Sunday, 31 January 2016

सुरैया की पुण्यतिथि (31 जनवरी) पर ------ Dhruv Gupt

**


ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता !
पिछली सदी के चौथे और पांचवे दशक की अभिनेत्री तथा गायिका सुरैया भारतीय सिनेमा की पहली 'ग्लैमर गर्ल' मानी जाती है। वे अपने अभिनय के अलावा अपने शालीन सौंदर्य और मर्यादित, दिलफ़रेब अदाओं के लिएभी चर्चा में रही। उनका रहस्यमय आभामंडल ऐसा था कि देश के कोने-कोने से लोग उनकी एक झलक पाने के लिए कई-कई दिनों तक उनके घर के आसपास पड़े रहते थे। देवानंद के साथ उनका असफल रिश्ता, उनका अविवाहित तथा एकाकी जीवन और उनकी गुमनाम मौत बॉलीवुड की सबसे दर्दनाक और त्रासद प्रेम कहानियों में एक रही है। नायिका के तौर पर उनकी पहली फिल्म 'तदबीर' 1945 में आई थी। सुरैया की अन्य चर्चित फिल्मे थीं - उमर खैयाम, विद्या, परवाना, अफसर, प्यार की जीत, शमा, बड़ी बहन , दिल्लगी, वारिस, विल्बमंगल, रंगमहल, माशूका, मालिक, जीत, खूबसूरत, दीवाना, डाकबंगला, अनमोल घडी, मिर्ज़ा ग़ालिब और रुस्तम सोहराब। अभिनेत्री के अलावा सुरैया अपने दौर की बेहतरीन गायिका भी थी जिनकी खनकती, महीन, सुरीली आवाज़ के लाखों मुरीद आज भी हैं। संगीतकार नौशाद ने पहली बार उन्हें फिल्म 'शारदा' में गाने का मौका दिया था। उनके कुछ बेहद लोकप्रिय गीत हैं - तू मेरा चांद मैं तेरी चांदनी, जब तुम ही नहीं अपने दुनिया ही बेगानी है, तुम मुझको भूल जाओ, ओ दूर जानेवाले वादा न भूल जाना, धड़कते दिल की तमन्ना हो मेरा प्यार हो तुम, नैन दीवाने एक नहीं माने, सोचा था क्या क्या हो गया, वो पास रहे या दूर रहे नज़रों में समय रहते हैं, मुरली वाले मुरली बजा, तेरे नैनो ने चोरी किया मेरा छोटा सा जिया, नुक्ताचीं है गमे दिल उसको सुनाए न बने, दिले नादां तुझे हुआ क्या है, ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाले यार होता, ये कैसी अज़ब दास्तां हो गई है, ऐ दिलरुबा नज़रे मिला आदि। सुरैया की पुण्यतिथि (31 जनवरी) पर खिराज-ए-अक़ीदत, फिल्म 'शमा' के लिए कैफ़ी आज़मी की लिखी और उनकी गाई मेरी पसंदीदा ग़ज़ल के साथ !
धड़कते दिल की तमन्ना हो मेरा प्यार हो तुम 
मुझे क़रार नहीं जब से बेक़रार हो तुम
जो दिल की राह से गुज़री है वो बहार हो तुम
वो ग़म हसीन है जिस ग़म के ज़िम्मेदार हो तुम


खिलाओ फूल कहीं भी किसी चमन में रहो 
ज़हे नसीब अता की जो दर्द की सौगात 

************************************************************************************************

Thursday, 28 January 2016

सुमन कल्याणपुर : 28 जनवरी 1937-- Shashank Mukut Shekhar

***


Suman Kalyanpur is an Indian singer. She was born on January 28, 1937 in Dhaka, British India. In 1943, her family moved to Mumbai, where she received her musical training. She is married to Ramanand S. Kalyanpur.
Suman Kalyanpur
Birth name Suman Hemmady
Born  January 28, 1937 (age 76)
Dhaka, Bangladesh
Genres Indian classical music, playback singing
Occupations Singer
Years active 1954--1981



सुमन कल्याणपुर (1937 -present ):

