड का मान बढ़ा। अवार्ड उनकी बहुआयामी प्रतिभा व व्यक्त्वि के समक्ष हमेशा बौने रहे। 
मन्ना डे का जन्म ०१ मई १९१९ को कलकत्ता में हुआ था और २४ अक्टूबर २०१३ को बंगलूर में अमर आवाज़ों की दुनिया का ये जादूगर दुनिया के समक्ष ये पहेली छोड़ कर परमात्मा में विलीन हो हो गया- ज़िंदगी कैसी है पहेली...। 
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२४-१०-२०१५

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