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किशोर फिल्म्स द्वारा 1964 में रिलीज़ हुई 'दूर गगन की छाँव में ' किशोर कुमार द्वारा लिखित, निर्देशित व संगीतबद्ध एक ऐसी सामाजिक फिल्म है जिसमें ' शंकर ' के रूप में मुख्य भूमिका भी किशोर कुमार जी ने ही निभाई है। उनके पुत्र अमित गांगुली ही इस फिल्म में भी उनके पुत्र 'रामू' की भूमिका में हैं। अन्य महत्वपूर्ण भूमिका 'बंसी काका' व 'मीरा ' की हैं। मीरा के रूप में सुप्रिया चौधरी की भूमिका अविवाहित होते हुये भी एक स्नेहिल माँ के चरित्र को बखूभी निभाने वाली रही है। करुणा, दया और वीरता-दृढ़ता की साक्षात मूर्ती है -मीरा। हर चरित्र में सुप्रिया चौधरी खरी उतरी हैं। माँ को खो चुके और उसी सदमे में गूंगे होने वाले बालक रामू को ऐसा मातृत्व दिया है मीरा ने कि वह अपने पिता के बाद मीरा को ही महत्व देने व चाहने लगा है । शैलेंद्र के लिखे और आशा भोंसले के गाये गीत :' खोया खोया चंदा ' पर सुप्रिया चौधरी का वात्सल्य प्रेम देखिये ( इस वीडियो द्वारा ) :
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फिल्म के सभी गीतों की संरचना शैलेंद्र द्वारा की गई है और गाये हैं- किशोर कुमार, आशा भोंसले, मन्ना डे व हेमंत कुमार ने।
अन्य कलाकारों में लीला मिश्रा 'जमुना काकी' के रूप में मीरा की संरक्षिका हैं, मोनी चटर्जी गाँव के डाक्टर बने हैं, नाना पलसिकर ने 'पगला' की भूमिका में रामू को जो सहयोग दिया है वह सराहनीय है। शोषक-उत्पीड़क जमींदार 'ठाकुर' की भूमिका में हैं राज मेहरा और उनके पुत्रों की भूमिका में क्रमशः इफ़्तेखार 'जग्गा' तथा साजन 'छोटा बेटा ' बने हैं। ठाकुर के मित्र 'विक्रम ' की भूमिका में हैं - हीरा लाल।
जीवन कला, एस एन बनर्जी, केसरी, शमशेर सिंह, नन्द किशोर ने भी अपनी-अपनी भूमिकाओं के साथ पूरा न्याय किया है।
फिल्म के प्रारम्भ में दिखाया गया है कि बंसी काका पर आश्रित रामू नित्य अपने पिता की वापिसी का इंतज़ार करता है जो कि सेना में युद्ध पर गया हुआ है। अंततः शंकर युद्ध की समाप्ति पर छुट्टी लेकर जब गाँव आता है तो उसे बंसी काका से पता चलता है कि तूफान आने पर उसके घर में लगी आग से घिरी रामू की माँ को बचाने के चक्कर में उसके पिता और पत्नी दोनों दिवंगत हो चुके हैं। इसी सदमे ने रामू की आवाज़ छीन ली है।
शंकर अपनी जायदाद बंसी काका को सौंप कर रामू को लेकर इलाज करवाने के लिए शहर की ओर चलता है लेकिन मार्ग में ठाकुर और उसके गुंडों द्वारा उस पर पीछे से हमला करके घायल कर दिया जाता है। रामू द्वारा उधर से गुज़र रही मीरा से इशारों द्वारा मदद की गुहार करने पर वह घायल शंकर को डाक्टर के चिकित्सालय पर ले जाती है और फिर अपने घर पर शरण देती है। रामू का मन मोह व दिल जीत चुकी मीरा स्वाभिमानी शंकर को रामू का वास्ता देकर वहाँ ठीक होने तक रहने को रोक लेती है। ठीक होने के बाद शंकर डाक्टर के कहने पर रामू के इलाज के वास्ते शहर के बड़े डाक्टर के पत्र के इंतज़ार में मीरा के घर रुका रहता है और उसके घर के उपकरण, छत आदि की मरम्मत कर देता है। एक दिन बाज़ार जाने पर रामू के लिए खिलौना पिस्तौल व बांसुरी ला देता है। बांसुरी बजा कर रामू अपने पिता को गाने के लिए कहता है। उस अवसर पर मार्मिक व वास्तविक यथार्थ पर आधारित यह गीत शंकर की भूमिका में गाया गया खुद किशोर कुमार जी के स्वरों में :
एक सैनिक के नाते जो कर्मठता व स्वाभिमान होना चाहिए वह तो शंकर में है ही तभी तो रामू को भूख लगने पर भी दूसरी जगह खाना न मांगने की सीख देना वह नहीं भूले हैं लेकिन संतान के प्रति वात्सल्य प्रेम से भी वह वंचित नहीं है। इस गीत के माध्यम से किशोर कुमार जी ने 'गम' और 'दुख' से परे प्यार-प्रेम व आज़ादी से परिपूर्ण समाज की परिकल्पना की है जो आशावाद पर आधारित हो; 'शिकवा' , 'गिला ',बैर - विरोध रहित हो। गमों के आघात से पीड़ित एक मनुष्य की कामना है कि समाज से अंधकार दूर हो और सौहाद्र व स्वतन्त्रता सबका संबल बनें। एक आदर्श समाज का स्वप्न प्रस्तुत करके निर्माता -निर्देशक के रूप में किशोर कुमार जी ने अपनी दूरदर्शी और पारखी बुद्धि का अद्भुत आभास इस फिल्म के माध्यम से दिया है। ठाकुर परिवार के माध्यम से जमींदारों के शोषण, उत्पीड़न और लुटेरी प्रवृत्ति को सजग रूप में प्रस्तुत किया गया है।
जहां समाज की विकृति को इंगित किया है वहीं इसी समाज में उपलब्ध नेक इन्सानों के रूप में बंसी काका व मीरा के चरित्रों के माध्यम से किशोर कुमार जी ने समाज के उज्ज्वल पक्ष पर सहज व सरल रूप से प्रकाश डाला है। 51 वर्ष व्यतीत होने के बावजूद यह फिल्म आज भी एक आदर्श समाज की परिकल्पना हेतु मार्ग-दर्शक के रूप में उचित प्रतिनिधित्व करती हुई प्रासांगिक प्रतीत होती है।
हालांकि अन्य फिल्मों की ही भांति इसमें भी पाखन्ड व अंध-विश्वास का थोड़ा पुट तब आता है जब शंकर को विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा रामू की आवाज़ लौटाने में असमर्थता व्यक्त की जाती है और धन की चोरी हो जाती है। किन्तु मीरा के पास पुनः वापिस आने पर शंकर ने जब 'भगवान' का ज़िक्र किया है तब अप्रत्यक्ष रूप से मीरा की ओर ही इशारा करते दर्शाया गया है। एक और हादसे के बाद जब रामू की आवाज़ वापिस लौट आती है तब जितनी प्रसन्नता शंकर को होती है उतनी ही प्रसन्नता मीरा को भी होती है । रामू द्वारा मीरा को माँ सम्बोधन की अनुमति शंकर द्वारा दे दी जाती है। यद्यपि मीरा ने शंकर व रामू की सेवा निस्वार्थ की थी किन्तु उसको उसका वाजिब हक मिल ही गया।
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