दुनिया में कुछ लोग होते हैं जिनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती है बल्कि उनसे सभी की तुलना की जाती है उन्हीं लोगों में से एक हैं लताजी ! यानि लता मंगेशकर । भारतीय फिल्म संगीत में लता जी की आवाज का कोई सानी नहीं है। एक नाम और है जिसकी आवाज में वही खनक एवं मधुरता है जो लता जी की आवाज़ में है। वो नाम है सुमन कल्याणपुर। बहुत कम लोग पहचान पाते हैं कि जो गीत वो लता जी का गाया समझ कर सुन रहे हैं वो असल में सुमन जी का गाया हुआ होता है। ऐसा ही एक गीत है "ना तुम हमें जानो ना हम तुम्हें जाने" फिल्म बात एक रात की का है इसके संगीत कार सचिन दा हैं। सुमन जी के गाए कुछ और गीत हैं -"छोडो मोरी बइयां", "मेरे महबूब न जा", "बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बांधा है" आदि । फिल्म "ब्रम्हचारी" के एक गीत "आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर ज़बान पर " में तो संदेह हो जाता है कि रफ़ी साहब के साथ लता जी हैं पर ये गीत सुमन जी का गाया हुआ है। खैर जो भी हो परन्तु आवाज़ की दृष्टि से लता जी के समान यदि किसी ने आवाज़ पाई है तो वो है सुमन कल्याणपुर।
सुमन कल्याणपुर का जन्म 28 जनवरी 1937 को ढाका में हुआ था, जहाँ पर वो 1943 तक रहीं। एक समय था जब लता और आशा की चमक के आगे दूसरी सभी गायिकाओं की चमक फीकी पड़ जाया करती थी। उस समय के सभी कम चर्चित पार्श्वगायिकाओं में सुमन कल्याणपुर ही थीं जिन्होंने सब से ज़्यादा गीत गाये और सब से ज़्यादा लोकप्रियता भी पायी। उनकी आवाज़ लता जी की तरह होने की वजह से जहाँ उन्हें कई अवसर मिले पर साथ ही वो उनके लिए रुकावट भी सिद्ध हुई। सुमन जी के ससुराल वालों ने भी उन्हें जनता के समक्ष आने का ज्यादा मौका नहीं दिया और वो गायन छोड़ने को मजबूर होकर गुमनामी में चली गयीं।
पहले लता मंगेशकर फिर शमशाद बेगम और मुबारक बेगम से होते हुए ‘कहि देबे संदेस’ का विदाई गीत ‘मोर अंगना के सोन चिरैया वो नोनी’ अंततः आया सुमन कल्याणपुर के हिस्से में। इसका खुलासा भी बड़ा रोचक है। निर्माता-निर्देशक मनु नायक इस बारे में बताते हैं कि – “इस विदाई गीत के लिए हमारे सामने पहली पसंद तो लता दीदी थीं लेकिन उनकी डेट तत्काल नहीं मिल रही थी फिर उनकी फीस को लेकर भी हमारे लिए थोड़ी उलझन थी। अंततः हम लोगों ने शमशाद बेगम से इस गीत को गवाना चाहा। खोजबीन करने पर पता चला कि शमशाद बेगम अब गाना बिल्कुल कम कर चुकीं हैं। ऐसे में हम लोगों ने मुबारक बेगम को इस गीत के लिए एचएमवी से अनुबंधित कर लिया। मुबारक बेगम स्टूडियो पहुंची और रिहर्सल भी की। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। उनकी आवाज में यह गाना जम भी रहा था। लेकिन दिक्कत आ रही थी महज एक शब्द के उच्चारण को लेकर। गीत में जहां ‘राते अंजोरिया’ शब्द है उसे वह रिहर्सल में ठीक उच्चारित करती थीं लेकिन पता नहीं क्यों जैसे ही रिकार्डिंग शुरू करते थे वह ‘राते अंझुरिया’ कह देती थीं। इसमें हमारी पूरी-पूरी एक शिफ्ट का नुकसान हो गया। उस रोज पूरे छह घंटे में मुबारक बेगम से ‘अंजोरिया’ नहीं हुआ वह ‘अंझुरिया’ ही रहा। अंतत: हमनें अनुबंध की शर्त के मुताबिक उनका और सारे साजिंदों व तकनीशियनों का भुगतान किया और अगले ही दिन सुमन कल्याणपुर को अनुबंधित कर उनकी आवाज में यह विदाई गीत रिकार्ड करवाया। चूंकि हम एचएमवी से पहले ही अनुबंध कर चुके थे, ऐसे में गीत न गवाने के बावजूद मुबारक बेगम का नाम टाइटिल में हमें देना पड़ा।”

