कितना नाज़ुक था दिल ये न जाना !
कुंदन लाल सहगल भारतीय सिनेमा के पहले महानायक रहे हैं जिनसे आधुनिक सिनेमा की यात्रा शुरू हुई थी। सिनेमा की अति नाटकीयता के उस दौर में उन्होंने सहज अभिनय के मुहाबरे गढ़े, जिसका अनुकरण बाद के अभिनेताओं ने किया।1932 में फिल्म 'जिन्दा लाश' से अपनी अभिनय-यात्रा शुरू करने वाले सहगल साहब ने अगले पंद्रह वर्षों में छत्तीस फिल्मों में नायक की भूमिकाएं निभाई, जिनमें प्रमुख थीं - सुबह का सितारा, यहूदी की लड़की, राजरानी मीरा, चंडीदास, देवदास, स्ट्रीट सिंगर, बड़ी बहन, दुश्मन, ज़िन्दगी, परिचय, लगन, तानसेन, भक्त सूरदास, भंवर, शाहज़हां, कुरूक्षेत्र, परवाना और उमर खैयाम। वे रूपहले परदे के पहले देवदास थे। अभिनय के अलावे वे भारतीय सिनेमा के पहले सुरीले गायक भी रहे हैं। पाकिस्तानी शायर अफ़ज़ाल अहमद सैयद के शब्दों में - 'सिनेमा का संगीत सहगल ने ईजाद किया। फ़क़ीरों-सा बैराग, साधुओं-सी उदारता, मौनियों-सी आवाज़, हज़ार भाषाओं का इल्म रखने वाली आंखें, रात के पिछले पहर गूंजने वाली सिसकी जैसी ख़ामोशी, और पुराने वक़्तों के रिकार्ड की तरह पूरे माहौल में हाहाकार मचाती एक सरसराहट। वह कौन-सी गंगोत्री है, जहां से निकल कर आती है सहगल की आवाज़ ?' बालम आय बसो मेरे मन में, दुख के दिन अब बीतत नाहीं, एक बंगला बने न्यारा, बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय, करूं क्या आस निरास भई, जब दिल ही टूट गया, गम दिये मुस्तकिल, चाह बर्बाद करेगी हमें मालूम न था जैसे उनके गीतों के मुरीद आज भी लाखों की संख्या में हैं।
कुंदन लाल सहगल की पुण्यतिथि (18 जनवरी) पर भावभीनी श्रधांजलि !
Rajeev Malaviya एक विदेशी ने के एल सहगल को ज़िन्दा कर दिया एक बार सुनके देखें रौंगटे खड़े हो जाऐंगे
एक विदेशी ने के एल सहगल को ज़िन्दा कर दिया एक बार सुनके देखें रौंगटे खड़े हो जाऐंगे
Posted by Rajeev Malaviya on Friday, October 30, 2015
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