सुमन कल्याणपुर ने एक बार 'ए मेरे वतन के लोगो' इस गीत को लेकर बड़ा खुलासा किया था। कल्याणपुर ने बताया कि 1964 में पंडित जवारहलाल नेहरू के सामने यह गीत गाने के लिए मुझे बुलाया गया था, रिहर्सल भी हुई थी, लेकिन मंच के पास पहुंचते ही मुझे इस गाने की बजाय दूसरा गाना गाने के लिए कहा गया। कल्याणपुर ने कहा कि इस बात का अब तक पता नही लगा कि आखिर यह गाना मुझसे क्यों छीना गया?
सुमन जी ने "बात एक रात की (1962 )","दिल एक मंदिर (1963 )","दिल ही तो है (1963 )","जहाँआरा (1964 )","नूरजहाँ (1967 )","साथी (1968 )","पाकीज़ा (1971 )",सहित अन्य कई फिल्मों में लगभग 740 गाने गाए हैं।
सुमन जी ने लता दी के साथ हेमंत दा के संगीत निर्देशन में एक डुएट भी गाया है।
उनके द्वारा गाए कुछ प्रसिद्द गाने हैं :-
"ना तुम हमें जानो ना हम तुम्हें जाने" ,"छोडो मोरी बइयां" ,"मेरे महबूब न जा" ,"बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बांधा है","आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर ज़बान पर " ,दिल गम से जल रहा (शमा ),"बुझा दिए हैं (शगुन ),"मेरे संग गा (जानवर ),"जिंदगी इम्तहान लेती है (नसीब )","जो हम पे गुजरती है (मोहब्बत इसको कहते हैं )" इत्यादि।
साल 2010 में उन्हें महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रतिष्ठित लता मंगेशकर अवार्ड स्व सम्मानित किया गया था।

प्रस्तुत है उनके गाए एक गाने की कुछ लाइनें :-

मोरे अंगना के सोन चिरईया नोनी~
अंगना के सोन चिरईया नोनी~
तैं तो उड़ी जाबे पर के दुवार
तैं तो चली देबे पर के दुवार

अंगना मा तुलसी के, बिरवा लगाए ओ ओओ~ओ
चंदा के उगते मा, दिया ला जलाए ओ ओओ~ओ
बांधी लैबे अचरा मा, बांधी लैबे अचरा म
बांधी लैबे अचरा मा, राते अंजोरिया~ हो~ओओ~हो
जोरी लैबे सोनहा भिनसार
तैं तो छोड़ी देबे दाई के दुवार
तैं तो उड़ी जाबे पर के दुवार

टिमकत चंदैनी के, बेनी गथाए ओ ओओ~ओ
बादर के काजर मा, आंखी रचाए ओ ओओ~ओ
लहरा के लुगरा ले, लहरा के लुगरा ले
लहरा के लुगरा ले, भंवरी के ककनी हो~ओओ~हो
टिकी डारे चंदा कपार
तैं तो उड़ी जाबे पर के दुवार
तैं तो चली देबे पर के दुवार

तिरिया के चोला ला, कोन्हो झन पाए ओ ओओ~ओ
तन ले करेजा ला, कईसे बिलगाए ओ ओओ~ओ
भईया हा रोवय तो, भईया हा रोवय तो
भईया हा रोवय तो, रोवय जंहूरिया हो~ओओ~हो
दीदी के तलफे दुलार
तैं तो चली देबे पर के दुवार
तैं तो उड़ी जाबे पर के दुवार
मोरे अंगना के सोन चिरईया नोनी~
तैं तो उड़ी जाबे पर के दुवार
तैं तो चली देबे पर के दुवार

"धन्यवाद "
 —:

Tuesday, 26 January 2016

26 जनवरी : 67वें गणतंत्र पर इन सब प्रश्नों का उत्तर कहाँ से मिलेगा? ------ विजय राजबली माथुर

*********************** बाल कलाकार साजिद के अभिनय पर बाल गायिका शांति माथुर द्वारा गाये 'नन्हा-मुन्ना राही' गीत द्वारा बच्चों के लिए जो कल्पना की गई थी वह आज गण तंत्र के 66 वर्ष पूर्ण होने पर कहाँ है ?
*******************************************'नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुटठीमें क्या है? गीत द्वारा बच्चों द्वारा लिए गए संकल्प बाजारवाद द्वारा क्या आज कुचल नहीं दिये गए हैं? बच्चों का अधिकांश आज मुफ़लिसी का शिकार क्यों है?       *********************************************************************************'आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की ' द्वारा बच्चों को जो स्वतन्त्रता सेनानियों का बलिदान समझाया गया था वह शिक्षा अब आज कहाँ काफ़ूर हो गई है?

********** ********************************************************************'हम से है वतन हमारा' द्वारा बच्चों में जो देश-भक्ति का संचार किया गया था वह अमीरी-गरीबी की खाई में कैसे गायब हो गया ?
  **********************************************************************'एक बटा दो , दो बटा  चार ' द्वारा बच्चों के माता-पिता के पारस्परिक सौहार्द की जो परिकल्पना पेश की गई थी क्या आज के  मंहगाई के वातावरण में उसका क्षरण नहीं हुआ है जिससे  बच्चों के भविष्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है?   ********************************************'दिल ही तो है अपना' गीत में राज कपूर साहब जिस सदाशयता की प्रेरणा बच्चों को देते दीखते हैं क्या वैसी प्रेरणा आज बच्चों दी जा रही है? नहीं तो फिर आज के हालात पर दुख क्यों?    *********************************************'आज की ताजा खबर' में बालकलाकार साजिद बाल गायिका शांति माथुर की आवाज़ से जिन हालात का वर्णन करते हैं क्या उनमें आज कोई सुधार हुआ है? या माहौल और बद से बदतर हुआ है? आज 67वें गण तंत्र पर इन सब प्रश्नों का उत्तर कहाँ से मिलेगा?   

Tuesday, 19 January 2016

सुरभि रंजन जी के जन्मदिवस पर उनके भजन



19 जनवरी 56 वें जन्मदिवस पर :

जन्मदिनमुबारक हो। हम आपके सुंदर,स्वस्थ,सुखद,समृद्ध उज्ज्वल भविष्य एवं दीर्घायुष्य की मंगल कामना करते हैं।
************
ABOUT SURABHI : 


"I have done my BA in English Literature, Sanskrit Literature and Classical Vocal Music from Allahabad University and MA in Hindustani Classical Vocal Music from Allahabad University and Sangeet Prabhakar from Prayag Sangeet Samiti. I am an approved artist of All India Radio and TV. I have been performing there for more than 25 years.

As president of IASOWA UP have organized many cultural programs and informative sessions in the ladies club. As President of Akanksha UP I have taken many new initiatives for the safety and empowerment of Women and Girls.

I am an ardent follower of Sri Sri Paramahansa Yogananda and have been doing Kriya Yoga meditation for 18 years. I also lead the meditation on special occasions.

I have released 2 CDs of Bhajans, in which I have written, composed and sung. They have been sold worldwide by Moser Baer and T-Series. I have also given numerous concerts of Lata mangeshkar Songs, Bhajans and light music. 

Some of the awards and honours given to me are the HT Woman of the year 2014, Sur Kokila Award by the Chief Minister of UP, Shaan-e-Avadh Sammaan by Uttar Pradesh Awards Society, Global Award 2010 by the Global Awards Society, Title of Melody Queen by Lucknow Management Association, Sangeet Shiromani by Sanskar Bharti and Title of Nightingale of Lucknow by Club of Lucknow.

My hobbies are interior decoration, embroidery and textile designing. I have done a diploma in textile designing from Agra University.

My husband is Alok Ranjan , IAS. Chief Secretary of Uttar Pradesh and I have two very bright and talented sons Shivam and Shikhar and a very sweet daughter in law Prashasti."

Monday, 18 January 2016

कुंदन लाल सहगल भारतीय सिनेमा के पहले महानायक ------ Dhruv Gupt




कितना नाज़ुक था दिल ये न जाना !
कुंदन लाल सहगल भारतीय सिनेमा के पहले महानायक रहे हैं जिनसे आधुनिक सिनेमा की यात्रा शुरू हुई थी। सिनेमा की अति नाटकीयता के उस दौर में उन्होंने सहज अभिनय के मुहाबरे गढ़े, जिसका अनुकरण बाद के अभिनेताओं ने किया।1932 में फिल्म 'जिन्दा लाश' से अपनी अभिनय-यात्रा शुरू करने वाले सहगल साहब ने अगले पंद्रह वर्षों में छत्तीस फिल्मों में नायक की भूमिकाएं निभाई, जिनमें प्रमुख थीं - सुबह का सितारा, यहूदी की लड़की, राजरानी मीरा, चंडीदास, देवदास, स्ट्रीट सिंगर, बड़ी बहन, दुश्मन, ज़िन्दगी, परिचय, लगन, तानसेन, भक्त सूरदास, भंवर, शाहज़हां, कुरूक्षेत्र, परवाना और उमर खैयाम। वे रूपहले परदे के पहले देवदास थे। अभिनय के अलावे वे भारतीय सिनेमा के पहले सुरीले गायक भी रहे हैं। पाकिस्तानी शायर अफ़ज़ाल अहमद सैयद के शब्दों में - 'सिनेमा का संगीत सहगल ने ईजाद किया। फ़क़ीरों-सा बैराग, साधुओं-सी उदारता, मौनियों-सी आवाज़, हज़ार भाषाओं का इल्म रखने वाली आंखें, रात के पिछले पहर गूंजने वाली सिसकी जैसी ख़ामोशी, और पुराने वक़्तों के रिकार्ड की तरह पूरे माहौल में हाहाकार मचाती एक सरसराहट। वह कौन-सी गंगोत्री है, जहां से निकल कर आती है सहगल की आवाज़ ?' बालम आय बसो मेरे मन में, दुख के दिन अब बीतत नाहीं, एक बंगला बने न्यारा, बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय, करूं क्या आस निरास भई, जब दिल ही टूट गया, गम दिये मुस्तकिल, चाह बर्बाद करेगी हमें मालूम न था जैसे उनके गीतों के मुरीद आज भी लाखों की संख्या में हैं।
कुंदन लाल सहगल की पुण्यतिथि (18 जनवरी) पर भावभीनी श्रधांजलि !





     
Rajeev Malaviya एक विदेशी ने के एल सहगल को ज़िन्दा कर दिया एक बार सुनके देखें रौंगटे खड़े हो जाऐंगे


एक विदेशी ने के एल सहगल को ज़िन्दा कर दिया एक बार सुनके देखें रौंगटे खड़े हो जाऐंगे
Posted by Rajeev Malaviya on Friday, October 30, 2015

Thursday, 14 January 2016

यौमे पैदाईश (14 जनवरी) :कैफ़ी आज़मी ------ Dhruv Gupt

*****Sayyid Akhtar Hussein Rizvi, known as Kaifi Azmi (January 14, 1919 -- May 10, 2002) was an Indian Urdu poet. He was considered to be one the greatest Urdu poets of 20th century. Kaifi Azmi was married to Shaukhat Azmi. They have a daughter, Shabana Azmi and Baba Azmi.






Dhruv Gupt

जो दिल की राह से गुज़री है वो बहार हो तुम !
बीसवी सदी के महानतम शायरों में एक मरहूम कैफ़ी आज़मी अपने आप में यक व्यक्ति न होकर एक संस्था, एक पूरा युग थे जिनकी रचनाओं में हमारा समय और समाज अपनी तमाम खूबसूरती और कुरूपताओं के साथ बोलता नज़र आता है। एक तरफ उन्होंने आम आदमी के दुख-दर्द को शब्दों में जीवंत कर उसे अपने हक के लिए लड़ने का हौसला दिया तो दूसरी तरफ सौंदर्य और प्रेम की नाज़ुक संवेदनाओं को इस बारीकी से बुना कि पढ़ने-सुनने वालों के मुंह से बरबस आह निकल जाय। कैफ़ी साहब साहिर लुधियानवी और शकील बदायूनी की तरह उन गिने-चुने शायरों में थे जिन्हें अदब के साथ सिनेमा में भी अपार सफलता और शोहरत मिली। 1951 में फिल्म 'बुज़दिल' के लिए उन्होंने पहला गीत लिखा- 'रोते-रोते गुज़र गई रात'। उसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। उनके लिखे सैकड़ों फ़िल्मी गीत आज हमारी अनमोल संगीत धरोहर का हिस्सा हैं। गीतकार के रूप में उनकी प्रमुख फ़िल्में हैं - शमा, गरम हवा, शोला और शबनम, कागज़ के फूल, आख़िरी ख़त, हकीकत, रज़िया सुल्तान, नौनिहाल, सात हिंदुस्तानी, अनुपमा, कोहरा, हिंदुस्तान की क़सम, पाक़ीज़ा, उसकी कहानी, सत्यकाम, हीर रांझा, हंसते ज़ख्म, अनोखी रात, बावर्ची, अर्थ, फिर तेरी कहानी याद आई। इतनी सफलता के बावज़ूद हिंदी फ़िल्मी गीतों के बारे में उनका अनुभव यह था - 'फ़िल्मों में गाने लिखना एक अजीब ही चीज थी। आम तौर पर पहले ट्यून बनती थी, फिर उसमें शब्द पिरोए जाते थे। ठीक ऐसे कि पहले आपने क़ब्र खोद ली, फिर उसमें मुर्दे को फिट करने की कोशिश की। कभी मुर्दे का पैर बाहर रहता था, कभी हाथ। मेरे बारे में फ़िल्मकारों को यकीन हो गया कि मैं मुर्दे ठीक गाड़ लेता हूं, इसलिए मुझे काम मिलने लगा।' उन्होंने फिल्म हीर रांझा, गरम हवा और मंथन के लिए संवाद भी लिखे थे। इस विलक्षण शायर और गीतकार के यौमे पैदाईश (14 जनवरी) पर हमारी हार्दिक श्रधांजलि, उनकी एक ग़ज़ल के साथ !
इतना तो ज़िन्दगी में किसी की ख़लल पड़े
हंसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़े
जिस तरह हंस रहा हूं मैं पी-पी के अश्क-ए-ग़म
यूं दूसरा हंसे तो कलेजा निकल पड़े
एक तुम के तुमको फ़िक्र-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ है
एक हम के चल पड़े तो बहरहाल चल पड़े
मुद्दत के बाद उसने जो की लुत्फ़ की निगाह
जी ख़ुश तो हो गया मगर आंसू निकल पड़े
साक़ी सभी को है ग़म-ए-तश्नालबी मगर
मय है उसी के नाम पे जिस के उबल पड़े   
**********************************************************************************************

Saturday, 9 January 2016

महेंद्र कपूर जी की जयंती (9 जनवरी) ------ कुलदीप कुमार 'निष्पक्ष'


सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक महेंद्र कपूर जी जयंती (9 जनवरी) :


है रीत जहाँ की प्रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूँ
भारत का रहने वाला हूँ, भारत की बात सुनाता हूँ/ सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक महेंद्र कपूर जी को उनकी जयंती (9 जनवरी) पर नमन्।
देशभक्ति गीतों के लिए प्रसिद्ध महेंद्र कपूर जी का कैरियर नौशाद अली की फ़िल्म 'सोहनी महिवाल' से शुरू हुआ था। इसके बाद फ़िल्म नवरंग के गीत 'आधा है चंद्रमा रात आधी' से काफी लोकप्रियता प्राप्त हुई। जिस तरह राज कपूर के लिए मुकेश और शम्मी कपूर के लिए रफ़ी ने बहुत गीत गए ठीक उसी तरह महेंद्र जी ने मनोज कुमार के लिए बहुत से फिल्मों में गीत गए जिनमें उपकार, पूरब और पश्चिम, रोटी कपड़ा और मकान और क्रांति जैसी फ़िल्में शामिल है। इन्होंने निर्माता और निर्देशक बी•आर• चोपड़ा के फिल्मों के लिए भी बहुत गीत गए जिनमें धूल का फूल, गुमराह, वक़्त, हमराज़ और धुंध जैसी फ़िल्में शामिल हैं। कैरियर के शुरुवाती दौर से ही मोहम्मद रफ़ी साहब और महेंद्र कपूर जी के बीच काफी बढ़िया दोस्ती थीं। महेंद्र जी रफ़ी साहब को अपना गुरु भी मानते थे। और कैरियर के शुरुवाती गानों में उन्होंने रफ़ी साहब को कॉपी भी करने की कोशिस की जो उनके गीतों में साफ़ झलकता है। महेंद्र कपूर जी ने हिंदी के अलावा मराठी, पंजाबी और भोजपुरी आदि क्षेत्रीय भाषाओ में लगभग 25000 हज़ार गीतों को अपने स्वर से संवारा है। इन्होंने काफी भजन भी गाएं हैं। यह पहलें भारतीय गायक थे जिन्होंने कोई अंग्रेजी गीत रिकॉर्ड किया था।
महेंद्र कपूर जी को 1968 में उपकार फ़िल्म के गीत 'मेरे देश की धरती सोना उगले' के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार, 1964 में गुमराह फ़िल्म के गीत 'चलों एक बार फिर से', 1968 में हमराज़ फ़िल्म के गीत 'नीले गगन के तले, और 1975 में आयी फ़िल्म रोटी कपड़ा और मकान के गीत 'और नहीं बस और नहीं' के लिए कुल मिलाकर तीन बार फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला था।
महान गायक को उनकी जयंती पर उनके एक अमर गीत के साथ श्रद्धा सुमन समर्पित।
मैं अकेला बहोत देर चलता रहा
अब सफ़र जिंदगानी का कटता नहीं
जब तलक़ कोई रंगीन सहारा ना हो
वक्त काफ़िर जवानी का कटता नही
तुम अगर हमकदम बन के चलती रहो
मैं ज़मींपर सितारें बिछाता रहूँ
तुम मुझे देखकर मुस्कुराती रहो
मैं तुम्हे देखकर गीत गाता रहूँ
तुम अगर साथ देने का वादा करो
मैं यूँ ही मस्त नग्में लूटाता रहूँ।
*************************************************************************************************************
***************************************************************************************************************

Friday, 8 January 2016

Nanda 8 January 1939

Nanda (8 January 1939 – 25 March 2014) :



Published on May 14, 2013
Nanda (January 8, 1939, - March 25,2014) was born on to a Marathi-speaking family in Bombay. Her dad was actor Master Vinayak, and mom's name was Meenaxi. She has two brothers and a sister, who married into the Sindhi-speaking Gurbaxani family.

She starred with Shashi Kapoor in a lot of films while he was a newcomer, but they were not successful. But they later had a super hit with Jab Jab Phool Khile (1965). In this film Nanda played a westernised role for the first time and it helped her image.Her favorite song that was famously picturized on her in the film was "Yeh Samaa." Shashi Kapoor later declared that Nanda was his favorite heroine. Also, Nanda too, declared Shashi Kapoor as her favourite hero. She also has some more films with Shashi Kapoor to her credit. They are Mehandi Lagi Mere Haath, Raja Saab and Neend Hamari Khwab Tumhare. She also had a second hit film in 1965 with Gumnaam, which helped put her in the top league of heroines.With Manoj Kumar, she further worked in Mera Kasoor Kya Hai. She would continue to play heroine roles throughout the 1960s and signed with new leading men, such as Rajesh Khanna in the songless suspense thriller Ittefaq (1969) for which she received a Filmfare nomination as Best Actress. After Khanna became a star, he signed two more films with her, the thriller The Train (1970) and a comedy Joroo Ka Ghulam (1972). Jeetendra too did some films with her like Parivar with Sanjay Khan.

After a small role in Manoj Kumar's Shor (1972),Nanda did few more films such as Chhalia (1973), Naya Nasha (1974), then stopped appearing in films. In 1982, she came back in three films, all coincidentally playing heroine Padmini Kolhapure's mother in Ahista Ahista (1981 film), Mazdoor and Raj Kapoor's Prem Rog. Then she permanently retired from acting.

She has been close friends with actress Waheeda Rehman, ever since they co-starred in Kaala Bazaar. In 1965, when she was filming Jab Jab Phool Khile, director Suraj Prakash recalled that a very handsome Maharashtrian Lieutenant Colonel had been smitten by Nanda and had asked him to forward his marriage proposal to her mother, but in the end, nothing came of it. Nanda's brothers also brought home many suitors for her, but she turned them down. In 1992, a middle-aged Nanda became engaged to director Manmohan Desai at the urging of her best friend actress Waheeda Rehman. Today, Nanda lives in her residence in Mumbai interacting only with family and close friends, such as Saira Banu. After a long time she made a public appearance with Waheeda Rehman for screening of Marathi film Natarang.